विप्र धेनु सुर संत हित लीन्ह मनुज अवतार
डॉ शोभा भारद्वाज
रावण के भय से सम्पूर्ण ब्रह्मांड थर्राने लगा दस सिर बीस भुजाओं एवं ब्रह्मा जी से अमरत्व
का वरदान प्राप्त राक्षस राज रावण निर्भय निशंक विचर रहा था हरेक को युद्ध में
ललकारता |रावण का पुत्र मेघनाथ
महत्वकांक्षी ,रावण के समान बलशाली पिता
को समर्पित उसका देवराज इंद्र के बीच भयंकर युद्ध हुआ देवराज बड़ी बहादुरी से लड़े हारने
के बाद पकड़े गये, लेकिन छोड़ दिए गये मेघनाथ इंद्रजीत कहलाया |इंद्र स्वर्ग के
द्वार पर खड़े भयंकर विध्वंस देख रहे थे स्वर्ग में नन्दन वन उजड़ा हुआ था गन्धर्व
मारे गये थे अप्सरायें सिसक रहीं थीं राक्षसों के बिखरे शव स्वर्ग में बहने वाली नदी खून से लाल
थी | उनका स्वयं का चेहरा एवं शरीर खून से सना हुआ था आँखे आंसुओं से भर गयीं दर्द
एवं क्षोभ में अपनी हथेलियों को मलते ब्रम्हा जी के पास पहुंचे | सृष्टि के रचयिता
ब्रम्हा चन्दन से बने कमल की आकृति वाले सिंहासन पर बैठे थे इंद्र ने प्रणाम किया
दुःख से कहा आज स्वर्ग की हालत के दोषी आप हैं आपने रावण को वरदान देकर असीम शक्ति
प्रदान कर दी उनका गला रुंध गया ,आज देव गण उसकी सेवा में विवश खड़े हैं | स्वर्ग उजड़ गया है |
और ‘धरती’ वह सब कुछ सह सकती है लेकिन पाप के बोझ को सहना उसके लिए असहनीय है जबकि जब वह करवट बदलती सब कुछ उल्ट पुलट कर रख देती
है उसकी छाती में धधकते ज्वालामुखियों से बहने वाले लावे में कई सभ्यतायें दब गई |जहाँ फटी वहीं
हजारो लोग उसमें समा गये सागर से उठने वाली लहरें सब कुछ बहा कर ले जाती हैं तब भी कई युगों को लील
कर आज भी अपनी धुरी पर घूम रही धरती लेकिन अमरत्व का वरदान प्राप्त रावण का क्या
करे ?अब वह गाय का रूप धारण कर त्राहि – त्राहि कर रही है राक्षसों के पाप के बोझ से
त्रस्त हो रही है |ब्रम्हा ने कहा रावण के कठोर तप ने मुझे उसे वरदान देने के लिए
विवश कर दिया हे देवराज आप श्री नारायण की
शरण में जाओ उन्हीं में रावण रूपी चिंता का निवारण करने की शक्ति है रावण भी सत्ता
पाने के बाद भोग विलास में लिप्त हो जाएगा आप विश्वकर्मा को बुला कर स्वर्ग लोक का
निर्माण कराओ एवं शक्ति का संचय करो |
इंद्र वैकुंठ धाम पहुंचे सृष्टि के रक्षक श्री
हरी को उन्होंने दोनों हाथों जोड़ कर मस्तक से लगा कर सिर उनके चरणों में झुका कर
प्रणाम किया | अपने कमल रूपी नेत्रों से देवराज की और निहारते हुए कहा स्वर्ग संकट
में है रावण से युद्ध में आप पराजित हो गये चिंता न करें आपने रावण के साथ संघर्ष
कर अपने धर्म का पालन करते हुए स्वर्ग की रक्षा का प्रयत्न किया है अब भय से मुक्त
हो जाईये | इंद्र ने कहा प्रभू रावण श्री
ब्रम्हा के वरदान से अजेय हो चुका है उसके वध का उपाय आप द्वारा ही सम्भव है |नारायण
ने कहा ब्रम्हा के वरदान सदैव सत्य होते है रावण ने वरदान माँगा था स्वर्ग एवं
पाताल में उसे कोई पराजित न कर सके श्री ब्रम्हा ने एवमस्तु कहा राक्षस मनुष्य एवं
जीव जन्तुओं को अपना भोजन बनाते हैं उनका उसे भय नहीं है उन्हें छोड़ कर वह किसी से
पराजित न हो सकें| रावण ने धरती में जीवन नरक बना दिया है | श्री नारायण मुस्कराये
उसके वरदानों में उसकी मृत्यू निहित है | धरती पर मैं मनुष्य के रूप अवतार लूंगा जीव
बानर भालू राक्षसों एवं रावण को पराजित करने में मेरे सहायक बनेगे लक्ष्मी भी धरती
पर अवतरित होंगीं |
अयोद्धया के महाराजा दशरथ सन्तान हीन थे उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए अपने
गुरुदेव वशिष्ठ की आज्ञा से यज्ञ का आयोजन किया जैसे –जैसे यज्ञ की लपटों में घी
अर्पित किया जाता अग्नि की लपटें नृत्य करती |आहुतियों के बीच बादलों के गर्जन
जैसी कड़ककड़ाती आवाज सुनाई दी विशालकाय देव धुयें के अम्बार में प्रगट हुये उनके नेत्र शेर के नेत्रों जैसे पीले उनके लम्बे
काले केश लहरा रहे थे उनके हाथों में एक
पात्र था पात्र में से दूध चावल में पके भोज्य पदार्थ में से मीठी सुगंध आ रही थी महाराज
दशरथ एक टक उन्हें देख रहे थे देव ने पात्र महाराज दशरथ की और बढ़ा कर आज्ञा दी राजन
जाओ इसे अपनी रानियों में बाँट दो महाराज दशरथ की दशा एक ऐसे निर्धन व्यक्ति के
समान हो गयी जिसे अचानक सब कुछ मिल गया हो |वह अंत:पुर में गये उन्होंने खीर के
कटोरे से खीर को बड़ी रानी कौशल्या
एवं छोटी रानी कैकई के बीच बाँट दिया
दोनों रानियों ने आधे – आधे भाग महारानी सुमित्रा को दे दिए |
दस माह के बाद चैत्र माह नवमी तिथि
धरती पर भगवान के प्रगट होने का सुअवसर, अयोध्या का आकाश देवगणों से भर गया
गन्धर्व श्री हरी का गुणगान कर रहे थे पुष्पों की वर्षा होने लगी दिव्य प्रकाश
महारानी का प्रकोष्ठ में फैल गया अन्तिक्ष
से ॐ की ध्वनी गूंजने लगी चारों वेद स्तुति कर रहे थे प्रकाश पुंज अन्तरिक्ष से
पृथ्वी पर उतर रहा था उसी के बीच दिव्य
स्वरूप में श्री नारायण प्रगट हुए उनकी चारो
भुजाओं में शंख , चक्र ,गदा पद्म विराज रहे थे अनुपम रूप महारानी घुटनों के बल हाथ
जोड़ कर बैठ गयीं महारानी के मन में पहले वैराग्य उपजा फिर मोह है है प्रभू आपके दुर्लभ
दर्शन पाकर में धन्य हो गयी | मैं नन्हे बालक के रूप में आपकी बाल लीला का सुख
लेना चाहती हूँ मुझे कृतार्थ करो नारायण
नवजात रूप में माता की गोद में अवतरित हुए बच्चे के रोने की ध्वनि से राजमहल चहक
उठा उसी दिन महारानी कैकई से भरत ,सुमित्रा से दो बालक लक्ष्मण एवं शत्रूघ्न का
जन्म हुआ अयोद्धया वासियों के आनन्द का वर्णन नहीं किया जा सकता वह नगरी की गलियों
में नृत्य कर रहे थे हर मन्दिर की घंटियां
बज रहीं थीं|
राम न बहुत लम्बे थे न छोटे उनका मझौला कद था ,सूर्य से भी अधिक तेजस्वी , गम्भीर
आवाज , गहरी
साँस , आँखे
हरा रंग लिए हुए उनमें गजब की चमक थी ,
बदन की खाल ठंडी ,कोमल, हरी आभा ऐसी चिकनी थी जिस पर धूल का कण भी ठहर नहीं सकता
था , सिर पर घुंघराले बाल जिनकी आभा गहरी हरी थी ,सिंह
जैसी चाल ,पैरों
के तलुओं पर धर्म चक्र के निशान , उनके सिंह के समान ऊँचें कंधे , चौड़ी छाती भुजायें
लम्बी घुटनों तक पहुंचती थी कान तक धनुष खींच कर बाणों का संधान करने की अपार क्षमता
, मोतियों जैसे दांत चौड़ी छाती
गले पर तीन धारियां, तीखी
नाक मजबूत जबड़े भारी भौहें उनकी सांसें कमल के पुष्प सी सुगन्धित थीं जो भी उनकी
छवि निहारता था पलकें झपकना भूल जाता था शौर्य और सुन्दरता का मूर्त राम चौदह कला
सम्पूर्ण थे'
लक्ष्मण उनका
भाई उनको पूर्णतया समर्पित सदा उनके साथ चलते थे उनके बदन की खाल सुनहरी , अप्रमित
शक्ति , आँखे नीली ,सीधे बाल सुनहरा रंग लिए हुए थे वह राम के सोने के बाद ही सोते
थे , राम के साथ ही भोजन गृहण करते थे जब श्री राम घोड़े पर सवार होते लक्ष्मण उनके
साथ घोड़े पर सवार होकर चलते थे राम के समान ही शरीर सौष्ठव था श्री भरत की खाल की
रंगत ललाई लिए हुए थी ऐसी ही लाल आँखें कमल के समान थीं घुंघराले बाल जिन पर लाल
आभा थी |लक्ष्मण के जुड़वाँ भाई शत्रुघ्न शरीर
की खाल नीली रंगत की थी काली आँखे काले बाल थे |चारो
भाईयों का शरीर सौष्ठव एक जैसा था ऐसे अनुपम पुत्र पाकर महाराज दशरथ के आनन्द का
ठिकाना नहीं था |