"चुनावी परिणाम पर प्रचार और प्रोपगंडे का असर " पार्ट -1
डॉ शोभा भारद्वाज
चुनावों जीतने की कला में जनता के सेवक बहुत पारंगत रहे हैं सत्ता सुख के साथ जम कर कमाना भी सीख गए थे जोर शोर से चुनाव प्रचार के साथ अंतिम दौर में रथ पर सबार हो कर शान शौकत से जनता उम्मीदवार वोट मांगने आते जलूस में हाथी घोड़े ,बैंड ,बाजे ,नगाड़े नाचते हुए कार्य कर्ता पूरे उत्सव का माहौल बना देते | जनता के प्रतिनिधियों का जनता जी भर कर दीदार कर सकते थे उसके बाद वह पांच वर्ष बाद दर्शन देने वाले थे जितनी शान शौकत से चुनाव लड़ा जाता था उम्मीदवार के पक्ष में लहर बनाई जाती उतना ही जीतने के आसार बढ़ जाते थे उम्मीदवार के प्रचार के लिए कविता यें और नारे गढ़े जाते थे एक नारा आज भी मुझे नर्सरी रैम की तरह याद है वह किस दल के उम्मीदवार थे मुझे याद नहीं है पर नारा याद है
“छुनन गुरू की क्या पहचान , हाथ में डंडा मुहं में पान ”
राजनीति क दलों की आमने सामनें स्टेज सजती उम्मीदवार सफेद लक झक कपड़े पहन कर कुर्सी नुमा सिंहासन पर बिराजमान होते कार्य कर्ता पूरी तैयारी से वाद विवाद में भाग लेते थे लोगों का भारी जमावड़ा लगता कुछ लोग सामने वाले के सवालों का जबाब लिख -लिख कर स्टेज पर पर्चियां भेजते रहते कहीं उनका वक्ता पिछड़ न जाये हर दल के वक्ता का गला बैठ जाता था लोग भी उत्साह से तालियाँ बजाते और बीच- बीच में नारे लगाते थे कई बार भजन मंडलियाँ स्टेज पर चुनाव प्रचार के बीच मे भजन या गीत सुनाती |रोनक मेले के बीच में चुनाव निपटते प्रोपगंडा भी जबरदस्त होता था अफ्फाहों का बाजार पूरा गर्म , किस्से कहानियों की भी कोई कमी नहीं होती थी हर हथकंडा अजमाया जाता जितने उत्साह से चुनाव होता ,उससे ज्यादा लोगों का दिल खट्टा हो जाता था आज की तरह सारे कसमे वादे चुनाव परिणाम के साथ खत्म हो जाते थे |
देश अपनी गति से चल रहा था तीसरा चुनाव आते आते मतदाता गाँधी टोपी और खादी के कपड़ों से चिढ़ने लगे थे लेकिन जब भी नेहरू जी चुनाव प्रचार के लिये आते लोग उन्हें बड़े प्यार से देखने और सुनने आते |वह देश विदेश की बातें करते जनता जनार्धन की समझ में आता या नहीं आता पर लोग उन्हें देख कर खुश होते |नेहरू जी फूल पुर से चुनाव लड़ते थे इंदिरा जी उनका चुनाव प्रचार करने के लिए आती थी | नेहरू जी को बच्चे बहुत प्रिय थे अत :उनके गले में माला डालने के लिए कुछ बच्चों को ले जाया गया नेहरू जी गले में माला डाल कर एक जलूस की शक्ल में काफिला फूल पुर की गलियों में इंदिरा जी के नेतृत्व में चल रहा था एक टूटे घर के बाहर काफिला रूक गया इंदिरा जी को प्यास लगी थी उन्होंने पानी माँगा गृहणी एक पीतल की चमचमाती लूटिया में गुड या शक्कर का शरबत लाई इंदिरा जी उसे गटगट कर पी गई हम बच्चों को किसी ने पानी नहीं पूछा लेकिन शरबत की कहानी यूँ चली राजा के घर की राजकुमारी ने एक गरीब घर से पानी माँगा उन्होंने रगड़-रगड़ कर लूटिया जो बाद में लोटा बन गया साफ़ कर उसमें गुड़ का शरबत दिया इंदिरा जी गट- गट कर पी गई कहानी फूल पुर की गलियों से निकल कर इलाहाबाद और दूर प्रदेशों तक बरसों चलती रही |
आज भी कुछ नहीं बदला राहुल जी राजनीति में नये थे दलितों के घर ठहरने ताम झाम के साथ आते ,अपने साथ लाया खाना खाते सील बंद बोतल का पानी पी कर विभिन्न चैनलों की हैड लाइन बन जाते |जिस घर में राहुल जी का काफिला ठहरा था उससे किसी ने पूछा आपके घर राहुल जी पधारे आपको कैसा लगा जबाब मिला कुछ नहीं पहले पुलिस आई सब की तलाशी ली हमें कहा राहुल आ रहें हैं हमने झाड़ कर खाट बिछा दी सब आये अपना खाया खाया साथ लाई बोतल का पानी पिया फोटो खिचाते कुछ बतराये रहे फिर चले गये | टीवी पर राहुल जी लक झक सफेद कुर्ता पहन कर कंधे पर मिट्टी से भरा तसला उठाये मेहनत कश मजदूर की कैमरे के सामने फिलिंग लेते हर चैनल दिखाते यह प्रोपगंडा ज्यादा नहीं चला|
इंद्रा जी का नारा था वह कहते हैं इंदिरा हटाओ मैं कहती हूँ गरीबी हटाओ” ,गरीबी वहीं की वहीं रही परन्तु इंदिरा जी चुनाव जीत गई | एमरजेंसी के बाद होने वाले चुनावों में नसबंदी को मुद्दा बना कर जम कर प्रोपगंडा हुआ इंदिरा जी चुनाव हार गयीं आज तक किसी प्रधान मंत्री में बढ़ती जनसंख्या के खिलाफ बोलने की हिम्मत नहीं है | संजय गाँधी की मृत्यू हो चुकी थे अत: राजीव गाँधी को वह राजनीति में लाई राजीव जी को नेता बना कर उनकी छवि को नेहरू जी से मिला कर चमचे कहते थे हैं ना बिलकूल नेहरू जी जैसे |इंदिराजी की हत्या के बाद राजीव गाँधी को सहानूभूति वोट मिले उन्होंने लोक सभा में 425 सीटें प्राप्त की उन्होंने अपनी कैबिनेट में वी .पी .सिंह को वित्त मंत्री बनाया ,उन्ही ने राजीव गाँधी के राजनीतिक जीवन की जड़ें कुतरनी शुरू कर दी |
16 अप्रैल 1987 को स्वीडन में एक समाचार छपा भारत ने बोफोर्स कम्पनी से तोपे खरीदी हैं जिसके लिए 60 करोड़ की राशि कमिशन के तौर पर ली गयी गई थी |विपक्ष के लिए यह सुनहरा अवसर था वी .पी.सिंह ने वक्तव्यों की झड़ी लगा दी और विपक्ष के साथ मिल कर बोफोर्स कांड को चुनाव का मुद्दा बनाने की कोशिश की ,1987 में वी. पी.सिंह को कांग्रेस से निष्कासित कर दिए गये अब वी. पी.सिंह ने जम कर राहुल गांधी के खिलाफ प्रोपगंडा कर ,नौकरशाही में भ्रष्टाचार को उजागर करने वाले नायक की भूमिका में अपने आपको सच्चे कर्तव्य निष्ठ ईमानदार राजनेता के रूप में प्रस्तुत किया जनता को विशवास दिलाया समय आने पर वह कई कांडों का पर्दाफाश करगें उनके मोर्चे में असन्तुष्ट कांग्रेसियों के साथ ,भारतीय जनता पार्टी , बामपंथी दल और अन्य दल शामिल हो गये |सब को मिला कर बकायदा 11 अक्टूबर 1988 को मोर्चे का गठन किया गया और चुनाव लड़ा गया वी. पी. सिंह सत्य निष्ठा और ईमानदारी का चोला धर कर प्रधानमंत्री के पद पा गये ,देवीलाल जी को उन्हें उप प्रधानमंत्री बनाना पड़ा| |वी.पी.सिंह ने अपने जनाधार बढ़ाने के लिए मंडल कमिशन द्वारा दिये गये पिछड़ों को आरक्षण देने की सिफारिश लागू करने के लिए मंडल कार्ड खेल ा , यह हथकंडा उन्हें भारी पड़ा देश की युवा पीढ़ी निराशा में डूब गयी उन्हें अपनी शिक्षा और नौकरियों के अवसर जाते दिखे वह आत्म हत्या करनें लगे वी.पी. सिंह की सारी चालाकी धरी रह गई सत्ता का परिवर्तन हुआ|
किसी भी दल की हवा बनाने के लिए एक मुद्दा चाहिए |काशी राम जी ने बहुजन समाज पार्टी बनाई दलितों को एक करने के लिए नारा गढ़ा गया तिलक, तराजू और तलवार उनको मारो जूते चार | उसी दल की नेता ने चुनावों में ब्राह्मणों से समझौता कर यूपी का चुनाव लड़ा तथा मुख्य मंत्री बनी| मायावती जी का सपना पहली दलित प्रधान मंत्री बनना भी रहा है | श्री अटल बिहारी जी एनडीए के प्रधान मंत्री थे उन्होंने दिल्ली से लाहौर की बस यात्रा शुरू की और स्वयं बस पर चुनिंदे लोगों के साथ लाहौर गये स्वागत सत्कार और खूब प्रचार हुआ असल में पाकिस्तानी प्रधान मंत्री की स्थिति डावांडोल थी अटल जी की भी सरकार मिली जुली थी दोनों ने भारत पाकिस्तानी दोस्ती की नई नीवं का प्रचार किया|
श्री मोदी जी भी भाई चारा बढ़ाने अचानक नवाज शरीफ से मिलने लाहौर पहुंचे उनकी नातिन की शादी की मुबारकबाद दी बड़े भावुक क्षण थे परन्तु नतीजा सिफर हाँ मोदी जी की छवि निखरी उनकी कूटनीतिक विजय हुई | मनमोहन सिंह की सरकार में व्याप्त भ्रष्टाचार और महंगाई से जनता त्रस्त थी महाराष्ट्र से अन्ना हजारे ने दिल्ली में आ कर जनपथ पर जनलोक पाल के पक्ष में आन्दोलन किया परेशान देश को अन्ना हजारे में रौशनी की किरन नजर आई उन्हें विशाल जन समर्थन मिला और अरविन्द केसरी वाल और उनकी टीम का राजनीति पटल पर उदय हुआ अरविन्द और उनके साथी अन्ना को मिले जन समर्थन को भुना कर सक्रिय राजनीति में आना चाहते थे आम आदमी ‘ पार्टी के नाम से नये दल का उदय हुआ जिसका चुनाव चिन्ह झाड़ू था |जनता को लोक लुभावन वादे किये नये प्रकार के प्रोपगंडे की शुरुआत हुई आज सभी दल इसी प्रकार की नीति पर चल रहे हैं , स्वराज, आजादी की लड़ाई है, ईमानदार और भ्रष्टाचार से लड़ने वाले उनके साथ आजाये किसी पर भी हाथ में कागज लेकर आरोप लगाना |
जनता महंगाई, भ्रष्टाचार ,घोटालों और रिश्वत खोरी से परेशान थी |मिडिया ने भी इस दल को हाथों हाथ लिया उनकी टीआरपी बढ़ने लगी |हर चैनल पर आप के प्रवक्ता केवल सरकार में कमियां निकालते देखते देखते वह भाजपा और कांग्रेस जैसी पुरानी पार्टियों के बराबर आ गये | कैसे मीडिया और चैनलों की हेड लाइन बना जा सकता है सत्ता के शीर्ष तक पहुचने का दावँ खेला जा सकता है अरविन्द केजरीवाल से सीखें | जनलोक पाल बिल , मोदी सरकार पर अम्बानी और अड़ानी को लाभ देने का इल्जाम लगा कर छाने लगे मिडिया भी उनके प्रोपगंडे का साधन बना| चुनाव आयुक्त शेषन ने चुनाव खर्चो पर रोक लगा दी थी |पहले पूरा चुनाव क्षेत्र झंडे बैनरों से भरा रहता था कोई दीवार ऐसी नहीं थी जिसमें पोस्टर के ऊपर पोस्टर न चढ़ें हों अब झंडे पोस्टर ढोल बालों का धंधा मंदा पड़ गया है अब चुनाव में प्रोपगंडे के तरीके बदल गये हैं |
मिडिया मुख्य हो गया है| 2014 के लोकसभा चुनाव में मिडिया का बहुत बड़ा हाथ है |नेताओं द्वारा महंगे रोड शो कवर करना जहाँ प्रत्याशी पर टनों गुलाब और गेंदा के फूलों की वर्षा की जाती है चुनाव के लिए जब प्रत्याशी पर्चा भरने आते हैं ऐसा सिद्ध करने की कोशिश की जाती है जैसे बिना लड़े सब चुनाव जीत गयें हैं | चैनलों पर हर दल के प्रवक्ताओं को बुला कर उनमें बहस करायी जाती है बहस क्या पूरा समर क्षेत्र होता है दूसरे प्रतिद्वंदी को बोलने न देना नीति गत बहस के स्थान पर एक दूसरे पर आरोप प्रत्यारोप लगाना एक ही तरह की बातों को बार बार दुहराना ,निजी आक्षेप लगाना ऐसा शोर मचाना जिससे कई बार चैनल वालों को अपना कैमरा बंद करना पड़ता है | पब्लिक को आज कर बहूत आनन्द आ रहा है हे प्रत्याक्षी अपनी पब्लिसिटी चाहता है इसके लिए अजीबोगरीब बयान दिए जाते हैं फिर उन बयानों पर चैनलों में बहस शुरू हो जाती प्रत्याक्षी इस बात से खुश होते हैं उनका नकारात्मक ही सही प्रोपगंडा हो रहा है जनता में उनकी पब्लिसिटी हो रही है |