*इस धराधाम पर जन्म लेकर सुंदर मानव जीवन को प्राप्त करके प्रत्येक मनुष्य जीवन के अंतिम लक्ष्य अर्थात मोक्ष की कामना करता है | अपने इस उद्योग में वह अपने सद्गुरुओं से प्राप्त मार्गदर्शन का अनुसरण भी करने का प्रयास करता है परंतु कुछ ही दिनों में उसका मन उद्विग्न होने लगता है कि हमें जल्दी से जल्दी और सरल मार्ग से मुक्ति कैसे प्राप्त होगी | इस संसार में कोई भी कार्य कठिन नहीं है परंतु किसी भी कार्य में सफलता सभी को नहीं प्राप्त हो पाती | सफलता उसी को मिलती है जो कार्य के प्रति लगन व कौशल से भरपूर परिश्रम करता है | एक बात ध्यान देने योग्य है कि सफलता सिर्फ कड़ी मेहनत एवं एकांतवासी होकर ही नहीं मिलती बल्कि इसके लिए संसार में रहते हुए भी सच्ची लगन व कौशल की आवश्यकता होती है | लगन ऐसी होनी चाहिए कि संसार के सभी कार्य निबटाते हुए भी व्यक्ति का ध्यान अपने लक्ष्य से कभी भी न ओझल हो | कौशल का संपुट कार्य की सुंदरता व अभिव्यक्ति को निखारने के लिए आवश्यक होता है | इसके साथ ही कड़ी मेहनत व निरंतरता ही मनुष्य के लिए उस मार्ग का निर्माण करती है जिस पर चलकर वह सफलता तक पहुँचता है | वहीं दूसरी ओर यदि मनुष्य के अंदर किसी भी कार्य को करने का कौशल हो और वह यह भी जानता हो कि उसे यह कार्य किस ढंग से सम्पन्न करना है यह सारी कला होने के बाद भी यदि उसके अंदर उस कार्य के प्रति लगन न हो तो वह उस कार्य के लिए चाहे जितनी कड़ी से कड़ी मेहनत कर ले तो भी उसे सफलता नहीं प्राप्त हो सकती | मोक्ष प्राप्त करने के लिए लोग उद्योग तो करते हैं परंतु उनमें निरंतरता , लगन कौशल एवं कड़ी मेहनत एक साथ नहीं देखने को मिलती | यही कारण है कि लोग सबकुछ करते हुए कुछ नहीं कर पाते | किसी भी कार्य में यदि सफलता की इच्छा है तो लगन , कौशल , एवं निरंतरता को बनाये रखते हुए कड़ी मेहनत करना ही पड़ेगा अन्यथा कुछ भी नहीं प्राप्त हो पायेगा |*
*आज किसी भी कार्य को करने के पहले ही लोग सफलता प्राप्त कर लेने की इच्छा करने लगते हैं | आज निरन्तरता का अभाव स्पष्ट देखने को मिल रहा है | मोक्ष प्राप्त करके जीवन - मृ्त्यु के चक्र से मुक्ति सभी चाहते हैं परंतु इसके लिए बताये गये साधनों एवं मार्गों पर कुछ दिन तक कुछ दूर चलने के बाद लोग थक जाते हैं और मुक्ति प्राप्त करने का दूसरा उपाय खोजने लगते हैं | मोक्ष प्राप्त करने के लिए सबसे सरल साधन भक्ति को बताया गया है | नौ प्रकार की भक्ति में प्रथम भक्ति मानस के अनुसार सतसंग एवं श्रीमद्भागवत के अनुसार श्रवण अर्थात् भगवान की लीलाओं के विषय में सुनना जो कि सतसंग के ही माध्यम से सम्भव हो सकता है | परंतु मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" आज देख रहा हूँ कि लोग तीन दिन तक तो खूब मन लगाकर सतसंग करते हैं परंतु चौथे दिन गृहकार्यों की व्यस्तता बताकर सतसंग से दूर हो जाते हैं अर्थात् उनकी निरंतरता बाधित हो जाती है ! यदि गृहकार्यों की व्यस्तता के कारण सतसंग से दूर रहा जाता है तो यह लगन का भी अभाव है | सफलता प्राप्त करने के लिए कौशल की भी आवश्यकता होती है | यदि लगन भी है , निरंतरता भी है और समय नहीं निकाल पा रहे हैं तो कुशलता यह है कि यदि पूरे सतसंग में उपस्थिति सम्भव नहीं है तो थोड़ी देर के लिए ही सही परंतु उपस्थिति दर्ज करके निरंतरता बनाये रखने का प्रयास करना चाहिए | आज लोग पाना तो सबकुछ चाहते हैं परंतु उनमें लगन , कौशल , निरंतरता एवं कड़ी मेहनत करने का अभाव ही देखने को मिल रहा है | मोक्ष प्राप्त करने के लिए कुछ भी न करके यदि निरंतर लगन से भगवन्नाम स्मरण ही किया जाय तो यह सम्भव हो सकता है परंतु इसमें भी विश्वास की आवश्यकता है , लगन एवं निरंतरता की आवश्यकता है | आज लोग सुबह उठकर खूब पूजा पाठ भजन करते हैं परंतु जैसे जैसे दिन चढ़ता है उनके क्रियाकलाप अपने पूजा पाठ भजन के विपरीत होने लगते हैं तो निरंतरता कहाँ रह गयी ? कड़ी मेहनत कैसे की जाय ? कड़ी मेहनत करना है अपने मन एवं इन्द्रियों को पराभूत करने के लिए जिस दिन यह सम्भव हो जायेगा उसी दिन मनुष्य मोक्ष का अधिकारी हो जायेगा |*
*मनुष्य के लिए कुछ भी असम्भव नहीं है ! आज तक जितने भी कीर्तिमान स्थापित हुए वे सभी मनुष्यों के द्वारा ही किये गये हैं परंतु उनकी सफलता के पीछे उनकी लगन , कड़ी मेहनत एवं निरंतरता ही मूल सूत्र था ! बिना इन सूत्रों के सफलता सम्भव नहीं है*