कठोर से कठोरतम सार्वजनिक दंड का आँखों देखा हाल
डॉ शोभा भारद्वाज
12 वर्ष से कम उम्र की बच्चियों की सुरक्षा की दृष्टि से सरकार द्वारा सख्त सजा के अध्यादेश को मंजूरी मिल गयी | राष्ट्रपति महोदय ने अध्यादेश पर हस्ताक्षर कर दिए |बच्चों के योन शोषण और मोलेस्टेशन के अपराधों के विरुद्ध उन्हें सुरक्षा प्रदान करने के लिए 2012 में प्रोटेक्शन आफ चिल्ड्रन फ्राम सेक्सुअल अफेंसेस अधिनियम (पास्को ) पास किया गया था उद्देश्य था बचपन सुरक्षित रहे लेकिन छोटी बच्चियों को उठा कर ले जाना उनकी बेहुरमती (रेप) ,पहचाने ना जायें विटनेस मिटाने के लिए उनको मार कर कहीं भी फेक देनें की घटनाए लगातार बढ़ती रहीं हैं |
मै परिवार सहित वर्षों ईरान के खुर्दिस्तान प्रांत में रही हूँ वहाँ का महिला सुरक्षा कानून में बलात्कार पर बहुत सख्त सजा का कानून है ,सजा भी सार्वजनिक दी जाती है जिससे अपराधी मनोवृत्ति को जड़ से कुचल दिया जाये आगे कोई हिम्मत ही न कर सके | वहाँ एक बच्ची के साथ बलात्कार एवं उसकी एवं उसके छोटे भाईयों की हत्या की घटना को परिवार के लोगों ने अंजाम दिया था |बच्ची का पिता खुर्दी पिश्मर्गा था | पिश्मर्गा ,ऐसे अनेक लोग इस्लामिक सरकार के विरुद्ध एवं आजाद खुर्दिस्तान के निर्माण के लिए विद्रोही हो गये थे वह मौका मिलने पर घात लगा कर सरकारी अमले ,पासदारो एवं पासगाहों (क्रान्ति दूत इस्लामिक सरकार की रक्षा में तत्पर ,उनके असलहे एवं तोपों से सुरक्षित गढ़ ) पर हमले करते थे | अक्सर आपस में बंदूकें चलती थी उन्हीं के साथ उन बच्चों का पिता शामिल था बंदूक लेकर जंगलों में निकल गया पीछे उसका परिवार जिनमें पाँच बच्चे उसकी दूसरी पत्नी , उसका पहली पत्नी से तलाक हो गया था उसने दूसरा निकाह किया था दूसरी पत्नी पर विश्वास कर विद्रोही हो गया पीछे खर्चे की कमी नहीं थी उसके अपने अंगूरों के बाग़ एवं टैक्सी बार भी था |
दूसरी पत्नी के मन में पाप आ गया उसने अपने भाई को अपने घर रात को बुलाया वह अपने कुछ दोस्तों को लेकर आ गया | रात के अँधेरे में सबने बच्ची जिसकी उम्र 11 सात महीने थी गैंग रेप कर किया इसी बीच बच्ची मर गयी सबूत मिटाने के लिए मरी बच्ची एवं अन्य चारो भाईयों का गला काट कर फरार हो गये | सुबह की नमाज में अजान के बाद महिला रोने पीटने लगी छप कुन – छप कुन ( हाय मैं क्या करूं ) आस पड़ोस अन्य लोग इकठ्ठे हो गये मामला पुलिस चौकी पहुंचा तुरंत तहकीकात शुरू हो गयी उसने जो कहानी बताई उस पर उसे विश्वास था निजाम मान लेगा क्योकि बच्चों का पिता सरकार का विद्रोही था | मैं अलग कमरे में सो रही थी मेरे सिर में भयानक दर्द था बच्चे दूसरे कमरे में थे मुझे कुछ खटपट सुनाई दी मेरी आँख खुल गयी मैने देखा हमारे घर की दीवार फांद कर पिश्मर्गे भाग रहे थे मैने जल्दी से चादर ओढ़ी उनका पीछा किया पर वह अँधेरे में गुम हो गये जब मैं घर लोटी बच्चों के कमरे में खून बिखरा पड़ा था मेरे शौहर के सभी बच्चे मर चुके थे | हाय मैं क्या करूं वह मुझे क्यों नहीं मार गये |
उस खानम के महिला कांस्टेबल ने थप्पड़ लगाये वह टूट गयी तब उसने किस्सा ब्यान कर कहा मैं बच्चों से छुटकारा चाहती थी मैने अपने भाई को बुलाया लेकिन लड़की के साथ कुकर्म मेरे भाई नहीं उसके दोस्तों ने किया था उन्होंने ही बच्चों के गले काटे | 10 दिन बाद उसे एवं उसके साथियों को सार्वजनिक फांसी की सजा सुनाई गयी न दाद न फरियाद न अपील न मामला अधिक दिन तक खींचा गया |फांसी की सजा के दिन बकायदा दूर – दूर तक ऐलान हुआ ईरान टीवी में ब्रेकिंग न्यूज एवं रेडियो ईरान से घोषणा ही नहीं अपराध ,अपराधियों की भर्त्सना की गयी |यह अपने में पहली सार्वजनिक सजा थी| खुर्दिस्तान की राजधानी सननंदाज के विशाल मैदान में महिलाओं एवं पुरुषों की भीड़ सुबह से जमा होने लगी मैदान में एक तरफ महिलाएं दूसरी तरफ पुरुष खड़े थे | अपराध में शरीक खानम और उसके साथियों को घसीट कर लाया गया वह सभी कातर आवाज में रहम – रहम की भीख मांग रहे थे बच्चों की माँ भी हाजिर थी | मैं प्रजातांत्रिक देश की वासी लेकिन राजनीति शास्त्र की विद्यार्थी सार्वजनिक दंड विधान देखने के लिए उत्सुक थी मेरे लिए सब कुछ हैरानी का विषय था |
अपनी खुर्द परिचित सहेलियों के साथ मैं भी फांसी के मैदान में पहुंच गयी | जैसा देश वैसी ही सोच बन जाती है | मेरे पति ने बहुत मना किया लेकिन मुझे आँखों देखी पर विश्वास था| में अवसर खोना नहीं चाहती थी | मैदान के बीचो बीच पांच क्रेने खड़ीं थी उनके कुंदों पर पाँच फंदे लटक रहे थे हर फंदे के नीचे स्टूल थी काजी महोदय वहीं थे पुलिस का भारी बन्दोबस्त किया गया था काजी ने अपराधियों का अपराध पढ़ कर सुनाया अब अपराधियों की बारी थी उनके चेहरे पीले पड़े थे जबान लडखडा रही थी लगभग निर्जीव थे उन्होंने अपराध कबूल किया और कातर आवाज में दौरे खुदा रहम रहम- रहम चीखने लगे कसमें खा रहे थे उन्हें स्टूल पर खड़ा किया गया उनके पैर काँप रहे थे |बच्चों की माँ वहीँ खड़ी थी उसने चादर से मुहँ ढक लिया शायद रो रही थी |पूरा मैदान में दूर-दूर से इकठ्ठे लोगों से खचाखच भरा था हरेक के हाथ में कच्ची मिट्टी के ढेले थे सभी क्रोध और उत्तेजना से चीख रहे थे बी कुश ( मार दो )वह ढेले अपराधियों की और फेकने लगे मैने देखा अनजाने में मेरे हाथ में भी ढेला था मैने ही उठाया होगा |
अचानक ध्यान आया में विदेशी हूँ बेशक हिजाब में हूँ परन्तु माथे की बिंदी मांग का सिंदूर मेरी पहचान बता रहा मैने अपनी साथी सहेलियों से कहा पीछे चलते हैं काफी दूर पीछे आ गयी क्रेन इतनी ऊंची थी दूर से दिखाई दे रहा था अपराधियों के चेहरे को काले कपड़े से ढक दिया गया | काजी ने आदेश दिया एक साथ अपराधी महिला का स्टूल बच्चों की माँ ने हटाया अन्य का पुलिस वालों ने पाँच जाने ऊँची उठ गयी मेरे में अब हिम्मत नहीं थी मैने आँखे बंद कर ली| कुछ पल मे सब कुछ समाप्त मेरे पैर सुन्न हो गये मेरी सहेलियों ने मुझे घर पहुंचाया मेरा गला उन बच्चों के साथ होने वाले जुल्म और फांसी के नजारे से रुंधा हुआ था रात को नींद में वही रहम-रहम का चीखना मारो –मारों की आवाजें गूँज रही थीं
लेकिन दस वर्षों के कार्यकाल में यह पहली और अब तक आखिरी घटना है दंड सही था या गलत इसकी व्याख्या में नहीं करूंगी लेकिन जब पास्को एक्ट में बदलाव कर 12 वर्ष से कम आयू की बच्चियों के साथ किये कुकर्म के लिए फांसी की सजा नियत की गयी मुझे पूरी घटना जिसे मैं भुला चुकी थी याद आ गयी | कठोरतम सजा अपराधी और समाज में भय पैदा करती है कानून का सख्ती से अमल होना चाहिए तभी अपराधों पर रोक लगती है यही नहीं बच्चों के पोर्न पर भी सख्ती से रोक लगनी चाहिए |