*आदिकाल से ही से ही इस धराधाम पर अनेकों योद्धा ऐसे हुए हैं जिन्होंने अपनी शक्तियों का संचय करके एक विशाल जनसमूह को अपने वशीभूत किया एवं उन्हीं के माध्यम से मानवता के विरुद्ध कृत्य करना प्रारंभ किया | पूर्वकाल में ऐसे लोगों को राक्षस या निशाचर कहा जाता था | इनके अनेक अनुयायी ऐसे भी होते थे जिनको यह नहीं पता होता था कि हमें जहां भेजा जा रहा है उसका परिणाम क्या होगा या उसका उद्देश्य क्या है ? इन को मानने वाले सिर्फ ऐसे लोगों के विचारों से प्रभावित होकर के उनके कहे हुए प्रत्येक आदेश का पालन करने को तत्पर हो जाते थे | जिस प्रकार लंकाधिराज रावण की सेना में अनेकों सैनिक ऐसे भी थे जो कि यह जानते थे कि हम जो कृत्य करने जा रहे हैं वह मानवता के विरुद्घ है परंतु फिर भी रावण के विचारों से अभिभूत होकर के वह सैनिक उसके बताए गए आदेश का पालन करने को तत्पर रहते थे | आज के आतंकवाद की तुलना प्राचीन काल के राक्षसवाद से की जा सकती है | जिस प्रकार प्राचीन काल में अपने राजा का सही गलत सभी प्रकार का आदेश मानने के लिए सैनिक प्रतिबद्ध होते थे उसी प्रकार आज के युवा किसी विशेष व्यक्ति के विचारों से अभिभूत होकर के मानवता विरोधी कृत्य करने के लिए आतंकवादी बन जाते हैं | आतंकवाद समस्त मानव जाति के लिए घातक है परंतु उससे भी घातक है वैचारिक आतंकवाद | वैचारिक आतंकवाद की यदि व्याख्या की जाय तो यही परिणाम निकलता है कि जो विचार मानवता के विरुद्ध हो , जो विचार एक विशाल जनसमूह के लिए घातक हो और उसी विचारों का प्रचार - प्रसार करके अनेक युवाओं के मस्तिष्क में अपने व्यर्थ के विचार ठूंस करके उनको हथियार पकड़ा दिया जाय , यही वैचारिक आतंकवाद है | वैश्विक आतंकवाद से छुटकारा पाने के लिए वैचारिक आतंकवाद को समाप्त करना होगा , जिस प्रकार मर्यादापुरुषोत्तम श्रीराम ने रावण का विनाश किया था |*
*आज के वर्तमान युग में संपूर्ण विश्व की यदि कोई सबसे बड़ी समस्या है तो वह है आतंकवाद | आतंकवाद आज विश्वव्यापी समस्या बन चुका है | देश की सेना आतंकवादियों को समय-समय पर चुन-चुन कर मारती भी रहती हैं परंतु दस आतंकवादी मारे जाते हैं तो सौ फिर से तैयार हो जाते हैं | आतंकवाद को समाप्त करने के लिए प्रत्येक देश की सरकार अपने अपने अनुसार कार्य कर रही है परंतु विचारणीय है कि सरकारें जितना अधिक प्रयास आतंकवाद को समाप्त करने का करती हैं उससे कहीं अधिक आतंकवाद भयावह रूप लेता चला जा रहा है | आतंकवाद को समाप्त करने के लिए इसकी जड़ में जाना होगा | आतंकवाद से घातक वैचारिक आतंकवाद होता है यह समझना होगा | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना है कि ऐसे उपदेशक , धर्मगुरु अथवा राजनेता जो कि अतिवादी विचारों से प्रेरित होकर के नवयुवकों को इस अग्नि में झोंक देते हैं , साथ ही चरमपंथी विचार रखने वाले कई चतुर लोग अपने धर्म और संप्रदाय के लोगों को किसी न किसी बहाने से यह समझा पाने में सफल हो जाते हैं है कि उन्हें , उनके परिवार को , उनके समुदाय को अमुक देश या अमुक समुदाय के वर्ग विशेष के लोगों से गंभीर खतरा है ! इन विचारों को नवयुवकों के दिमाग में इस प्रकार भर दिया जाता है की उनमें अमुक वर्ग विशेष के लिए कट्टरता उत्पन्न हो जाती है , जिसका परिणाम आतंकवाद के भयावह रूप मैं दिखाई पड़ता है | आतंकवादी तो ढेर कर दिया जाता है या फिर पूरा जीवन जेल की सलाखों के पीछे बिता देता है परंतु इनके पीछे जो चतुर तथाकथित बुद्धिजीवी वैचारिक आतंकवादी एवं समाज के विभाजक लोग हैं वे साफ बच निकलते हैं | आवश्यकता है कि आतंकवादी तो मारा ही जाय साथ ही वैचारिक आतंकवादी को भी मूल समेत समाप्त करने की | जब तक सफेदपोश वैचारिक आतंकवादी इस संसार में रहेंगे और लोग उनका समर्थन करते रहेंगे तब तक वे मानवता के विरुद्ध कार्य करते रहेंगे और इस धरती से आतंकवाद नहीं समाप्त हो सकता |*
*जिस प्रकार बिना जड़ काटें वृक्ष का अस्तित्व नहीं समाप्त होता उसमें नई कोपलें निकल आती हैं उसी प्रकार आतंकवादियों को मारते रहने से आतंकवाद नहीं समाप्त हो सकता ! आतंकवाद का मूल है वैचारिक आतंकवाद | यदि आतंकवाद को समाप्त करना है तो वैचारिक आतंकवादियों को समाप्त करना होगा |*