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*‼️ भगवत्कृपा हि केवलम् ‼️*
🚩 *सनातन परिवार* 🚩
*की प्रस्तुति*
🌼 *वैराग्य शतकम्* 🌼
🌹 *भाग - इक्कीसवाँ* 🌹
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*भ्रातः कष्टमहो महान्स नृपतिः सामन्तचक्रं च*
*तत्पाश्र्वे तस्य च साऽपि राजपरिषत्ताश्चन्द्रबिम्बाननाः !*
*उद्रिक्तः स च राजपुत्रनिवहस्ते बन्दिनस्ताः कथाः*
*सर्वं यस्य वशादगात्स्मृतिपदं कालाय तस्मै नमः !! ३७ !!*
*अर्थात् :-* ऐ भाई ! कैसे कष्ट की बात है ! पहले यहाँ कैसा राजा राज करता था, उसकी सेना कैसी थी, उसके राजपुत्रों का समूह कैसा था, उसकी राजसभा कैसी थी, उसके यहाँ कैसी कैसी चन्द्रानना स्त्रियां थीं, कैसे अच्छे अच्छे चारण-भाट और कहानी कहने वाले उसके यहाँ थे ! वे सब जिस काल के वश हो गए, जो काल ऐसा बली है, जिसने उन सब को स्वप्नवत कर दिया, मैं उस बली काल को ही नमस्कार करता हूँ |
*कबीरदास कहते हैं -*
*सातों शब्दज बाजते, घर-घर होते राग !*
*ते मन्दिर खाली परे, बैठन लागे काग !!*
*परदा रहती पदमिनी, करती कुल की कान !*
*छड़ी जु पहुंची काल की, डेरा हुआ मैदान !!*
*अर्थात् :-* जिन मकानों में पहले तरह-तरह के बाजे बजते और गाने गाये जाते थे, वे आज खाली पड़े हैं | अब उन पर कव्वे बैठते हैं | जो पद्मिनी पहले परदे में रहती थी, उसी का आज, काल के आने से मैदान में डेरा हो गया है; अर्थात् सबके सामने मरघट में पड़ी है |
*निश्चय ही संसार अनित्य और नाशमान है |* इस जगत की कोई भी चीज़ सदा न रहेगी | *एक दिन अपनी अपनी बारी आने से सभी का नाश होगा |*
संसार के सभी पदार्थ अनित्य हैं, सभी नाशमान हैं | जिसे सूर्य कहते हैं, वह भी एक ऐसा चिराग - दीपक है, जो हवा के सामने रक्खा हुआ है और "अब बुझा-अब बुझा" हो रहा है; तब औरो की तो बात ही क्या? *इस संसार की यही दशा है |*
*अपना भाव :-*
ये अनन्त जलराशिपूर्ण महासागर और सुमेरु तथा हिमालय प्रभृति पर्वत भी *एक दिन काल के कराल-गाल में समां जायेंगे |* देवता, सिद्ध , गन्धर्व, पृथ्वी, जल और पवन, *इन सबको भी काल खा जायेगा* | याम, कुबेर, वरुण और इन्द्रादिक महातेजस्वी देव भी *एक दिन गिर पड़ेंगे |* स्थिर ध्रुव भी अस्थिर हो जायेगा | अमृतमय चन्द्रमा और महाप्रकाशमान सूर्य, ये दोनों भी नष्ट हो जाएंगे | जगत के अधिष्ठाता ईश्वर, परमेष्टि ब्रह्मा और महाभैरव रूप इन्द्र का भी अभाव हो जाएगा | तब संसार के साधारण प्राणियों की कौन गिनती है ? *एक दिन इस जगत का ही अस्तित्व नहीं रहेगा* तब और किस की आस्था की जाए ? *यह जगत ही भ्रममात्र है |* इसमें अज्ञानी को ही आस्था होती है । वही भोगों को सुखरूप समझकर उनकी तृष्णा करता और अपने को बन्धन में फंसाता है | *ज्ञानी पुरुष इस संसार को मिथ्या और सार-हीन तथा नाशमान समझते है |* वह तो केवल ब्रह्म को नित्य और अविनाशी समझकर उसमें मग्न रहता है |
*नृपति सैन जम्मति सचिव, सुत कलत्र परिवार !*
*करत सबन को स्वप्न सम, नमो काल करतार !!*
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*!! भर्तृहरि विरचित "वैराग्य शतकम्" एकोनबिंश भाग: !!*
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आचार्य अर्जुन तिवारी
प्रवक्ता
श्रीमद्भागवत/श्रीरामकथा
संरक्षक
संकटमोचन हनुमानमंदिर
बड़ागाँव श्रीअयोध्याजी
(उत्तर-प्रदेश)
9935328830
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