*आदिकाल से ही हमारे ऋषियों ने प्रकृति के महत्व को समझते हुए प्रकृति पूजा का विधान बनाया था | उस विधान को मान करके हमारे पूर्वजों ने प्रकृति पूजा प्रारंभ की | प्रकृति में वैसे तो अनेकों प्रकार की नदियां पहाड़ एवं अन्य प्रतीकों की पूजा होती रही है परंतु इन सब में सबसे विशेष है वृक्ष एवं वनस्पतियों की सुरक्षा संरक्षा एवं उनका पूजन | इस मान्यता का प्रमुख कारण यह है कि जहां संपूर्ण विश्व में सभी जीवधारी अपनी श्वांस के द्वारा विषवमन करते हैं वही विषपान करने की क्षमता सिर्फ वृक्ष एवं वनस्पतियों में ही है | यह वृक्ष ही भगवान नीलकंठ की तरह जहरीली गैसरूपी विष का पान करते रहते हैं और उसके बदले हमको प्राणवायु प्रदान करते हैं | वृक्ष भगवान शिव की तरह विषपान करके संपूर्ण सृष्टि को जीवन प्रदान करते हैं साथ ही वृक्षों के पंचांग मानव जीवन के लिए कितने उपयोगी हैं यह बताने की आवश्यकता नहीं है | परमार्थ में संलग्न पेड़ पौधे देखने में तो मौन रहते हैं परंतु अपनी कर्तृत्व से सतत यह शिक्षा देते रहते हैं कि सभी को परमार्थमय जीवन बिताना चाहिए | सुख - शांति , समृद्धि - प्रगति एवं सुव्यवस्था के लिए अपने स्वार्थ का बलिदान देना ही पड़ता है तभी जीवन की सार्थकता है | वृक्षों का संरक्षण करने के लिए हमारे पूर्वजों ने वृक्षों की पूजा करने का विधान बनाया था क्योंकि हमारे पूर्वज महापुरुष यह जानते थे कि मनुष्य का जीवन वृक्षों से ही है जिस दिन वृक्ष नहीं रह जाएंगे उस दिन मानव श्वांस लेने के लिए तड़पेगा और तड़प तड़प कर जीवन दे देगा | सनातन के प्रत्येक धर्म ग्रंथों में भिन्न-भिन्न स्थानों पर भिन्न-भिन्न वृक्षों की पूजा करने का मार्गदर्शन प्राप्त होता है , यह लोगों को देखने में तो ढकोसला लगता है परंतु लोग इस पर नहीं विचार करना चाहते हैं कि पूजनीय होने के कारण ही उन वृक्षों पर कुल्हाड़ी नहीं चलती है , और वे वृक्ष मनुष्य को सतत जीवन प्रदान किया करते हैं |*
*आज के आधुनिक युग में मनुष्य बिना कुछ सोचे समझे अनवरत वृक्षों को काटता चला जा रहा है जबकि यह सत्य है कि अपने निजी स्वार्थ के लिए किसी दूसरे को नष्ट करना स्वयं के पैरों पर कुल्हाड़ी मारने के समान है | आज मनुष्य वही कर रहा है | उद्योग एवं विज्ञान की आड़ लेकर के प्रतिवर्ष पृथ्वी पर से वृक्षों को नष्ट किया जा रहा है जो कि आने वाले भविष्य के लिए बहुत बड़ा खतरा सिद्ध होने वाला है | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" सचेत करते हुए इतना ही कहना चाहूंगा कि जंगलों को नष्ट करके मनुष्य उसे मूर्ख की भूमिका निभा रहा है जो उसी डाल को काटता रहता है जिस पर वह स्वयं बैठा होता है | आज जिस प्रकार पर्यावरण असंतुलन होता जा रहा है उसका कारण जंगलों का सफाया ही कहा जा सकता है जो संपूर्ण पृथ्वी पर असंतुलन उत्पन्न कर रहा है | हमारे पुराण ही नहीं बल्कि आधुनिक वैज्ञानिकों का भी मानना है कि जिस अनुपात में आज वृक्ष काटे जा रहे हैं उसी अनुपात में वृक्षारोपण किया जाना चाहिए तभी आने वाला भविष्य मनुष्य के लिए प्राणमय हो सकता है | प्रत्येक पृथ्वीवासी का ध्यान इस ओर जाना चाहिए कि वनस्पति और मनुष्य की मित्रता से ही सुख शांति की स्थापना हो सकती है , अतः प्रत्येक व्यक्ति को इस दिशा में सजग रहते हुए अपनी मृत्यु से पहले अपने वंशजों को वसीयत के रूप में एक बड़े क्षेत्र में जंगल लगाकर दे तो समझ लो वह अपनी आने वाली पीढ़ियों के लिए अतुल्य संपदा छोड़कर जा रहा है | अन्यथा विचार कीजिए कि हमारे पूर्वज हमारे लिए इतने विशाल वृक्ष दे करके गए हैं परंतु हम अपने आने वाली पीढ़ियों को क्या दे रहे हैं ??*
*वृक्षारोपण के महत्व एवं वृक्षों की सुरक्षा - संरक्षा की महिमा हमारे सनातन धर्म के वेदों , पुराणों , उपनिषदों ने गाई है | अतः मनुष्य को धार्मिक कर्तव्य के साथ नैतिक जिम्मेदारी मानकरके इस दिशा में सजग रहते हुए हरीतिमा को बनाए रखने का प्रयास करना चाहिए |*