*सनातन साहित्यों में बताया गया है कि जीव चौरासी लाख योनियों में भ्रमण करके तब कर्मानुसार मानवयोनि में जन्म लेता है | इन चौरासी लाख योनियों के चार प्रकार हैं :- अण्डज , स्वेदज , उद्भिज एवं जरायुज ! जो कि पृथ्वी , जल एवं आकाश में रहकर जलचर , थलचर एवं नभचर कहे जाते हैं | यदि इन चौरासी लाख योनियों में मानवयोनि को सर्वश्रेष्ठ कहा गया है तो मनुष्य ने अपनी श्रेष्ठता को सिद्ध भी किया है | इस पृथ्वी पर मनुष्य की सहायक बनी पशुयोनि | कृषिकार्य से लेकर
मनोरंजन एवं मनुष्य के कई प्रकार के शौक पूरे करने में भी पशुओं ने पूर्ण सहयोग दिया है | इसी सहयोग का दर्शन हमें अपने आरध्य देवताओं में भी होते हैं | भगवान गणेश , राजा दक्ष , एवं भगवान के नरसिंहावतार , हयग्रीवावतार यह सिद्ध करते हैं कि मनुष्य एवं पशु एक दूसरे के पूरक रहे हैं | परंतु कुछ पशु हिंसक भी होते हैं जिनसे बचने के लिए मनुष्य तरह तरह के उपाय किया करता है | कहा जाता है कि मनुष्य को पशु तब तक कोई क्षति नहीं पहुँचाते जब तक कि मनुष्यों द्वारा उनको क्षति नहीं पहुँचाई जाती , परंतु यह नियम सब पर लागू नहीं किये जा सकते | कुछ हिंसक जानवर बिना किसी प्रयोजन के ही दौड़ाकर काट लेते हैं , इन्हीं के हिंसक आघातों से बचने को लिए मनुष्य अनेकानेक उपाय करके अपने प्राणों की रक्षा करने का प्रयत्न किया करता है | मनुष्यों ने पशुओं से तो अपनी सुरक्षा निश्चित कर ली है परंतु वह आज भी असुरक्षित है | इसके कारणों पर दृष्टि डाली जाय तो यही देखने को मिलता है कि मनुष्य को सबसे ज्यादा भय
समाज में ही रह रहे पाशविक प्रवृत्ति के मनुष्यों से ही है |* *आज मनुष्य को उतना भय किसी पशु से शायद ही हो जितना कि वह मनुष्य से भयभीत है क्योंकि मनुष्य से खतरनाक एवं हिंसक प्राणी पृथ्वी पर दूसरा शायद ही कोई हो | सृष्टि के आदिकाल से लेकर आज तक यदि दृष्टिपात किया जाय तो यही परिणाम निकलकर सामने आयेगा कि जितनी क्षति मनुष्य ने मनुष्य की कर डाली है उतनी शायद किसी जानवर या अन्य प्राणी ने नहीं किया होगा | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि कोई भी पशु-पक्षी इतना भयानक नही है जितना की कुछ पाशविक प्रवृत्ति के मनुष्य भयानक व खूंखार हैं | कारण कि एक पशु सिर्फ़ एक पशु की ही बराबरी रखता है और मनुष्य अनेक पशु की बराबरी रखता है | इसीलिये मनुष्य जितना खतरनाक है उतना कोई भी खतरनाक नही हैं | इसीलिये जितनी बंदिशें मनुष्य के लिये रखनी पडती है उतनी किसी पशु-पक्षी के लिये नही | विचार कीजिए कि आज समाज में जिस प्रकार अनाचार , कदाचार , व्यभिचार , लूट , हत्या , बलात्कार आदि कुकृत्य किसी जानवर के द्वारा नहीं बल्कि मनुष्य के द्वारा ही किये जा रहे हैं | हम अपनी दुकानों - घरों में मोटे - मोटे ताले लगाते हैं , हमें अपनी बच्चियों / महिलाओं की चिन्ता है , हम अपने धन को घर में न रखकर बैंकों में रखते हैं | क्या किसी अन्य प्राणी के भय से हमें ऐसा करना पड़ रहा है ?? जी नहीं ! आज भय का सबसे बड़ा कारण बन रहे हैं मनुष्य योनि पाकर भी पशुता दिखाने वाले ये कुछ मनुष्य |* *मनुष्य अपनी मनुष्यता को भूलकर पशुता की ओर अग्रसर है जो कि भविष्य के लिए अत्यन्त घातक है |*