*सनातन धर्म में साधक की कई श्रेणियाँ कही गयी हैं इसमें सर्वश्रेष्ठ श्रेणी है योगी की ! योगी शब्द बहुत ही सम्माननीय है | योगी कौन होता है ? इस पर विचार करना परम आवश्यक है | योगी को समझने के लिए सर्वप्रथम योग को जानने का प्रयास करना चाहिए कि आखिर योग क्या है जिसे धारण करके एक साधारण मनुष्य योगी बनता है | योग का मूलमंत्र है चित्तवृत्तियों का निरोध कर मन के उस पार जाना इसके लिए आसन प्राणायाम बहुत आवश्यक नहीं है क्योंकि क्छ लोग इसके बिना भी उस स्थिति में पहुँच जाते हैं जिसे योग की भीषा में समाधि कहा जाता है | योगी एवं योग की व्याख्या करते हुए गीता में भगवान श्री कृष्ण कहते हैं :-- "यदा हि नेन्द्रियार्थेषु न कर्मस्वनुषज्जते !सर्वसंकल्पसंन्यासी योगारूढस्तदोच्यते" !! अर्थात :- जब भी कोई इन्द्रियों के विषयों में या कर्मों में आसक्त नहीं होता तभी सर्व संकल्पों का संन्यासी योगारूढ़ कहा जाता है | इस अवस्था को इस प्रकार भी समझा जा सकता है कि :- भोगी का अर्थ है जो इन्द्रियों के विषयों में आनन्द लेता रहे और उन विषयों को बार-बार चाहने की लालसा करता रहे | परंतु जब व्यक्ति योग मार्ग पर आरूढ़ होता है तब सर्वप्रथम वह अपनी विषयों की ओर भागती इन्द्रियों को वश में करता है और निरंतर एक-एक करके सभी इन्द्रियों को वश में करने लगता है | साथ ही एक दूसरी साधना भी वह योगी प्रारम्भ करता है जिसमें उसके द्वारा किये जा रहे दिनभर के कर्मों में वो अपनी आसक्ति नहीं रखता अर्थात बार-बार उसी कर्म को करने की इच्छा नहीं करता | ये दोनों साधनाएं साधक में निरिच्छा का भाव उत्पन्न करती है , जिससे व्यक्ति के मन में उठने वाले सभी संकल्प बंद होते चले जाते हैं और वह सर्व संकल्पों का सन्यासी हो जाता है, उसी को योगी कहा जाता है |*
*आज संसार में योगियों की संख्या बहुत बढ़ गई है जो स्वयं के नाम के आगे योगी लिखते हैं | आज आसन और प्राणायाम में पारंगत किसी व्यक्ति को योगी कहना या फिर किसी योग के चमत्कार को बताने वालों को आप योगी कह दिया जाता है लेकिन हम आपको बताना चाहते हैं कि योगी होने के लिए आसन या प्राणायाम करने की आवश्यकता ही नहीं है | आज के युग में जितने भी योगाचार्य आप देख रहे हैं उनमें से शायद एक भी व्यक्ति योगी नहीं होगा | मैं "आचार्य अर्जुन तिवारी" बताना चाहूँगा कि यम, नियम, आसन, प्राणायाम और प्रत्याहार तो योग में प्रवेश करने की भूमिका मात्र है | इन्हें साधकर भी कई लोग इनमें ही अटके रह गए परंतु इन सबसे ऊपर उठकर साहसी हैं वे लोग, जिन्होंने धारणा और ध्यान का उपयोग तीर-कमान की तरह किया और मोक्ष नामक लक्ष्य को भेद दिया | योगी के तीन मुख्य लक्षण होते हैं :- (१) विवेक :- अर्थात सत्य का ज्ञान (२) वैराग्य :- अर्थात संसार के प्रति विरक्ति, और (३) ईश्वर के प्रति अनन्य भक्ति | अब विचार कीजिए कि आज के युग में कितने योगी हैं जो योगी कहे जाने योग्य हैं | हो सकता है कि मेरा यह लेख कुछ महानुभावों को अच्छा न लगे परंतु योगी वही है जो सदा संतुष्ट, प्रसन्न और निर्भय विचरण करता है | योगी वही है जो कभी किसी के साथ बुद्धिपूर्वक, योजनाबद्ध उपायों से अन्याय या कपट न करते हुए अहित की भावना के साथ प्रतिकार या प्रतिशोध नहीं करता | वह तो मन, इन्द्रियों, शरीर आदि को जड़ मानकर और आत्मा को चेतन मानकर ही समस्त कर्मो नियंत्रणपूर्वक करता है | योगी सदैव सचेतक का उत्तरदायित्व निभाते हुए हानिकारक संस्कारों को उठने नहीं देता और सर्वदा सुभ संस्कारों का प्रयोग करता रहता है | एक योगी सुख एवं दुख से ऊपर उठकर कार्य करते हुए अपने किसी भी कर्म को स्वयं के द्वारा किया मानकर प्रसन्न नहीं होता क्योंकि योगी मानता है कि वह उसके सभी सत्कर्म ईश्वर की प्रेरणा से और ईश्वरप्रदत्त बल से ही कर रहा है |*
*योगी अपने योगबल से संसार को एक नई दिशा प्रदान करते रहे हैं हम सबका आदर्श बनकर हमें सत्कर्मों की ओर प्रवृत्त होने की प्रेरणा देते रहे हैं हमें उनसे सीखने का प्रयास करते रहना चाहिए |*