*इस संसार में जन्म लेने के बाद प्रत्येक जीव का उद्देश्य होता है भगवान की भक्ति करके उनका दर्शन करने एवं मोक्ष प्राप्त करना | इसके लिए अनेक साधन बताये गये हैं , इन सभी प्रकार के साधनों में एक विशेष बात होती है निरन्तरता | अनन्य भाव के साथ निरन्तर प्रयास करने से इस सृष्टि में कुछ भी असम्भव नहीं है | अनन्यता का अर्थ है सबमें सम भाव रखना | क्योंकि एक ईश्वर ही अनेकानेक रूपों में विभक्त होकर समस्त सृष्टि में संचरित हो रहा है | जीव जो कि ब्रह्म का ही अंश है परंतु ईश्वर की माया (काम - क्रोधादि) में फंसकर जीव यह रहस्य जानते हुए भी भूल जाता है और सांसारिक बन्धनों में स्वयं को जकड़ लेता है | यद्यपि भगवान की पदवी सर्वश्रेष्ठ है परंतु उनसे भी ऊँचा स्थान है भक्तों का क्योंकि इन्हीं भक्तों के कारण बारम्बार भगवान को इस धराधाम पर अवतरित होना पड़ा है | भगवान को प्राप्त करने के अनेक साधनों में प्राय: सभी साधन कठिन ही हैं जिसे साध पाना शायद सबके बस की बात नहीं है | इन्हीं कठिनताओं को ध्यान में रखते हुए एक सबसे सरल साधन का विधान रखा गया वह है भगवन्नाम जप का | मानस में बाबा जी लिखते हैं :-- भायं कुभायं अनख आलसहूँ | नाम जपत मंगल दिसि दसहूँ | अर्थात किसी भी भाव (जाने - अन्जाने , सोते - जागते) से यदि भगवान का नाम मुख से निकल जाता है तो मंगल ही होता है | परंतु नाम जप में भी निरन्तरता के साथ यदि अनन्यता हो तो जीव भवसागर से पार उतर सकता है | छोटा सा बालक ध्रुव कोई भी योग साधन नहीं जानता था परंतु देवर्षि नारद द्वारा बताये गये द्वादशाक्षर का निरन्तर जप करते हुए भगवान को प्राप्त कर लेता है | शबरी , गीध , प्रहलाद के अतिरिक्त अजामिल आदि ने भगवन्नाम जप के अतिरिक्त और कोई साधन किया ही नहीं परंतु इसी जप साधन के भरोसे भगवान का दर्शन करके मोक्ष के अधिकारी हो गये | कहने का तात्पर्य यह है कि यदि कुछ भी न करके निरन्तर भगवान का नाम ही जपा जाय तो मनुष्य का कल्याण हो सकता है |*
*आज हम कालक्रम के अनुसार कलियुग में जीवन यापन कर रहे हैं जिसे पाप का भण्डार कहा गया है | आज सर्वत्र अन्याय , अनीति आदि दृश्यमान है ऐसे में मनुष्य के द्वारा कोई भी साधन कर पाना बहुत ही असम्भव होता जा रहा है | आज मनुष्य अनेक बड़े बड़े धार्मिक कृत्यों में भाग तो लेता है परंतु उसके हृदय में अनन्यता एवं निरन्तरता नहीं रह गयी है यही कारण है कि मनुष्य को इन कृत्यों का यथोचित लाभ नहीं मिल पा रहा है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज देख रहा हूँ कि मनुष्य त्रिविध तापों (दैहिक दैविक एवं भौतिक) से पीड़ित होकर अनेक प्रकार के पूजा पाठ अनुष्ठान आदि करवाता है परंतु उसमें भी उसके हृदय में विश्वास की ही कमी झलकती है | जबकि बाबा तुलसीदास जी ने कलियुग के लिए एक ही साधन बताया है :- कलियुग जोग न जग्य न ज्ञाना ! एक अधार राम गुन गाना !! कलियुग केवल हरि गुन गाहा ! गावत नर पावहिं भव थाहा !! अर्थात इस कलियुग में ईश्वर प्राप्ति के लिए बताये गये अनेक साधनों में सर्वश्रेष्ठ फलदायी नाम जप ही बताया गया है | परंतु यह मनुष्य का दुर्भाग्य ही है कि वह इतने सरल साधन को भी नहीं अपना पा रहा है | आज अनेक लोग भगवान की कथायें सुनने के लिए जाते तो बड़े प्रेम से हैं परंतु जब कथाव्यास के द्वारा दो बार भगवान का नाम लेने का आवाहन किया जाता है तो श्रोताओं के मुख बन्द हो जाते हैं | विचार कीजिए मनुष्य का कल्याण कैसे होगा ??? यदि कुछ न करके मात्र निरन्तर भगवान का नाम ही लिया जाय तो मनुष्य का कल्याण निश्चित है | नाम लेने के लिए कोई भी नियम नहीं है किसी भी अवस्था में भगवान का नाम जप किया जा सकता है परंतु आज मनुष्य वह भी नहीं कर पा रहा है क्योंकि उसकी दृष्टि में यह (नामजप) बहुत ही छोटा नियम है | शायद मनुष्य यह भूल गया है कि :- "नाम लेत भवसिंधु सुखाहीं" भगवान का नाम लेने मात्र से भवसागर भी सूख जाता है | परंतु यह तभी हो पायेगा जब मनुष्य में अनन्य भाव हो |*
*भगवान को प्राप्त तो सभी करना चाहते हैं परंतु भगवान को प्राप्त करने के सबसे सरल एवं प्रथम साधन को कोई भी नहीं अपनाना चाहता है | यही कारण है कि सर्वत्र दुख ही दुख दिखाई पड़ रहा है |*