🍀🏵️🍀🏵️🍀🏵️🍀🏵️🍀🏵️🍀🏵️
*‼️ भगवत्कृपा हि केवलम् ‼️*
🚩 *सनातन परिवार* 🚩
*की प्रस्तुति*
🌼 *वैराग्य शतकम्* 🌼
🌹 *भाग - सैंतीसवाँ* 🌹
🎈💧🎈💧🎈💧🎈💧🎈💧🎈💧
*गताँक से आगे :---*
*सखे धन्याः केचित्त्रुटितभवबन्धव्यतिकरा*
*वनान्ते चिन्तान्तर्विषमविषयाशीविषगताः !*
*शरच्चन्द्रज्योत्स्नाधवलगगना भोगसुभगां*
*नयन्ते ये रात्रिं सुकृतचयचित्तैकशरणाः !! ५६ !!*
*अर्थात् :-* हे मित्र ! वे पुरुष धन्य हैं, जो शरद के चन्द्रमा की चांदनी से सफ़ेद हुए आकाशमण्डल से सुन्दर और मनोहर रात को वन में बिताते हैं, जिन्होंने संसार बन्धन को काट दिया है, जिनके अन्तः-करण से भयानक सर्प-रुपी विषय निकल गए हैं और जो सुकर्मों को ही अपना रक्षक समझते हैं |
*अपना भाव:--*
वही लोग सुखी हैं, वे ही लोग धन्य हैं, जो शरद की चांदनी की मनोहर रात में वन में बैठे हुए परमात्मा का भजन करते हैं, जिन्होंने संसार के जञ्जालों को काट दिया है, जिन्होंने आशा, तृष्णा और राग-द्वेष प्रभृति क्या त्याग दिया है, जिनके भीतरी दिल से विषय रुपी विषैले सर्प भाग गए हैं; यानी जिन्होंने विषयों को विष की तरह दूर कर दिया है, जिनका चित्त केवल पुण्य और परोपकार में ही लगा रहता है | *हमें संसार की प्रत्येक चीज़ से परोपकार की शिक्षा मिलती है | वृक्ष स्वयं फल नहीं खाते, नदियां आप जल नहीं पीती, सूरज और चाँद अपने लिए नहीं घुमते, बादल अपने लिए मेह नहीं बरसाते - ये सब पराये लिए कष्ट करते हैं | दधीचि और शिवि ने परोपकार के लिए अपने अपने शरीर भी दे दिए , हरिश्चन्द्र ने पराये लिए घोर दुःसह विपत्ति भोगी | जिनका जीवन परोपकार में बीतता है, उन्ही का जीवन धन्य है |*
*यदि मनुष्य में परोपकार करने की इच्छा ही नहीं है, तो उसमें और दीवार पर खींचे हुए चित्र में क्या फर्क है ? जिससे प्राणी मात्रा का भला हो, वही मनुष्य धन्य है | उसी की माँ का पुत्र जनना सार्थक है |*
*"रहीम" जी कहते हैं -*
*बड़े दीन को दुख सुने, देत दया उर आनि !*
*हरि हाथी सों कब हती, कहु "रहीम" पहिचानि ?*
*धनि "रहीम" जल पंक को, लघु जिय पियत अघाय !*
*उदधि बड़ाई कौन है, जगत पियासो जाय !!*
*अर्थात्:-* बड़े लोग दीन और दरिद्रों, निरन्न और दुखियों एवं म्लान और भीतों यानि भयभीतों की बातें सुनते हैं, उनकी दुख-गाथाओं पर कान देते हैं; फिर ह्रदय में तरस खाकर - दया करके उन्हें कुछ देते और उनका दुख दूर करते हैं | वे इस बात को नहीं देखते कि यह हमारी पहचान का है कि नहीं; यह हमारा अपना आदमी है या गैर है | देखिये, हाथी और भगवान् की पहचान नहीं थी | फिर भी ज्योंही भगवान् को खबर मिली कि गजराज का पैर मगर ने पकड़ लिया है, अब गज का जीवन शेष होना चाहता है, उसने खूब ज़ोर मार लिया है, उसे अपने बचने की ज़रा भी आशा नहीं, इसलिए अब वह तुझे पुकार रहा है; त्योंही, जान-पहचान न होने पर भी भगवान् जल्दी के मारे नंगे पैरों भागे और हाथी की जान बचायी | *गज और ग्राह की कथा विख्यात है !*
*कहने का तात्पर्य यह है कि* जिससे दूसरों की भलाई हो, दूसरों का दुःख दूर हो वही बड़ा है | *वह बड़ा - बड़ा नहीं जिससे दूसरों का उपकार न हो |* जो दीनों पर दया करते हैं, दीनों की पालना और रक्षा करते हैं, दीनों के दुःख दूर करते हैं, वे ही बड़े कहलाने योग्य हैं | *भगवान् में ये गुण पूर्ण रूप से हैं; इसी से उन्हें दीनदयालु, दीनबन्धु, दीननाथ, दीनवत्सल, दीनपालक और दीनरक्षक आदि कहते हैं !* मनुष्य को भगवान् ने अपने जैसा ही बनाया है, वे चाहते हैं कि मनुष्य मेरा अनुकरण करे; दीन दुखियों के दुःख दूर करे, संकट में उनकी सहायता करे, मुसीबत में उन्हें मदद दे | *जो मनुष्य ऐसा करते हैं, उन्हें भी संसार दीनबन्धु आदि पदवियाँ देता है और सबसे बड़े दीनबन्धु उससे प्रसन्न होकर, उसकी सारी कल्पनाओं को मिटा देते हैं |*
कीचड का पानी धन्य है, जिसे छोटे छोटे जीव - कीड़े-मकोड़े धापकर पीते हैं | समुद्र चाहे जितना बड़ा है, पर उसमें प्रशंसा की कोई बात नहीं, क्योंकि उसके पास जाकर किसी की प्यास नहीं बुझती; जो भी जाता है उसके पास से प्यासा ही लौटता है |
*किसी ने कहा है:-*
*ते नर जग में धन्य हैं, शरदर्शुभ्र निशि मांहि !*
*तोड़े बन्धन जगत के, मनते विषयन काहि !!*
*विषय-सर्प को मारि, चित्त लगाय शुभ कर्म में !*
*पुण्यकर्म शुभधारि, त्यागे सब मन-वासना !!*
*××××××××××××××××××××××××××××××××××*
*!! भर्तृहरि विरचित "वैराग्य शतकम्" सप्तत्रिंशो भाग: !!*
*शेष अगले भाग में:--*
🌸🌳🌸🌳🌸🌳🌸🌳🌸🌳🌸🌳
आचार्य अर्जुन तिवारी
प्रवक्ता
श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश)
9935328830
🍀🌟🍀🌟🍀🌟🍀🌟🍀🌟🍀🌟