*संपूर्ण विश्व में भारत एक ऐसा देश है जहां के संस्कार एवं संस्कृति संपूर्ण विश्व पर अमिट छाप छोड़ती है | भारत ही ऐसा देश है जहां समय-समय पर नारायण ने अनेक रूपों में अवतार लिया है | वैसे तो भगवान के प्रत्येक अवतार ने कुछ ना कुछ मर्यादाएं स्थापित की हैं परंतु त्रेतायुग में अयोध्या के महाराज दशरथ के यहां मर्यादा पुरुषोत्तम के रूप में अवतार धारण करने वाले श्री राम के द्वारा स्थापित की हुई मर्यादा संपूर्ण विश्व के लिए मार्गदर्शक की भूमिका निभाती रही है | भगवान श्री राम के विषय में सर्वप्रथम बाल्मीकि जी ने रचना करके उनके चरित्रों का वर्णन किया , उसके बाद अनेक लेखकों ने श्री राम के विषय में अनेकों रचनायें की और सब का नाम रामायण ही रखा गया , परंतु आम जनमानस से दूर होने के कारण समाज का अधिकतर हिस्सा उसका लाभ नहीं उठा पाया | इसी बीच संवत १६३१ में चैत्रमास शुक्लपक्ष की नवमी से गोस्वामी तुलसीदास जी ने भगवान श्री राम के चरित्रों का वर्णन करना प्रारंभ किया और नाम दिया श्रीरामचरितमानस | जिसे आम बोलचाल में रामायण ही कहा जाता है | अवधी भाषा में लिखा गया यह ग्रंथ भारतीय इतिहास में कालजयी रचना बन गई | सनातन हिंदू के घर में कोई ग्रंथ हो ना हो परंतु रामचरितमानस की इतनी लोकप्रियता है कि वह प्रत्येक घर में देखने को मिल जाती है | यह कहा जा सकता है कि गोस्वामी तुलसीदास जी ने रामचरितमानस की रचना करके मानव जीवन सफल कर दिया है | दोहे चौपाई में लिखा गया यह ग्रंथ अपने आप में अनुपम है | रामचरितमानस की एक-एक चौपाई स्वयं में महामंत्र है | यदि मनुष्य इसे हृदय से पढ़ करके उसका अर्थ समझ ले तो उसका जीवन सफल हो सकता है ! इतना ही नहीं इन चौपाइयों को यदि विधिपूर्वक जाप कर लिया जाए तो जीवन की अनेक कठिनाइयां तो दूर होती हैं साथ ही मनुष्य की मनोकामनाएं पूर्ण हो जाती हैं क्योंकि तुलसी बाबा की लिखी हुई चौपाई साधारण ना हो करके एक अमोघ अस्त्र है | आवश्यकता है इनको समझने की एवं समझकर हृदयंगम करने की |*
*आज के युग में जहां सनातन ग्रंथों पर सनातन विरोधियों के द्वारा कुठाराघात हो रहा है वही कुछ सनातन प्रेमी भी अज्ञानता बस तुलसीदास जी की इन चौपाइयों पर प्रश्नचिन्ह उठा देते हैं | बाबा जी ने रामचरितमानस का समापन करते हुए लिखा है :-- "सत पंच चौपाई मनोहर जानि जो नर उर धरैं" ! इस छंद को पढ़कर की मानव हृदय में जिज्ञासा उत्पन्न हो जाती है कि वह सात और पाँच चौपाईयां कौन सी है जिन्हें पढ़कर के कल्याण हो सकता है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" अपने अल्प विवेकानुसार इतना ही कह सकता हूं कि मानस कि प्रत्येक चौपाई स्वयं में दुर्लभ है , परंतु यदि सत पंच चौपाई की बात की जाय तो जी पूरे मानस में कहीं की भी सात या पांच चौपाइयां हो सकती हैं | यदि इसका आध्यात्मिक अर्थ निकाला जाय तो सत का अर्थ होता है सच्चा , और पंच का अर्थ होता है निर्णय देने वाला ! अर्थात सच्चा निर्णय देने वाला | कहने का तात्पर्य है मानस कि प्रत्येक चौपाई मनोहर है और जीवन के विषय में निर्णय देने वाली एक सच्चे पंच के रूप में है और कर्तव्याकर्तव्य का बोध कराने वाली है | यदि मानस की सात या पाँच चौपाइयों को भी हृदय से पढ़ कर के उसके अनुसार कृत्य किया जाए तो काम क्रोध मोह एवं अविद्या आदि का हरण मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राम जी स्वयं कर लेते हैं | वैसे तो बाबाजी की चौपाइयों का अर्थ लगाना सागर से मोती ढूंढने के बराबर है परंतु इन चौपाइयों के अर्थ ना समझ पाने के कारण मनुष्य भ्रमित हो जाता है | आश्चर्य तो तब होता है जब विद्वान माने जाने वाले महापुरुषों के द्वारा भ्रम की स्थिति उत्पन्न कर दी जाती है | मैं यह भी मानता हूँ कि यहां उनका भी दोष नहीं है क्योंकि देखने में मानस जितना सरल है समझने में उतना ही कठिन भी है |*
*मानस को समझ पाना इतना सरल नहीं जितना हम अपने हृदय में सोच लेते है | मानस को समझने के लिए सर्वप्रथम हृदय को मन्दिर बनाकर स्वयं को मानसमय करना होगा |*