माँ तुझे सलाम ,वन्देमातरम ,और भारत माता की जय
डॉ शोभा भारद्वाज
सात अगस्त 1905 बंगाल के विभाजन के लिए जुटी भीड़ में किसी ने वन्देमातरम
का नारा लगाया सैंकड़ों की भीड़ ने नारे को दोहराया आकाश में नारे की गूंज ने जन
समूह के रोम-रोम को रोमांचित कर दिया अब वन्देमातरम नारा बना और बंकिम
चन्द्र द्वारा रचित गीत को दिसम्बर 1905 में कांग्रेस कार्यकारिणी की बैठक में
राष्ट्रीय गीत का दर्जा प्रदान किया |बन्देमातरम मातरम का
जयघोष करते आजादी के मतवालों का जलूस निकलता अंग्रेजी साम्राज्य की लाठियाँ उन्हें
लहूँ लुहान के जमीन पर बिछा देती | काफी समय बाद मुस्लिम
समाज के वर्ग द्वारा नारे और गीत का विरोध होने लगा इसमें साम्प्रदायिकता और
मूर्ति पूजा देखी जाने लगी अत: बन्देमातरम राष्ट्रीय गीत है लेकिन जिसकी इच्छा हो
गाये या न गाये लेकिन गीत के सम्मान में खड़े हो जायें |इन
विरोधों का जबाब संगीतकार रहमान नें नई दिल्ली में विजय चौक पर भारत की आजादी की
स्वर्ण जयंती की पूर्व संध्या में दर्शकों की भारी भीड़ के सामने गीत गा कर दिया
ऐसा लगा उनके दिल की आवाज कंठ से निकलती हुयी जन-जन की आत्मा में उतर रही है माँ
तुझे सलाम ,वन्देमातरम | गीत और वन्दे
मातरम का अभिवादन राष्ट्रीय स्वतन्त्रता संग्राम की सदियों तक याद दिलाता रहेगा |
ऐ आबरुदे गंगा वह दिन है याद तुझको ,
उतरा तेरे किनारे जब कारवां हमारा
भारत सोने की चिड़िया माना जाता था यहाँ के खेतों में
लहलहाती फसलें जल से भरी नदियाँ प्रकृति के हर मौसम यहाँ मिलते थे अत : हमलावर
यहाँ की समृद्धि से आकर्षित हो कर हमले करते रहते थे कुछ लूटपाट कर वापिस अपने वतन
लौट जाते थे अधिकतर यहीं के हो कर रह गये | दूर दराज से कारवां भूख
प्यास से त्रस्त नदियों के किनारे ठहर कर शीतल जल पीकर प्यास बुझाते होंगे,
थके तन बेहाल हो कर गुनगुनी रेत पर पेट के बल लेटते ही माँ की
गुनगुनी गोद याद आती होगी गले से भर्रायी आवाज निकली होगी माँ तुम्हें सलाम यही है
वन्दे मातरम “भारत माता की जय “ |
अधिकतर समाज यहीं का है जिन्होंने इस्लाम स्वीकार किया | भारत माता
बुत नहीं है बुत शिकनी मानसिकता के लोग उनमें बुत देखते हैं लेकिन यह एक भावनात्मक
आस्था हैं जिसका शीश हिमालय कन्या कुमारी तक के विशाल भूभाग के चरण पखारता हिन्द
महासागर ,दोनों तरफ अरब की खाड़ी और बंगाल की खाड़ी |
अंग्रेजी राज में सभी को ऐसा लगता था जैसे जंजीरों में जकड़ी भारत की
धरती माँ है यहाँ उन्होंने जन्म लिया है | कुछ विचारक अपने
देश को धरती का टुकडा मानते हैं और दूसरी विचारधारा वाले दुनिया पर राज करना चाहते
हैं अपनी विचार धारा को प्रेम से या ताकत के बल पर फैलाना चाहते हैं लेकिन
धरती अपनी गति से धुरी पर घूमती रहती है नश्वर पुतले वह नहीं सोचते धरती जब हिलती
है उसके गर्भ में हजारो राजवंश और सभ्यतायें समा जाती हए | जब
ज्वाला मुखी फटते हैं अंदर से धधक कर बहता गर्म लावा निकलते समय विध्वंसकारी होता
है लेकिन ठंडा होने पर धरती का एक हिस्सा बन जाता और जापान में आई सुनामी को अभी
अधिक समय नहीं हुआ | भारत माता का असली रूप हैं 125
करोड़ हाथ भारत माता की जय में उठते हैं उनमें उबैसी या उस जैसी मानसिकता
वालों का हाथ नही उठा क्या फर्क पड़ता है |
देश में असहिष्णुता का शोर उठा साहित्यकारों ने पुरूस्कार लौटायें ,
फिर अभिव्यक्ति की स्वतन्त्रता पर
प्रश्न उठाया ? यही नहीं देश को टुकड़े-टुकड़े करने के नारे
लगे उन सबका जबाब आया भारत माता की जय | यह वह जयघोष था
जिसको लगाते-लगाते क्रान्ति कारी फांसी के तख्ते पर हंसते-हंसते झूल गये |यहीं करो या मरो के नारे के साथ भारत माता की
जय के नाम पर विशाल जन समूह ने जेल भर दिए |भारत माता की जय ,
इंकलाब ज़िंदा बाद स्वतन्त्रता आन्दोलन का सबसे बड़ा नारा था |भारत भूमि को जीवन का पालन करने वाली माता के रूप में देखा गया गुलामी में
माता को जंजीरों में जकड़ा समझ कर उसकी मुक्ति की कोशिश की जाने लगी यहाँ से त्याग
और बलिदान का सिलसिला शुरू हुआ |हर मातृभूमि के लिए बलिदान
के इच्छुक स्तंत्रता संग्राम के सिपाहियों में भारत माता का काल्पनिक स्वरूप
उत्साह का संचार करता था | चीन ने हमारे देश पर हमला किया
पाकिस्तान के खिलाफ दो लडाईया और करगिल की लड़ाई लड़ी शहीदों की अर्थी के पीछे
भी भारत माँ पर शहादत देने वालों के लिए भारत माता का जयघोष पूरे देश में गुंजा |
समझ नहीं आता भारत माता की जय कहने से
किसी का धर्म परिवर्तन कैसे हो जाता और न यह देश भक्ति की असल पहचान है हाँ दिल से
भारतीय होना चाहिये |
भारत माता की जय का विवाद राजनैतिक है उसे धार्मिक बनाने की
कोशिश की जा रही हैं |यह विषय राजनैतिक गलियों
से गुजर कर धार्मिक गलियों में जा चुका है कुछ प्रभावशाली मदरसों ने फतवे
जारी किये जिनमें कहा इस्लामिक मान्यताएं मुस्लिम समाज को भारत माता की जय का नारा
लगाने की इजाजत नहीं देती फतवे की व्याख्या करते हुए कहा तर्क के आधार पर इन्सान
ही दूसरे इन्सान को जन्म दे सकता है भारत की जमीन को माता कहना तर्क के आधार
पर सही नहीं है जमीन को माँ माने या न माने यह उस व्यक्ति की निजी
धार्मिक मान्यता है लेकिन दूसरे को बाध्य नहीं किया जा सकता उबैसी ने संविधान का
तर्क दिया संविधान में भारत माता की जय के लिए किसी को बाध्य नहीं किया जा सकता ,लेकिन इस्लाम में कहीं
नहीं लिखा धरती को माँ कहना कुफ्र है दुनिया के देश अपनी धरती को मदर लैंड कहते
हैं जर्मनी में फादर लैंड कहते हैं फ़ारसी में भी मादरे वतन कहते हैं
इस्लामिक विद्वान मादरे वतन ज़िंदा बाद मानते हैं शरीयत में भी अपने देश से
प्यार को ईमान का दर्जा दिया गया है |भारत माता “मादरे वतन” का तसव्वुर (कल्पना) है। जिससे मोहब्बत और जिसका
एहतराम किया जाता है। “हुब्बुल वतनी निस्फुल ईमान!” है | यही भारत माता की जय है | माँ और धरती
माँ दोनों से प्यार किया जाता है धरती के ऊपर भरण पोषण
का इंतजाम है नीचे विलासता का सामान खोदते जाओ देखो धरती के गर्भ में क्या नहीं है
?बहुत कुछ है | 125 करोड़ के देश में तो
उबैसी जैसे नमक जैसे भी नहीं हैं धर्म निरपेक्ष देश है इसलिए धर्म की दुहाई देना
भी राजनीति क गोटियाँ चलने की नापाक हरकत है संसद में अपने भाषण के दौरान जावेद
साहब ने अपनी बुलंद आवाज में ऊबेसी जैसों को करार जबाब देते हुए कहा भारत
माता की जय मेरा कर्त्तव्य नहीं अधिकार है बार-बार कहूँगा भारत माता की जय |
जिनसे उनका वतन छूटता है उनके दिल से पूछो वह प्रवासी
कहलाते हैं दूसरे दर्जे के नागरिक कभी भी नफरत के शिकार हो कर निकाले जा
सकते हैं लौटने पर अपना वतन स्वागत करता है | सोने जैसा सीरिया ईराक
बर्बाद हो गया कितनों ने अपनों को खोया कोई गिन सकता है लाखों लोग अपनी मादरे वतन
छोड़ कर शरणार्थी बनने के लिए विवश हो गये उनके सिर पर खुला आसमान है और दूसरो के
देश की धरती |