*इस धराधाम पर जन्म लेकर के मनुष्य सभी प्राणियों में सर्वश्रेष्ठ है तो इसके कई कारण हैं | इन्हीं कारणों में मुख्य है मनुष्य का जीवनमूल्य | मनुष्य जीवन की उत्कृष्टता और सार्थकता का मानदंड जीवन मूल्य ही है | हमारी सनातन संस्कृति मैं हमारे ऋषियों - महर्षियोंं का महत्वपूर्ण योगदान रहा है उन्होंने जीवन मूल्यों को श्रेष्ठतन आदर्शों एवं समग्र व्यक्तित्व विकास के प्रेरक स्रोतों के रूप में जीवन शैली के साथ गूंथा है | जीवन मूल्य क्या है ? इसको कैसे स्थापित किया जाता है ? और इसका निर्माण कैसे होता है ? इसका वर्णन हमारे ऋषियों ने किया है और इसे बताते हुए कहा है कि जीवन मूल्यों और आदर्शों जैसे :- मोक्ष , आत्मज्ञान , कैवल्य आदि के साथ जुड़कर आध्यात्मिक जीवन शैली का निर्माण करते हैं , और मानवीय सद्गुणों जैसे :- प्रेम , आत्मीयता , दया , करुणा , सेवा सहिष्णुता आदि के रूप में मानवता का आकार लेकर के व्यावहारिक जीवन में नैतिकता को परिभाषित करते हैं इस प्रकार मानव जीवन की गरिमा और विकास का आधार जीवन मूल्य ही है | मानव इतिहास में समाज संस्कृति और सभ्यताओं का स्वर्णिम काल इन्हीं जीवन मूल्यों को सीढी बनाकर के उच्च शिखर पर पहुंचा है | जो भी मनुष्य जीवन के मूल्य को न समझ कर के इसके विपरीत आचरण करता है उसका निरंतर पतन होने लगता है | जीवन मूल्यों का निर्माण करने के लिए आवश्यक है कि मनुष्य अपने संस्कारों का पालन करते हुए सदग्रंथों का अध्ययन करें एवं उसमें बताए गए दिशा निर्देशों का पालन करें , ऐसा करके मनुष्य एक दूसरे के प्रति सहिष्णु एवं दयावान हो सकता है | जीवन मूल्य का अर्थ सीधे-सीधे यह माना जाय कि अपने जीवन की भांति ही दूसरों की जीवन के अर्थ को समझना एवं उनके साथ उसी प्रकार व्यवहार करना जैसा स्वयं को अच्छा लगता हो | हमारे भारत देश में जीवन मूल्यों की स्थापना करने वाले अनेकों सदग्रंथ भरे पड़े हैं आवश्यकता है उनके अध्ययन करने की एवं अध्ययन करके स्वयं में आत्मसात करने की |*
*आज के आधुनिक युग में संपूर्ण मानवता जीवन मूल्य के संकट से जूझ रही है | आज मनुष्य एक दूसरे के प्रति ईर्ष्या , द्वेष एवं मात्सर्य की भावना से व्यवहार कर रहा है | आज विश्व में जितनी भी समस्याएं हैं उसका मुख्य कारण जीवन मूल्यों को ना समझ पाना ही है | आज का मनुष्य ना तो संस्कारों को समझना चाहता है और ना ही उनका पालन करता है , इसके अतिरिक्त आज सदग्रंथों का अध्ययन करने का समय भी किसी के पास नहीं बचा है यही कारण है कि जीवन मूल्यों का विघटन एवं ह्रास हो रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" यह मानता हूं कि प्राचीन सदग्रन्थ देव भाषा संस्कृत में होने के कारण सबके लिए सरल नहीं है परंतु आधुनिक चिंतन एवं सनातन साहित्य भी जीवन मूल्यों के निर्माण में सहायक सिद्ध हो सकते हैं क्योंकि आधुनिक साहित्य की नीव भी प्राचीन सिद्धांतों एवं मूल्यों से जुड़ी है | हमारे महान ऋषि मुनियों ने जिन मूल्यों को देव भाषा संस्कृत में लिखकर के दीर्घजीवी बनाया है उन्हीं मूल्यों का हिंदी अनुवाद आज भारतीय चिंतन में पहले के अपेक्षा और अधिक मुखर एवं व्यावहारिक रूप से प्रकट हुआ है | परंतु आज मनुष्य उनकी ओर देखना ही नहीं चाहता है यही कारण है कि वह निरंतर पतन की ओर अग्रसर है | यह सत्य है कि जीवन मूल्यों के पतन से समाज , संस्कृति और देश तक भी उजड़ जाते हैं आज वही देखने को मिल रहा है | आवश्यकता है मनुष्य जीवन मूल्य के विषय में चिंतन करें एवं उसको समझने का प्रयास करें यह जीवन बहुत ही सौभाग्य से प्राप्त होता है तो यूं ही गंवाया जाय |*
*जिस दिन मनुष्य जीवन मूल्य के सिद्धांत को समझ जाएगा उसी दिन इस धरा धाम पर पुनः रामराज्य की स्थापना हो पाएगी अन्यथा यह संभव नहीं लगता है |*