यह कैसा नियम है ?(ईद मुबारक के अवसर पर संसमरण)
डॉ शोभा भारद्वाज
विदेश में रहने वाले भारतीयों एवं पाकिस्तानियों के बीच अच्छे सम्बन्ध बन जाते है कारण भाषा एक से सुख दुःख | ईरान के प्रांत खुर्दिस्तान की राजधानी सनंदाज में पठान डाक्टर हुनरगुल उनकी पत्नी सूफिया के साथ हमारे मधुर सम्बन्ध थे | वह सबको खुदा हाफिज कह कर अपने शहर पेशावर पाकिस्तान लौट गये वहाँ उनकी सरकारी नौकरी थी दो वर्ष के लिए पाकिस्तान सरकार ने उनको ईरान भेजा था अब दुबारा डॉ हुनर गुल से हम मिल पायेंगे ऐसी उम्मीद नहीं थी |
ईद के लिए लोग अपने घर जाते हैं वह लौट कर फिर परदेस नौकरी करने के लिए वापिस आ गये वह सीधे हमारे घर आये | हम हैरान उन्हें देखते रह गये | आप दुबारा कैसे ? उन्होंने कहा पहले चाय के साथ कुछ खिलाईये तब मेरे साथ क्या हुआ सुनाऊँगा वह बेहद उदास थे उनकी पत्नी सूफिया मेरे गले लग कर रोने लगी उनका नन्हा बेटा उमर गुल इनकी गोद में चढ़ कर खुश हो रहा था |
खाना खाते समय हुनर गुल ने बताया मेरी ख्वाहिश थी मैं लन्दन जाकर अपने साथ एक डिग्री लगा आऊँ हम अपने घर पहुंचे अम्मी बहुत खुश हुई | अगले दिन मेरे भाई, हम आठ भाई एक बहन है हमसे मिलने आये दुआ सलाम के बाद मेरे छोटे निकम्मे भाईयों ने कहा अब हमें बटवारा कर लेना चाहिए | बटवारा कैसा आपके पुश्तैनी घर के अलावा और कुछ नहीं था ?इन्होने पूछा हुनर गुल ने बताया हमारे पठानों में एक नियम है जिसने जो भी कमाया है और पारिवारिक सम्पत्ति भाईयों के बीच एक बार बराबर-बराबर बटती है आपका इंजीनियर भाई उसने जो कमाया खर्च कर दिया | मैने अपना पैसा विदेशी बैंक में ‘पौंड ’ में रखा था सर्जरी की डिग्री लेना चाहता था आप जानते हैं मुझे पढ़ने का बहुत शौक है | मैने कहा आपके साथ जुल्म हुआ | भाभी बहुत गुस्सा आया अंदर के पठान ने कहा सबको भून दे लेकिन सूफिया की मोहब्बत ,मेरे नन्हें बच्चे उम्र की जिम्मेदारी और इल्म ने हाथ रोक दिया | पढ़ लिख कर इन्सान बुजदिल हो जाता मैं नाम का पठान हूँ पहले सबको कुरान पाक की कसम दी गयी जिसके पास जो था हिसाब किया आठो में बराबर बटवारा कर दिया मेरा ही पैसा बटा हाँ सूफिया का जेवर मायके वालों ने दिया था उस पर किसी का हक नहीं है |
मेरे बड़े भाई जान ने मना किया मैं नहीं लूगा तुम्हारे हक हलाल की कमाई है तुझे मना किया था सर्जरी की डिग्री लेकर आना यह तेरी कमाई का हिसाब करके बैठे थे समझता है तेरे पैसे से अफीम की तस्करी करेंगे | परन्तु मेरा मन नहीं माना अम्मी और आपा को देखने का मन कर रहा था मैने जबरदस्ती अपने भाई को बटवारे का हिस्सा दिया उन्होंने हमारे लिए बहुत किया था उनकी बेटी बड़ी हो रही थी उनके पास अपना कुछ नहीं था यदि वह नहीं लेते वह भी सबमें बट जाता | अगले दिन अभी अन्धेरा था मेरे छोटे भाई अपने हिस्से का रुपया लेने आ गये सबकी अपनी जरूरत थीं किसी को ट्रैक्टर लेना था किसी को बाग़ खरीदना था किसी ने दूकान खोलनी थी मैने कहा दो एक दिन सब्र कर लेते जबाब था बाबू साहेब आप तो डाक्टर है बहुत कमा लेंगे हमें तो खटना है क्यों परेशान हो रहे हो | पहले सबका हिसाब किया अपनी नौकरी अटेंड कर वहाँ दुबारा छुट्टी की अप्लिकेशन देकर लौट आया |
डॉ हुनर गुल रो कर बोले आप जानते हैं मैने ईरान इराक की लड़ाई के बीच मारीवान बार्डर पर ड्यूटी की थी वहाँ तनखा के साथ वीजा ( स्पेशल अलाउन्स मिलता था | रात दिन गोले चलते थे अस्पताल जख्मियों से भरा रहता था मैं सर्जन बनना चाहता था अब सब कुछ लुट गया जो मेरे हिस्से का था बहन बड़ी हो रही थी उसकी शादी के लिए बड़े भाई साहब को दे आया उसकी सगाई हो चुकी है निकाह की तारीख टाल रहे थे | भाईजान अम्मी और बहन को सम्भालते है मेरी बड़ी भाभी बहुत नेक दिल है | मैने पूछा यदि आप बटवारा नहीं मानते उन्होंने बताया दुनिया के किसी कोने में भी छिप नहीं सकता था आप अफ़रीदियों को नहीं जानते मुझे जान से मार देते पंचायत बैठने के बाद वह मुझे उठने नहीं देते फिर पहले कसम खिलाई थी |
डॉ हुनरगुल और उनकी पत्नी सूफिया इस ईद पर बहुत भावुक थे हम जानते थे उनके पिता नौर्थ वेस्ट फ्रंटियर के गरीब किसान थे नौ बच्चे बड़ी गरीबी से दिन गुजरते थे |उन भाई बहनों को ईद के दिन कपड़ों में कमीज मिल जाये बहुत बड़ी बात थी छोटे बच्चों को सलवार भी नसीब नही हो पाती थी ,सलवार पुरानी फटी ही पहननी पडती थी या वह भी नहीं | कुछ बड़ा होने पर ईद के लिए वह सब छोटा मोटा काम कर थोड़े से पैसे जमा कर मेला देखने जाते परन्तु पैसे इतने कम होते थे कुछ भी खरीद नहीं सकते थे | दिन बदले उनके बड़े भाई को वहाँ के सरकारी अस्पताल में कम्पाउंडर की नौकरी मिल गई उनकी तनखा से घर चलता था वह घर-घर जा कर सुई पट्टी जैसे कुछ काम कर लेते जिसके बदले में लोग सौगात में अंडे या मुर्गी मिल जाती |हुनरगुल और उनसे दूसरे नम्बर का भाई पढ़ने में बहुत अच्छे थे | इनका एडमीशन डाक्टरी में हो गया छोटे भाई का इंजीनियरिंग में लेकिन एडमिशन के पैसे नहीं थे अत: वह फ़ीस जमा करने के लिए कराची बन्दरगाह पर मजदूरी करने के लिए गये जहाँ वह लोडर का काम कर इतने पैसे ला सके जिससे एडमिशन हो सके लेकिन आगे का खर्चा उनका बड़ा भाई उठाने को तैयार था |
इसके लिए भी वह बहुत मेहनत करते थे रात रात दूर दराज गावों में सुई पट्टी करने जाते थे लम्बे काम करने पर जैसे आपरेशन के बाद की पट्टियाँ ,खाते पीते लोग उन्हें साल छमाही दुम्बा दे देते थे उसे बेच कर वह भाईयों की किताबों का खर्चा उठाते थे | उन्होंने बताया हम ईद पर कभी घर नहीं जा पाये |बचपन में भी लगभग आधी अधूरी ईद होती थी इतनी गरीबी ऊपर से इतने बच्चे |हर छुट्टी में उन्हें आगे फ़ीस जमा करने के लिए कराची बन्दरगाह मजदूरी करने जाना पड़ता था | मैने कहा आप ट्यूशन कर खर्चा उठा सकते थे उन्होंने बताया हम अफरीदी पठान हैं हमारी कौम जाहिलों से भरी हैं उन्हें अपने एरिया में विकास भी नहीं चाहिए न बिजली न सड़क पढ़ने का सवाल ही नहीं बहुत कम लोगों के बच्चे पढ़ते थे ज्यादतर लोग अफीम की खेती करते हैं अत: सेना या पुलिस को उधर जाने नहीं देते | यदि लड़ाई हो जाए एक दूसरे पर बंदूके तान कर कहते “ मुझ पर खून सवार है या तू मुझे मार दे नहीं तो मैं तुझे मार दूंगा |” परन्तु भाभी जान शिक्षा ने मुझे समझदार और बुजदिल बना दिया | बड़े कष्ट से उनकी पढाई पूरी हुई| भाई की इंजीनियरिग पहले खत्म हुई उसे सरकारी नौकरी मिल गई समझ लीजिये होश में पहली ईद थी जो बड़ी धूमधाम से मनाई गई परन्तु अभी किसी को ईदी देने की हैसियत नहीं थी | जब मेरी नौकरी लगी अम्मी जान ने सबको ईदी दी उस दिन अम्मी सारा दिन अल्लाह का शुक्र अदा कर रोती रही अब्बा पहले ही फौत कर गये थे | हम सबकी आँखों में पानी आ गया |हुनर गुल जिस परिवार में ज्यादा बच्चे देखते थे दुखी हो जाते थे |
और सुफिया मेरी प्यारी सहेली उसकी एक ही इच्छा थी एक ऐसा बेड़े ( आंगन) वाला घर हो जिसमें एक तरफ भाभी रहती हो दूसरी तरफ वह ,दिन भर अपने अपने छज्जे पर बैठ कर गप्पें मारें | उसके पिता और डॉ हुनरगुल के पिता दोनों बचपन के दोस्त थे सूफिया ने बताया मेरे अब्बा फौज में भरती हो गये लेकिन हुनरगुल के अब्बा ने गाँव नहीं छोड़ा लेकिन अपनी दोस्ती को और मजबूत करने के लिए सूफिया और हुनर गुल को बचपन मे नाम जद ( रिश्ता पक्का ) कर दिया जब नन्हें हुनर गुल ने स्कूल जाना शुरू ही किया था उनके तन पर कमीज थी सलवार के पैसे अब्बा के पास नहीं थे | सुफिया दो भाई बहन थे उसके बड़े भाई पाकिस्तान आर्मी में कर्नल थे वह काफी समय तक सऊदिया की मिलिट्री सर्विस में रहे और सूफिया सरकारी स्कूल में अंग्रेजी की टीचर थी | मैंने एक दिन सूफिया से पूछा यदि हुनरगुल डाक्टर नहीं होते तो क्या आपकी शादी होती? सुफिया ने बताया न करने पर इतना खून खराबा होता आप सोच नहीं सकती पठान अपनी जुबान से नहीं फिर सकते | सुफिया की अच्छी तकदीर अच्छा शौहर मिला बहुत ही शानदार जोड़ा था दोनों लम्बे छरहरे, जहीन थे | डॉ हुनरगुल ने बताया सूफिया के काबिल बनने के लिए कराची के बन्दरगाह में बोझा ढोया हैं |
पहले जब वह पाकिस्तान जा रहे थे हमारे एरिया में जम कर बर्फ पड़ रही थी सूफिया ने अपने शौहर से कहा हुनर गुल तुमसे जीवन में कुछ नहीं मांगूगी बस ईरान को गुडबाय करने से पहले भाभी और डाक्टर साहब से मिला दो| हुनर गुल मजबूत गाड़ी के पहियों में जंजीर लपेट कर सुफिया को मुझसे मिलाने लाये | रात भर रह कर जब वह लौटे सुफिया ने कहा मेरी कब्र में सोयी रूह भी आपको याद करेगी |गाड़ी धीरे धीरे बर्फीली पहाड़ी पर चढ़ती रही हम परिवार सहित उनको जाते देखते रहे बच्चे अपने चाचा चाची के लिए रो रहे थे | हमारे अपने लगने वाले दुश्मन देश के बाशिंदे , उनके और हमारे बीच में लम्बी सरहद है जहाँ गोलियाँ और गोले चलते रहते हैं सरहद की हिफाजत के लिए जान हथेली पर रख कर हमारे सैनिक तत्पर रहते हैं | |हिन्दुस्तान जैसे विशाल परमाणु शक्ति से सम्पन्न देश को भी अपनी परमाणु शक्ति होने का भय दिखाया जाता है|
चित्र मुफ़्ती जी ,विनोद बंसल विश्व हिन्दू परिषद के प्रवक्ता डॉ शोभा भारद्वाज