बल बुद्धि निधान राम को समर्पित वीर हनुमान ( साहित्यक लेख )
डॉ शोभा भारद्वाज
अनेक बाधाओं को पार कर श्री हनुमान लंका
पहुंचे लेकिन नगर में प्रवेश कैसे करें ?वह एक ऊँचे घने वृक्ष की छाया में घुटनों
के बल बैठे थे उन्होंने हाथ जोड़ कर कहा मेरा श्री राम में अटूट विश्वास है वही
मुझे मार्ग दिखलायेंगे |सामने चारो तरफ समुद्र से घिरी विश्व प्रसिद्ध सोने की
लंका अपनी कीर्ति के साथ जगमगा रही थी
चारो तरफ सुद्रढ़ दीवारों से सुरक्षित एक किला थी जागरूक प्रहरी राक्षसियां
शस्त्रों से सुसज्जित इसकी रक्षा कर रही थी , हर आहट पर चौकना हो जाती थीं | दुखद
एक उन्नत रक्ष संस्कृति एवं राक्षस जाति उनके राजा के कृत्य से नष्ट हो जायेगी |आकाश
में बादल छाये हुए थे मंद पवन चल रही थी चन्द्रमा से बदली हट गयी पूर्ण चन्द्रमा आकाश
में चमकने लगा समुद्र में ऊँची लहरें पूरे ज्वार पर थीं |रात्री का दूसरा प्रहर
हनुमान के लिए सुअवसर था देर रात तक आमोद प्रमोद से थक कर हर ओर सुरक्षित लंका सो
रही थी हनुमान जी नें छोटा रूप धारण कर नगर में प्रवेश किया| नगरी अत्यंत सुंदर थी
मुख्य मार्ग के दोनों तरफ महल थे उनके आगे फलदार वृक्षों की कतारें थी पीछे बाग |वह
हर महल की बालकनी पर निशब्द चढ़ कर उनके गवांक्ष से झांक रहे थे|
लंका के निर्माण की एक पौराणिक कथा है भगवान शिव वैरागी वेश में कैलाश धाम में
रहते थे परन्तु पार्वती ने जिद ठान ली उनके रहने के लिए अनुपम नगरी बनाई जाए विश्वकर्मा
स्थान की खोज कर रहे थे उन्होंने समुद्र से घिरे द्वीप में प्राकृतिक सौन्दर्य से भरपूर
तीन पर्वत शिखर देखे |उन्हें नगरी के निर्माण के लिए क्षेत्र भा गया | विश्वकर्मा
ने अपनी सम्पूर्ण कला का परिचय देते हुए सोने की अद्भुत नगरी निर्मित कर दी |गृह
प्रवेश के लिए विश्रवा को आचार्य नियुक्त
किया गया यज्ञ के बाद उन्होंने दक्षिणा में शिव जी की माया से वशीभूत होकर नगरी
मांग ली शिव ने कहा तथास्तु |विश्रवा से नगरी उनके पुत्र कुबेर को मिली| उन दिनों पराक्रमी
रावण अपनी शक्ति बढ़ा रहा था उसने दक्षिण एशिया के कई द्वीपों पर विजय पा ली अब उसे
सुरक्षित राजधानी चाहिए थी जिसके केंद्र से वह अपना साम्राज्य मजबूत कर रक्ष
संस्कृति का प्रसार कर सके उसने अपने सौतेले भाई कुबेर को लंका से निकाल दिया कर
राजधानी बनाया | त्रिकुट पर्वत की तीन पहाड़ियों के समतल पर निर्मित लंका ऐसी लगती
थी मानों बादलों में बसी हो | चारों दिशाओं में चार प्रवेश द्वार थे |
राजधानी के बीचो बीच लंका पति रावण का महल शिल्प कला का अनुपम उदाहरण था | राजमहल
अनेक खम्बों पर टिका था हर और भव्यता ही भव्यता थी | यहाँ पहरा और भी सख्त था ,वानर को कौन रोक सकता है हनुमान नें धीरे से
दीवार फांदी देखा महलों के चारो ओर विशाल बाग हर किस्म के फलों एवं फूलों की सुगंध
से महक रहा था महल के बाग़ में पुष्पक विमान खड़ा था जिसे रावण ने अपने सौतेले भाई कुबेर
से छीना था इसी विमान से रावण सीता को हर लाया था लम्बे चौड़े विमान में हर वैभव मौजूद
था उन्होंने विमान के हर कोने में सीता को खोजा विमान में कोइ नहीं था |रावण के विशाल
महल में बिल्ली के समान छोटा रूप धारण कर सीता को खोजने लगे वह रावण के अंत:पुर
में गये सबसे सुसज्जित प्रकोष्ट रावण का शयन कक्ष था वह एक पर्दे के पीछे पीठ लगा
कर चारो तरफ देखने लगे उनकी तेज खोजी आँखें अँधेरे में चमक रही थीं |वहाँ अनेक रूपसी
रानियाँ जिन्हें रावण जबरन ब्याह लाया था पलंगों पर सोयी हुई थीं हनुमान कुछ देर
के लिए ठिठक गये महिलाओं के प्रकोष्ठ में जाकर उन्हें निहारना ,लेकिन वह राम के
काज के लिए यहाँ आये थे मजबूरी थी |एक बड़ा पलंग जिस पर सफेद सिल्क की छतरी लगी थी पलंग
पर पीली सिल्क की चादर बिछी थी उस पर रावण गहरी नींद में सोया था उसके माथे पर लाल
रंग का चन्दन लगा था कानों में भारी कुंडल उसका मुख मंडल वीरोचित तेज से चमक रहा
था | वह नवजात हिरन के बच्चों की खाल के मुलायन तकियों पर सिर टिकाये सुखनिद्रा
में सोया रावण लंका के हर योद्धा का प्रिय हर राक्षस पुत्री उसका वरण करना चाहती थी रावण के
शयनकक्ष के बाहर सुरा पान कक्ष था वही लम्बी मेज पर खाने के अनेक अनखाये भोज्य
पदार्थ सजे थे| हनुमान मेज पर चढ़ कर अनुपम योद्धा को निहारने लगे कमर में मृगछाला पहन
हाथ में फरसा लेकर जिधर से निकलता था विजय ही विजय थी वह अपने में ही एक सेना था |अपनी
भुजाओं के बल पर उसने साम्राज्य बनाया था हनुमान को अचानक भूख लग आई उन्होंने मेज
पर रखे कुछ तरबूज खाये |उनकी नजर अलग पलंग पर सोई हुई अप्रतिम सुन्दरी पर पड़ी क्या
यह भगवती सीता हैं नहीं उन्होंने अपना सिर धुना ऐसा शर्मनाक विचार उनके मन में क्यों
आया ?सीता जैसी पावन स्त्री कभी यहाँ नहीं हो सकती यह अवश्य मय दानव की पुत्री
लंका की साम्राज्ञी मन्दोदरी हैं |
महल के बाग़ का हर कोना देखा अब सीता
की खोज करते_करते वह निराश हो कर दीवार से पीठ लगा कर बैठ गये लम्बी सांस लेकर
अपने आप से बातें करने लगे रावण जैसे महा दुष्ट ने अवश्य उनको मार दिया होगा ,
उसकी पकड़ से छूट कर समुद्र में गिर गयी होंगी, उनकी सांस घुट गयी होगी या रावण ने
उनको अपने हाथों से पीस दिया होगा वह अपनी आखिरी साँस तक बेबस हे राम –हे राम
पुकार रही होंगी यहाँ उनका कोई रक्षक नहीं था ? हनुमान की आँखों से आंसू बहने लगे गला
रुंध गया वह सुबकने लगे मैं हार सह नहीं सकता अपना जीवन समाप्त कर लूंगा उन्होंने
अपने पंजों से अपने मुहँ को ढक कर आखिरी सांस लेकर सांस रोक ली | हनुमान के हर
शब्द को लंका में बहने वाली वायू ने सुना उनके देवता पवन देव अपने पुत्र के कानों
में फुसफुसाये हवायें तेज होती गयीं पेड़ों से पत्ते गिरने लगे ,वृक्ष चरमराने लगे लंका
के महलों पर लगी झंडियाँ टूट-टूट कर गिर रहीं थीं लंका में वायु ने कभी अपना
संतुलन नहीं खोया था समस्त ब्राह्मंड के देवों पर राक्षस राज का अधिकार था अब ?हनुमान
ने आँखें खोली अपनी उँगलियों के अंदर से झाँक कर देखा तेज हवायें उनके सिर के ऊपर
से बह रहीं थीं उनके बाल पीछे चिपक गये उनके कानों से आवाज टकराई मेरे पीछे आओ,
हनुमान उठ खड़े हुए आंधी की दिशा में चलने लगे हवा का बहाव हल्का होता गया वह ठहर
गये सामने ऊँची चारदीवारी से घिरी वाटिका थी| अपने शरीर से धूल झाड़ी रावण के महल के पीछे की वाटिका, बाहर से जंगल लग
रही थी ऊंचे-ऊंचे पेड़ों के झुरमुट से घिरी वाटिका में , जंगली , फलदार, लाल एवं
पीले फूलों के वृक्ष लेकिन बहुतायत में अशोक के वृक्ष थे| भीतर कुशल मालियों ने
वाटिका को बाग़ की तरह संवारा था |
सूर्योदय होने वाला था पंछी चहचहाने
लगे उनकी आवाज में दर्द था चौकड़ियाँ भरते हिरन दुखी थे मानों दुःख ने वाटिका में मूर्त
रूप धर लिया हो | समुद्र की दिशा से सूर्य ऊंचा उठने लगा वह ऊंचे घने शीशम के पेड़ पर
चढ़ गये जिसके पत्ते सुनहरे थे उन्होंने देखा सामने प्राकृतिक तालाब हैं जिसमें
झरने से बह कर आने वाली सरिता का जल निरंतर गिर रहा था उसमें से निकलनी वाली
छोटी-छोटी नालियों में बहने वाला जल अशोक वाटिका को सींच रहा है | सीता
अवश्य यहीं होंगी वह वर्षों से जंगलों में रह रही है वहीं किसी झरने या तालाब में
स्नान करती थीं अवश्य यहाँ आयेंगीं |हनुमान ने सुना लंका के पुजारी मन्दिरों में
भोर के स्वागत के लिए सस्वर मंत्रोच्चार कर रहे हैं |महल में चारण रावण की प्रशंसा
में राजा को जगाने के लिए गीत गाने लगे अशोक वाटिका में भद्दी आकृति की रक्षसियाँ जिनके
पपोटे शराब का अत्यधिक सेवन करने से भारी हो गये थे अभी रात का नशा कम नहीं हुआ था
अपनी प्रतिदिन की दिनचर्या में लग गयीं पहरा बदला जा रहा था |
रावण जगा उसने प्रभात के सूर्य को अपनी लाल आँखों से देखा सबसे पहले कैद में
रखी गयी सीता का रुख किया उसके पीछे उसकी रानियाँ उंघती हुई आ रही थी , बगल में
मन्दोदरी हीरों से जड़ित सोने के पात्र में मदिरा लिए रावण के साथ चल रही थी रावण धीरे
–धीरे पात्र से मदिरा के घूंट भर रहा था रावण के पीछे श्रेणी के अनुसार योद्धा चल रहे थे
हनुमान ने छोटा आकार धारण कर शीशम की सबसे ऊँची डाली में पत्तों के बीच अपने आप को
छुपा लिया उन्होंने देखा मानव जाति की अपूर्व सुन्दरी स्त्री उठी वह पास ही एक पेड़
के नीचे खाली धरती पर लेटी थी उठ कर बैठ गयी वहीं उसने अशोक के वृक्ष से पीठ टिका
कर अपने वस्त्रों से अपने आप को ढक कर ,बाजुओं से अपने घुटनों को जकड़ कर सिर झुका
लिया |उसके लम्बे घने काले बाल खुल कर धरती पर फैल गये हनुमान समझ गये यह मानवी सीता
है जब पुष्पक विमान से रावण हर कर उनको लेजा रहा था वह करुण स्वर में विलाप करती
हुई उसका उग्र विरोध कर रही थी |यह स्त्री अधमरी भूखी प्यासी ऐसी कैदी जिसे मुक्ति
की आशा नहीं है बंद आँखों से काल की प्रतीक्षा कर रही है | सीता , श्री राम की
भार्या हर वक्त अपने पति के साथ प्रसन्न रहने वाली अब दुःख का मूर्त रूप थी |
वहाँ रावण आया उसने सीता को देख कर मुस्कराया ,अरे सीता तुम मुझसे भयभीत क्यों
हो मैं तो तुम्हारे प्रेम का वशीभूत याचक हो चुका हूँ कब तक उपवास रखती हुई धरती
पर सोओगी यह यौवन एवं सुन्दरता चिर स्थायी नहीं है मेरा प्रणय निवेदन स्वीकार कर मेरी
महारानी बन कर लंका पर राज करो | सीता ने एक तिनका उठा कर कहा ऐ दुष्ट मेरी ओर देखना मुझे छूना मौत को बुलावा देना है
क्या तुम देवी काली का नृत्य करता संहारक
रूप नहीं जानते जिनके गले में मुंडों की माला वह अट्टहास करती साक्षात कालरात्रि
बन जाता है | रावण के भौहों पर बल पड़ गये मेरा प्रताप देख देवता मेरी सेवा करते
हैं मेरी विशाल सेना मेरे एक इशारे पर काल बन जाती है स्वयं काल मेरी कैद में है
समझो, ऐ मानव जाति की श्रेष्ठतम सुन्दरी मेरा प्रणय निवेदन स्वीकार कर मेरी
पत्नियों बन मेरी वैभव पूर्ण नगरी ,मेरे
दिल पर राज करो | सीता ने बिजली की तरह कड़कती आवाज में कहा रावण तुम्हें सब कुछ
उलटा सूझ रहा है क्योंकि मृत्यू तुम्हारे पास खड़ी है यदि तुम सचमुच वीर हो धर्म का
पालन करो मुझे सम्मान के साथ श्री राम को लौटा दो वह नर श्रेष्ठ मर्यादा
पुरुषोत्तम तुम्हें क्षमा कर देंगे, कभी शरणागत की हानि नही करेंगे |ऐ रावण मौत की
आहट सुन |ओह सीता जिद छोड़ो अपनी आँखे खोल कर मेरी ओर देखो लंका का सम्पूर्ण वैभव
तुम्हारा होगा | सीता ने कहा अरे मूर्ख तू सूर्य के प्रकाश को बेचना चाहते हो मैं
महाराजाधिराज जनक की पुत्री तुम मुझे वैभव
का लोभ दिखा रहे हो? मूर्ख पागल हो? मेरे लिए धरती का हर वैभव मेरे स्वामी
के साथ है तू चोरों की तरह मुझे हर लाया है |श्री राम जिन्होंने पिता के बचन का
पालन करने हेतु बनवासी वेश में वन को प्रस्थान किया मूर्ख तू उन आर्य श्रेष्ठ को
क्या जाने ? अरे सीता जितना मैं तुम्हारे प्रति दयालू हूँ तुम उतना भी मुझे
अपमानित कर रही हो |सीता ने उत्तर दिया तो जान लो मैं सीता हूँ धरती पुत्री ,धरती
अपनी धुरी पर घूमती है लेकिन जब हिलती है कितने राजवंश ,सभ्यतायें तुझ जैसे उसमें
समा गये |
रावण ने क्रोध से सीता को देखा वह
अपने असली रूप में आ गया वह दसों सिर झटकने लगा उसकी सभी भौहें चढ़ गयीं उसकी बीसों
भुजाये फड़कने लगीं वह गुराया दांतों को पिसते हुए तलवार लेकर सीता पर झपटा सीता
डरी नहीं उन्होंने रावण के नेत्रों में अपने तेजस्वी नेत्र गड़ा दिए |वृक्ष पर बैठे
हनुमान रावण पर झपटने ही वाले थे मन्दोदरी ने रावण को रोक लिया वह प्रेम सहित उसे
समझा बुझा कर ले गयी जाते –जाते रावण ने धमकी देते हुए कहा एक माह ,बस एक माह का
समय दे रहा हूँ यदि तूने मेरा कहा नहीं माना मैं अपनी कृपाण से तुम्हारा सिर धड़ से
अलग कर दूंगा |रावण की पत्नियाँ देव व महान राजाओं की पुत्रियाँ आँखों में आंसू भर
कर सीता को निहारती लौट गयीं उनके पीछे प्रहरी थे | हनुमान सोचने लगे यहाँ सीता
अकेली है राक्षसों से भरे दंडक वन में विचरती थी ऐसे महान योद्धा की पत्नी जिसने
एक ही बाण से बाली के प्राण हर लिये रावण की बंदिनी| वीभत्स राक्षसियाँ लौट आयीं वह
सीता को डराने लगी तभी एक समझदार राक्षसी त्रिजटा ने उन्हें रोकते हुए कहा मैने भोर
के समय स्वप्न देखा है | सोने की लंका जल रही है ,लंकापति लाल वस्त्रों लाल फूलों
की माला पहने तेल पी रहा है वह हंसा, चीखा फिर रोता हुआ दक्षिण दिशा की ओर जा रहा
था उसके जाते ही लंका समुद्र में डूब गयी|राक्षसों की सफेद हड्डियों के पहाड़ पर
लक्ष्मण बैठे हैं | श्री राम आये वह सफेद हाथी पर सवार थे जिसका हौदा हाथी दांत का
बना था वह उस पर रखे सिंहासन पर बैठे हैं उन्होंने श्वेत वस्त्र धारण किये हैं उनके
गले में श्वेत फूलों की माला है | लंका का सौभाग्य भयभीत होकर कन्या के वेश में
उत्तर दिशा की और जा रहा था कन्या के शरीर पर घाव थे ,रक्त बह रहा था एक बाघ उसकी
रक्षा कर रहा था वह अवश्य अयोध्या नगरी की और जा रही थी |उन्होंने सीता से कहा तुम
सौभाग्यवती हो तुम पर कोई भी अशुभ छाया नही है | राक्षसियाँ डर गयीं वह सीता से
क्षमा प्रार्थना करने लगी हमारी रक्षा करो राम के कोप से रक्षा करना |
सीता अब अकेली थी हनुमान सोच रहे थे क्या करू कैसे सीता को विश्वास दिलाऊं वह
राम के सेवक है उन्हीं की खोज में लंका
आये हैं |हनुमान जानवरों की भाषा में राम राम जपने लगे सीता नें सिर उठाया सुनने
लगी हनुमान ने नर्म आवाज में सीता के हरण के बाद की कथा सुनाई कैसे नर और बानर का
साथ जुड़ा राम ने एक ही बाण से महान बाली का वध कर किश्किंध्या का राज महाराज
सुग्रीव को सौंप दिया अब चारों दिशाओं में जहाँ तक हवायें पहुंचती है बानर भालू उन्हें ढूंड रहे हैं | मैं
भगवती की खोज में समुद्र पार कर यहाँ पहुँचा हूँ | सीता ने ऊपर देखा शीशम के पेड़
पर सफेद रंग का वानर बैठा मुस्करा रहा था उसकी पीली भूरी आँखे चमक रही थीं हनुमान
एक छलांग में नीचे आ गये | माँ मैं हनुमान श्री राम को समर्पित उनका सेवक हूँ| सीता
की आँखों से टपटप आँसू बहने लगे उन्होंने सिर झुका लिया वह समझ गयीं उनके सामने
विशुद्ध आत्मा खड़ी है वह हनुमान के हर भाव को समझ रही थीं हनुमान ने कहा जब रावण आपको हर कर ले जा रहा था
आप विलाप कर रही थीं आपने अपने आभूष्ण फेके थे वह पोखर में गिर गये मेरे मित्र
सुग्रीव ने उठा कर सम्भाल लिये |जब श्री राम ऋष्यमूक पर्वत पर पधारे हमने आपके
आभूष्ण उन्हें दिये | हनुमान प्रसन्न होकर किलकारी मारने लगे उनकी खोज पूरी हुई |
हनुमान ने सीता की राम की निशानी अंगूठी उन्हें दिखाई | हनुमान ने कहा माता राम कम
सोते हैं बहुत कम खाते हैं ठंडी रातें
उन्हें जलाती हैं उनकी आँखों से निरंतर अश्रू बरसते है |माँ आप कृपया मेरी पीठ पर
बैठ जाईये मैं आपको सकुशल यहाँ से निकाल कर ले जाऊँगा |
सीता मुस्कराईं मैं तुम वानरों का चंचल स्वभाव समझ गयी तुम इतने छोटे हो मुझे
कैसे ले जा सकते हो |हनुमान का स्वरूप बढ़ता गया ऐसा लगा जैसे विशाल श्वेत पर्वत
आकाश को छू रहा हो विशाल भुजायें उनके हर भाव से वीर रस टपक रहा था उन्होंने तुरंत
लघु रूप धारण कर लिया माँ मैं आपको लंका से ले जाउंगा मुझे कोई दीवार ,रावण की
सेना भी रोक नहीं सकेगी मैं पवन पुत्र हूँ | सीता संतुष्ट हुई उन्होंने अपना सिर
ऊपर उठाया वह आत्म विश्वास से भर गयीं |मुझे विश्वास है एक दिन श्री राम आयेंगे रावण
का वध करेंगे मुझे जीत कर ले जायेंगे| पुत्र हनुमान आज ठहरो मेरा यहाँ कोइ नहीं है तुम्हें
देख कर संतोष हुआ न जाने तुम फिर कब लौटोगे समुद्र से घिरी लंका में प्रवेश बहुत
कठिन है| हनुमान ने उन्हें सांत्वना देते
हुये कहा माता मैं तो महाराज सुग्रीव की सेना का साधारण वानर हूँ श्री राम भयानक
वानरों भालुओं की सेना सहित समुद्र में सेतु बांध कर पधारेंगे रावण को उसके कृत्य
दंड देंगे |हनुमान मौन सोच रहे थे वह ऐसा क्या करें जिससे लंका में ऐसा हाहाकार मच
जाये राक्षस राज युद्ध से पहले ही भयभीत हो जाये |