*ईश्वर के द्वारा बनाई गयी यह सृष्टि बहुत ही रहस्यमय है | यहां पग पग पर एक नया रहस्य दिखाई पड़ता है | मनुष्य ने अपने बुद्धि बल से अनेक रहस्यों को उजागर भी किया है | ईश्वर के द्वारा प्राप्त विवेक से मनुष्य सर्वश्रेष्ठ प्राणी कहा गया है | सृष्टि के समस्त रहस्य खोजने के लिए तत्पर मनुष्य स्वयं के रहस्य को नहीं जानना चाहता | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि इस संसार में जितने भी रहस्य हैं उससे कहीं अधिक रहस्य मनुष्य के शरीर में व्याप्त है जिन्हें जानने का प्रयास योगी साधक ही कर पाते हैं | स्वयं को शरीर मानने वाला मनुष्य यह बता पाने में सक्षम नहीं हो पाता है कि शरीर कितने प्रकार का होता है | हमारे विद्वानों ने शरीर की व्याख्या करते हुए इसे तीन प्रकार का बताया है | प्रथम स्थूल शरीर , दूसरा सुक्ष्म शरीर एवं तीसरा कारण शरीर कहा गया है | स्थूल शरीर वह होता है जो सबको सामने दिखाई पड़ता है , इसी स्थूल शरीर के माध्यम से मनुष्य संसार के सारे क्रियाकलाप संपादित करता है | सुख-दुख रोग पीड़ा आदि का अनुभव मनुष्य को इसी स्थूल शरीर के माध्यम से होता है | इसी स्थूल शरीर के अंदर एक सूक्ष्म शरीर भी होता है जिसके माध्यम से मनुष्य कभी ना देखी गई वस्तु का भी अनुभव करता है | पूर्व काल में कही गई बातों का अनुभव वर्तमान में करना सूक्ष्म शरीर का ही कार्य है | जब मनुष्य का स्थूल शरीर नष्ट हो जाता है तब भी सूक्ष्म शरीर जीवित रहता है | अगला शरीर धारण करने तक क्रियान्वित रहता है कहने का तात्पर्य है कि स्थूल शरीर के नष्ट हो जाने पर भी सूक्ष्म शरीर का विनाश नहीं होता है | स्थूल शरीर के माध्यम से किए गए कर्मों के अनुसार मनुष्य अपने एक स्थूल शरीर का त्याग करके सूक्ष्म शरीर के माध्यम से जब कहीं कोई दूसरा शरीर धारण करता है तब उसे "कारण शरीर" कहा जाता है | जब कारण पैदा होता है तभी शरीर सूर्य की तरह से उदय होता है | इस शरीर को जो भी कार्य संसार में करने होते हैं उन्हीं के प्रति इस शरीर का संसार में आना होता है और कार्य के संपन्न होते ही यह कारण शरीर बिना किसी पूर्व सूचना के इस संसार का त्याग कर देता है | इस प्रकार मनुष्य का शरीर तीन प्रकार का होता है इस रहस्य को वही जान सकता है जिसे अपने जीवन के रहस्यों को जानने की उत्कंठा हो अन्यथा इस संसार में स्थूल शरीर धारण करके क्रियाकलाप करते हुए स्वयं के विषय में बिना जाने इस संसार का त्याग करके चला जाता है |*
*आज के युग को वैज्ञानिक युग कहा जाता है | आज संसार के सभी वैज्ञानिकों ने मिलकर इस सृष्टि में अनेक रहस्यों को उजागर भी किया है परंतु फिर भी वैज्ञानिक इस संसार के अद्भुत रहस्य को जान पाने में सक्षम नहीं हो पाये हैं | इस संसार का अद्भुत रहस्य क्या है ? इस विषय पर यदि विचार किया जाए तो यह रहस्य उजागर हो सकता है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" इस संसार में प्रत्येक मनुष्य के विषय में यह देखता या सोचता हूं कि मनुष्य अपने जीवन काल में यहां तक की प्रतिदिन ना जाने कितनी बार "मैं" शब्द का प्रयोग करता है परंतु "मैं और मेरा" शब्द का प्रयोग अनेक वार करने पर भी मनुष्य यह नहीं जान पाता है कि "मैं" कहने वाले सत्ता का स्वरूप क्या है ? अर्थात "मैं" शब्द किस वस्तु का सूचक है ? यह कहना गलत नहीं होगा पआज मनुष्य ने विज्ञान के माध्यम से बड़ी-बड़ी सारी चीजें तो बना डालीं , जटिल पहेलियों का उत्तर भी जान लिया और आगे भी जटिल समस्याओं का हल ढूंढने में लगा हुआ है परंतु "मैं" कहने वाला कौन है इसके विषय में कोई नहीं बता पाया | इसका सीधा सा अर्थ है कि इस संसार के अनेक रहस्य को जान लेने का दम भरने वाला मनुष्य स्वयं को ही नहीं पहचान पाता है , स्वयं की सत्यता को नहीं जान पाता है | आज यदि किसी से भी पूछ लो कि :- आप कौन हैं ? तो वह तुरंत अपने शरीर का नाम बता देगा , अपने धर्म का नाम बता देगा , अपने कर्म का नाम बता देगा , परंतु वास्तव में "मैं" कौन हूं यह बता पाना उसके लिए संभव नहीं हो पाता है | इन विषयों को वही जान सकता है जिसने अध्यात्म का आश्रय लेकर के सद्गुरु की शरण पकड़ी हो अन्यथा आओ ,खाओ और चले जाओ यही मनुष्य के जीवन की नियति बन जाती है |*
*मनुष्य शरीर में तीन प्रकार के शरीर विद्यमान होते हैं परंतु इसे ना जान पाने की स्थिति में मनुष्य मैं और मेरा के चक्कर में फंस कर अपना जीवन यापन कर देता है , अनमोल जीवन का प्राप्त हुआ अवसर गंवा देता है |*