नागरिकता संशोधन बिल
डॉ शोभा भारद्वाज
दिल्ली में जामिया मिलिया में स्टूडेंट के हिंसक प्रदर्शन देख कर हैरानी हुई प्रदर्शन
किस लिए? क्या नागरिक संशोधन के बिरोध में
लेकिन बिल से मुस्लिम समाज को क्या परेशानी है? वह किनके समर्थन के लिए हंगामा कर रहे हैं ? संसद के दोनों सदनों
में लम्बी बहस के बाद लोकसभा एवं राज्यसभा में नागरिकता संशोधन बिल पास हुआ बबिल
के हर पक्ष पर बहस हई 11 दिसम्बर को राष्ट्रपति महोदय के हस्ताक्षर के बाद कानून
बन गया विधेयक से ‘अफगानिस्तान ,पाकिस्तान एवं बंगला देश हिंदू,
सिख, बौद्ध,
जैन, ईसाई प्रवासियों को भारतीय नागरिकता मिलने का रास्ता खुल गया’
बिपक्ष बिल के विरोध में प्रचार कर रहा था यह बिल मुस्लिम बिरोधी है जबकि भारतीय
मुस्लिम नागरिकों की नागरिकता पर कोई संकट नहीं था विपक्ष का कहना है कि यह धर्म
के आधार पर भेदभाव करने वाला और समानता के अधिकार के विरुद्ध है| किनकी समानता? अफगानिस्तान में तालिबानों का प्रभाव
बढ़ने के बाद अफगानिस्तान में बसे हिन्दू एवं सिख अपना सब कुछ छोड़ कर भारत आने के लिए बिवश हो गये |बनियान में पत्थर काट पर
बनाई गयी प्राचीन महात्मा बुद्ध की प्रतिमा को बुतशिकनी मानसिकता वाले तालिबानों
ने तोपों से हमला कर मूर्ति तोड़ दी| अफगानिस्तान
से आये गैर मुस्लिम भारत में शरणार्थियों का जीवन बिताने लगे यही हाल पाकिस्तान और
बंगला देश का रहा है | उन पर धर्म के आधार पर उत्पीड़ित किया वह देश छोड़ने के लिए
विवश हो गये बंगलादेश के कट्टरपंथियों को गैर इस्लामिक कबूल नहीं हैं जबकि
बंगलादेशी भारत में रोजी रोटी के लिए आते और बसते रहे हैं|
बुद्धिजीवियों की पाकिस्तान
में आवाज सत्ता की और बढ़ते मौलानाओं ने खामोश कर दी पाकिस्तान कट्टरपंथियों के
आकाओं एवं सेना के प्रभाव में है जिनकी सोच कुफ्र, काफिर, सबाब और जेहादी मानसिकता है जो जन समाज पर हावी होती जा रही है|
गैर इस्लामिक लोगों की हालत खराब हैं न वह सुरक्षित हैं न उनके बच्चे बेटियों को
को घर से उठा कर कलमा पढ़वा कर बड़ी उम्र के पुरुषों से निकाह कर दिया जाता है किसी
गैरमजहबी का धर्मपरिर्तन उनके लिए सबाब माना जाता है लेकिन बेटी और उनके परिवार के
लिए संताप | निकाह के बाद भी वह सुरक्षित नहीं है जब चाहो तलाक दे कर निकाल दो |
गैर इस्लामिकों को अपने मृतकों को अधिकतर गाड़ना पड़ता है |मन्दिरों में 20 मन्दिर
में ही पूजा का अधिकार है बाकी मन्दिर खंडहर हो रहे हैं न रोजी न बेटी ,न संस्कृति
न धर्म सुरक्षित वह कहाँ जायें उनका एकमात्र सहारा भारत हैं यहाँ भी वह परदेसी हैं
छुप कर जीवन बिताने के लिए विवश |पारसी
ईरान में इस्लाम के राजधर्म होने के बाद से धार्मिक उत्पीड़न से परेशान होकर भारत
आये थे विभाजन के बाद जो पाकिस्तान में रह गये उनकी दयनीय दशा है | ईश निंदा के
बहाने ईसाईयों को सताया जा रहा है उनके चर्च तोड़ दिए गये उनके अनुसार 'पाकिस्तान में हर
व्यक्ति 295C धारा से परेशान है
क्योंकि उन्हें हमेशा इसके दुरुपयोग का डर सताता हैं। किसी मुस्लिम से विवाद होने
पर उन्हें पीपीसी 295 सी के तहत बुक कर देते है |वह अधिकतर कन्वर्ट हुये
ईसाई धर्मावलम्बी हैं भारत ही एक मात्र उनका सहारा है |जनेवा में पाकिस्तानी
ईसाईयों ने जलूस निकाल कर विश्व का ध्यान
आकर्षित किया कैसे ईश निंदा के नाम पर
इस्लामिक कट्टरपंथी अल्पसंख्यकों पर अत्याचार करते हैं | सिख बौद्ध जैन भारत की
धरती के धर्म हैं |विपक्ष का तर्क है मुस्लिम को नागरिकता कानून के अंतर्गत क्यों
नहीं लिया गया जबकि हमारी संस्कृति वसुधैव कुटुम्बक में विश्वास करती है | यह
कानून हमारे संविधान के विपरीत है | भारत एक धर्म निर्पेक्ष देश है यहाँ मौलिक अधिकारों के अनुसार सभी समान हैं | मुस्लिम का अपना देश
है उनका उत्पीडन क्यों होगा बलोचिस्तान अदि में झगड़ा धार्मिक उत्पीड़न का नहीं है
अधिकारों का है |
पाकिस्तान का निर्माण ही भारत
में दो राष्ट्रीयता एवं धर्म के आधार पर
हुआ | ब्रिटिश विचारकों ने बांटों एवं राज करो की नीति के आधार पर मुस्लिमों को
अपने समीप लाने की कोशिश की जिसका उद्देश्य मुस्लिमों को संगठित कर राष्ट्रीयता की
विचारधारा को छिन्न भिन्न कर दिया जाये |एक मुस्लिम डेपुटेशन श्री आगाखान के नेतृत्व
1 अक्टूबर 1906 के दिन बायसराय से मिलने गया जिसका वह इंतजार कर रहे थे| अपनी
पुस्तक ‘इंडिया मिंटो और मोरले’ में लेडी मिंटो ने लिखा है आज एक बहुत बड़ी घटना
हुई है कूटनीति का ऐसा कमाल हुआ है जो आगे आने वाले कई वर्षों में देश की राजनीति
को प्रभावित करेगा जिसने 6 करोड़ 20 लाख लोगों को देशद्रोही विपक्ष अर्थात कांग्रेस
से मिलने से रोक दिया |’
सारे जहाँ से अच्छा हिंदोस्ता
हमारा गीत के रचयिता अल्लामा इकबाल ने 1930 के अध्यक्षीय भाषण में मुस्लिम राज्य
की मांग अलग तरह से उठायी इस्लाम केवल मजहब नहीं एक सभ्यता संस्कृति है दोनों आपस
में जुड़े हुए हैं एक को छोड़ने पर दूसरा छूट जाता है भारतीय राष्ट्रवाद के आधार पर
राजनीति का गठन का मतलब इस्लामी एकता के सिद्धांत से अलग हटना है |जिसकेबारे में
कोई मुसलमान सोच भी नहीं सकता | पाकिस्तान शब्द का बीज चौधरी रहमत अली कैब्रिज
यूनिवर्सिटी के स्टूडेंट एवं उसके मुस्लिम दोस्तों के दिमाग की उपज था, उन्होंने
28 जनवरी 1933 को नाऊ और नेवर (now or never) की हेडिंग से चार पन्ने के पम्पलेट
निकाले उसमें कहा आज के
हालात में भारत की जो आज
स्थिति है उसमें वह न किसी एक देश का नाम है, न ही कोई एक राष्ट्र है, वह ब्रिटेन द्वारा पहली बार एक बना स्टेट है। हमारा मजहब और तहजीब, हमारा इतिहास हमारे रिवाज और नियम कायदे हमारा
रहन-सहन हिन्दुओं से काफी जुदा है। अपने पम्पलेट में पाकिस्तान को नाम दिया यह पंजाब
,नौर्थ वेस्ट फ्रंटियर प्रोविंस ,कश्मीर, सिंध और बलोचिस्तान है एवं एक नक्शा भी
छपा था जिसमे अखंड भारत में तीन मुस्लिम देशों को दिखाया गया था
पाकिस्तान,बंगिस्तान (आज का बंगला देश ) ,एवं दक्षिणी
उस्मानिस्तान ( हैदराबाद, निजाम की रियासत ) विदेश में प्रवास के दौरान एक मुस्लिम
डाक्टर ने और आगे बढ़ कर कहा भारत में सात पाकिस्तान बनने चाहिए थे |
अलग देश की
मांग बढ़ती रही 23 मार्च 1940 ,आल इंडिया मुस्लिम लीग के अधिवेशन में पाकिस्तान का
प्रस्ताव पास मुहम्मद अली जिन्ना की अगुआई में पाकिस्तान की विचार धारा को सार्थक
रूप दिया गया | कांग्रेस ने प्रस्ताव् की आलोचना करते हुये कहा भारत को दो टुकड़ों में
बांटना था | 14
अगस्त की रात संयुक्त भारत के दो हिस्सों में बट गया भारत एवं पाकिस्तान (पूर्वी
पाकिस्तान आज बंगला देश कहलाता है |आजादी की नई सुबह क्या सुखकारी थी काफिले के
काफिले हिन्दुस्तान आ रहे थे उनका अपना देश अब परदेस था| भारत से मुस्लिम
पाकिस्तान जा रहे थे |कुछ ने भारत में ही रहना पसंद किया |
शरणार्थियों
की समस्या के समाधान के लिए 1950 में
दिल्ली में प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री लियाकत अली
खान ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए थे, जिसे
नेहरू-लियाकत समझौता नाम दिया गया। पूर्वी पाकिस्तान (जो बाद में बांग्लादेश बना)
से हिंदुओं और पश्चिम बंगाल से मुसलमानों का पलायन हो रहा था। जम्मू-कश्मीर में
पाकिस्तान की घुसपैठ के साथ दोनों देशों के बीच के रिश्ते पहले ही तनावपूर्ण हो
चुके थे। पाकिस्तान से अल्पसंख्यक हिंदुओं, सिखों, जैन और बौद्धों के पलायन और भारत से
मुसलमानों को पाकिस्तान जाना पड़ा अप्रैल 1950 में
नेहरू-लियाकत समझौते के अनुसार “शरणार्थी
अपनी संपत्ति का निपटान करने के लिए भारत-पाकिस्तान आ जा सकते थे।-अगवा की गई महिलाओं और लूटी गई संपत्ति को
वापस किया जाएगा था। जबरन धर्मातरण को मान्यता नहीं दी गई थी।-दोनों देशों ने अपने-अपने देश में अल्पसंख्यक
आयोग गठित किए जाएँ ।“पाकिस्तान जाने से पहले कई मुस्लिम देश में रुक कर अपनी
सम्पति को उचित दामों में बेच कर गये लेकिन क्या हिन्दूओं के लिए पकिस्तान जा कर
अपनी सम्पत्ति का सौदा कर ज़िंदा वापिस आना क्या सम्भव था ?
अक्सर भारत में शर्णार्थियो से लोग
प्रश्न करते थे आप सभी ऊंची जाती वाले हैं क्या आपके यहाँ दलित नहीं थे | दलितों
में मुख्यतया सफाई कर्मचारियों को पाकिस्तान से आने ही नहीं दिया गया एक मिनिस्टर
ने कहा था यदि यह लोग चले गये तो साफ़ सफाई कौन करेगा ?उन दिनों मैला ढोने की प्रथा
थी | कई शरणार्थी जिनमें दलित भी हैं जम्मू कश्मीर में बस गये वह वहाँ परदेसी थे उनकी
हालत सुधरने की उम्मीद धारा 370,35a की समाप्ति के बाद जगी है नहीं तो वह 70 साल
बीत जाने के बाद भी पाकिस्तानी समझे जाते थे अब मोदी सरकार ने उनकी दशा सुधारने के
लिए उन्हें 5 लाख रूपये की सहायता दी |
एनआरसी का विरोध हो रहा है इससे आंकलन किया जाता है कि
कौन भारतीय नागरिक है और कौन नहीं। इसे भारत की 1951 में की गयी जनगणना के बाद
तैयार किया गया था जिनके नाम इसमें शामिल नहीं होते हैं, उन्हें अवैध नागरिक माना
जाता है।
जो लोग असम में बंगला देश बनने से पहले 25 मार्च 1971आये केवल उन्हें ही भारत का
नागरिक समझा जाएगा इसके हिसाब से 25 मार्च,
1971 से
पहले असम में रह रहे लोगों को भारतीय नागरिक माना गया है।प्रश्न उठता है नागरिकता
संशोधन बिल की आश्यकता क्यों पड़ी विशेष रूप से हिन्दू बौद्ध पारसी सिख जैन ईसाई
धर्मालम्बियों को ही नागरिकता प्रदान करने का नियम बनाया गया | मुस्लिम क्यों नहीं
? कांग्रेस समेत कई पार्टियां इसी आधार पर बिल का विरोध कर रही
हैं।मुस्लिमों को यह कह कर भड़काया जा रहा है यह बिल उनके हक में नहीं है जुम्मे
नमाज के बाद मस्जिदों से निकलने वाले नमाजियों ने बिल का जम कर विरोध किया कुछ
स्थानीं में तोड़-फोड़ कर सार्वजनिक सम्पत्ति को नुक्सान पहुंचाया गया दिल्ली के
जामिया मिलिया के बिद्यार्थीबिल को समझे बिना जम कर शोर मचा रहे हैं बिल के विरोध
में अफ्फाहों का बाजार गर्म है |
जबकि गृह मंत्री अमित शाह ने कहा कि भारत
के मुसलमान भारतीय नागरिक हैं और बने रहेंगे। तीनों देशों में
अल्पसंख्यकों की आबादी में खासी कमी आयी है। शाह ने कहा विधेयक में उत्पीड़न का
शिकार हुए अल्पसंख्यकों को नागरिकता प्रदान करने का प्रावधान है। शाह ने इस विधेयक
के मकसदों को लेकर वोट बैंक की राजनीति के विपक्ष के आरोपों का खंडन करते हुए देश
को आश्वस्त किया कि यह प्रस्तावित कानून बंगाल सहित पूरे देश में लागू होगा।
उन्होंने इस विधेयक के संविधान विरूद्ध होने के विपक्ष के आरोपों को खारिज करते
हुए कहा कि संसद को इस प्रकार का कानून बनाने का अधिकार स्वयं संविधान में दिया
गया है दो तरह
के लोग
किसी देश
में प्रवेश
पाते हैं
एक शरणार्थी यह असहाय हैं
अपने देश
में वह सुरक्षित नहीं
हैं कुछ
यह विधि पूर्वक
आते हैं
|कुछ
रोजी रोतो
की खोज
में किसी
देश की सीमा मैं
चोरी छिपे
प्रवेश करते
हैं वह
सरकारों पर भी आर्थिक भार हैं ,जैसे
बंगला देशी,
रोहनगिया मुस्लिम| इनसे
देश
में आतंकी
गतिविधियों में
लिप्त होने
का खतरा
बना रहता
है जंगपुरा में रोह्न्गिया देखे जा सकते हैं
दिन में
रिक्शा चला
कर या मजदूरी करते
दिखाई देते
हैं रात
को चोरी
|बंगला
देशियों को विशेष रूप
से आसाम
एवं वेस्ट
बंगाल की सरकारों ने बसाया
था जिसका
आसाम में
विरोध शुरू
हो गया
इन्होने यहाँ
का चुनावी
गणित बिगाड़
दिया यह जिन्होंने इन्हें
बसाया था उनके वोट
बैंक बन गये अत:
इनका विरोध
होने लगा
आसाम के निवासी अल्प
संख्यक
हो गये | अब उन्हें भय है हिन्दू उनके यहाँ आकर उनकी जमीने खरीद कर बस जायेंगे
उनकी रोजी रोटी नौकरियाँ खतरे में पड़ जायेंगी जन जातियों की संस्कृति संरक्षित
नहीं रहेगी सरकार का कर्त्तव्य है उनमें विश्वास जगाये उनके हितों का संरक्षण किया
जाएगा |