*चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करने के बाद पूर्व जन्म के कर्मानुसार जीव को यह दुर्लभ मानव शरीर प्राप्त होता है | मानव शरीर चौरासी लाख योनियों में सर्वश्रेष्ठ इसलिए कहा गया है क्योंकि यह शरीर देवताओं के लिए भी दुर्लभ है | मानव शरीर की महत्ता को प्रतिपादित करते हुए गोस्वामी तुलसीदास जी अपने मानस में लिखते हैं | "साधन धाम मोक्ष कर द्वारा ! पाइ न जेहि परलोक संवारा !!" इस शरीर को मोक्ष का द्वार कहा गया है और साधना करने का मुख्य केंद्र कहा गया है , क्योंकि जो साधन मानव शरीर से संभव है वह अन्य शरीर में कदापि संभव नहीं हो सकता | इस दुर्लभ मानव शरीर को पाकर मनुष्य को अपना लोक परलोक दोनों बनाने का प्रयास करना चाहिए | यह तभी हो सकता है जब मनुष्य को अपने जीवन का सत्य और जीवन के कर्तव्य का आभास हो | मनुष्य को अपने कर्तव्यों का आभार सत्कथाओं के सेवन से हो सकता है | अपने पूर्वजों / महापुरुषों के चरित्रों का अनुसरण करने के लिए उनकी कथाओं को श्रवण करना ही एकमात्र साधन है और सत्कथाएं सत्संग के माध्यम से ही प्राप्त हो सकती है | संसार में किस प्रकार रहना चाहिए , घर में रहते हुए भी बंधन ना हो , कोई भी काम ऐसा ना हो जिससे किसी भी प्राणी का अहित होता हो तथा स्वाभाविक ही सबका हित परहित होता रहे | इसकी सही जानकारी उन पुरुषों की जीवन घटनाओं से ही प्राप्त होती हैं जो ऐसे हैं और जिनके जीवन में येवचीजें प्रत्यक्ष देखी जाती थी और हमें यह सब उनकी कथाओं को पढ़ने के बाद या सत्संग करने के बाद ही प्राप्त हो सकता हैं | इस दुर्लभ मानव शरीर को मोक्ष प्राप्त कराने के लिए सत्संग एवं सत्कथा का अनुपम योगदान है जिसने सत्संग एवं सत्कथाओं का आश्रय लिया उसका मानव जीवन पाना सार्थक हो गया और वह भवसागर से पार हो गया |*
*आज हम जिस युग में जीवन यापन कर रहे हैं उसे आधुनिक या वैज्ञानिक युग कहा जाता है | आधुनिकता की चकाचौंध में आज मनुष्य इस प्रकार विस्मृत हो गया है कि उसे अपने पूर्वजों े के चरित्रों को पढ़ने का या तो अवसर ही नहीं मिलता या फिर वह पढ़ना ही नहीं चाहता | हमारे महापुरुषों ने क्या मर्यादा स्थापित की थी , इसे जानने का आज कोई प्रयास भी नहीं करना चाहता है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज सत्संग कथाओं के आयोजन में प्राया देखता हूं कि लोग अपने घर से तो सत्संग करने के नाम पर बड़े प्रेम से निकलते हैं परंतु कथा मंडप में पहुंचने के बाद उनका ध्यान कथा की अपेक्षा कहीं अन्यत्र ही लगा रहता है | सत्संग करने वाले लोग व्यर्थ का तर्क - कुतर्क करके समय व्यतीत कर लेते हैं परंतु अपने मूल उद्देश्य पर किंचित भी अडिग नहीं रह पाते हैं | यही कारण है कि आज मानव एवं मानवता दोनों पतित हो रहे हैं | सत्कथाओं के माध्यम से अपने पूर्वजों के चरित्रों को पढ़ने एवं सुनने से जो लाभ मिला करता था वह आज नहीं प्राप्त हो पा रहा है क्योंकि आज मनुष्य सब कुछ गूगल से ही प्राप्त कर लेना चाहता है | यद्यपि गूगल पर सब कुछ मिल सकता है परंतु शायद वह सारतत्व न मिले जिसकी खोज हमारे महर्षियों ने की थी | मानव जीवन को सफल करने के लिए भगवान की सत्कथाओं को सेवन करते रहना चाहिए और उसका माध्यम इस कराल कलयुग में सत्संग के अतिरिक्त और कुछ नहीं है |*
*यह जो जीवन हमें आज प्राप्त हो रहा है यह अनेक जन्मों के पुण्य का फल है आगे भी हमें इस मृत्युलोक में ना आना पड़े इसके लिए हमें मोक्ष प्राप्ति का उपाय करते रहना चाहिए |*