*सनातन काल से हमारे विद्वानों ने संपूर्ण विश्व को एक नई दिशा प्रदान की | आज यदि हमारे पास अनेकानेक ग्रंथ , उपनिषद एवं शास्त्र उपलब्ध हैं तो उसका कारण है हमारे विद्वान ! जिन्होंने अपनी विद्वता का परिचय देते हुए इन शास्त्रों को लिखा | जिसका लाभ हम आज तक ले रहे हैं | जिस प्रकार एक धनी को धनवान कहा जाता है , एक बली को बलवान कहा जाता है उसी प्रकार विद्या अर्जन करने वाले को विद्वान कहा जा सकता है | परंतु इन में अंतर भी है | एक धनवान जब अपना धन व्यय करता चला जाता है तो एक दिन वह धनहीन हो जाता है , परंतु एक विद्वान अपने विद्या का जितना व्यय करता है उतनी ही विद्या उसके पास स्वयं आती रहती है | जो निरंतर अपने आय के स्रोत को बनाए रखते हुए धनार्जन करता रहता है वहीं धनवान की श्रेणी में आता है , ठीक उसी प्रकार जो निरंतर विद्यार्जन करते हुए नित नये
ज्ञान की प्राप्ति का उद्योग करता रहता है वहीं विद्वान कहा जा सकता है | हमारे
धर्म ग्रंथों में देखने को मिलता है कि अनेकानेक विद्वान विद्यार्जन करते हुए अपना सारा जीवन व्यतीत कर देते हैं परंतु फिर भी स्वयं को उन्होंने कभी विद्वान नहीं कहते | अपनी विद्वता से उन्होंने अनेक लोक कल्याण कार्य किए परंतु उन्हें कभी अहंकार नहीं आया कि मैं विद्वान हूँ |* *आज भी हमारे
देश में अनेकों ऐसे विद्वान हैं जो विद्वान होते हुए भी स्वयं को कुछ नहीं मानते | परंतु कुछ तथाकथित विद्वान जिन्होंने एक या दो ग्रंथों का अध्ययन कर लिया वह स्वयं को विद्वान मानने लगे एवं अपनी उसी बिद्वता के अहंकार में अपने संस्कारों को भी भूलने का कार्य कर रहे हैं | मेरा "आचार्य अर्जुन तिवारी" का मानना कि जो विद्वान होता है वह कभी नहीं कहता है या वह कभी यह दर्शाने का प्रयास नहीं करता है कि वह विद्वान है | हमारे धर्म शास्त्रों में एक सूक्ति कही जाती है "विद्वान कुलीनो न करोति गर्व:" अर्थात जो विद्वान होता है और साथ ही अच्छे कुल का होता है उसको कभी अपनी विद्वता का अहंकार नहीं होता है | परंतु आजकल प्राय: देखने को मिलता है थोड़ी सी विद्या प्राप्त कर लेने के बाद मनुष्य स्वयं को विद्वान घोषित करके अहंकारी हो जाता है | इनका वही हाल है जैसे मानस में बाबा जी लिखते हैं "छुद्र नदी भर चली तोराई ! जिमि थोरे धन खल इतराई !! जैसे बरसात में छोटी छोटी नदियां जल से पूर्ण हो जाती है जैसे थोड़ा सा धन आ जाने पर दुष्ट उस दिन पर अहंकार करने लगते हैं , ठीक उसी प्रकार जो निम्न मानसिकता के लोग होते हैं अल्प विद्वता प्राप्त कर लेने के बादलस्वयं को विद्वान मानने लगते हैं ! परंतु यह विद्वता का परिमाप नहीं हो सकता | विद्वता वह जो कि सब कुछ जानने के बाद भी विद्वान का भाव हो कि मैं कुछ नहीं जानता | इस संसार में जिसने यह कह दिया कि मुझे सारा ज्ञान हो गया समझ लो कुछ भी नहीं जाना |* *विद्वता का सीधा सा अर्थ है अपने आप में सब कुछ समाहित कर लेना परंतु उसका प्रदर्शन ना करना | थोथा प्रदर्शन करने वाला कभी विद्वान नहीं कहा जा सकता |*