भारत की प्रधानमंत्री स्वर्गीय इंदिरा प्रियदर्शनी गाँधी
डॉ शोभा भारद्वाज
19 नबम्बर 1917 श्री जवाहरलाल नेहरू के घर इंदिरा प्रियदर्शनी गांधी का जन्म हुआ जिन्होंने आगे चल कर अपने प्रधान मंत्री पिता से भी अधिक शोहरत हासिल कर भारतीय इतिहास में अपना दर्ज कराया| इंदिरा जी के राजनीति क जीवन में प्रशंसकों के साथ विरोधियों की भी कमी नहीं थी भारत में पहली बार आपतकालीन स्थिति की घोषणा हुई लेकिन उन्होंने इसे अपनी राजनीतिक भूल स्वीकार किया था |एक बार सत्ता भी उनके हाथ से चली गयी जनता दल के शासन में उन पर शाह कमीशन द्वारा केस चलाया गया | बैंकों का राष्ट्रीयकरण ,राजाओं के प्रिवीपर्स को समाप्त किया , पांचवी पंच वर्षीय योजना में गरीवी हटाओ का नारा दिया , देश से गरीबी हटाने के प्रयत्न में बीस सूत्रीय कार्यक्रम की घोषणा की, । देश हरित क्रान्ति द्वारा अपना पोषण करने में हुआ और पंजाब में आतंकवाद पैर पसार रहा था ‘आपरेशन ब्लूस्टार’, स्वर्ण मन्दिर में सेना का प्रवेश करा कर खलिस्तानी मूवमेंट की कमर तोड़ दी वह दरी नहीं यही साहसिक कदम उनकी मृत्यू का कारण बना 31 अक्टूबर 1984 उनका बलिदान दिवस है जिसके बाद पूरे देश में दंगे भड़क उठे थे | भारत की विदेश नीति में उनका महत्वपूर्ण योगदान सदैव याद रहेगा |
1965 के भारत पाकिस्तान के युद्ध की समाप्ति के बाद रूस के प्रयत्नों ने दोनों देशों के बीच ताशकंद में समझौता कराया समझौते के कुछ घंटों बाद ही हृदय गति रुक जाने से प्रधानमन्त्री लाल बहादुर शास्त्री जी की मृत्यु हो गई |24 जनवरी 1966 को इंदिरा जी ने प्रधान मंत्री पद की शपथ ली |भारत कम अंतराल के बीच चीन और पाकिस्तान से युद्ध कर चुका था देश की आर्थिक स्थिति बहुत कमजोर थी इंदिरा जी को पी. एल .480 के अंतर्गत गेहूं और वित्तीय सहायता की आवश्यकता थी उन्होंने अप्रैल में आर्थिक मदद के लिए अमेरिका की सरकारी यात्रा की |अमेरिका उत्तरी वियतनाम से युद्ध में फंसा था वियतनाम गरीब मुल्क होते हुए भी अमेरिकन शक्ति का डट कर मुकाबला कर रहा था |पूरे विश्व में अमेरिका की बदनामी हो रही थी| अमेरिकन राष्ट्रपति जानसन 35 लाख टन गेहूँ और एक हजार मिलियन डालर की सहायता के बदले इंदिरा जी से अपने पक्ष में स्टेटमेंट दिलवाना चाहते थे कि अमेरिका का वियतनाम में कदम उचित है राष्ट्रपति को विश्वास था भारत सरकार मजबूर है लेकिन इंदिरा जी ने राष्ट्रपति जानसन की बात नहीं मानी राष्ट्रपति जानसन ने मदद से हाथ खीँच लिया |
इंदिरा जी ने जुलाई 1966 में रूस की यात्रा की, रूस के साथ अमेरिका के विरुद्ध स्टेटमेंट दिया | उनका सोवियत रशिया की तरफ मित्रता का हाथ बढाना कूटनीतिक निर्णय था |
चकोस्लोवाकिया वार्सा पैक्ट का मेम्बर देश था वहाँ के राष्ट्राध्यक्ष दुबचेक सुधारों के समर्थक थे वह कम्युनिज्म के शिकंजे से बाहर निकलना चाहते थे लेकिन शिकंजे को किसी भी तरह की ढील न देते हुए 21 अगस्त 1968 को सोवियत रशिया ने वार्सा पैक्ट के मेंबर कम्युनिस्ट गुट के साथ अपने टैंक चकोस्लोवाकिया की राजधानी प्राग में उतार दिये | सुरक्षा परिषद की आपतकालीन बैठक बुलाई गई तथा संयुक्त राष्ट्र जरनल असेम्बली में सोवियत संघ के विरुद्ध प्रस्ताव पास हुआ| सोवियत संघ ने प्रस्ताव के विरोध में वीटो का प्रयोग किया इस समय इंदिरा जी ने जिन्हें गूंगी गुडिया कहा गया था उन्होंने एक महत्व पूर्ण निर्णय लिया वह तटस्थ रहीं | दोनों सुपर पावर की कूटनीति से अपने आप को अलग रखकर पंचशील के सिद्धांत को मान्यता दी
लेकिन बंगलादेश के निर्माण के लिए सोवियत यूनियन की तरफ झुकना उनकी मजबूरी थी |
पाकिस्तान में चुनाव हुये शेख मुजीब-उर-रहमान की आवामी लीग को बहुमत मिला लेकिन भुट्टो किसी भी तरह सत्ता को हाथ से जाने नहीं दे रहे थे उन्हें प्रधान मंत्री के पद पर आसीन होना था शेख को जेल में डाल दिया गया ,यहीं से पाकिस्तान के विभाजन की नीव पड़ गई |मुजीब-उर-रहमान ने हर नागरिक को बंगलादेश के निर्माण में सहयोग देने का आह्वान किया |1971 में पाकिस्तान के राष्ट्रपति जरनल याहिया खान थे उन्होंने पूर्वी पाकिस्तान के हालात सुधारने की जिम्मेदारी जरनल टिक्का खान को सौंपी 26 मार्च से पूर्वी पाकिस्तान में खूनी संघर्ष हुआ ऐसा जुल्म जिसके आगे मानवता भी शर्मा जाये | जीवन की रक्षा के लिए भारत में शरणार्थी आने लगे जिनकी हर सुविधा का ध्यान रख कर उनके लिए टेंट लगवाये गये एक करोड़ के लगभग लोगों ने शरण ली जिससे भारत की इकोनोमी प्रभावित होने लगी | इंदिरा जी ने कुशल कूटनीतिज्ञ की भाँति विश्व का ध्यान भारत की और खींचने के रिफ्यूजियों की समस्या का अंतर्राष्ट्रीयकरण किया | पूर्वी पाकिस्तान में मुक्ति वाहिनी सेना का गठन किया गया जिसके सदस्य आधिकतर बंगलादेश का बौद्धिक वर्ग और छात्र थे जिन्होंने भारतीय सेना की मदद से अपनी भूमि पर पाकिस्तानी सेना से संघर्ष किया अंत में पाकिस्तानी सेना का मनोबल इतना गिर गया जनरल नियाजी ने भारतीय सेना के समक्ष आत्म समर्पण कर दिया | अमेरिका नें पाकिस्तान का मनोबल बचाने के लिए सातवाँ जंगी बेड़ा बंगाल की खाड़ी में खड़ा कर दिया गया जिसका रुख भारत की तरफ था इंदिरा जी विचलित नही नहीं हुई वह सोवियत रशिया से पहले ही संधि कर चुकी थी जानती थी अमेरिका पूर्वी पाकिस्तान की समस्या में पाकिस्तान का पक्ष ले कर बड़े युद्ध का कारण नहीं बनेगा वियतनाम में अपनी किरकिरी को भुला नहीं था
|पाकिस्तानी के 93 000 युद्ध बंदियों को अलग कैम्पों में रखा गया जिन्हें बंगला देशियों के कोप से भी बचाना था |
भुट्टों 20 दिसम्बर को पाकिस्तान के राष्ट्रपति बने ,पाकिस्तान के सैन्य अधिकारियों को पराजय का जिम्मेदार बना कर पद से हटा दिया |कई महीने बाद राजनीतिक स्तर के प्रयत्नों के परिणाम स्वरूप जून माह 1972 में शिमला में बातचीत शुरू हुई |इस वार्ता में भाग लेने भुट्टो भारत आये अनेक विषयों पर चर्चा हुई जिसमें बंगला देश को मान्यता देना भी था पाकिस्तान के इतनी बड़ी संख्या में युद्ध बंदी होने से भी पाकिस्तान का मनोबल टूट गया था इस समझौते में भारत को बहुत लाभ नहीं हुआ हमारे पास पाकिस्तान का काफी भाग था लौटना पड़ा हाँ समझौते के आखिरी चरण में राष्ट्रपति भुट्टो से एक बात सख्ती से इंदिरा जी ने मनवाई जिसके लिए वह मजबूरी में तैयार हुए वह बात बात पर दावा करते थे घास की रोटी खायेंगे पर कश्मीर ले कर रहेंगे, इंदिरा जी के सामने विनम्र रह कर समझौता करना पड़ा |
शिमला समझौते के अंतर्गत दोनों देश अपने विवादों का हल आपसी बातचीत से करेंगे कश्मीर समस्या का अंतर्राष्ट्रीयकरण नहीं होगा कुछ इस समझौते की आलोचना करते हुए कहते हैं हमें जीते प्रदेश लौटाने पड़े आज के युग में हम किसी देश के प्रदेश पर कब्जा नहीं कर सकते पंच शील का सिद्धांत भी यही कहता हैं अब भारत को युद्ध के समय पश्चिमी पाकिस्तान और चीन की सीमा पर ही ध्यान देना है| पकिस्तान की तरफ से नों बार ‘नो वार’ पैक्ट भेजे गये लेकिन इंदिरा जी ने स्वीकार नहीं किये |
इंदिरा जी गुटनिरपेक्ष देशों को और पास लायी उनसे अपने सम्बन्ध बढाये जिससे संकट के समय सब एक दूसरे का सहारा बन सकें महाशक्तियो की तरफ न देंखे |दिल्ली में सातवें गुटनिरपेक्ष देशों के सम्मेलन में युगोस्लोवाकिया के मार्शल टीटो ,मिश्र के नासिर ने भी भाग लिया |विश्व में इंदिरा जी की शोहरत बढ़ी लेकिन अपने देश में उनकी मुश्किलें कम नहीं थी उन्हें अनेक उतार चढ़ावों से होकर गुजरना पड़ा |इंदिरा जी पर अमेरिका और अन्य पश्चिमी देशों का परमाणु अप्रसार संधि पर हस्ताक्षर करने का बहुत दबाब था प्रलोभन भी दिए गये लेकिन 1974 में पोखरन में परमाणु विस्फोट कर विश्व को चकित कर बता दिया देश किसी भी तरह कमजोर नहीं हैं भारत ने परमाणु से लेस ताकतों में अपना स्थान दर्ज कराया | चीन स्वयं परमाणु शक्ति सम्पन्न था उसने भी भारत का विरोध किया |भारत पर प्रतिबन्ध लगाये गये जापान के अलावा किसी ने नहीं माना भारत दक्षिण एशिया में एक शक्ति के रुप में उभरा |
अफगानिस्तान में सोवियत हस्ताक्षेप का उन्होंने समर्थन नहीं किया | युद्ध भारत के दरवाजे पर था इंदिरा जी उदासीन नहीं थी परन्तु तटस्थ रही न उन्होंने रूस का समर्थन किया न अमेरिकन हस्ताक्षेप की निंदा| फिलिस्तीन के विषय में वह फिलिस्तीन के अलग राष्ट्र की समर्थक थी उन्होंने उसी नीति को मान्यता दी जिससे राष्ट्र हित सधता था अंग्रेजों ने मालदीप को आजाद करते समय हिंदमहासागर में दियागो गार्शिया का द्वीप अमेरिका को सौंप दिया था जहां अमेरिकन और यूरोपियन शक्तियों ने अपने अड्डे बना लिये रूस भी इस क्षेत्र में अपनी दखल रखता है | इंदिरा जी ने हिन्द महासागर को शान्ति का क्षेत्र बनाने के लिए सदैव प्रयत्न किया अब चीन भी इस क्षेत्र को अपने अधिकार क्षेत्र में लाना चाहता है |