विचित्र किन्तु सत्य
डॉ शोभा भारद्वाज
20 अक्तूबर को पितृ पक्ष की अमावस है पितृ पक्ष समाप्त होने के बाद नवरात्र प्रारम्भ हो जायेंगे | आज से लगभग 35 वर्ष पुरानी बात है 31 जुलाई मेरे पहले पुत्र का जब जन्म हुआ वह बेहद कमजोर था बच्चों के डाक्टर ने तरह – तरह से उसका मुआयना किया उन्होंने कहा बच्चा कमजोर है लेकिन इसकी चुस्ती में कोई कमी नहीं है बस ध्यान रखने की बहुत जरूरत है | अम्मा जी ( मेरी सास ) पूरी तरह से मुस्तैद थी रात को उठ कर डाक्टर के निर्देशानुसार उसे तीन घंटे बाद उसे दूध पिलवाती उनका पहला पोता था वह पांच दिन का हो गया | रात को मैं गहरी नींद में सो रही थी | कमरे में 15 पावर का बल्प जल रहा था अचानक मेरी आँख खुली बल्प की रौशनी में एक ढांचा बिलकुल मेरी नजर के सामने लगभग दो गज की दूरी पर बन रहा था मैं घूर कर देखने लगी और पहचानने की कोशिश कर रही थी कौन है ? कमरे में मेरे और अम्मा जी के अलावा कोई नहीं होता था |मुझे स्कैच बनाना नही आता यदि मेरी ड्राइंग अच्छी होती बना देती उलझे हुए बाल दो रुखी लटें चेहरे के दोनों तरफ थी चेहरा मुरझाया हुआ पैथेटिक दयनीय भूरी आँखें परन्तु स्टोनी निर्जीव जैसे मृत हों ओंठ दायीं तरफ की और झुके हुए कुछ तिरछे | मेरी आँखे ऊपर से नीचे की तरफ देखने लगीं दोनों हाथ कमर पर न्यूनतम कोण बनाते हुए कमर पर टिके थे परन्तु मुड़े हुये | पैर की दोनों एड़ियाँ जुडी हुई लेकिन पंजे फैले हुए बीच में दस इंच का अंतर इसी तरह घुटने दोनों तरफ फैले हुए और मुड़े हुये| कुछ समय बाद नाभि के नीचे लगभग दस इंच के करीब आयताकार काले रंग का लेकिन बैंगनी चमक लिए पट्टा जैसे पेंट किया हो आकार ऐसा लग रहा था जैसे मुर्दा लाश हो |
कम से कम सात से दस मिनट तक मैं पहचानने की कोशिश करती रही थी इतने में अम्मा जी अपना पल्ला सम्भालते हुए उठी उनके अनुसार बच्चे के दूध का समय हो चुका था | मैं हैरान हो कर देख रही थी एक औरत की आकृति , जिसके शरीर पर कोई कपड़ा नहीं है सामने खड़ी है परन्तु निर्जीव है |दूसरी अम्मा जी पल्ला सम्भालते हुए आगे बढ़ रही हैं अचानक अम्मा जी जैसे पास पहुची वह ढांचा और अम्मा एकाकार हो गई जैसे आकार अम्मा में समा गया मुझे न डर न दहशत अम्मा ने बच्चे को दूध पिलवाया मैं सो गई एक ‘ऐसा औरा जिसका मुझ पर प्रभाव था’ |
सुबह उठी अजीब सी सोच में थी मैने अपने डॉ पति से संकोच से झिझकते हुए कहा मैने जागते हुए बल्ब की रौशनी में ऐसा आकार देखा वह क्या था समझ नही आ रहा वह हँसने लगे उन्होंने कहा कमजोरी में आँख अचानक खुलती है रौशनी में आकार बनते हैं परन्तु अम्मा जी बोलीं यह हैरान होकर दीवार के सामने एकटक देख रही थी बात आगे बढ़ी जब मैने नाभि के नीचे जामुनी चमक लिए पेंट की बात कही यह तो चौंक गये इन्होने कहा यह बुआ जी का डिस्क्रिप्शन दे रही है उनकी मृत्यु हुए काफी वर्ष गुजर गये थे कभी इसके सामने उनका जिक्र ही नहीं आया था | बुआ जी आगरा ब्याही थी ब्याह के एक वर्ष बाद उनके पति की मृत्यु हो गई सुसराल में उनकी सास ससुर बहुत बूढ़े थे उनके इकलौता बेटे के मरते ही जायदात के झगड़े शुरू हो गये अत : मेरे ससुर अपनी बहन को उस जमाने में अपने घर ले आये वह पूरे फैमनिस्ट थे उन्होंने अपनी बहन को पढ़ाई में लगा दिया बुआ जी नें बी.ए.पास किया उनकी नौकरी लग गई वह अब पैरों पर खड़ी थी लेकिन उन्होंने पढाई नहीं छोड़ी आगे एम.ए वह बहुत सुंदर पेंटिग बनाती थी सम्मान जनक जीवन जी रहीं थी
मेरे पति से उनको बहुत प्रेम था यह जयपुर के मेडिकल कालेज में पढ़ रहे थे |बुआ जी बीमार पड़ीं यह उन्हें अपने मेडिकल कालेज में इलाज के लिए ले गये वहाँ इनके बड़े भी भाई रहते थे |मेडिकल कालेज में कई टेस्टों के बाद पता चला उन्हें यूट्रस का कैंसर था उन दिनों बीकानेर में कैंसर की सिकाई होती थी अत : बुआ जी बीकानेर ले जाई गई वहाँ भी इनके चाचा जी रहते थे उनके इलाज में कोई कसर नही छोड़ी परन्तु कैंसर बढ़ता ही गया एक दिन बुआ जी की जयपुर मेडिकल कालेज के अस्पताल में मृत्यु हो गई |अच्छी खासी शानदार व्यक्तित्व की बुआ जी सूख गई | बीकानेर में जब उनको जब सेक दिया जाता था उनकी नाभि के नीचे बैंगनी काले रंग से कहाँ से कहाँ सेक लगना है निशान लगाया जाता जिससे कोई अन्य टिशू जल न जाये जो मैने जो आकार जागती आँखों से देखा था बिलकुल मरते समय उनका यही हाल था उनको अंतिम यात्रा पर ले जाने से पहले नहलाने का समय आया किसी में उनको नहलाने की हिम्मत नहीं थी अम्मा जी ने नहलाया था |
पूरा परिवार हैरान हो रहा था मैं मैडिकल लाइन की नहीं थी और मेरे इस घर में आने से बहुत पहले उनकी मृत्यु हो गई थी उनका मेरे आमने कभी जिक्र भी नहीं आया था | मेरी माँ और पिता जी बच्चे को देखने आये उन दिनों हमारे घर में चर्चा का विषय था मेरे पिता जी सुना बड़े हैरान हुये उन्होंने कहा बेटा तुम पढ़ी लिखी हो क्या जाहिलता की बातें कर रही हो परन्तु मेरी माँ ने विषय को गम्भीरता से लिया उन्होंने कहा दुनिया में कई बार विचित्र बातें होती हैं ,शायद वह अपने घर के बंशज को देखने आई हों तुम अब पितृ पक्ष पर उनका श्राद्ध अवश्य करना |अम्मा जी अन्य पूर्वजों के साथ उनका भी श्राद्ध करती थीं |
मैं उन दिनों पढ़ रही थी फिर विदेश चली आई मुझे फिर कभी वह नजर नहीं आई मेरे दूसरे बच्चे का विदेश में जन्म हुआ मैने सोचा अब मैं कमजोर भी हूँ कमरे में बल्प भी जलता रहता है मुझे आकार फिर दिखेगा परन्तु ऐसा कुछ नहीं हुआ हम लोग अस्पताल कैम्पस में रहते वहाँ मुर्दा घरो में लाशें भी रखी जाती थीं इन दिनों इराक ईरान में लड़ाई चल रही थी शहर में बमबार मैंट हुआ साढ़े तीन हजार लोग मारे गये लोग अपने परिवार के लोगों को ढूंढ रहे थे मैं बहुत लोगों को जानती थी, रात को मुझे कोई आकार नजर नहीं आया परन्तु मेरे दिमाग में प्रश्न बना रहा मैने कई साईकेट्रिस्ट से भी पूछा सब हैरान होते थे | पाकिस्तानी डॉ नसीर अख्तर विदेश से साईकेट्री की पढाई पढ़ कर आये उन्होंने कहा सिद्धांत रूप में कहते हैं कई बार अचानक आँख खुल जाने पर रोशनी में आकार बनते बिगड़ते दिखते हैं परन्तु मिस्ट्री से इंकार नहीं किया जा सकता |
हम लोग विदेश से भारत आ गये | समय बीतता गया लेकिन दिमाग के कोने में वह आकार कभी नहीं गया काफी समय की बात हैं मैं आकाशवाणी से जुडी हूँ कभी – कभी चैनलों में होने वाली वार्ताओं में भी जाती हूँ |एक बार NDTVपर भूतों पर बहस थी भूत सच हैं या वहम मेरा प्रिय विषय था उस समय पंकज पचौरी एंकर थे मैने उनसे कहा मैं सबसे अंत में अपनी बात कहूंगी | कई लोग अपने अनुभव सुना रहे थे उस समय के मशहूर साईकेट्रिस्ट बुलाये गये थे मैने उनके सामने अपनी बात रखी बकायदा कैमरे के सामने वह आकार बनाया वह गम्भीर हो गये उन्होंने कहा अक्सर तरह – तरह के आकार अचानक आँख खुलने पर बनते हैं परिवार वाले उसे अपने परिवार के किसी मृतक से जोड़ लेते हैं परन्तु नाभि के नीचे बनाया गये चौड़े निशान पर उन्होंने कहा हाँ कैंसर के स्थान पर सेक करने के लिए निशान लगाते हैं यह भी हो सकता हैं परिवार के लोगों ने ही तुमसे प्रश्न किये हो कहा हो उनको सेक देने के लिये काला निशान लगाया गया था |
मैने उत्तर दिया नहीं सर मेरी आँख ने धोखा नहीं खाया |वह भी सोचते रहे किसी के पास जबाब नहीं था अम्मा जी के स्वर्गवास के बाद मैं हर वर्ष अपने परिवार के पूर्वजों का श्राद्ध करती हूँ फर्क बस इतना है अमावस के दिन पंडित बहुत व्यस्त होते हैं मेरे एक जानकार परिवार में कई पढ़े लिखे नौकरी पेशा युवक ज्यादातर इंजीनियर हैं रहते हैं उनसे पूछती हूँ आप में जो भी ब्राह्मण है क्या हमारे घर खाना खायेगा वह हंस कर कहते हैं आंटी पंडित हैं पंडिताई परिवार ने छोड़ दी परन्तु खाना किसे बुरा लगता है दक्षिणा नहीं लेंगे वह मैं जरूरत मंद को दे देती हूँ परन्तु बुआ जी के लिए एक महिला ढूंढ ली है उसे मैं बड़े आदर से भोजन कराती हूँ |वह आकार मेरा वहम था या सत्य लेकिन सदा मेरी स्मृति में रहेगा जिसे मैं कभी दुबारा नहीं देख सकी |आज पितृ पक्ष समाप्त होने पर अपना अनुभव सबसे बाँट रही हूँ |
डॉ शोभा भरद्वाज