*समस्त सृष्टि के कण - कण में ब्रह्म समाया हुआ है जिसे लोग ईश्वर , भगवान या परमात्मा के नाम से जानते हैं | ब्रह्म अर्थात ईश्वर स्वतंत्र है , वह परम शुद्ध और समस्त गुणों से परे है | वह सृष्टि के रचयिता , संरक्षक और विनाशक हैं | समय-समय पर अनेकों रूप धारण करके सृष्टि के संचालन , पालन एवं संहार का कार्य करने वाले ईश्वर समय और स्थान के बंधन में कभी नहीं बंधते हैं क्योंकि ईश्वर सर्वव्यापी एवं अविनाशी है | गोस्वामी तुलसीदास जी ने मानस में एक दोहा लिखा "ब्रह्म निरूपण धरम विधि वरनहिं तत्व विभाग" इस दोहे का बहुत ही गूढ़ अर्थ है | ब्रह्म निरूपण अर्थात ब्रह्म को जानना , ब्रह्म को तब तक नहीं जाना या समझा जा सकता है जब तक धर्म का पालन करते हुए इस समस्त सृष्टि में फैले हुए तत्वों का ज्ञान ना हो | तत्वज्ञान होने के बाद ही मनुष्य उस ब्रह्म को जान पाता है अन्यथा जीवन भर वह "मैं और मेरा" के फंदे में फंस कर जीवन व्यतीत कर देता है | धर्म विधि अर्थात धर्म का विधान | वैसे तो अनेकों धर्म है परंतु धर्म का प्रथम विधान है "मानव धर्म" जिसे प्राय: लोग भूल गए हैं | उसके बाद तत्व विभाग लिखकर तुलसीदास जी ने संकेत कर दिया है कि बिना तत्वज्ञान के मनुष्य अपने जीवन के लक्ष्य को नहीं प्राप्त कर सकता है | यहां यह जानना आवश्यक है कि मनुष्य के जीवन का लक्ष्य क्या है ? मनुष्य के जीवन का लक्ष्य परमात्मा की प्राप्ति करना होता है परंतु मनुष्य इस संसार में आकर के अनेकों लक्ष्य तो निर्धारित कर लेता है परंतु अपने वास्तविक लक्ष्य को भूल जाता है | इसका कारण भगवान की विशाल माया ही है | ब्रह्म का निरूपण करना इतना सरल नहीं है | कुछ दिन सत्संग करके या कुछ पुस्तकों का अध्ययन करके ब्रह्म को नहीं जाना जा सकता है , इसके लिए मनुष्य को तत्वज्ञान होना परम आवश्यक है | यह तत्व क्या है ? इसका ज्ञान कैसे होगा ? मनुष्य इस पर कभी ध्यान ही नहीं दे पाता | वह अपने परिवार , समाज और देश के प्रपंचों में भटकता हुआ सारा जीवन व्यतीत कर देता है और अंत समय में उसके पास पछतावे के अतिरिक्त और कुछ नहीं बचता , इसलिए प्रत्येक मनुष्य को सर्वप्रथम तत्व ज्ञान प्राप्त करना चाहिए जिससे कि वह अपने जीवन के लक्ष्य को प्राप्त कर सकें | जिस दिन मनुष्य को तत्वज्ञान हो जाता है उसी दिन वह चौरासी लाख योनियों की यात्रा से मुक्त हो जाता है और ब्रह्म के सानिध्य में जाकर अपना जीवन धन्य कर लेता है |*
*आज मनुष्य अनेको धर्मों में बंटकर अपने मानव धर्म को भूल गया है स्वयं को ब्रह्म मान लेने वाला मनुष्य आज माया के प्रपंचों में भूल कर अनेकों प्रकार के कृत्य कुकृत्य कर रहा है जिसका परिणाम आज समस्त विश्व के समक्ष परिलक्षित हो रहा है | आज विरले ही मनुष्यों को तत्व का ज्ञान हो पाता है | तत्वज्ञान क्या है ? तत्व का विभाग क्या है ? यह बहुत ही गूढ़ विषय है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज तक जितना अपने सद्गुरुओं से जान पाया हूं उसके अनुसार तत्वज्ञान का अर्थ है जीवात्मा और परमात्मा का एक होना | त अर्थात् परमात्मा त्व अर्थात जीवात्मा | तत्वज्ञान बोध कराता है कि सृष्टि का सार तत्व क्या है ! निर्माण का रहस्य क्या है ! हमारे अस्तित्व के उद्देश्य अर्थात आत्मा के सत्य से हमें परिचित कराता है तत्वज्ञान | मानव मात्र के लिए तत्वज्ञान की परिभाषा को सरल करने के लिए हमारे महर्षियोंं ने इस तत्व के पांच विभाग किये है जिन्हें तत्व विभाग कहा गया है | जिसमें से प्रथम है परमात्मा , द्वितीय प्रकृति , तृतीय जीव , चतुर्थ समय और पंचम कर्म | यही पांच तत्व के विभाग हैं | जो भी मनुष्य तत्व के इन पांच विभागों के विषय में विधिवत जान लेता है उसे फिर कुछ और भी जानना आवश्यक नहीं रह जाता है | परमात्मा के बिना प्रकृति नहीं है प्रकृति के बिना इस संसार में जीव का आना असंभव है और जीव जब समयानुकूल कर्म नहीं करता है तो उसे उसका परिणाम सुखद नहीं प्राप्त होता है | तत्व के इन पांचों विभागों को विधिवत समझकर ही मनुष्य को अपने कर्म करने चाहिए और कर्म करते समय समय का विशेष ध्यान देना चाहिए कि यह समय इस कर्म के लिए अनुकूल है कि नहीं | इसका ज्ञान जिसको हो गया समझ लो कि उसको तत्वज्ञान हो गया और जिसको तत्वज्ञान हो गया उसे ब्रह्म की प्राप्ति अवश्य हो जाती है | परंतु आज का मनुष्य जानना तो सब जानता है परंतु मानना कुछ भी नहीं चाहता है , क्योंकि किसी को भी मानने के लिए या किसी विषय में जानने के लिए साधना की आवश्यकता होती है और आज का मनुष्य साधना नहीं कर पा रहा है | इसीलिए आज संसार में त्राहि-त्राहि मची हुई है |*
*तत्व के पांच विभाग जो ऊपर बताए गए उनको जानने एवं समझने का प्रयास प्रत्येक मनुष्य को करना चाहिए | जिस दिन मनुष्य इन तत्व विभागों को जान जाता है उस दिन उसका जीवन सफल हो जाता है |*