*हमारा देश भारत आदिकाल से आपसी प्रेम , सौहार्द्र एवं सामंजस्य के लिए जाना जाता रहा है | बुजुर्ग चाहे अपने घर के हों या गाँव के बच्चे एवं युवा उनका सम्मान करते थे तथा कोई भी गलत काम करने से डरते थे | बुजुर्गें को भी इतना अधिकार रहता था कि वे किसी के भी बच्चे को गलत संगत में पड़कर अनर्गल कृत्य करते हुए देखकर उसे दण्डित कर दिया करते थे | ऐसा करने पर बच्चे के घर वाले क्रोधित न हेकर प्रसन्न होते थे कि हमारा बच्चा गलत संगत में पड़ने से बच गया | बच्चों में प्रत्येक क्षण यह भय बना रहता था कि कहीं कोई हमको देख न ले | यही भय उनको अनर्गल कृत्य करने से बचाता रहता था | गाँव के बुजुर्ग किसी के भी बच्चे को अपना ही समझकर ऐसा करते थे क्योंकि बुजुर्गों के इस व्यवहार को कोई भी बुरा नहीं मानता था | यह हमारे संस्कार एवं हमारी संस्कृति थी | गाँव के बुजुर्ग मार्गदर्शक की भूमिका में होते थे तथा पूरे गाँव को सही दिशा देने का सतत् प्रयास करते रहते थे | यही कारण था कि गाँव के बच्चे शहरों की अपेक्षा अधिक संस्कारवान् होकर बड़ों का सम्मान किया करते थे | परिवार से निकलकर बच्चे जब समाज में जाते थे तो उनके अनेकों मित्र बनते हैं सच्चा मित्र वही है जो अपने मित्र को प्रतिक्षण सचेत करता रहे | किसी भी अनैतिक कृत्य की ओर बढ़ते हुए मित्र को पहले के मित्र समझाकर या फिर बलपूर्वक रोक दिया करते थे परंतु उनके सम्बन्धों में दरार नहीं आती थी | यह हमारे संस्कारों का प्रभाव था जिससे कि हम एक दूसरे का सम्मान करना जानते थे लेकिन अब वर्तमान समय में परिस्थितियाँ भिन्न हो चुकी हैं |*
*आज के वर्तमान युग में मनुष्य ने अपने रहन - सहन , जीवन जीने के ढंग के साथ ही अपनी मानसिकता भी परिवर्तित कर ली है | आज न तो पहले की भाँति संस्कार रह गये हैं और न ही बुजुर्गों का भय एवं सम्मान ही बचा है | इसका कारण बहुत स्पष्ट है कि पहले बच्चे गाँव के बुजुर्गों को देखकर सहम जाया करते थे क्योंकि वे जानते थे कि इनका कहा घरवाले भी मान जायेंगे और हमें घर पर भी सजा मिल सकती है | परंतु मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" देख रहा हूँ कि आज की परिस्थिति यह है कि यदि किसी के बच्चे को कुछ कह दो तो वे जबाब दे देते हैं यही नहीं यदि किसी के घर कोई बुजुर्ग बच्चे की शिकायत करने पहुँच जाता है तो घर वाले अपने बच्चे को दोषी न मानकर उस बुजुर्ग से ही लड़ने को तैयार हो जाते हैं | अपने बच्चे में आज दोष दिखना ही बन्द हो गया है | समाज में बढ़ रहे पापाचारों का यह भी एक प्रमुख कारण कहा जा सकता है कि कोई भी अपने बच्चे की शिकायत लेने को तैयार नहीं दिख रहा है जिससे कि लोगों ने दूसरों के बच्चे को अनैतिक कृत्य करता देखकर भी आँखें बन्द कर ले रहे हैं | सबसे बड़ी बात तो यह है कि आज यदि कोई किसी को या अपने इष्ट - मित्रों को उसके विषय में समाज में उठ रही विपरीत बातों को बताकर समझाने करते हुए उसे सचेत करने का प्रयास करते हैं तो वह समझने के बजाय यह कहने लगता है कि तुमने तो मेरे ऊपर कलंक लगा दिया | मन में यह विचार आते ही धीरे धीरे उस व्यक्ति से दूरी बढ़ने लगती है | आज की स्थिति यह है ति किसी को यह भी नहीं बताने वाला है कि जिस रास्ते से तुम जा रहे हो उधर गहरा गड्ढा है क्योंकि आज बताने पर लोगों को लगता है कि यह हमसे ईर्ष्यावश ऐसा कह रहे हैं | समझाने पर न मानने वाले जब उस गहरे गड्ढे में गिरते हैं तो उनके लिए सम्हलना मुश्किल हो जाता है | हमारे बुजुर्ग , ज्येष्ठ , श्रेष्ठ , गुरुजन एवं मित्रजन सदैव गलत मार्गों पर जाने से रोकते रहे हैं इनकी बात का बुरा न मानकर जो मान लेता है वह आने वाले किसी बड़े संकट से स्वयं को बचा लेता है | अन्यथा तो क्या हो रहा है यह सम्पूर्ण संसार देख ही रहा है |*
*मनुष्य को किसी के द्वारा समझाये जाने या उसके विषय में कुछ बताने पर क्रोधित होकर भाव में कुछ भी बक देने के पहले उस विषय पर गहराई से चिन्तन अवश्य करना चाहिए |*