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*‼️ भगवत्कृपा हि केवलम् ‼️*
🚩 *सनातन परिवार* 🚩
*की प्रस्तुति*
🌼 *वैराग्य शतकम्* 🌼
🌹 *भाग - चौरालीसवाँ* 🌹
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*गताँक से आगे :---*
*इयं बाला मां प्रत्यनवरतमिन्दीवरदल*
*प्रभाचोरं चक्षुः क्षिपति किमभिप्रेतमनया !*
*गतो मोहोऽस्माकं स्मरकुसुमबाण व्यतिकर-*
*ज्वलज्ज्वाला शान्ति न तदपि वराकी विरमति !! ६७ !!*
*अर्थात्:-* यह बाला स्त्री मुझ पर बार-बार नीलकमल की शोभा से भी सुन्दर नेत्रों से कटाक्ष क्यों मारती है ? मैं नहीं समझता इसका क्या मतलब है ? अब तो मेरा मोह जाता रहा है - काम के पुष्प बाणो से निकली हुई आग की ज्वाला शान्त हो गयी है | आश्चर्य है, कि अब तक भी यह मूर्खा बाला अपनी कोशिशों से बाज़ नहीं आती |
*अपना भाव:--*
संसार में जब तक मनुष्य जीवित रहता है तबतक विषय वासनायें एवं माया - मोह उसका उसका पीछा नहीं छोड़ते हैं परंतु जिनका मोह-जाल कट जाता है , जिनकी विषय-वासना बुझ जाती है , जो स्त्रियों (माया) की असलियत को समझ जाते हैं, जो उनको नरक की नसैनी समझ लेते हैं, उन पर स्त्रियों के कटाक्ष बाण (माया के दन्द - फन्द) असर नहीं करते | हाँ वे अपने स्वभावानुसार अपने तीखे-तीखे बाण चलाया ही करती हैं; परन्तु तत्ववित्त लोग उनके जाल में नहीं फंसते | उन पर उनके अचूक बाण निष्फल हो जाते हैं |
*किसी ने लिखा है:--*
*केहि कारण डारत बयन, कमलनयन यह नार !*
*मोह काम मेरे नहीं, तउ न तिय-चित हार !!*
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*रम्यं हर्म्यतलं न किं वसतये श्राव्यं न गेयादिकं*
*किं वा प्राणसमासमागमसुखं नैवाधिकं प्रीतये !*
*किं तूद्भ्रान्तपतङ्गपक्षपवनव्यालोलदीपाङ्कुर-*
*च्छायाचञ्चलमाकलय्य सकलं सन्तो वनान्तं गताः !! ६८ !!*
*अर्थात्:-* क्या सन्तों के रहने के लिए उत्तमोत्तम महल न थे, क्या सुनने के लिए उत्तमोत्तम गान न थे, क्या प्यारी-प्यारी स्त्रियों के संगम का सुख न था, जो वे लोग वनों में रहने को गए ? हाँ, सब कुछ था; पर उन्होंने इस जगत को गिरने वाले पतंग के पंखों से उत्पन्न हवा से हिलते हुए दीपक की छाया के समान चञ्चल समझकर छोड़ दिया; अथवा उन्होंने मूर्ख पतंग की भांति, जो हवा से हिलते हुए दीपक के छाया में घूम-घूमकर अपने तई जलाकर भस्म कर देता है, संसार को अपना नाश करते देखकर संसार को छोड़ दिया |
*यह संसार दीपक की लौ के समान है और इसमें बसनेवाले जीव पतंगों के समान हैं ! जिस तरह मूर्ख पतंग दीपक से मोह करके और उस पर गिर-गिर भस्म होते हैं; उसी तरह मनुष्य इस संसार के असल तत्व को न समझकर, इसके मोह में फंसकर, इसमें नाश होते हैं |* जिस तरह पतंग नहीं समझता कि दीपक से प्रेम करने में मेरे हाथ कुछ न आवेगा, बल्कि मेरी जान ही जायेगी; उसी तरह संसारी आदमी नहीं समझते, कि इन संसारी विषय-वासनाओं में फंसकर, इनसे प्रेम करके हम अपना नाश करा बैठेंगे | *जो बुद्धिमान और विचारवान हैं, वे इस बात को समझते हैं; अतः संसारी पदार्थों से मोह नहीं करते और अपने नाश से बचते हैं | वे संसार को अनित्य और नाश की निशानी समझकर, इससे मन हटाकर परमात्मा में मन लगते हैं |* वे अपने को दुनिया का मुसाफिर मात्र समझकर, मौत का हरदम ख्याल रखते हैं |
*कबीर जी ने कहा है -*
*तन सराय मन पाहरू, मनसा उतरी आय !*
*को काहू को है नहीं, सब देखा ठोक बजाय !!*
*"कबिरा" रसरि पाँव में, कहँ सोवे सुख चैन !*
*श्वास-नकारा कूंच का, बाजत है दिन-रैन !!*
*इस चौसर चेता नहीं, पशु-ज्यों पाली देह !*
*राम नाम जाना नहीं, अन्त परी मुख खेह !!*
*अरथात्:-* यह शरीर सराय है, मन चौकीदार है और मनसा - इच्छा इस शरीर रुपी सराय में उतरा हुआ मुसाफिर है; इस जगत में कोई किसी का नहीं है | अच्छी तरह ठोक बजा या जांच पड़ताल करके देख लिया | *पैरों में रस्सी पड़ी हुई है फिर भी तू सुख चैन में कैसे सो रहा है ?* देख इस दुनिया से कूच करने का श्वास रुपी नागदा दिन-रात बज रहा है | *अगर तू इस चौपड़ के खेल में न चेतेगा, इस जन्म में भी होश न करेगा, पशु की तरह शरीर को पालेगा और राम को नहीं जानेगा; तो अन्त में तेरे मुंह में धूल ही पड़ेगी |*
*किसी ने बहुत सुंदर भाव दिया है:-*
*महल महारमणीक, कहा बसिबे नहिं लायक ?*
*नाहिन सुनवे जोग, कहा जो गावत गायक ?*
*नवतरुणी के संग, कहा सुखहू नहिं लागत ?*
*तो काहे को छाँड़-छाँड़, ये बन को भागत ?*
*इन जान लियो या जगत को, जैसे दीपक पवन में !*
*बुझिजात छिनक में छवि भरयो, होत अंधेरो भवन में !!*
*भावार्थ:-* अतीव सुन्दर व रमणीक महल क्या बसने योग्य नहीं हैं ? गवैये जो मनोहर गाना गाते हैं, क्या वह सुनने योग्य नहीं है ? नवीना बाला स्त्रियों के साथ रमण करने में क्या आनन्द नहीं आता ? अगर इन सब में आनन्द और सुख है, तो लोग इन सबको छोड़-छोड़ कर बन में क्यों भागे जाते हैं ? इसलिए भागे जाते हैं, कि उन्होंने इस जगत को उस दीपक के समान समझ लिया है, जो हवा में रखा हुआ है और क्षणभर में बुझ जाता है |
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*!! भर्तृहरि विरचित "वैराग्य शतकम्" चतुर्चत्वारिंशो भाग: !!*
*शेष अगले भाग में:--*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
प्रवक्ता
श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश)
9935328830
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