छात्रों अपना कैरियर चौपट मत
कीजिये
डॉ शोभा भारद्वाज
किसी भी छोटे बच्चों से
पूछिए बड़े होकर आप क्या बनोगे वह तुरंत उत्तर देंगे डाक्टर ,नर्स ,इंजीनियर फाईटर
पायलट ,कलक्टर ,पुलिस का बड़ा आफिसर’ इंजीनियर,आर्मी आफिसर , साईंटिस्ट नेता या
रियल्टी शो में डांसर या गायक |एक प्रवासी भारतीय नासा के साईंटिस्ट दम्पत्ति की प्यारी सी नन्ही बच्ची ने कहा था चाय वाली
उसे लगा चाय बना कर बेचना मोदी जी की तरह प्रधानमन्त्री बनने का सीधा रास्ता है | माता
पिता अपने बच्चे का नाम सोच समझ कर रखते हैं या जिनसे वह प्रभावित हैं शुरू से
बच्चे के कैरियर के लिए चिंतित रहते हे | हम विदेश में रहते थे एक पाकिस्तानी
डाक्टर परिवार से हमारे मधुर सम्बन्ध थे उनका छोटा बच्चा हमसे बहुत प्रेम करता था
मेरे पति को ताया जी और मुझे ताई जी कहता जब भी डाक्टर साहब का परिबार छुट्टियों
में पाकिस्तान से आता था हमारे घर दो तीन दिन रहते थे | उनका बेटा मुद्दसर खाने
में तंग करता था मेरे पति उसे गोद में बिठा कर खीर खिला रहे थे उसे खाने में मजा
आने लगा अचानक वह दांत पीस कर बोला ताया जी मैं बड़ा होकर फाईटर पायलेट बनूंगा
दिल्ली पर बूम करूंगा मैने कहा बेटा वहाँ तुम्हारे ताया जी और ताई का घर है हम
वहाँ रहते हैं वह घबरा कर बोला नहीं-नहीं मैं दिल्ली पर बूम नहीं करूँगा फाईटर
पायलट भी नहीं बनूंगा डाक्टर साहब का
गुस्से में चेहरा सुर्ख हो गया उन्होंने मैं रावलपिंडी के सबसे महंगे स्कूल में बच्चे
पढ़ा रहा हूँ आने वाली जेनरेशन को क्या सिखा रहे हैं ?बच्चों को पाकिस्तान से निकाल
कर विदेश में पढ़ाना चाहता हूँ इसीलिए परदेस में पड़ा हूँ?शुक्र था उन दिनों जेहादी
बनाने का चलन नहीं था मौलाना हाथ में कुरान लेकर वोट मांगने निकले उन्हें बुद्धि जीवियों
ने नकार दिया | कोई बच्चा यह नहीं कहता वह क्रिमिनल या पत्थरबाज बनेगा |
किशोरावस्था आते – आते बात बदलने लगती है |
अलग-अलग तरह के विद्यार्थी हैं कुछ पूरी तरह कैरियर को समर्पित देश दुनिया में
क्या हो रहा है जानना नहीं चाहते उन्हें अपने कैरियर से मतलब हें उनका गोल निश्चित
हैं वह उससे कभी नहीं डिगते उनके माता पिता भी पूरी तरह उनके लिए समर्पित रहते हैं
कुछ ऐसे हैं जिन्दगी का उद्देश्य मौज मजा है उनका वाक्य होता है जीने दो, अभी तो
जी लें | कुछ, जिनको सब्ज बाज दिखा कर आसानी से गुमराह किया जाता है उनमें संकेत
ग्रहण शीलता होती हैं बस पढ़ाई से उचकाने वाले चाहिए |विश्वविद्यालय राजनीति के
अड्डे बन गये हैं आज के कुछ नेता कालेज की राजनीति से निकले हैं विभिन्न पार्टियां
कालेज के छात्रसंघ चनावों में अपनी पार्टी का कैंडीडेट उतारते ही नहीं उनके
चुनावों में खर्च करते है | छात्रसंघ चुनावों के उम्मीदवारों के पोस्टरों से शहर
की दीवारें पटी दिखाई देती हैं अधिकांशतया छात्र, छात्र संघ के चुनावों में अपने
उम्मीदवार के बैनर लगाना पोस्टर चिपकाना दूसरे कैंडीडेट की जासूसी करना अपने
उम्मीदवार के लिए झगड़ना कई बार उन पर पुलिस केस हो जाते हैं |कई अपना कैरियर चौपट
कर अपने नेताओं के पिछलग्गू बन कर रह जाते हैं अपना कैरियर चौपट कर चुके ,अक्सर
अपने नेता के दरवाजे पर बैठे रहते हैं वह उनकी भीड़ हैं जहाँ वह जाते हैं उनके साथ
जाते हैं उनकी दी हुई रोज की रोटी पर पलते हैं इस आशा में जीते हैं नेता जी की
कृपा दृष्टि हो जाए उन्हें सरकारी नौकरी या कोई काम मिल जाए बाहर डींगें हांकते हैं वह अमुक के
खासमखास हैं ‘यह आते हैं निराश होकर जाते रहते है अपनी तकदीर को स्वयं हो फोड़ लेते
हैं | बंगाल की मुख्य मंत्री ममता दी ने नागरिकता
संशोधन बिल पर अपनी पद यात्रा में छात्रों को उकसाया ,छात्रों का आन्दोलन
के लिए धन्यवाद ही नहीं किया कहा आन्दोलन को चलाए रखें ताकि उनकी गद्दी पक्की
रहेगी आन्दोलन के संचालकों को भविष्य में लाभ मिलेगा परन्तु आम छात्रों का क्या
होगा ?
नागरिक संशोधन बिल का पहला
विरोध जामिया मिलिया से हुआ क्यों ? क्या यहाँ पढ़ने वाले विद्यार्थी नहीं जानते यह
बिल भारतीय मुसलमानों के लिए नहीं है | सभी जानते हैं पाकिस्तान में गैर इस्लामिक
अल्पसंख्यकों पर कितना जुल्म हो रहा है जबरन धर्म परिवर्तन ,उनकी कम उम्र की
लड़कियों को उठाकर उनके निकाह बड़ी उम्र के
लोगों से करवा देना जर जमीन बेटी कुछ भी सुरक्षित नहीं है बंगला देश में भी
अल्पसंख्यकों की हालत ऐसी ही है अफगानिस्तान से गैर मुस्लिम निकाल दिए गये है ऐसे मजबूर दुखी
लोग वैध रूप से भारत आये हैं उन्हें नागरिकता देने पर इतना हंगामा क्यों ?उन्हें
मरने दें अफगानिस्तान बंगलादेश पाकिस्तान इस्लामिक देश हैं वहाँ के ओग धार्मिक
उत्पीडन के शिकार नहीं है वह अपने हक के लिए ही संघर्ष करते है उनके लिए ही
नागरिकता का अलग प्रावधान है |
दसवीं क्लास में सोशल स्टडी
विषय में सिविक्स के पाठ्यक्रम में नागरिकता का चैप्टर है क्या छात्रों ने उस बिना
पढ़े दसवीं की परीक्षा दी थी ?जामिया के अंदर से पत्थर फेके गये बाहर बसों में आग
लगाई जा रही थी पुलिस पर पथराव हो रहा था क्या छात्रों ने आवाज नहीं सुनी जबके
पूरे भारत के लोगों ने यह कृत्य देखा था तर्क है स्टूडेंट अंदर लायब्रेरी में रात के
समय पढ़ रहे थे इतना शोर था क्या जामिया के स्टूडेंट को नहीं पता था समाधि में थे फिर
750 फर्जी आई कार्ड कहां से आये ?झूठी अफ्फाहों पर प्रदर्शन संविधान बचाओं के नारे
संविधान अपने में स्वयं समर्थ हैं उसकी रक्षा के लिए सर्वोच्च न्यायालय है मौलिक
अधिकारों की बात करते हैं संविधान के 42वें सशोधन में मौलक कर्त्तव्यों का भी
जिक्र हैं इसे भूल जाते हैं|
कश्मीर के अलगाववादी अपने
बच्चों का पूरा ध्यान रखते हैं उनकी उच्च
शिक्षा की व्यवस्था एवं भारत या विदेशों में अच्छी नौकरी उनका भविष्य सुरक्षित है|
आतंकी उन्हीं के इशारे पर स्कूल आदि जलाते थे कोशिश की जाती थी दूसरों के बच्चे
आदिम काल में पहुंच जाएँ कश्मीरी बच्चों को गुमराह किया उनके हाथों में पत्थर पकड़ा
दिए छात्रों के बस्तों में किताबों के स्थान पर पत्थर भरे रहते थे इनको 500 रूपये
देकर सुरक्षा बल जहाँ भी आतंकियों को घेरते थे वहाँ यह पत्थर वाज पहुंच कर सुरक्षा
बलों पर पत्थर बरसाते थे धारा 370 हटने के बाद पत्तर बाजी कम होने लगी कक्षाओं में
पढाई शुरू हुई उन्होंने इम्तहान भी दिए
हैं लेकिन कुछ पत्थर बाजों की तकदीर में पत्थर बाजी का प्रोफेशन लिख दिया गया उन्हें
नागरिकता सशोधन का विरोध करने के लिए विशेष रूप से पुलिस पर पत्थरबाजी करने बुलाया
गया कब तक इनका जीवन ऐसे चलेगा इनकी तकदीर में पत्थर डाल दिए पाकिस्तान में आतंक
के आका इन्हीं को भड़का कर आतंकी ,जेहादी बना कर काल्पनिक जन्नत का रास्ता दिखा
देते हैं |
जेएनयू में छात्र आन्दोलन जेएनयू छात्र संघ द्वारा
चलाया जा रहा है छात्रों की मांग है कि प्रस्तावित हॉस्टल मैन्युअल पूरी तरह
वापस लिया जाए. वहीं, जेएनयू प्रशासन का तर्क ये है कि यूनिवर्सिटी की फ़ीस और हॉस्टल
की फ़ीस में पिछले 17 सालों से बढ़ाई नहीं गयी छात्रों का कहना है कि
जेएनयू में पढ़ने वाले 40 प्रतिशत छात्र कम आमदनी वाले परिवारों से आते
हैं वो फ़ीस
में इतनी भारी बढ़ोत्तरी का बोझ नहीं उठा सकते
इंजीनियरिंग ,मेडिकल कालेजो एवं अन्य कालेजों
में फ़ीस कम नहीं है अधिकांश छात्र बैंक लोन से पढ़ कर अपना कैरियर बना कर लोन चुकाते है टैक्स पेयर के पैसे पर जेएनयू में
पढ़ने आने वाले कुछ छात्र ढपली बजाते नारे लगाते आम देखे जा रहे हैं आजाद देश में आजादी
– आजादी का नारा इंकलाब ज़िंदा बाद एक नारा सबने सुना सुनने के बाद इनकी असलियत
जानी थी ‘अफजल हम शर्मिंदा हैं तेरे कातिल ज़िंदा हैं ‘ देश के टुकड़े करने के नारे कुछ
राजनीति में कैरियर बनाना है बाकी तो पढ़ने आयें हैं शिक्षण संस्थान को राजनीति का
अड्डा बना कर गरीब छात्र या कैरियर बनाने आये छात्रों के साथ क्या न्याय किया जा
रहा है ?
ऐसे नवयुवकों की कमी नहीं है जिहोने विदेशों में नाम कमाया देश में डालर भेज
कर देश की अर्थ व्यवस्ता को मजबूत किया देश में निवेश लाये दूसरी तरफ सार्वजनिक
सम्पत्ति को तोड़ते आये दिन रैलियाँ करते राजनीतिक दलों के हाथों का खिलोना बने
नवयुवक जिनमें प्रतिभा की कमी नहीं थी समय बीतने के बाद उनके हाथ केवल नाकामी ,पछतावा
या डिप्रेशन होगा कुछ दुःख में नशे का शिकार हो गये हैं कुछ सफल साथियों से आँख चुराते जीवन की गाड़ी
खींचते रह जाते हैं |