राम राम कहि राम कहि
डॉ शोभा भारद्वाज
विश्व के अनेक भागों में ख़ास कर साउथ ईस्ट एशिया और भारत में विभिन्न भाषाओं में राम कथा सुनाई जाती है , रामकथा का मंचन किया जाता है कथा का सार एक है रघुकुल तिलक महाराज दशरथ ने अपनी राजसभा से प्रजा को बचन दिया था, उनके राजा राम होंगे लेकिन सब पर भारी पड़े महारानी कैकई को दिये दो बरदान जिनका मोल राजा ने अपने प्राण देकर चुकाया|
महाराजा दशरथ ने सहज मुद्रा में मुकुट सीधा करने के उद्देश्य से दर्पण में अपना मुख देखा उन्हें कान के पास सफेद बाल दिखाई दिए उन्होंने मंत्री परिषद अधीनस्थ राजाओं, योद्धाओं, न्याय परिषद एवं विद्वानों की सभा बुला कर अपने विचार रखे अब वह श्री राम का राज्याभिषेक कर पद मुक्त होने के लिए सबकी राय जानना चाहते हें |राजा के ऐसा कहते ही पूरी सभा साधु – साधु की हर्ष ध्वनि से गुंजायमान हो उठी| महामंत्री श्री सुमंत ने हाथ जोड़ कर प्रार्थना की महाराज आप कौशल नगरी के महान रघुवंशियों के समान महान है| श्री राम ने आपसे राजधर्म सिखाया है राम जन-जन को प्रिय है आपका निर्णय उचित है श्री राम महान युवराज हैं वह जो कहते हैं वही करते हैं प्रजा जन उनके हर शब्द पर विश्वास करते हैं| वशिष्ठ मुनि ने गणनाकर बताया वही दिन शुभ होगा जिस दिन राम का राज्याभिषेक होगा |मुनिवर समझ गये अभी श्री राम के वनवास का समय हैं गृह दशायें श्री राम के वन गमन की और संकेत कर रहीं हैं |
राजा ने विचार किया भरत शत्रूघ्न के साथ अपने नाना से मिलने कैकय देश गये हैं लेकिन शुभ महूर्त समझ कर क्यों न कल ही राम का राज्याभिषेक हो जाये| श्री राम को सभा में बुलाया गया उनसे राजा दशरथ ने कहा शुभ महूर्त कहता है शुभ काम शीघ्र करना चाहिए अत: तुम्हें गुरु की आ ज्ञान ुसार उन सभी व्रत नियमों का पालन करना है जो शास्त्रानुसार उचित हैं आज की रात तुम्हारे मित्र तुम्हारी रक्षा करेंगे |
चारो भाइयों में राम बड़े थे अत : सिंहासन के वह उत्तराधिकारी थे |वशिष्ठ मुनि ने राम के कक्ष में उन्हें वेद मन्त्रों के साथ जमीन पर चटाई बिछा कर रात्री में उपवास और जागते रहने का आदेश दिया |
अयोध्या की राजसभा से राम के राज्याभिषेक का समाचार नगर वासियों ने सुना प्रजा आनन्द मग्न हो गयी घर-घर मंगल ध्वनि होने लगी नगर को फूलें से सजाया जा रहा था सुगन्धित जल का छिडकाव मार्ग में होने लगा |मंथरा महारानी कैकई के साथ मायके आई थी उसने उत्सव में डूबे नगर वासियों , महल में काम करने वाली राज महल की महिला कर्मचारियों को नये कंगन पहने देख कर चिल्लाई क्या तुमने यह आभूषण चुरायें हैं |परिचारिकाओं नें आनन्द मग्न होकर कहा कल श्री राम का राज्याभिषेक होगा वह हमारे महाराज होंगे | मंथरा का हृदय धक – धक करने ऐसा लगा जैसे वह भयानक भूचाल में फंस गयी हो उसने महारानी कैकई के निजी कक्ष में जा कर महारानी को पुकारते हुए कहा जागो महारानी जागो दुर्भाग्य का तूफ़ान आने वाला है| महारानी ने आश्चर्य से पूछा मेरे राम लक्ष्मण भरत और शत्रुघन तो कुशल से हैं? कपटी मंथरा बोली आज राम को छोड़ कर कौन सकुशल हो सकता है कल राम का राज तिलक है यह सुन कर रानी ने गले से उतार कर मंथरा को रत्नों का हार उपहार में दिया | मंथरा उपहार धरती पर फेक कर फुंकारने लगी अरे दुःख का अवसर है दुर्भाग्य तुम्हारे सिर पर मंडरा रहा है तुम उपहार दे रही हो|
रानी जानती थी मंथरा उसकी हित चिंतक है लेकिन कुटिल है उसे डांटते हुए कहा यदि आनन्द में आनन्दित नहीं हो सकती तो चुप रहो तुम्हारी जिव्हा कितनी विकृत है लम्बी लम्बी सांसे क्यों ले रही हो ?मंथरा बोली तुम सोचती हो महाराज की प्रिय रानी हो अत: उनकी कपट भरी बातों में आ जाती हो | तुम कुटिलता त्याग कर जो चाहो मांग सकती हो क्या तुम नहीं जानती राम को सभी माताएं प्रिय हैं ? रघुकुल की रीति है बड़ा भाई स्वामी और छोटे भाई उसके सेवक होते हैं |
मंथरा ने उसांस लेकर महारानी के मर्म पर चोट की अपने भरत को संदेश पहुँचाओ वह कभी ननिहाल से न लौंटें अनाथ की तरह जीवन जीने से अच्छा है वहीं छुप जाये |तुम्हारे भी सुख आमोद प्रमोद के दिन गये रानी कल से राम की माता राजमाता और तुम उसकी सेविका होगी मेरा तो और भी हाल बेहाल होगा सभी जानते हैं मैं तुम्हारी हितैषी हूँ | तुम्हें सोचना है तुम्हें राजमाता का पद चाहिए या महाराजा की बड़ी महारानी की सेविका का और भरत राम के सेवक दोनों क्या चैन से जी सकोगे ? मंथरा ने कैकई के मर्म पर चोट की जिसका सीधा असर बुद्धि पर हुआ|
15 दिन से राजतिलक की तैयारी हो रही है भोली महारानी तुम्हें मेरे द्वारा जानकारी मिल रही है | कैकई डर गयी रानी के विवेक को हरने के लिए उसने तरह- तरह के प्रसंग सुनाये अंत में कैकई को दुर्बुद्धि मंथरा ही विश्व में सबसे हितकारी लगी |तुम्हारे पिता कैकय महाराज ने जब तुम्हारा विवाह महाराज से किया था वह अवस्था में बड़े और सन्तान हीन थे तय था तुमसे उत्पन्न सन्तान का राजतिलक होगा रानी अभी भी कुछ नहीं बिगड़ा अभी पूरी रात बाकी है | तुम्हे याद होगा देवासुर संग्राम में तुमने महाराज के प्राणों की रक्षा की थी महाराज ने कृतज्ञता वश कहा था तुम्हे दो वरदान देता हूँ जब चाहे मांग लेना अभी तक तुम्हें मांगने की आवश्यकता ही नहीं पड़ी थी | आज तुम्हारे हित में है वरदान मांगों लेकिन महारानी वर तभी मांगना जब महाराज राम की सौगंध लें |
वर भरत के लिए राजतिलक और राम के लिए 14 वर्ष का तापस वेश में बनवास सोचो यदि राम अयोध्या में रहेंगे नगर वासी भरत को राजा के रूप में स्वीकार नहीं करेंगे चौदह वर्ष का बनवास राम को राज्य से दूर ले जाएगा लोग उन्हें भूल जायेंगे | नियति ने लम्बी साँस ली आह अयोध्या पर उसकी काली छाया पड़ चुकी थी लेकिन यही समय जम्बूदीप के लिए मंगलकारी था देश का इतिहास बदलने वाला था |