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*‼️ भगवत्कृपा हि केवलम् ‼️*
🚩 *सनातन परिवार* 🚩
*की प्रस्तुति*
🌼 *वैराग्य शतकम्* 🌼
🌹 *भाग - अड़तीसवाँ* 🌹
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*गताँक से आगे :---*
*तस्माद्विरमेन्द्रियार्थ गहनादायासदादाशु च*
*श्रेयोमार्गमशेषदुःखशमनव्यापारदक्षं क्षणाम् !*
*शान्तिं भावमुपैहि संत्यज निजां कल्लोललोलां मतिं*
*मा भूयो भज भङ्गुरां भवरतिं चेतः प्रसीदाधुना !! ५८ !!*
*अर्थात्:-* हे चित्त ! अब विश्राम ले, इन्द्रियों के सुख सम्पादन के लिए विषयों की खोज में कठोर परिश्रम न कर , आन्तरिक शान्ति की चेष्टा कर, जिससे कल्याण हो और दुःखों का नाश हो; तरंग के समान चञ्चल चाल को छोड़ दे; संसारी पदार्थों में और सुख न मान; क्योंकि ये असार और नाशवान हैं | बहुत कहना व्यर्थ है, अब तू अपने आत्मा में ही सुख मान |
*अपना भाव:--*
अरे मन ! अब तू इन्द्रियों के लिए विषय-सुखों की खोज में मत भरम, उनके लिए कष्ट न उठा, शान्त हो जा; उनमें कुछ भी सुख नहीं है, वे तो विष से भी बुरे और काले नाग से भी भयङ्कर हैं | अरे ! अब तो मेरा कहना मान और अपनी चालों को छोड़ | *देख तेरे सर पर काल मण्डरा रहा है | वह एक ही बार में तुझे निगल जायेगा |* अरे भैय्या, ये इन्द्रियां बड़ी ख़राब हैं, इनमें दया-मया नहीं, यह शैतान की तरह कुराह पर ले जाती हैं | तू इनसे सावधान रह और इनके भुलावे में न आ | *अब शान्त हो और कष्ट सहना सीख | अपनी चञ्चल चाल छोड़, जगत को असार और स्वप्नवत समझ | इस जञ्जाल से अलग हो | बारम्बार इसी की इच्छा न कर | अपनी आत्मा में ही मग्न हो , इस तरह अवश्य तेरा कल्याण होगा |*
कल्याण कैसा ? जब तू ज्योति-स्वरुप आत्मा को देख लेगा, तब तू उसी में संतुष्ट रहेगा, उससे कभी न डिगेगा, उसके आगे सब लाभ तुझे हेय जंचेंगे | योगेश्वर कृष्ण ने ऐसी ही बात गीता के छठे अध्याय में कही है , उस सुख को सब नहीं जान सकते, जो अनुभव करता है वही जानता है| उसे कोई कह कर बता नहीं सकता |
*कबीरदास जी कहते हैं -*
*ज्यों नर नारी के स्वाद को, खसी नहीं पहचान !*
*त्यों ज्ञानी के सुख को, अज्ञानी नहीं जान !!*
*अर्थात्:-* स्त्री-पुरुष के सुख को जैसे नपुंसक नहीं जान सकता, वैसे ही ज्ञानी के सुख को अज्ञानी नहीं जान सकता |
*किसी ने बहुत सुंदर भाव दिया है:-*
*अरे चित्त ! कर कृपा, त्याग तू अपनी चालहि !*
*शिर पर नाचत खड़्यौ, जान तू ऐसे कालहि !!*
*ये इन्द्रियगण निठुर, मान मत इनको कहिबौ !*
*शांतभाव कर ग्रहण, सीख कठिनाई सहिबौ !!*
*निजमति तरंग-सम चपल तजि, नाशवान जग जानिये !*
*जनि करहु तासु इच्छा कछु, शिव-स्वरुप उर आनिये !!*
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*!! भर्तृहरि विरचित "वैराग्य शतकम्" अष्टत्रिंशो भाग: !!*
*शेष अगले भाग में:--*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
प्रवक्ता
श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश)
9935328830
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