*इस संसार में मनुष्य को सर्वश्रेष्ठ प्राणी कहा जाता है क्योंकि सभी प्राणियों की अपेक्षा ईश्वर ने मनुष्य को बुद्धि - विवेकरूपी अमूल्य निधि प्रदान की है | मनुष्य अपने बुद्धि - विवेक का सकारात्मक प्रयोग करके स्वयं तो सफल हुआ ही साथ ही सम्पूर्ण मानव समाज के लिए नित्य नवीन ज्ञान प्रस्तुत करके संसार के विकास में सहयोगी हुआ है | मनुष्य को किसी भी कार्य को सम्पादित करने के पहले अपने विवेक से उस कार्य के विषय में गहन तिंतन अवश्य करना चाहिए क्योंकि बिना विचार किये किसी भी कार्य को करने वाला आवश्यक नहीं है कि सफल ही हो जाय | शायद इसीलिए कहा भी गया है कि :--" बिना विचारे जो करइ , सो पाछे पछताय ! काम बिगारे आपनो , जग में होत हंसाय !!" बिना विचारे कार्य करने वाले को बाद में पछताना ही पड़ता है और ऐसे व्यक्ति का उद्देश्य तो निष्फल होता ही है साथ ही वह संसार में हंसी का पात्र भी बनता है | किसी भी विषय पर विचार करके कार्य करने वाले को ही पण्डित कहा गया है | जो बिना विचारे कार्य करते हैं वे पश्चाताप करते रहते हैं | हमें पुराणों में अनेक कथायें प्राप्त होती हैं जहाँ ब्रह्मा जी एवं श्कर जी ने दैत्यों की तपस्या पर प्रसन्न होकर लाभ हानि विचार किये बिना अनेकों वरदान दे दिये और उनके वह वरदान समस्त सृष्टि के घातक सिद्ध हुए | वृकासुर (भस्मासुर) को वरदान देने के बाद तो भगवान शिव को अपने प्राण बचाकर भागना भी पड़ा था | तब भगवान विष्णु जी ने भी यही कहा था कि किसी को भी वरदान गेने के पहले यह तो अवश्य विचार कर लें कि वह इस वरदान के माध्यम से सकारात्मक कार्य करेगा या नकारात्मक | जब देवता बिना विचारे कार्य करने पर पछताते रहे हैं तो साधारण मनुष्य की बात ही क्या है | सदैव मनुष्य को किसी भी विषय पर अपनी बुद्धि एवं विवेक को कष्ट देकर स्वयं से तर्क करना करना चाहिए कि यह कार्य उचित होगा या अनुचित ? जब आप खूब विचार कर लें तभी सम्बनिधित कार्य सम्पादित करने का विचार करें | यही विवेकी एवं विज्ञ पुरुषों के लक्षण कहे गये हैं |*
*आज कलियुग का प्रभाव लोगों के सिर चढ़कर बोल रहा है | आज का मनुष्य स्वयं को अधिक बुद्धिमान एवं विद्वान समझने लगा है | यह विद्वान ऐसे हैं जो स्वयं को ही श्रेष्ठ समझते हुए अपनी भूल को भी स्वीकार नहीं कर पाते हैं | किसी भी कार्य को संपादित करने के पहले अपनी बुद्धि - विवेक से तर्क न करके मनुष्य कार्य संपादित कर देता है और समाज की दृष्टि में जब कार्य को गलत सिद्ध कर दिया जाता है तो वही मनुष्य जिसने अपनी बुद्धि से तर्क नहीं किया था वही समाज के विद्वानों से तर्क कुतर्क करने लगता है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज समाज में ऐसे विद्वानों की एक लंबी कतार देख रहा हूं जो स्वयं को विद्वान तो कहते हैं परंतु उनके कार्य विद्वता के विपरीत ही होते हैं | किसी भी विषय पर बिना विचार किए कूद पड़ने वाले यह तथाकथित विद्वान अपनी भूल भी नहीं मानते जिसके कारण वह समाज में हंसी के पात्र बनते रहते हैं | विद्वान का अर्थ होता है कि व्यक्ति पौराणिक , धार्मिक , सामाजिक विषयों का अध्ययन करके समाज को दिशा दिखाए | परंतु आज विवेकशीलता एवं विद्वता का अर्थ भी बदल सा गया है | बिना सोचे समझे किसी भी विषय पर टिप्पणी कर देने वाले यह लोग किसी के उचित मार्गदर्शन को अपना अपमान समझकर क्रोध में भर जाते हैं एवं तर्क करने लगते हैं | ऐसे लोगों को विचार करना चाहिए कि वह क्या है ? और उनके कृत्य कैसे हैं ? ईश्वर के द्वारा प्रदत्त बुद्धि एवं विवेक का यदि किंचित भी प्रयोग कर लिया जाए तो शायद हंसी का पात्र बनने से बचा जा सकता है | मनुष्य को कोई भी कार्य बिना विचारे नहीं करना चाहिए क्योंकि बिना विचारे किए जाने वाले कार्य निष्फल तो हो ही जाते हैं साथ ही अपमान का भी कारण बन जाते हैं |*
*मनुष्य इस सृष्टि में सर्वश्रेष्ठ है अत: मनुष्य को अपनी श्रेष्ठता सिद्ध करने के लिए सकारात्मक रहना चाहिए | मनुष्य जब नकारात्मकता को माध्यम बनाकर स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने का प्रयास करता है तभी वह हंसी का पात्र बन जाता है |*