19 नवम्बर अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस ‘भारत में’ ?
डॉ शोभा भारद्वाज
19 नवम्बर को अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाने का चलन 1960 से चल रहा है | पुरूष दिवस की विशेष रूप से शुरुआत त्रिनिदाद एवं टोबागो में की गयी थी अब यह 70 देशों में मनाया जाता है भारत में भी 19 नवम्बर 2007 के दिन सेव इंडियन फैमिली द्वारा पुरुष दिवस का चलन शुरू किया गया कोशिश की गयी हर वर्ष उत्सव के रूप में मनाया जाये 2009 में पुरुषों के ब्रांड एलन सोली ने इस उत्सव के प्रचार की जिम्मेदारी उठायी एवं स्पोंसर भी किया तय हुआ पुरुषो की नकारात्मक छवि के विरुद्ध उनकी छवि के आदर्श पहलू को निखारने के लिए पुरुष प्रधान फिल्मों का निर्माण किया जाये| ‘पुरुष दिवस’ जबकि समाज के हर वर्ग में महिला सशक्तिकरण, उनके अधिकारों एवं पुरुषों के समान सम्मान देने की मांग तेजी से बढ़ रही है|
भारतीय समाजिक व्यवस्था में कन्या को देवी का दर्जा देकर पूजा जाता है लेकिन समाज पुरुष प्रधान माना जाता है लड़का , आज भी गाँव में किसी के घर से थाली पीटने की आवाज आती है आस पड़ोस समझ जाता है उनके घर में पुत्र रत्न ने जन्म लिया है |पहली बेटी है तो लक्ष्मी कह कर बधाई दी जाती है लेकिन दूसरी बार बेटे की ही कामना की जाती है उसे कुलदीपक कहा जाता है बेटों को जन्म देने वाली माँ को गौरव की दृष्टि से देखा जाता है बेटे के जन्म के बाद अनेक उत्सव मनाने की परम्पराएं हैं जिनमें एक कुआ पूजन या क्षेत्र में बहने वाली नदी के पूजन का आयोजन किया जाता है | उत्सव के लिए पूरे कुटुम्ब को आमंत्रित कर मंगलाचार के साथ ढोलक की थाप पर जच्चा गाई जाती हैं ,पुत्रवती को सजा धजा कर हल्के से घूँघट ,हाथ में जल का लोटा उसका हाथ पकड़े कुटुम्ब की बड़ी बूढ़ियाँ बैंड बाजे के साथ नदी तट पर या कुएं के पास ले जाती हैं परिवार के अन्य सदस्य बैंड की थाप पर नाच –नाच कर ख़ुशी प्रगट करते हैं ,मंगल गीत गा कर विधि विधान से कुयें पूजन की रस्म निभाई जाती है बेटी के जन्म पर भी किन्नर बधाई देने आते हैं लेकिन बेटे के जन्म पर उनका ठसका देखने लायक होता है ढोलक की थाप पर जम कर नाच गाना होता है ऐसा ही समा बेटे के ब्याह पर देखा जा सकता है | घर की दादी या नानी का लाड़ भी कुछ अधिक बरसता है | बेटा जरा सा गिर जाए चोट लग जाए उसे रोने भी नहीं दिया जाता अरे मर्द रोते नहीं है उसे मर्द होने का अहसास कराया जाता है बेटे का खान पान अलग होता उसके भोजन में घी और प्रोटीन का विशेष ध्यान रखा जाता है
भारत में महिला दिवस का जिक्र होता रहा है लेकिन पुरुष दिवस का चलन पहले विदेशों में था | भारत में हर रोज बेटे का घर के मर्दों का है परिवार चलाने का दायित्व उसका है माता पिता की जिम्मेदारियाँ, विवाह के बाद ,पत्नी बच्चों की परवरिश ,माँ गर्भ धारण करती हैं जन्मदात्री है लेकिन बच्चा सुरक्षित रहे स्वस्थ रहे बच्चे का सही तरह से जन्म हो बच्चों का सम्पूर्ण विकास हो घर चलाना पुरुष का दायित्व माना जाता है परिवार पर संकट आता है उससे बचाना पुरुष का कर्तव्य है संकट की घड़ी में अपने बच्चों बेटी , बहन ,पत्नी की रक्षा के लिए घर के पुरुष आगे आते हैं देश की रक्षा के लिए सेना की भर्ती में मर्द विशेष हैं नक्सलाईट से लड़ना ,कश्मीर में सुरक्षा बल शहादत दे रहे हैं जरूरत पड़ने पर शत्रू क्षेत्र में घुस कर शत्रू पर वार करते हैं | आज महिलाएं भी कर्मठ हैं काम करती हैं संकट में मर्द के साथ खड़ी हैं महिलाएं नौकरी करती हैं लेकिन भारतीय मर्द की खुद्दारी कबूल नहीं करती है महिला के पैसे से घर चलाया जाए हाँ अच्छे जीवन बच्चों की अच्छी शिक्षा अपना एक घर हो में महिलाओं का सहयोग उसे स्वीकार है |
जब लड़का भविष्य का पुरुष इतना महत्व पूर्ण है फिर भारत में पुरुष दिवस मनाने की आवश्यकता को महत्व क्यों दिया जा रहा है ? यदि महिला दिवस का महत्व है तो पुरुष दिवस का क्यों नहीं? स्त्री पुरुष दोनों समाज और देश की तरक्की के लिए जरूरी हैं परिवार दोनों के तालमेल से आगे बढ़ता है कोई एक दूसरे से कम नहीं है अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस में पुरुषों द्वारा किए गए योगदान, बलिदान शिक्षा के क्षेत्र ,आर्थिक , सामाजिक, देश की तकनीकी प्रगति करने के लिए पुरुषों ने क्या -क्या किया की चर्चा होनी चाहिए | स्वस्थ मर्द स्वस्थ समाज को आगे बढाता है |लड़कों एवं पुरुषों के गिरते स्वास्थ्य के कारण रोकने के प्रति जागरूकता की चर्चा होनी चाहिए नशाखोरी क्यों बढ़ रही है ?नशामुक्ति के उपायों को सरकार गम्भीरता से ले नशे के सौदागरों को शीघ्र ट्रायल कड़ी सजा दी जाए | दुःख है पुरुषों में संघर्ष के स्थान पर पलायन की प्रवृति बढ़ रही है वह डिप्रेशन के शिकार हो रहे हैं आत्महत्या की घटनाएँ तेजी से बढ़ रही हैं पहले मर्द में अंत तक अपनी परिस्थितियों से टकराने की भावना थी गरीब से गरीब भी अपनी जिम्मेदारियों से बच कर मौत की राह या पलायन नहीं करता था किसान शहरों में आकर मेहनत मजदूरी करता था भूख से परिवार को बचता था आत्महत्या की सोचता भी नहीं था धीरे-धीरे अच्छे दिन भी आये |
परिवारों में आये दिन झगड़े बढ़ रहे हैं यदि मर्द क्रोधी है तो महिलाएं भी कम नहीं हैं रोज की तू तू मैं मैं झगड़े इतने बढ़ गये हैं नौबत तलाक तक आ गयी है तलाक के कारण भी जरा जरा से हैं ईगो इतनी टकराती है अंत में घर टूटता है बच्चों का क्या होगा कोई नहीं सोचता सिंगल पेरेंट बच्चे की परवरिश कितनी मुश्किल है | महिलाओं के हित में दहेज संबंधी कानून उनकी सुरक्षा एवं सुसराल की मांगों और प्रताड़ना से बचाने के लिए बनाये गये थे झगड़े का विषय कुछ भी हो उसे दहेज प्रताड़ना से जोड़ दिया जाता है और अधिकतर मामले झूठे पाए गये हैं जो महिलाएं वास्तव में प्रताड़ित की गयीं हैं मर गयीं उनमें अपनी आवाज उठाने की न हिम्मत थी न मार्ग दर्शक लेकिन दबंग महिलाओं ने इस अधिकार का भरपूर लाभ उठाने की कोशिश की धमकती हैं ऐसी बला सिर पर लाऊँगी जेल में पूरा परिवार जीवन भर चक्की पीसते नजर आओगे | कानून के दुरूपयोग पर सुप्रीम कोर्ट भी चिंता जता चुका है |अब पुरुष भी आगे आकर अपनी बात रख रहे हैं लेकिन हर मिया बीबी के झगड़े में समाज की सहानुभूति महिला के साथ होती है पति को शक की नजर से देखा जाता है |
“मीटू” का भय -इसकी शुरुआत हालीवुड में 2006 में हुई थी| अक्टूबर 2017 में अभियान ने जोर पकड़ा अमेरिका से चला था ग्लोब्लाईजेष्ण हुआ बढ़ते –बढ़ते भारत में दस्तक दे चुका है पहले महिलाएं कार्य स्थल पर शोषण का शिकार होने के बाद भी डरती थीं समाज उनको ही दोष देगा उनके चरित्र पर सौ प्रश्न उठाएगा मानसिक कष्ट पाती थी अब उनमें उत्पीडन , उत्पीड़न की कोशिश , भूत काल में हुए शोषण के जिक्र करने ,आवाज उठाने की हिम्मत आ गयी है सोशल मीडिया पर आपबीती के रूप में महिलाएं शेयर कर रही हैं एक आन्दोलन है एक चेतावनी है महिला को कमजोर न समझें जिसकी गाज अभी समाज के ख़ास सम्मानित वर्ग के पुरुषों पर गिर रही है | पुरुष इसका मिल कर विरोध नहीं कर रहे हैं वह जानते हैं उनकी रसिक प्रवृति उनके द्वारा की गयी भूतकाल की गलती उनका बना बनाया कैर्रियर ही चौपट न कर दे उनके परिवार की जड़ें भी हिल जायेंगी अभी अनेक फ़िल्मी हस्तियों और पत्रकारिता से जुड़े लोगों के नाम आ रहे हैं |भारत का मानहानि कानून महिलाओं को कोर्ट में जाने की इजाजत देता है साबित होने पर सजा का विधान भी है| पुरुष भी मानहानि के विरुद्ध कोर्ट जा रहे हैं|
बच्चियाँ ही नहीं लड़कों का शोषण भी होता है ऐसी दुर्घटनाएं सुनने में आ रही है उनका बचपन दर्द से भर जाता है पुरुष भी कार्य स्थल पर शोषण के शिकार होते हैं किससे कहें ? घरेलू हिंसा के शिकार पुरुष भी होते हैं उन्हें तोड़ने के लिए उन पर अधिक से अधिक अत्याचार किया जाता दुःख में डिप्रेशन हावी हो जाता है |पुरुषों के अनुपात में महिलायें कम हो रही हैं विवाह भी एक समस्या बन गया है अच्छा जीवन साथी मिलना मुश्किल है पहले लड़की समझौता करती थी अब पुरुष | पुरुषों के कल्याण और अधिकारों की रक्षा के लिए आयोग के गठन की मांग उठ रही है लेकिन आवाज केवल मांग बन कर रह गयी है पुरुष समाज के अधिकार मौलिक अधिकार तक ही सीमित हैं जबकि 2014 में सरकार को ज्ञापन भी सोंपा गया था |
कहा जाता है पुरुष की तरक्की के पीछे महिला का हाथ है लेकिन पुरुषों का योगदान भी महिलाओं की तरक्की के लिए कम नहीं है |राममोहन राय ने महिला को चिता से उठाया था विधवा होने के बाद जीने का अधिकार कानून द्वारा दिलवाया और भी अनेक समाज सुधारकों ने समाज सुधार में जीवन लगा दिया | महात्मा गांधी महिलाओं की हर क्षेत्र में तरक्की के साथ देश की आजादी में सहयोग के लिए घर से बाहर लाये 19 नवम्बर के दिन उन सभी महानुभावों की उपलब्धियों को याद करना चाहिए जो समाज की तरक्की में अनुपम उदाहरण बने संयुक्त राष्ट्र संघ ने भी अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस को विशेष रूप से मान्यता दी है|