यह तो घर है प्रेम का खाला का घर नहीं सीस कटाये भुहिं धरे तव पेठें इहि माहीं
कबीर दास जी ने कहा था प्रेम के मार्ग पर चलना आसान नहीं है |सूफी वाद के मूल में प्रेम और ईश्वर से लगाई गयी लग्न है जिसमें साधक अपने आप को खोकर परम पिता परमात्मा की भक्ति में लीन हो जाता है |सूफी संतों को औलिया या दरवेश माना जाता है अर्थात अल्लाह में रम गया इन्हें फ़ारसी भाषा में फकीर कहते हैं इन्हें दुनिया का कोई भी सुख राह से भटका नहीं सकता |अपने में मस्त रहते हैं मन से समस्त विकारों को मिटा कर अपने आप को शुद्ध कर आत्मा की शुद्धि से सीधे परम पिता परमात्मा से लो लग जाती है | सूफी वाद का जन्म अरबिस्तान और ईराक की धरती पर हुआ था लेकिन ईरान में इसे आकार मिला इसे मानने वाले कभी धार्मिक कट्टरता के शिकार हुए थे | यह सादगी का जीवन पसंद करते थे अनेक पर्शियन कवि उनका साहित्य जैसे फिरदौस का शाहनामा ,उम्र ख्याम ,हाफ़िज, सादी जिनकी पुस्तक गुलिस्तान गुलाब का बगीचा बोस्तान बहुत प्रसिद्ध हैं और रूमी उन्हें कौन नही जानता उनकी अनेक रचनाएँ और वाद्ययंत्र में उन्हें बांसुरी बहुत भाती थी इन सभी कवियों विचारकों में सूफी वाद पाया जाता है | कहा जाता है फ़ारसी भाषा में सूफी का अर्थ ‘ ज्ञान या बोध है इसमें साधक अपनी भावना को संगीत के साथ बार- बार दोहराता है | कई सूफी मानते है जब संगीत के साथ कुछ सूत्रों का तेज स्वर से उच्चारण किया जाता है वह साधक की आत्मा में समाविष्ट हो जाता है यदि आप तेज स्वर में सुमिरन नहीं भी कर रहे लेकिन भीतर ही भीतर चलता रहता है जैसे संत कबीर ने कहा था ‘मन का मनका फेर’ निरंतर सुमिरन आपके रक्त प्रवाह में रच जाता है सम्पूर्ण व्यक्तित्व ही ध्यान में खो जाता है यह साधना का ऊंचा स्वरूप है | ईरान में खुर्दिस्तान प्रदेश में ढपली के स्वर और गायन और नृत्य के साथ आराधना करते हुये गोल- गोल घूमते हुए संगीत में अनोखा सम्मोहन होता है साधक के लम्बे बाल गर्दन के साथ आगे पीछे लहराते हैं एक अजीब सा जनूनी माहौल बनते देखा जा सकता है |
Sufis in Kurdestan
भारत में सूफी वाद पर रूमी के समान ही सादी की सूफी सूक्तियों पर प्रभाव रहा है सूफीवाद ने एक और ईसाई यहूदियों और मुसलमानों के बीच विश्वास और सामंजस्य स्थापित किया दूसरी और राजनैतिक तनाव कम कर समाज में शान्ति स्थापना की |भारत में निरंतर आक्रमणों से जनता त्रस्त हो कर हा-हा कार कर रही थी धर्म के लिए संकट का समय था ऐसे में अनेक सुधारक हुए जैसे मीरा ,सूरदास तुलसी कबीर गुरु नानक देव की वाणी पूरे भारत में गूंजी और भी अनेक हिन्दू वैष्णव और भक्ति वादी विचारक भी थे जिन्होंने संगीत , ललित कला और साहित्य के क्षेत्र में बहुमूल्य योगदान दिया |मुस्लिम में भी प्रेम भक्ति के आधार पर सूफी वाद का उदय हुआ सूफी संत त्याग और पवित्रता का जीवन बिताते थे | सूफी संत मुईनुद्दीन चिश्ती मुहम्मद गोरी के साथ भारत आये और अजमेर को उन्होंने अपना निवास स्थान बनाया |हिन्दू और मुस्लिम दोनों पर इनके सिद्धान्तों का गहरा प्रभाव पड़ा। आज भी अजमेर में इनकी समाधि पर हजारों श्रद्धालु भक्त देश के विभिन्न भागों से आते हैं। पाकिस्तान और बंगलादेश से भी उनके पैरोकार भक्त जियारत करने आते हैं | दिल्ली में निजामुद्दीन ओलिया साहब जिनके मुरीद आमिर खुसरो थे ओलिया साहब ने सात सुल्तानों का शासन काल देखा था उनके इंतकाल परपर आमिर खुसरो ने लिखा गोरी सोवे सेज पर ,मुख पर डारे केश | चल खुसरो घर आपने , रैन भयी चहु देश |एक माह बाद ही खुसरो अल्लाह को प्यारे हो गये | मुम्बई के बरली में हाजी अली की दरगाह है |दरगाह और मस्जिद को सन 1431 में सूफी संत सैयद पीर हाजी अली शाह बुखारी की याद में बनाया गया था यह उज्बेगिस्तान के बुखारा के वासी थे सम्पन्न परिवार के थे भ्रमण करते हुए भारत पहुंचे थे यहीं के हो कर रह गये उन्होंने विवाह नहीं किया था | |दरगाह मजार को कहते हैं यह मुंबई के हिन्दू और मुसलमानों का महत्वपूर्ण धार्मिक पर्यटन स्थल भी है। दरगाह टापू के 4500 वर्ग मीटर के क्षेत्र में फैली हुई है। दरगाह एवं मस्जिद की बाहरी दीवारें सफेद रंग से रंगी गयीं हैं। दरगाह के निकट एक 85 फीट ऊँची मीनार है जो इस परिसार की एक पहचान है। मस्जिद के अन्दर पीर हाजी अली की मजार है जिसे लाल एवं हरी चादर से सुसज्जित किया गया है। मजार के चारों तरफ चाँदी के डंडो से बना एक दायरा है। बम्बई में आने वाले हिन्दू भी यदि मुम्बा देवी के दर्शन करने जाते हैं तो हाजी अली की दरगाह पर भी माथा टेक कर दुआ मांगते हैं | 2011 तक महिलाये भी दरगाह में अंदर तक माथा टेकने जाती थी हाजी अली दरगाह के प्रबंधन ने कहा कि हाजी अली का मजार अत्यंत पवित्र स्थान है और इस्लाम के अनुसार यहां किसी भी महिला का प्रवेश वर्जित है. ऐसे में यहां महिलाओं को केवल दरवाजे के बाहर ही खड़े रहने की अनुमति दी जा सकती है. अंदर के हिस्से में जहां 15 वीं सदी के सूफी संत पीर हाजी अली शाह बुखारी की कब्र है, वहां किसी भी महिला को प्रवेश नहीं करने दिया जा सकता. यह नियम २ नवम्बर 2012 को लागू किया गया इसका जम कर विरोध किया गया लेकिन अब प्रबन्धक दृढ है वह आदेश का सख्ती से पालन कराएगा | इस नियम के पीछे उनका तर्क है कि इस्लाम में महिलाओं का प्रवेश अस्वीकार्य है। इस्लामी कानून के मुताबिक महिलाओं के मस्जिद में भी जाने पर पाबंदी होती है। ट्रस्ट ने कहा है महिलाएं दरगाह परिसर में आ सकती हैं लेकिन जिस स्थान पर पवित्र कब्र है वहां उनके जाने पर प्रतिबंध रहेगा। जाने-माने वकील और दरगाह के एक ट्रस्टी रिजवान मचेंüट ने कहा है कि हमने अपनी बहनों से आग्रह किया है कि वह कब्र के करीब न जाएं। वे पूर्व की भांति अपनी प्रार्थना, नमाज और शाल तथा फूल अर्पित कर सकती हैं। ट्रस्ट ने यह भी साफ कर दिया है कि उनका यह फैसला अंतिम है। मौलवियों का तर्क है महिलाओं के पास अनेक घरेलू जिम्मेदारियां हैं घर से बाहर आने पर पर्दे का सिस्टम है धर्म का एक नियम होता है यहाँ हर तरह के मर्द जियारत करने आते हैं भीड़ रहती है महिलाओं का सम्मान इसी में है वह मजार के पास न जाएँ करीब छह महीने पहले लगाए गए इस प्रतिबंध का अब लागू किया गया है, जिसका विरोध भी शुरू हो गया है। मर्चेट का कहना है कि इस्लाम के जानकारों ने शरिया के कानून के अनुसार फतवा जारी किया है |नूरजहाँ नियाज संगठन की संस्थापक हैं उनके अनुसार हर माह महिलाओं में कुछ प्राकृतिक बदलाव आते हैं अत : पवित्रता का ध्यान रखना जरूरी है |मानवाधिकार वादियों ने महिलाओं का पक्ष लिया है फिर भी वह नाउम्मीद हैं | ज्यादातर अदालतें धार्मिक मामलों में फैसला लेने से बचती हैं यह भी कहा गया है आजकल महिलाएं जिस तरह के कपड़े पहनती हैं मजार तक आना स्वीकार नहीं है महिलाओं के हक में तर्क है यह एक प्रकृतिक प्रतिक्रिया है इसी से धरती पर जीवन आता है| पहले 2011 तक वह ग्रुप बनाकर पर्दे के साथ जाती थी चादर चढाई है और दुआ मांगी है यह तो इबादत है परमात्मा से प्रेम सूफियों का संदेश था संविधान में महिलाओं को बराबर का अधिकार दिया गया है समय धीरे – धीरे बदल रहा है शरियत कानून 14०० साल पुराना है शरा, शरीयत के कानून भी खलीफाओं ने समय- समय पर बदले हैं कुरान में कहाँ लिखा है महिलाएं मजार पर नहीं जा सकती हदीस पवित्र कुरआन से ऊपर नहीं है हाजी अली सूफी इस्लाम का चेहरा हैं मानव जाति के भाईचारे का संदेश देते हैं उन पर किसी की ठेके दारी नहीं है जहाँ तक औरतों की हिफाजत की बात करते हैं सजा मर्दों को देनी चाहिए जो औरतों की तरफ बदनीयती से देखते हैं |कुछ महिलाओं का तर्क है इस्लाम के अनुसार माँ के पैरों के नीचे जन्नत है यह क्यों भूल जाते हैं कुछ ने तर्क दिया हम अजमेर शरीफ जा सकते हैं यहाँ क्यों नहीं महिलाओं ने 28 अप्रैल को दरगाह में प्रवेश की कोशिश की इसमें भूमाता ब्रिगेड की तृप्ति देसाई भी थी थी लेकिन यह मामला धार्मिक से राजनीति क रंग में रंग गया यहाँ भी वोट बैंक के राजनीति खेल ी गयी,सामाजिक संगठनों के साथ राजनीतिक संगठन भी आ गये और खा गया यहाँ महिलाएं अपनी राजनीति चमकने आ गयीं महिलाओं को प्रवेश करने नहीं दिया भारी पुलिस बल का इंतजाम किया गया | समझ नहीं आता अचानक यह कट्टरवाद का चेहरा कहाँ से दिखायी देने लगा हिन्दू मन्दिरों में जहाँ महिलाओं के प्रवेश पर रोक थी वहाँ महिलाओं को पूजा अर्चना का अधिकार मिल गया | इन्सान चाँद पर पहुंच गया बड़ी बड़ी गगन चुम्बी अट्टालिकाएं बन गयीं महिलाओं ने हर क्षेत्र में अपना वर्चस्व स्थापित कर लिया मुस्लिम महिलाओं ने हिजाब का पालन करे हुए धर्म के नाम पर पर भारी विरोध के बावजूद भी तरक्की की है हर क्षेत्र में अपना रूतबा कायम किया लेकिन यहाँ मौलवी मुल्लों ने उनके पाँव धर्म की जंजीर से जकड़ दिए सूफीवाद दयालुता भाई चारे का संदेश देता है महिलाये अपने परिवार ,शौहर बच्चों की सलामती के लिए सबसे अधिक दुआ मांगती है पीर से सीधे सम्पर्क कर अपना दुःख सुनाती हैं मन्नत मांगती हैं | यहाँ भी धर्म के ठेके दार अपना वर्चस्व दिखाने लगे |असल में उन्हें अपना ही वर्चस्व हिलता दिखाई दे रहा है|
लेकिन मुम्बई के हाई कोर्ट ने अपने फैसले में कहा महिलाओं को भी पुरुषों के समान ही दरगाह में जहाँ तक पुरुष जा सकते जाने की इजाजत दी जिसका मौलानाओं द्वारा जम कर विरोध हो रहा है| अब वह हाई कोर्ट के निर्णय के विरुद्ध सुप्रीम कोर्ट जा रहे हैं |लेकिन महिलाएं इस फैसले का स्वागत कर रहीं हैं