हाथ बढ़ाया था अमन का हमने,
मगर वो नादानी कर बैठे।
दिल्ली से लाहौर चली थी बस,
मगर वो बेईमानी कर बैठे।।
लाहौर समझौता करके हमने,
शांति का पाठ पढ़ाया था।
मगर पीठ पर खंजर भोंका,
और 'ना'पाक कारगिल कर बैठे।।
घुसपैठिए के छद्म वेश में,
घुस आई पाकिस्तानी सेना थी।
चुपके चुपके घुसपैठ कराकर,
द्रास और टाइगर हिल कब्जाई थी।।
पता चला जब इस मक्कारी का,
ऑपेरशन विजय का आगाज हुआ।
बोफोर्स तोप जब गरजी थी,
तब दुश्मन को ताकत का एहसास हुआ।।
बर्फ़ीले सर्द पहाड़ों पर,
जोशीली गर्मी आई थी।
शौर्य दिखाया जांबाज़ों ने,
दुश्मन की छाती छलनी कर दी थी।।
भारत माँ की शान की खातिर,
अपनी जान लड़ाई थी।
दुश्मन को मार खदेड़ा था,
अपनी जमीन फिर वापस पाई थी।।
सौरभ कालिया,विक्रम बत्रा संग,
बहुतेरे सपूत शहीद हुए।
बलिदान हो गए देश की खातिर,
अजर अमर वो वीर हुए।।
मातृभूमि पर मरने वालों से,
हम कैसे उऋण हो पाएंगे।
मर कर भी हम इन मतवालों का,
कैसे कर्ज चुकाएँगे।।
पूर्ण हुआ ऑपरेशन विजय,
तारीख वो 26 जुलाई थी।
लहराया था तिरँगा शान से,
हमने कारगिल विजय पाई थी।।
🇮🇳🇮🇳🇮🇳🇮🇳
*जय हिंद*
©प्रदीप त्रिपाठी "दीप"
ग्वालियर