*इस धराधाम पर आदिकाल से मानव जीवन बहुत ही दिव्य एवं विस्तृत रहा है | मनुष्य अपने जीवन काल में अनेक प्रकार के क्रियाकलापों से हो करके जीवन
यात्रा पूरी करता है | यहाँ मनुष्य के कर्मों के द्वारा समाज में उसकी श्रेणी निर्धारित हो जाती है | यह निर्धारण समाज में तभी हो पाता है जब मनुष्य के कर्म समाज के अनुकूल एवं सदाचरण वाले हों | परमात्मा ने मनुष्य को इस धरा धाम पर अनेक प्रकार के फल , शाक एवं अन्न उदर भरण के लिए प्रकट कर दिए हैं , अनेकों प्रकार के मनुष्य ऐसे भी जो इन प्राकृतिक आहारों के विपरीत जाकर के आहार स्वयं के लिए चुनते हैं | ऐसे व्यक्तियों को समाज घृणित दृष्टि से देखता था और उसे समाज से बहिष्कृत कर दिया जाता था | पूर्वकाल की सामाजिक व्यवस्था थी कि समाज के विपरीत होने पर दंड स्वरूप उस व्यक्ति को सामाजिक क्रियाकलाप से बहिष्कृत करके दंड दिया जाता था | विद्वानों की विशिष्ट पहचान होती थी | वे संयम एवं अपने सारे क्रियाकलाप वैदिक एवं सामाजिक रीत के अनुसार किया करते थे जिससे समाज को उचित मार्गदर्शन तो मिलता ही था साथ ही उनका
स्वास्थ्य चिरकाल तक उनका साथ देता था | मनुष्य सत्य बोलने के साथ ही सदाचरण भी करते थे , ऐसा करके वे समाज में सम्मानित एवं पूज्य माने जाते थे | हमारे
देश में सनातन
धर्म को मानने वाले चाहे वह उच्च पद पर रहे हो या फिर निम्न स्तरीय जीवन यापन करने वाले परंतु उनकी मान्यताएं दिव्य रही है | यही कारण रहा है कि अनेक भ्रांतियां होने के बाद भी सनातन
धर्म सर्वोच्चता को प्राप्त कर पाया | जहां सकारात्मकता होती है वही नकारात्मकता भी होती है इसी प्रकार सनातन धर्म में भी कुछ इस प्रकार के मनुष्य हुए जिन्होंने अपने क्रियाकलापों के द्वारा सनातन के सिद्धांतों के विपरीत जाकर के आचरण किये और समाज द्वारा अपमानित भी किये गये |* *आज जहां चारों ओर से सनातन धर्म पर ही कुठाराघात करने का प्रयास किया जा रहा है वहीं इसको मानने वाले भी अपने कर्म इसके विपरीत करने से स्वयं को नहीं रोक पा रहे हैं | समाज में उच्च पदों पर आसीन ऐसी कई महान हस्तियां है जिनको सनातन धर्म का पुरोधा माना जाता है परंतु उनके क्रियाकलाप सनातन के बिल्कुल विपरीत देखे जा सकते हैं | आज जो कुछ भी हो रहा है इसमें कोई आश्चर्य नहीं होना चाहिए क्योंकि इसका वर्णन तो पूर्वकाल में ही परमपूज्यपाद गोस्वामी तुलसीदास जी ने कर दिया था | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बाबा जी के उस प्रसंग पर ध्यानाकर्षण कराना चाहूंगा जहां उन्होंने स्पष्ट लिख दिया था कि :- कलियुग में जो बड़ी-बड़ी डींग मारने वाला होगा वहीं पंडित कहा जाएगा | दूसरे का धन हरण करने वाले बुद्धिमान और झूठ बोलने वाला ही गुणवान कहा जाएगा | सनातन धर्म के उच्च पदों पर आसीन होकर के आज भक्ष्य - अभक्ष्य सब कुछ खा लेने वाले ही सिद्ध कहे जाएंगे | यह वर्णन गोस्वामी तुलसीदास जी ने अपने मानस में किया है | आज वही देखने को मिल रहा है | स्वयं को आचार्य , राजर्षि , महर्षि एवं ब्रह्मर्षि तक कहलवाने वाले लोग आज अपने पद के विपरीत क्रियाकलाप कर रहे हैं | इसे कलियुग का प्रभाव बना जाय या फिर सनातन का पराभव | आज यदि चारों ओर से सनातन धर्म पर कुठाराघात हो रहा है इसका कारण कोई दूसरा नहीं बल्कि सनातन धर्म के अनुयायी ही कहे जा सकते हैं , क्योंकि उनके आचरण उनके क्रियाकलाप सनातन धर्म के अनुसार न हो कर के उसके विपरीत जा रहे हैं |* *सनातन धर्म आदिकाल से दिव्य रहा है और दिव्य रहेगा | कुछ तथाकथित लोगों के कारण इसकी दिव्यता को कहीं से भी कोई क्षति नहीं हो सकती , क्योंकि सनातन सत्य है और सत्य कभी पराजित नहीं होता |*