*सृष्टि के आदिकाल से ही इस धरा धाम पर मनुष्य विचरण कर रहा है | मनुष्य ने अपने जीवन को सुचारू ढंग से चलाने के लिए जहां अनेकों प्रकार के संसाधन बनाएं वही समय-समय पर वह ईश्वर का भी आश्रय लेता रहा है इसके लिए मनुष्य ने वैदिक कर्मकांड एवम पूजा पाठ का सहारा लिया | सतयुग से लेकर के त्रेता , द्वापर तक ईश्वर को प्रसन्न करने के लिए अनेक विधान बताए गए और इन विधानों को पूर्ण भक्ति - श्रद्धा के साथ करके मनुष्य ने अपना अभीष्ट भी प्राप्त किया | छोटे से बालक प्रहलाद को उसकी पूर्ण भक्ति पर भगवान खंभे से प्रकट होकर दर्शन देते हैं | पाँच साल के बालक ध्रुव को उसकी अटूट श्रद्धा एवं विश्वास पर परमपिता परमात्मा को आकर दर्शन देना पड़ता है | यहां विचारणीय यह है कि बालक ध्रुव एवं बालक प्रहलाद के पास भगवान को मनाने के लिए ना तो कोई विधान था और ना ही पूजन सामग्री उनके पास थी तो मात्र भगवान के प्रति विश्वास की भावना एवं हृदय में उत्पन्न पूर्ण श्रद्धा , इसी को आधार बनाकर ध्रुव एवं प्रहलाद जैसे बालकों ने ईश्वर को प्राप्त किया | और भी अनेक कथानक इतिहास एवं पुराणों में पढ़ने को मिलते हैं जहां मनुष्य ने श्रद्धा एवं विश्वास के ऊपर तथा पूर्ण भक्ति भाव की भावना से ईश्वर को प्राप्त किया है | कलियुग में भगवान की कृपा को प्राप्त करने का सरल साधन सत्यनारायण व्रत कथा को बताया गया है | सत्यनारायण व्रत कथा के माहात्त्म्य में लिखा हुआ है कि :- "विशेषतः कलियुगे लघूपायो$स्ति भूतले" अर्थात :- कलियुग में विशेष रूप से सबसे छोटा एवं सरल उपाय सत्यनारायण व्रत कथा ही है | इस कथा का एवं व्रत का पालन करके सतानंद ब्राम्हण , लकड़हारा महाराज उल्कामुख , साधु वैश्य एवं तुंगध्वज आदि ने अपने अभीष्ट को प्राप्त किया है | यदि उनको उनका अभीष्ट प्राप्त हुआ तो उसमें पूर्ण समर्पण की भावना एवं विश्वास की भावना प्रबल थी | कहने का तात्पर्य है कि कोई भी पूजा पाठ सामग्री की अपेक्षा पूर्ण भक्ति भाव एवं समर्पण की भावना से ही सफल होता है उसमें भव्यता हो या ना हो |*
*आज कलियुग में भारत देश के पूर्वांचल एवं उत्तरांचल में विशेष रूप से सत्यनारायण व्रत कथा घर घर में कहीं व सुनी जाती है परंतु उसका फल शायद ही लोगों को मिल पाता है | लोग प्रायः शिकायत करते हैं कि हमने भगवान सत्यनारायण स्वामी का पूजन किया , व्रत किया परंतु उसका फल नहीं मिला | ऐसे सभी शिकायतकर्ताओं से मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" पूछना चाहता हूं कि सत्यनारायण व्रत कथा में बताए गए विधान का कितने प्रतिशत उनके द्वारा पालन किया जा रहा है | सत्यनारायण व्रत कथा के माहात्त्म्य में स्पष्ट लिखा हुआ है कि सुबह स्नान ध्यान करके व्रत का संकल्प लिया जाय और दिन भर व्रत रह करके सायंकाल के समय अपने बंधुओं के सहित अपने ब्राह्मण को बुलाकर भगवान सत्यनारायण स्वामी का पूजन किया जाय | प्रसाद का वितरण तत्पश्चात अपने बंधुओं सहित ब्राह्मण को भोजन कराकर दक्षिणा देकर तब विदा करें | सनातन धर्म की मान्यता रही है कि कोई भी व्रत सूर्योदय से लेकर सूर्योदय तक माना जाता है उसी प्रकार सत्यनारायण भगवान का व्रत विधान जिस दिन किया जाय उस दिन रात्रि में निद्रा का त्याग करके रात्रि जागरण करते हुए भगवान का कीर्तन भजन आदि करते रहना चाहिए | दूसरे दिन प्रात:काल सूर्योदय के समय स्नान करके सूर्य को अर्घ्य देकर तब व्रत का पारण किया जाता है | इस विधान को आज मानने वाला एवं पालन करने वाला कोई नहीं दिखाई पड़ता है | पूजन सामग्री में भव्यता तो दिखाई पड़ती है परंतु व्रत के विधान का पालन करना सबको कठिन लगता है तो भला फल कैसे प्राप्त होगा ? पूजन की सामग्री भले ही कम हो परंतु बताए गए विधान के अनुसार यदि कोई भी व्रत कर लिया जाय तो उसका फल अवश्य मिलता है | आज व्यक्ति पूजन करने तो बैठता है परंतु उसका ध्यान पूजन में न लग करके घर के अन्य कार्यों में लगा रहता है और उसके बाद भी मनुष्य फल की अपेक्षा करता है | जो कि संभव नहीं है |*
*जितनी देर के लिए भगवान की पूजा में बैठा जाय उतनी देर के लिए मन को संयमित रखने से ही पूजन का फल प्राप्त हो सकता है जो कि मनुष्य आज नहीं कर पा रहा है और स्वयं का दोष ना देख कर के दोषी व्रत विधान एवं विद्वान को बताता है |*