आम आदमी पार्टी की दिल्ली विधान सभा में सदस्य संख्या 66 से 46
डॉ शोभा भारद्वाज
आम आदमी पार्टी के बीस विधायकों की सदस्यता रद्द करने के चुनाव आयोग के निर्णय पर महामहिम राष्ट्रपति ने मोहर लगा दी इसके साथ ही दिल्ली की राजनीति गर्म होने लगी मुख्यमंत्री केजरीवाद एवं आम आदमी पार्टी के अन्य सदस्यों ने राष्ट्रपति के निर्णय को लोकतंत्र की हत्या करार दिया उन्हें एतराज है राष्ट्रपति महोदय ने उनका पक्ष नहीं सुना |वह हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में निर्णय के विरुद्ध जा कर न्याय मांगने की बात कर रहे हैं जबकि हाई कोर्ट ने पार्टी द्वारा दायर याचिका पर तुरंत निर्णय देने से इंकार किया है | यदि चुनाव होता हैं सभी बीस सीटों पर चुनाव जीतना दल की प्रतिष्ठा का विषय है अत: चुनाव की भूमिका बांध कर अपने आप को विक्टिम जताया जा रहा है |
19 जून 2015 को प्रशांत पटेल नामक एक समाजसेवी वकील ने मुख्यमंत्री केजरीवाल द्वारा संसदीय सचिवों की नियुक्ति के तीन माह के भीतर ही राष्ट्रपति महोदय के सामने याचिका दायर कर आरोप लगाया दिल्ली सरकार में 21 विधायकों की लाभ के पद पर नियुक्ति असंवैधानिक है अत: विधायकों की सदस्यता रद्द होनी चाहिए | ( एक सदस्य द्वारा इस्तीफा देने पर लाभ के पद पर अब 20 विधायक हैं ) नियमानुसार पूर्व राष्ट्रपति श्री प्रणव मुखर्जी ने यह शिकायत 22 जून को चुनाव आयोग के पास भेज दी | 1991 में 69 वे संविधान संशोधन बिल द्वारा दिल्ली का नाम नेशनल कैपिटल टेरेटरी दिल्ली किया गया था यह भी स्पष्ट था दिल्ली की विधान सभा के कुल सदस्यों के दस प्रतिशत का मंत्री मंडल गठित होगा केजरी वाल जी के मंत्री मंडल में सात सदस्य थे |
संविधान के 191 अनुच्छेद में स्पष्ट लिखा हैं विधायको के किसी भी लाभ के पद पर आसीन होने से उसकी विधान मंडल की सदस्यता समाप्त जायेगी | अनुच्छेद 192 के अनुसार सदस्यता समाप्त होने का फैसला चुनाव आयोग की अनुमति के बाद राज्यपाल द्वारा लिया जायेगा |
उम्मीद से अधिक आम आदमी पार्टी के विधायकों की विशाल संख्या से केजरीवाल बहुत उत्साहित थे विधान सभा में आप की भीड़ में विपक्षी दल भाजपा के तीन सदस्य दिखाई भी नहीं देते थे मुख्यमंत्री किसी न किसी रूप में अधिकाँश को लाभ का पद दे कर संतुष्ट रखना चाहते थे | मार्च 2015 को दिल्ली सरकार ने 21 विधायकों की संसदीय सचिव के पद पर नियुक्ति की गयी यूँ समझिये विधायिका के 28 लोगों को कार्यपालिका बना दिया | संविधान में विधायिका और कार्यपालिका के अधिकार क्षेत्र की अलग – अलग व्याख्या है |यदि विधायिका कार्यपालिका के क्षेत्र में काम करती है इसे कार्यपालिका के कार्य क्षेत्र में दखल माना जाता है|
केजरीवाल सरकार को जैसे ही अपनी भूल का अहसास हुआ कानून में जरूरी बदलाव कर 24 जून 2015 को अपने विधायकों की सदस्यता बचाने के लिए सरकार एक बिल ले कर आई जिसके तहत डिस्कवालिफिकेशन प्रोविजन से बचा जा सके यह संरक्षण बिल पूर्व प्रभारी था इसे मंजूरी के लिए एलजी नजीब जंग को भेज दिया उन्होंने इसे केंद्र सरकार के पास भेजा केंद्र सरकार ने विचारार्थ राष्ट्रपति महोदय को भेज दिया |राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने बिल को लौटा दिया जिससे संसदीय सचिवों की सदस्यता खतरे में पड़ गयी | मुख्य मंत्री जी की संसदीय सचिवों के पद को वैध बनाने की कानूनी कवायद बेकार हो गयी उन्होंने अपना तर्क दिया संसदीय सचिवों की नियुक्ति कानूनी दायरे में की गयी है | उनके विधायक संसदीय सचिव होने के नाते कोई वेतन या भत्ता जैसी सुविधा नहीं ले रहे जो लाभ के पद पर रहते मिलती है लेकिन यदि ‘क़ानूनी दायरे में संसदीय सचिवों की नियुक्ति सही थी फिर उन्होंने जरूरी बदलाव के नाम पर विधेयक को विधान सभा में पास क्यों कराया’ इसका मुख्यमंत्री जी के पास तर्क नहीं कुतर्क थे | 2006 में पूर्व मुख्य मंत्री शीला दीक्षित ने नौं संसदीय सचिवों की नियुक्ति मुख्य मंत्री की सहायता के लिए की थी लेकिन केजरी वाल जी द्वारा मुख्य मंत्री और मंत्रियों के लिए संसदीय सचिवों की नियुक्ति के लिए कानून में संशोधन किया |
संसदीय सचिवों के लिये सचिवालय में 21 सुसज्जित कमरे उनमें कुर्सियों सोफा कम्प्यूटर और ए सी आदि की व्यवस्था थी तथा गाड़ियों की सुविधा भी दी गयी जिससे उनके पद की गरिमा बने | |विधान सभा के स्पीकर ने कहा यह उनके अधिकार क्षेत्र में हैं संसदीय सचिवों को काम करने के लिए कमरा दिया जाये| कौन से संसदीय सचिव किस विभाग के मंत्री की सहायता करेंगे यह भी लिखित था अधिकतर कमरों में विवाद उठने के बाद ताले जड़ दिये गये |
संख्या बल का गर्व मुख्य मंत्री का तर्क था संसदीय सचिव उनके आँख कान हाथ हैं | यह काम तो विधायकों का कार्य क्षेत्र हैं | नियमानुसार नियुक्ति से पहले कानून बनाना चाहिए था| देश में कोई भी संविधान से परे नहीं हैं | भाजपा और कांग्रेस दोनों ने मुख्य मंत्री द्वारा की गयी नियुक्तियों का विरोध किया था |
जैसे ही विधायकों की सदस्यता संकट में आयीं केजरीवाल ने अपनी आदत के मुताबिक़ राजनीति शुरू कर दी| चुनाव आयोग द्वारा पूछे गये जबाब में 21 विधायकों ने लगभग एक ही उत्तर दिया है वह इंटर्न हैं उनका काम केवल दिए गये आदेशों का पालन करना है यह इंटर्न सेवा के लिए आये हैं |अजीब बात हैं यह इंटर्न मंत्री जी की फाईलें भी देख सकते हैं | हैरानी की बात है आम आदमी पार्टी सुथरी राजनीति के नाम पर जीती थी | अब वह भी अन्य राजनीतिक दलों के समान व्यवहार कर रही थी उनके अनुसार राजस्थान, गुजरात, मणिपुर ,मिजोरम ,अरुणाचल प्रदेश ,मेघालय और नागालेंड में संसदीय सचिवों की नियुक्ति की गयी है जबकि इन प्रदेशों में पहले कानून बना तब नियुक्तियां की गयी है न ही किसी ने इन नियुक्तियों पर आपत्ति की | केजरी वाल अपने आप को विक्टिम सिद्ध करने की कला के माहिर हैं जबकि उनकी गद्दी पर कोई संकट नहीं है | 15 वर्ष के कार्य काल में शीला जी का एलजी से इतना अच्छा सामंजस्य था वह हर सप्ताह उनसे मिलने जाती थीं लेकिन केजरीवाल जी अपने समय के दोनों राज्यपालों द्वारा अपने आप को सताया हुआ सिद्ध करते रहे हैं | वैसे भी आप के प्रवक्ता केवल अपनी बात कहते हैं लगातार बोलते हैं किसी की सुनना उनके स्वभाव में नहीं है सत्ता के बाद भी वह विपक्ष जैसा व्यवहार करते हैं राष्ट्रपति चुनाव आयोग के निर्णय को मानने के लिए बाध्य हैं। निर्णय देर से आया राज्यसभा में आम आदमी पार्टी के तीन सदस्य भेज दिये गये |