*हमारा
देश भारत पर्वों एवं त्योहारों का देश है | यहां पर पर्व एवं उत्सव का रस हमारे जीवन में घुला मिला हुआ है | किसी भी उत्सव के समय मन प्रफुल्लित हो जाता है | अनायास ही खुशियां मनाने लगता है , खुशियां बांटने लगता है | जीवन में जब भी कोई क्षण आनन्द
व उल्लास का आता है तो हमारा चित्त अनायास ही प्रसन्न हो जाता है और इसकी मधुरता को महसूस करता है , इस एहसास का नाम ही उत्सव है | उत्सव व उल्लास के क्षणों में व्यक्ति कुछ समय के लिए स्वयं को भूल जाता है एवं भारतीय संस्कृति में रचने बचने का प्रयास करता है | इन्हीं पर्व / त्योहारों में एक है शीतला अष्टमी का व्रत एवं पूजन | होली के ठीक ८ दिन बाद चैत्र कृष्ण पक्ष अष्टमी को शीतला अष्टमी का व्रत एवं पूजन महिलाओं द्वारा बड़े प्रेम व श्रद्धा के साथ किया जाता है | ऐसा मानना है शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता की पूजा करने से बच्चों में होने वाले हैं रोगों से रक्षा तो होती ही है साथ स्वच्छता का एक संदेश पूरे समाज में जाता है | शीतला माता का अद्भुत स्वरूप हमारे पुराणों में वर्णित है | स्कंद पुराण के अनुसार शीतला माता गर्दभ (गधे) पर सवार है , जिनके एक हाथ में झाड़ू एवं दूसरे हाथ में शीतल जल से भरा हुआ कलश विराजमान है | नीम के पत्तों की माला पहने शीतला माता स्वच्छता की देवी के साथ साथ गर्मी से उत्पन्न होने वाले सभी प्रकार की बीमारियों को अपने शीतल जल से शांत करने वाली हैं , तथा जो विस्फोटक रोग (चेचक आदि ) मनुष्य को हो जाते हैं उनसे रक्षा करने वाली देवी को ही शीतला कहा गया है | शीतला माता की पूजा करके मनुष्य अपने परिवार व समाज को स्वच्छ रखते हुए इन सभी प्रकार के रोगों से बचाने की कामना करता है | इस व्रत की एक विशेषता और है कि शीतला अष्टमी के दिन एक दिन पहले का बनाया हुआ अर्थात बासी भोजन किया जाता है जिसे बसोड़ा भी कहा जाता है | इसके पीछे भी एक रहस्य छुपा हुआ है जिसे जानने की आवश्यकता है |* *आज के भौतिकवादी युग में जहां चारों ओर सेलसनातन
धर्म के पर्व एवं त्योहारों पर उंगलियां उठाकर लोग हंसते हैं एवं सनातन
धर्म के मानने वालों को अंधविश्वासी तक कह देते हैं , वहीं आज का
विज्ञान जगत सनातन धर्म के सभी पर्वों पर शोध करके उनको मान्यता देने के लिए विवश हो रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" देख रहा हूं कि आज वैज्ञानिकों का भी मानना है कि शीतला अष्टमी का व्रत करना मनुष्य के लिए आवश्यक है क्योंकि इन्हें स्वच्छता की देवी कहा गया है | यदि मनुष्य के आसपास का परिवेश स्वच्छ रहेगा तो अनेक प्रकार के कीटाणुओं से रक्षा होगी एवं मनुष्य को रोग नहीं लगेगा | शीतला माता के हाथ में शीतल जल से परिपूर्ण कलश की व्याख्या वैज्ञानिकों ने इस प्रकार की है कि होली के बाद मौसम गर्म हो जाता है तब मनुष्य को शीतल जल ही ग्रहण करना चाहिए | एक दिन पहले का बना हुआ भोजन खाने के पीछे का रहस्य इस प्रकार बताया गया बै कि मनुष्य आज के बाद पूरी गर्मी भर बासी भोजन न खाये | इसीलिए बसोड़ा मनाने की प्रथा भी आम जनमानस में प्रचलित है | कहने का तात्पर्य है कोई भी पर्व , कोई भी त्यौहार मनाना व्यर्थ नहीं है बल्कि स्वयं में वैज्ञानिकता को समेटे हुए हैं , क्योंकि सनातन धर्म स्वयं एक वैज्ञानिक धर्म है |
विज्ञान के सारे सूत्र हमारे वेदों से ही उद्धृत हुए हैं | परंतु आज स्वयं को ज्यादा पढ़ा लिखा मानने वाला समाज इनकी अवहेलना करके अपने जीवन में दुख एवं परेशानियों का अंबार लगा रहा है | सनातन की संस्कृति एवं मान्यताएं मानव मात्र के कल्याण के लिए बनाई गई जो इसे मान रहे हैं उनका कल्याण हो ही रहा है और जो इसकी अवहेलना कर रहे हैं उनका परिणाम भी समाज देख रहा है |* *कोई भी व्रत एवं कोई भी त्यौहार प्राकृतिक समयानुकूल होना ही सनातन की दिव्यता है क्योंकि इसमें वैज्ञानिकता का भी दर्शन होता है |*