shabd-logo

सोसाइटी

hindi articles, stories and books related to sosaaittii


वो लड़का टैक्सी में बैठते ही ड्राइवर से बोला -भैया आप Mahabodhi  Mahavidyalaya (B.Ed.), Nalanda   ले चलिए । जल्दी लेट हो रहे है हम । यह कहकर वह सौम्या की तरफ उससे पूछने के लिए

सौम्या जल्दी से घर से निकली और जल्दी जल्दी चलने लगी । वो मन में सोच रही थी कि पता नहीं , आज अचानक से   ये लोग 🙄 मेरे लिए लड़का देखने की बात क्यों करने लगये ।उफ्फ क्या सियाप्पा है ये 🙄

  3 साल बाद      सुबह 9:30 amअक्षरा जी - बेटा जाओं जल्दी । बस छूट जायेगी तुम्हारी । वो अपने प्यारी सी बच्ची को बोल रही थी (अक्षरा जी सौम्या की माँ है । जिनकी जान बसती है अपनी सोमू

शशांक अभी भी सौम्या का हाथ  अपने हाथ में लिये हुए था ...और सौम्या ने भी शशांक के हाथों को टाइटली पकड़ा हुआ था .... वो उसके हाथ छोड़ना नहीं चाहती थी .. क्योंकि अभी भी उसे डर लग रहा था (ꏿ﹏ꏿ;) .कि क

 शशांक -धीरे से हेलो गाइस हम सब आ गए हैं . . . और यह कह कर वो मुस्कुरा देता है😊इस समय सच में शशांक बहुत खुश नजर आ रहा था शायद यह जगह उसे बहुत अच्छी लग रही थी या फिर कोई और बात थी ...🤔आदित्य -आश

एक बार एक विघालय में अध्यापक अपने विधार्थियो को एक कहानी सुना रहे थे...। प्यारे बच्चों आज मैं तुम्हें एक ऐसी कहानी सुना रहा हूँ... जो आज के जीवन की सच्चाई को बयां करता हैं...। एक समय की बात

काम क्रोध और लोभ  मैं तज कर जा सकता हूं लेकिन चाहूं भी तो मैं मेरे दोस्त तुझे कैसे भुला सकता हूं तेरा साथ भी तो एक बंधन है बता भला मैं क्या तज तुझे अकेला मुक्ति पा सकता हूं तेरे भरोसे छोड़ गया

हाथ बढ़ाया था अमन का हमने,मगर वो नादानी कर बैठे।दिल्ली से लाहौर चली थी बस,मगर वो बेईमानी कर बैठे।।लाहौर समझौता करके हमने,शांति का पाठ पढ़ाया था।मगर पीठ पर खंजर भोंका,और 'ना'पाक कारगिल कर बैठे।।घुसपैठि

चिराग ए इल्म की शिद्दत में यह दीप क्यों लगा बहकने  क्या साथ चल ना सका या अब पसंद नहीं तुझे तेरे अपने भला क्यों है तु रुसवा सबसे नही देता किसी का जवाब किस दुनिया का मालिक बन बैठा तुझ पर छाय

कोर्ट  के बाहर टँगे बोर्ड मेंसरसरी निगाहें  जमाये बगल में फ़ाइल थामेकभी वादी कभी प्रतिवादी  पक्षकार के मर्म को जाने तर्कों वितर्कों के संजोते जाले उधेड़ते बुनते संवरते

शिद्दत ए महफिल में ना मुस्कुरा सके जाने क्यों लगने लगा अब मुझे डर चेहरे पर मायूसी आंखों में आंसू लिए फिरते हैं शायद यह तेरी ना मौजूदगी का ही है असर न संगीने महफिल और मजाक होती अब जब जब हो जाती थी

डॉक्टर है समाज का गहना,सदा इन्हें आदर ही देना ।बिन इनके सहयोग के मानो,स्वस्थ समाज एक है सपना।।डॉक्टर का जीवन तो देखो,इतना नहीं होता आसान।पूरी ताकत झोंक कर अपनी,बचाते हैं मरीजों की जान।।रख देते हैं ताक

समस्यायें तो आनी हैं,अगर आगे बढ़ने की ठानी है।बैठे हैं लोग लँगड़ी लगाने को,उनसे सहयोग की उम्मीद नादानी है।।अगर समस्यायें न हों ज़ीवन में,तो ज़िन्दगी बेमानी है।समस्याओं से लड़कर आगे बढ़ना,ही असली ज़िन्दगानी ह

किसे कहे अपना ,क्या उन्हें जिनसे है खून के रिश्ते या अपना ले उन्हें जो बनकर आये जीवन में फरिशते दौलत देख सब निभाए और कंगाली में हाथ छुड़ाए  जरा सोच से मजबुर ए दिल किसे छोड़े किसे अपनाये  क

जलती  चिता से उठता धुँआ करता यही सवाल, क्यों बेरुखी सा आलम सबका, किसका नही रखा मैनें ख्याल, जीते जी जो साथ रहने की कसमें  खाते, मौत पर भला क्यो एक पल भी साथ रहने से घबराते, क्यों जल्दी करे प

झुक जाता है पेड़ अगर तूफ़ानों में,तो टूटने से बच जाता है।अड़ा खड़ा रहने वाला पेड़,जड़ से उखड़ जाता है।।जो झुक जाता है,वो जीत जाता है।जो ग़लती को सुधार लेता है,वह आगे बढ़ जाता है।।ग़लतियाँ सभी से होती हैं "दीप",

किसने कहूँक्या कहूँ ,या लिखूँ ख्वाब मेरे न समझ कोई अफसाना सख्त हो गया हूँ मैं  न कर शिकायत ,मेरा मकसद नहीं किसी को डराना मुझे चिंता है तेरे माँ बाप की जो लगता हैं सबके लिये जग जाहिर बुरा लगे

बहती पानी की धारा, जब सिर को भिगोती है । दूर कहीं पहाड़ों पर, जब एकांत में आंखे बंद होती है । पक्षियों की चहचहाट के बीच पानी की गिरती कल कल की आवाज़, जब मन को शांत कर देती है । दुनिया की फिक्र से

मुशिकले हजार थी , लेकिन तेरी हिम्मत का भी नहीं था जवाब क्या खूब कमाया तुने घर ,गाडी ,बर्तन सब कुछ थे लाजवाब न जाने मेरे दोस्त क्या-क्या रहे होंगे तेरे ख्वाब तेरी हर नसीहत भूल देख ये तेरी दौलत उ

जो जी उठे तो फिर दफनाने को है सब तैयार तुझसे ज्यादा तेरी दौलत से होने लगा अब उनको प्यार सूखने लगे आसूं अब उन आंखों में दिखती है पैसों की चमक न जाने क्यों चिता की राख पर गिरते पानी से भी लोग

किताब पढ़िए

लेख पढ़िए