भारत के 15वें उपराष्ट्रपति श्री वेंकैया नायडू एवं उच्चसदन राज्यसभा
डॉ शोभा भारद्वाज
भारत के राष्ट्रपति कार्यपालिका अध्यक्ष हैं उनके बाद दूसरा महत्वपूर्ण पद उपराष्ट्रपति का है, वह राज्यसभा के सभापति हैं |वर्तमान उपराष्ट्रपति श्री हामिद अंसारी ने दो कार्यकाल पूरे किये अब अपने पद से रिटायर हो रहे हैं उनका स्थान वैंकेया नायडू गृहण करेंगे वह भारत के 15वें उपराष्ट्रपति हैं | उपराष्ट्रप्ति पद के चुनाव में संसद के दोनों सदन भाग लेते हैं| उम्मीदवार का नाम 20 मतदाताओं द्वारा प्रस्तावित किया जाता है और 20 मतदाता समर्थन करते हैं उम्मीदवार 15.000 राशि जमानत के तौर पर जमा करते है| श्री नायडू का मुकाबला यूपीए के श्री गोपाल कृष्ण गांधी से था विपक्ष ने मिल कर गोपाल कृष्ण गाँधी को अपने उम्मीदवार के रूप में चुनाव मैदान में उतारा वह महात्मा गाँधी के पौत्र और जाना माना बड़ा चेहरा थे | एनडीए ने उनके मुकाबले में श्री नायडू को उतारा उनकी जीत सुनिश्चित थी उन्होंने अपने प्रतिद्वंदी से दुगने से अधिक वोट प्राप्त हुए उनके लिए क्रास वोटिंग भी हुई |श्री नायडू आन्ध्रप्रदेश के किसान परिवार से भारत के दूसरे सर्वोच्च पद पर पहुंचे हैं यही भारत के लोकतंत्र की विशेषता है |
उपराष्ट्रपति चुने जाने के बाद वह दलगत राजनीति से अलग देश के उपराष्ट्रपति हैं| उपराष्ट्रपति का कार्य काल पांच वर्ष है | राज्यसभा का सभापति होना सदन चलाना बहुत बड़ा चैलेंज है ,इस दायित्व को निभाना आसान नहीं है श्री नायडू मिलनसार व्यक्ति हैं उनकी विपक्षी दलों के सांसदों पर भी अच्छी पकड़ और दोस्ताना व्यवहार है | काफी समय से राज्यसभा में अधिकतर शोर होता रहता है| विपक्ष बहस के मूड में नहीं रहता कई बार सदन की कार्यवाही बाधित होती है | एनडीए के पास अभी राज्यसभा में बहुमत नहीं है ,कुछ समय बाद बहुमत हो जायेगा अत: सरकारी विधेयक पास कराना मुश्किल हो जाता है संख्या बल की कमी से महत्व पूर्ण विधेयक भी लटक जाते हैं यदि महत्वपूर्ण सरकारी विधेयक को अमेंडमेंट के साथ राज्यसभा पास कर दे सरकार की किरकिरी होती है | विधेयक को फिर से लोकसभा में पेश करना पड़ता हैं |
राज्य सभा के सांसद उपसभापति का चुनाव करते हैं भाजपा का संख्या बल कम है
| प्रधान मंत्री लोकसभा में बहुमत दल का नेता होता है वह उसी के प्रति उत्तरदायी है लेकिन वह राज्यसभा का सदस्य भी हो सकता है डॉ मनमोहन सिंह राज्यसभा के सदस्य थे| स्वर्गीय श्री संगमा ने सुझाव दिया था प्रधान मंत्री को लोकसभा का सांसद होना चाहिये उनके सुझाव को शोर में उड़ा दिया | 25 नवम्बर 2001 को सर्वदलीय राष्ट्रीय सम्मेलन में संसद एवं विधान सभों को मर्यादित करने के लिए नियम बना कर आचार संहिता बनाई गयी थी जैसे 1.प्रश्न काल के दौरान शांति बनाये रखना 2.सदन के बीच में अपने स्थान से उठ कर नारेबाजी न करना 3. राष्ट्रपति के भाषण के दौरान मर्यादित व्यवहार करना 4.प्रत्येक सांसद अपनी सम्पत्ति की घोषणा करें 5. जब कोई सदस्य भाषण दे रहा है उसके विचार सुनना टोका टिप्पणी न करना 6. सदन में फोन का इस्तेमाल नहीं करें 7.बिना स्पीकर को सूचित किये किसी पर आरोप लगा कर उसकी प्रतिष्ठा को धूमिल करना 8. न्यायालय में चलने वाले विषयों को बिना अनुमति के सदन में उठाना 9. अध्यक्ष जी की अनुमति से अपनी बात रखना और भी कई नियम हैं लेकिन व्यवहार में अब भी इससे विपरीत होता है|
सत्ता रूढ़ दल की जिम्मेदारी है सबका सहयोग ले कर सदन चलायें परन्तु कैसे ?कांग्रेस अधिकतर सत्ता में रही है उनके कार्यकाल में होने वाले घोटालों के विरुद्ध कोई आवाज न उठे चर्चा न हो कैसे संभव है सत्तापक्ष मौका क्यों चूकेगा ? सांसद वेल में आकर शोर मचाते हैं राज्यसभा का कोरम भी कम रहता है कई बार सदन में अपने वोट बैंक को मजबूत करने के लिए ऐसी बात कही जाती है जिसे सदन से बाहर कहने पर मानहानि का मुकदमा चल सकता है ऐसे आपत्ति जनक विषय को कार्यवाही से हटाने के लिए सदन में शोर मचता है | सपा के सांसद नरेश अग्रवाल ने हाल ही में राज्यसभा में अपने भाषण में धामिक विषय पर अपमान जनक टिप्पणी की उनका सत्ता पक्ष द्वारा विरोध हुआ मांग थी वह माफ़ी मांगे उनकी टिप्पणी को कार्यवाही से हटाया गया |इस लिए यदि सत्ता पक्ष का अपना सभापति है आसानी रहती है| राज्यसभा लोकसभा के समान ही दूसरा सदन हैं इसे उच्च सदन कहते है , लोकसभा की भांति अधिकार प्राप्त हैं केवल वित्त विधेयक पर अधिकार नहीं है लोकसभा में पास होने के बाद वित्त विधेयक राज्यसभा में केवल 14 दिन के लिए पेश किया जाता है विधेयक पर बहस होती है सुझाव भी दिए जाते हैं इन सुझावों को लोकसभा माने या न माने राज्यसभा के सांसद बाध्य नहीं कर सकते | वित्त विधेयक राष्ट्रपति के पास हस्ताक्षर होने के लिए जाता है|
लोकसभा में ‘पास’ विधेयक राज्यसभा में जाते हैं यहाँ भी विधेयक को लोकसभा की भाति तीन वाचनों से विधेयक को गुजरना पड़ता है प्रथम वाचन में विधेयक की रूपरेखा स्पष्ट की जाती है द्वितीय वाचन में बहस होती है तृतीय में सुझाव, सरकार माने या न माने फिर मतदान| राज्यसभा में भी विधेयक प्रस्तुत किये जाते हैं लेकिन ज्यादातर महत्वपूर्ण विधेयक लोकसभा में प्रस्तुत होते हैं प्रश्नोंत्तर काल में विभागीय मंत्री और प्रधान मंत्री से प्रश्न पूछने का अधिकार है |मोदी जी की आंधी में काफी दिग्गज नेता हर गये उनमें कई नेता राज्यसभा के सांसद हैं | श्री वेंकैया के राज्यसभा के सभापति बनने के बाद प्रश्नों की संख्या में बढ़ोत्तरी होने वाली है बहसें होती है या वाक्आउट |
राज्य सभा की कार्यवाही शुरू होने के कुछ देर बाद सांसद अपनी असहमति प्रगट करने वेल में आ जाते हैं, विधेयक को फाड़ना नारे बाजी करना सदन में चर्चा के लिए पहले सहमती देना लेकिन चर्चा के दौरान अपनी बात कह कर दूसरे पक्ष को सुने बिना ही सदन से वाक् आउट करना | कांग्रेस अध्यक्षा के सुझाव पर कांग्रेसी सांसद आक्रामक रुख अपनाये हुए हैं राज्यसभा की कार्यवाही को भी टेलीविजन के माध्यम से पूरा देश देखता है किसी भी बहस के विषय को भटकाना आम बात है ऐसे शोर में सभापति महोदय राज्यसभा की कार्यवाही को रोक देते है लेकिन वैकेया नायडू ऐसा नहीं होने देंगे या नियमानुसार सदन को चलवाने की कोशिश करेंगे | संविधान में संशोधन के लिए दोनों सदनों को समान अधिकार है अर्थात संशोधन दो तिहाई बहुमत से दोनों सदनों में पास होना चाहिए यदि संशोधन बिल राज्यसभा में पास होना मुश्किल है ऐसे में सरकार दोनों सदनों का संयुक्त अधिवेशन बुला सकती है लेकिन अधिवेशन की अध्यक्षता लोकसभा के अध्यक्ष या अध्यक्षा द्वारा की जाती है |
राज्यसभा राज्यों का प्रतिनिधित्व करती है इसकी सदस्य संख्या 250 है इसे लोकसभा से अलग शक्तियाँ भी प्राप्त हैं | तीन सूचियों में कानून बनाने के लिए अधिकारों का बटवारा संविधान में किया गया है | केंद्र सूची ,राज्य सूची और समवर्ती सूची |राज्य सूची के किसी विषय को राज्यसभा द्वारा दो तिहाई बहुमत से राष्ट्रीय महत्व का घोषित करने पर संसद उस पर कानून बना सकती है | संसदीय व्यवस्था संविधान निर्माताओं ने ब्रिटेन से ली है वहाँ भी हाउस आफ लार्ड है लेकिन लार्ड्स के अधिकार कम है अधिकतर वह बहस ही करते हैं लेकिन राज्यसभा का महत्व और शक्तियाँ लोकसभा से कमतर नहीं हैं इस लिए श्री नायडू का सभापति होना सत्तापक्ष के हित में रहेगा| देश चाहता है सदन चले |