अन्नकूट
गोवर्धन पूजा का आयोजन 56 तो नहीं 33 साधारण पकवान द्वारा आयोजित सामूहिक भोज
डॉ शोभा भारद्वाज
हम मथुरा के निवासी अन्नकूट ,गोवर्धन पूजा के लिए बहुत समवेदन शील
हैं मैने 10 अन्नकूट विदेश में श्रद्धा भक्ति से मनाये मुस्लिम देश था लेकिन
सभी जानकार प्रेम से प्रसाद ग्रहण करते थे उनमें अवतार या भगवान का कंसेप्ट नहीं
था वह कहते थे आज हिन्द के पैगम्बर लार्ड कृष्णा के सम्मान में ईद (ख़ुशी ) हैं मैं उनके भाव को नमन करती हूँ |कान्हा सच्चे अर्थों में पर्यावरण वादी प्रकृति प्रेमी थे उन्होंने गोकुल
वासियों को गोवर्धन पूजा का संदेश देकर समझाया यदि बृज में
गोवर्धन पर्वत श्रंखलायें नहीं होती यह स्थान भी मरूस्थल ही होता | गर्मी
से सागर में भाफ के बादल बनते हैं हवायें उन्हें उड़ा कर दूर ले जाती हैं गोवर्धन
पर्वत के हरे भरे सघन वन और ऊँचे वृक्षों पर एक नमी रहती हैं जिससे उड़ते घनघोर
बादल आकर्षित होते हैं , मुसलाधार बारिश होती है |जहाँ पर्वत और वन नहीं है वहाँ बारिश
कम होती है |कन्हैया की ज्ञान भरी बातों से सभी प्रभावित
हुये क्यों न हम ऐसा उत्सव मनाये जिसे बृज भूमि में सदैव याद किया जाये अबकी बार
गिरिराज जी का मिल कर पूजन कर सामहिक भोज का आयोजन किया जाए जिसमें हर व्यक्ति
बिना किसी भेद भाव के भाग ले सके जिसके घर में जो है वह भोज में समर्पित करे| एक
चौड़े स्थान को साफ़ किया गया पूरा गोकुल धाम बिराजा पर्वत के आंचल में सबने एक साथ भोजन किया भोज में हर वस्तु थी हर घर व्यक्ति की साझे दारी थी| सच्चे अर्थों
में कान्हा का सच्चा समाज था |कवि रसखान ने बृज भूमि की महानता का वर्णन करते हुए
कहा था-
मानुष हौं तो वही रसखानि बसौं ब्रज गोकुल गाँव के
ग्वालन।
जो पसु हौं तो कहा बसु मेरो चरौं नित नन्द की धेनु मंझारन।
पाहन हौं तो वही गिरि को जो धरयौ कर छत्र पुरन्दर धारन।
जो खग हौं बसेरो करौं मिल कालिन्दी-कूल-कदम्ब की डारन।।