ट्रिपल तलाक एवं बहुविवाह के खिलाफ मुस्लिम महिलाओं की उठती आवाज
डॉ शोभा भारद्वाज
भारत में ट्रिपल तलाक एवं बहुविवाह पर बहस छिड़ी है |मौलवी व उलेमाओं ने इसे मौलिक अधिकारों का हनन माना है वह कहते हैं अपने पर्सनल ला में किसी तरह की मदाखलत बर्दाश्त नहीं करेंगे | महिला संगठन तलाक और बहुविवाह का विरोध कर रहे हैं | अनेक महिलाओं ने ट्रिपल तलाक के विरोध में कोर्ट का दरवाजा खटकाया है | कुरान में तलाक का नियम है लेकिन महिलाओं को शर्तों के साथ तलाक का अधिकार दिया गया है वह भी शौहर की इच्छा पर निर्भर है |तलाक का अधिकार प्रमुख रूप से मर्दों को है जिसका विरोध हो रहा है |कुरान में तलाक का नियम आसान नहीं है इसकी तीन स्टेज हैं पहले महीने मर्द एक तलाक दे, शौहर और बीबी के बीच में दोनों के परिवार बीच बचाव कर समझायें बुझायें यदि राय बदल गयी तलाक वापिस लेकर फिर दोनों साथ रह सकते हैं यदि तलाक वापिस नहीं लिया दूसरा तलाक ,दूसरा महीना, तीसरा तलाक तलाक की तीसरी स्टेज में तीसरे महीने कहा तलाक ,तलाक माना जायेगा तलाक के इस ढंग पर शिया और सुन्नियों में कोई झगड़ा नहीं है
लेकिन एक साथ तीन बार शौहर द्वारा तलाक कहने पर मिया बीबी का रिश्ता खत्म होने पर विरोध है यदि फोन पर तीन बार तलाक कह दिया , एसएमएस से तलाक का मेसेज दिया ,पत्र द्वारा तलाक लिख कर भेज दिया, और गुस्से में तलाक ,तलाक तलाक कह दिया रिश्ता खत्म| भारत में नब्बे प्रतिशत सुन्नी मुस्लिम आबादी है नियम कुछ भी हो शौहर के तीन बार तलाक कहने से मियां बीबी का रिश्ता खत्म मानते हैं | यदि शौहर को लगता है उससे गलती हो गयी तो ‘हलाला’ औरत का फिर से निकाह होगा दूसरे शौहर के पास रहना पड़ता है वह यदि तलाक दे दे ऐसी स्थित में पहले शौहर से दुबारा निकाह हो सकता है | इलाहाबाद हाई कोर्ट ने ट्रिपल तलाक के एक केस में अपनी टिप्पणी करते हुए कहा यह महिलाओं के साथ बेइंसाफी है कोई भी पर्सनल ल़ा संविधान से ऊपर नहीं हैं महिलायें मौलानाओं के रहम करम पर नहीं रहेंगी | भारत में मुस्लिम पर्सनल ला के झगड़े की नीव ब्रिटिश काल 1765 में पड़ी अनेक मुस्लिम देशों में ट्रिपल तलाक के नियमों में परिवर्तन हो रहें है सबसे पहले ईजिप्त ने तलाक को गम्भीरता से लिया था |
शिया समाज के विचारकों के अनुसार उनके यहाँ ट्रिपल तलाक का नियम नहीं है तलाक के लिए शौहर को पहले अदालत में अर्जी देनी पडती है | ईरान में कई वर्ष तक प्रवास के दौरान तलाक और बहुविवाह की परम्परा को पास से जाना वहाँ ऐसा नहीं था शौहर ने गुस्से में आकर तीन बार तलाक कह दिया शादी खत्म उसी क्षण महिला अपने सजाये घर संसार से मरहूम हो गयी उसके अपने बच्चे पराये हो गये |इस्लामिक सरकार से पहले शाह की हकूमत थी उस समय तलाक आसान नहीं था महिला के अधिकार सुरक्षित थे हिजाब अपनी मर्जी पर था लेकिन बहुविवाह का चलन तब भी था | शाह की हकूमत में अदालत में तलाक पर बकायदा बहस होती थी लेकिन इस्लामिक सरकार आने के बाद तलाक थोड़ा आसान हो गया फिर भी तलाक लेने से पहले अदालत में अर्जी देनी पडती है | ईरान में 1986 में बने 12 धाराओं वाले तलाक कानून के अनुसार ही तलाक होता था। 1992 में इस कानून में कुछ संशोधन किए गये लेकिन कोर्ट की अनुमति से ही शिया और सुन्नी समाज में तलाक सम्भव है। कट्ट रपंथी समझे जाने वाले ईरान में भी झगड़े निपटाने के लिए पारिवारिक अदालतें हैं |काजी की अदालत में पति पत्नी का जोड़ा पेश होता है उनकी शिकायतें सुनने के बाद काजी अपना फरमान सुनाते हैं जाओं खानम तुम आजाद हो गयी| वहाँ भीं महिलाओं को यह फरमान नापसंद था वह अक्सर कहती थी शादी करो परन्तु शौहर से दिलो जान से मुहब्बत मत करो दर्द मिलेगा घर छूटते समय तकलीफ होगी |
हाँ बहुविवाह का चलन था रईस मोटी मेहर देकर खूबसूरत लड़कियों से शादी करते थे |जिसकी जितनी इनकम उतनी ही आकर्षक बीबी और कई बीबियाँ| मेहर की रकम अधिकतर सोने के सिक्कों की शक्ल में शादी के समय दी जाती है उधार कम ही चलता है| शादी की दावत शौहर की तरफ से दी जाती थी एक तरह से शादी का रिसेप्शन समझ लें| पुरुष विवाह से पहले पैसा इकठ्ठा करते थे तब शादी के विषय में सोच सकते थे विवाह के बाद माता पिता से उनके सम्बन्ध औपचारिक मात्र ही रह जाते थे | तलाकशुदा की मेहर अधिक नहीं होती थी कम आमदनी वाले उनसे विवाह कर अपना घर बसा लेते थे परन्तु मन में हसरत रह जाती थी काश वह अनब्याही से विवाह कर सकते | दूसरी शादी के लिए पत्नी से इजाजत का नियम था लेकिन वह विरोध नहीं कर सकती थी इसे धर्म का जामा पहना दिया जाता |कभी भी दूसरी खानम लायी जा सकती है इसलिए महिलायें बहुत खर्चीली थीं |
इस्लामिक सरकार आने के बाद जनसंख्या भी बढ़ी यदि किसी मर्द के अधिक बच्चे हैं उसको दूसरी बीबी बढ़िया नहीं मिलती थी | ईराक ईरान युद्ध में एक मिलियन लोग मरे जनसंख्या दो मिलियन बढ़ गयी थी आगे जाकर जनसंख्या नियंत्रित करनी पड़ी |लोग अपने घर बुलाते थे प्यार से कहते थे हमारे घर आईये उसका अर्थ अपना सजा घर दिखाना और बताना उसकी पत्नी कितनी सुंदर सलीकेदार है यही स्टेट्स सिम्बल था |कई बार बाजरों में अलग ही नजारा नजर आता था शौहर दूसरी खानम से निकाह कर लाया पहली पत्नी मजबूर है उसे समझौता कर गुजारा करना है तलाक की सूरत में बच्चे छूट जायेंगे |इस्लाम के अनुसार सभी पत्नियों से समान व्यवहार करना जरूरी है शौहर दोनों पत्नियों को लेकर घूमने निकलता कम उम्र की नई पत्नी आगे थोड़ा गुस्से में मुहँ फुला कर चलती थी और पहली खानम शौहर के पीछे चलती एक बार नई नवेली को मनाता ‘तुम मेरा प्यार हो’ की दुहाई देता फिर थोड़ा पीछे हो कर पहली पत्नी की तरफ मुस्करा कर देखता वह बेचारी उससे भी अधिक मुस्कराती थी|
बड़े घरों में अपार्टमेंट की कई मंजिलें थीं हरेक में अलग-अलग पत्नियाँ अपने बच्चों के साथ रहती थी उन सबके बच्चे अपने पिता की पत्नियों को माँ नहीं कहते थे| पिदर जन (पिता की औरत| सौतेले भाई बहनों को पिदर जन बच्चहा (पिता की औरत के बच्चे )कहते | गावों, कस्बों में देखने को मिला कम उम्र की लडकी किसी बड़ी उम्र के मर्द को ब्याह दी जाती जल्दी ही तलाक हो जाता कैसे? मेहर में मोटी रकम मिलती थी तलाक हो जाने पर दुबारा शादी में लड़की के योग्य वर तलाशते | ऐसी लड़किया बहुत दुःख से कहती थी हमारी माँ को ‘सोना’ प्यारा था | सूना था इराक में सद्दाम के समय यदि शौहर दूसरा ब्याह करता था या पत्नी को तलाक देता था सरकार महिला का ध्यान रखती थी |
भारत में कई ऐसे विषय कोर्ट में आये जरा सी बात पर पत्नी को घर से बाहर का रास्ता दिखा दिया कारण इतने छोटे हैं हैरानी होती है तलाक को धर्म की आड़ में जायज ठहराया जाता है |इस्लाम में कुरान को अल्लाह की जुबान मानते हैं , व्याख्या हदीस में दी गयी है सामाजिक नियमों के लिए शरीयत है |उलेमा तर्क देते हैं हमारे यहाँ शादी पति और पत्नी के बीच जन्म जन्मान्तर का बंधन नहीं है एक पक्का समझौता है हाँ जिसे अंत तक निभाना चाहिए | हमारे यहाँ औरत को बहुत अधिकार दिए गये हैं जैसे विधवा विवाह स्वयम पैगम्बर साहब ने अपने से बड़ी उम्र की विधवा हजरत खजीजा से विवाह किया था पैतृक सम्पत्ति में अधिकार है |विशेष परिस्थितियों में औरत को भी तलाक का हक है |भारतीय मुस्लिम महिलायें खुले तौर पर हिजाब का विरोध नहीं करती हैं लेकिन ट्रिपल तलाक और बहुविवाह के खिलाफ है पढ़ा लिखा मुस्लिम समाज भी उनके साथ है सब चाहते है सुप्रीम कोर्ट से जो भी फैसला आये उसको मानना चाहिए जब निकाह काजी और गवाहों की उपस्थिति में होते हैं तो तलाक भी सम्मानित लोगों की उपस्थिति में नियमानुसार क्यों न हो ? जिसके लिए उलेमा किसी भी तरह तैयार नहीं हैं उनको लगता है इससे उनके अधिकार और महत्व कम हो जायेंगे|