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*‼️ भगवत्कृपा हि केवलम् ‼️*
🚩 *सनातन परिवार* 🚩
*की प्रस्तुति*
🌼 *वैराग्य शतकम्* 🌼
🌹 *भाग - इकसठवाँ* 🌹
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*गताँक से आगे :---*
*भोगा भंगुरवृत्तयो बहुविधास्तैरेव चायं भवः*
*तत्कस्यैव कृते परिभ्रमतरे लोका कृतं चेष्टितैः !*
*आशापाशशतोपशान्तिविशदं चेतः समाधीयतां*
*कामोच्छित्तिवशे स्वधामनि यदि श्रद्धेयमस्मद्वचः !! ९८ !!*
*अर्थात्:-* नाना प्रकार के विषय भोग नाशमान और संसार-बन्धन के कारण हैं, इस बात को जानकार भी मनुष्यों ! उनके चक्कर में क्यों पड़ते हो ? इस चेष्टा से क्या लाभ होगा ? अगर आपको हमारी बात का विश्वास हो, तो आप अनेक प्रकार के आशा-जाल के टूटने से शुद्ध हुए चित्त को सदा कामनाशक स्वयंप्रकाश शिवजी के चरण में लगाओ | (अथवा अपनी इच्छाओं के समूल नाश के लिए, अपने ही आत्मा के ध्यान में मग्न हो जाओ |
*अपना भाव:---*
आप आज जिन विषय-सुखों को देखकर फूले नहीं समाते, वे विषय-सुख सदा आपके साथ नहीं रहेंगे | वे आज हैं तो कल नहीं रहेंगे | वे बिजली की चमक के समान चञ्चल हैं; अभी बिजली चमकी और फिर नहीं | *आप ऐसे नश्वर, असार और क्षणस्थायी सुखों पर मत भूलो ! होश करो ! अपनी काया नाशमान है ! आप सदा इस संसार में नहीं रहेंगे !* आपकी ज़िन्दगी का कोई भरोसा नहीं | आपका जो दम आता है, उसे ही गनीमत समझिये | *आप एक कदम रखकर, दूसरा कदम रखने की भी दृढ़ आशा न कीजिये | क्योंकि आपका जीवन हवा के झोंको से छिन्न-भिन्न मेघों के समान है |* अभी घटा छा रहीं थी; देखते देखते हवा उन्हें कहाँ का कहाँ उड़ा ले गयी; आकाश साफ़ हो गया | *यह सारा संसार, संसार के सुख-भोग, स्त्री-पुत्र, धन-रत्नादि सभी स्वप्न की सी माया हैं !* यह दुनिया मुसाफिरखाना है | रोज़ अनेक आदमी मुसाफिरखाने, सराय या धर्मशालाओं में आते और जाते रहते हैं; सदा उनमें कोई नहीं रहता | वे जिस तरह एक दिन या दो-तीन दिन रहकर चले जाते हैं; उसी तरह आपको भी, इस दुनिया रुपी सराय में कुछ दिन निवास करके, आगे जाना होगा | *ये सारे सामान यहाँ के यहीं रह जायेंगे ! ये सब ऐसे ही रहेंगे, पर आप न रहेंगे !* इसलिए आप होशियार रहिये, भूलिए मत ! *जिस जवानी पर आप इतना इतराते और इतने श्रृंगार-बनाव करते हैं, यह भी क्षणिक है , यह चार दिन की चाँदनी है इसके बाद अन्धेरी रात निश्चय ही आवेगी |* उस समय आपको यह अकड़, यह उछाल कूद, यह एन्ठना, यह मूंछे मरोड़ना - सब हवा हो जाएगा | आप शीघ्र ही लाठी तक कर चलने लगेंगे | आपका रूप-लावण्य नाश हो जाएगा । जो लोग आपको खूबसूरत समझकर आज प्यार करते हैं, वे ही कल आपको देखकर नाक-भौं सिकोड़ेंगे | फिर भला, आप ऐसी नश्वर निकम्मी काया क्यों इतना अभिमान करते हैं ? *आप अहङ्कार को त्यागिये और अपने को उस खिलाडी का एक मिटटी का पुतला मात्र समझिये , सबकी शुभकामना और परोपकार कीजिये और एकमात्र अपने बनानेवाले से ही दिल लगाइये ! इसी में आपका कल्याण है !* यह जगत कुछ भी नहीं, कोरा भ्रम है | यह मृगमरीचिका या स्वप्न की सी माया है | इस पर ज्ञानी नहीं भूलते |
*महात्मा सुन्दरदास जी कहते हैं -*
*कोउ नृप फूलन की सेज पर सूतो आई !*
*जब लग जाग्यो तौ लों, अति सुख मान्यो है !!*
*नींद जब आयी, तब वाही कूँ स्वप्न भयो !*
*जब परयो नरक के कुण्ड में, यूं जान्यो है !!*
*अति दुःख पावे, पर निकस्यो न क्यूँ ही जाहि !*
*जागि जब परयो, तब स्वप्न बखान्यो है !!*
*यह झूठ वह झूठ, जाग्रत स्वप्न दोउ !*
*"सुन्दर" कहत, ज्ञानी सब भ्रम मान्यो है !!*
*सारांश:---*
*अति चञ्चल ये भोग, जगत हूँ चञ्चल तैसो !*
*तू क्यों भटकत मूढ़ जीव, संसारी जैसो !!*
*आशा फांसी काट, चित्त तू निर्मल ह्वैरे !*
*करि रे प्रतीति मेरे वचन, ढुरिरे तू इह ओर को !!*
*छिन यहै यहै दिनहुँ भल्यौ, निज राखै कुछ भोर को !*
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*!! भर्तृहरि विरचित "वैराग्य शतकम्" एकषष्टितमो भाग: !!*
*शेष अगले भाग में:--*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
प्रवक्ता
श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश)
9935328830
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