अर्द्ध कुम्भ के अवसर पर प्रयाग राज में किन्नर अखाड़े का शाही स्नान
डॉ शोभा भारद्वाज
प्रसिद्ध समाज सेवी आध्यात्मिक गुरु अजय दास ने किन्नरों को अपने आश्रम में स्थान देकर
किन्नर अखाड़ा बनाया ऋषिवर कई वर्षों से किन्नरों के कल्याण एवं उनकी दशा सुधारने
के लिए प्रयत्न शील थे | किन्नरों को समाज में हेय समझा जाता था इनके माता पिता को
इनके पालन पोषण करने या अपना कहने में शर्म महसूस होती है इनका अपना कोई नहीं हैं
किसी के घर में पुत्र जन्म या शादी ब्याह के अवसर पर बधाई गाकर , नाच कर गुजर बसर
करते हैं ,उन्होंने किन्नर अखाड़े के 10 पीठ बनाये हर पीठ का एक किन्नर ही मण्डलेश्वर
होता है देश के लगभग 500 किन्नरों ने उज्जैन के सिंहस्थ कुम्भ में क्षिप्रा नदी के
गन्धर्व घाट पर नाचते गाते ढोल मजीरों के साथ शाही स्नान के लिए यात्रा निकाली किन्नर
ईरिक्शा पर सवार थे इसे उन्होंने देवत्व यात्रा का नाम दिया | यह उनका अपने प्रति किये गये पक्षपात पूर्ण व्यवहार का
विरोध था इनको देखने के लिए जन समाज उमड़ पड़ा लोग उनका साधू संतो के अखाड़ों के समान
फूल मालाओं से सम्मान ही नहीं इनके चरण छू रहे थे किन्नर हृदय से आशीर्वाद दे रहे
थे |इन्होने शाही स्नान कर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई अखाड़ों में नाराजगी थी लेकिन
विरोध भी नहीं किया नहीं किया|
लेकिन अखाड़ा परिषद
ने इनको अखाड़े के तौर पर मान्यता देने से इंकार कर दिया अखाड़ा परिषद की इंकार से
मेला परिषद ने भी इन्हें फंड नहीं दिया |आगे आये लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी शिक्षित
भारत नाट्यम में एमए सामाजिक कार्यकर्ता एवं गुरु अजय दास |आखिर इनके अखाड़े को 13
अखाड़ों के साथ खड़ा कर दिया गया |
राम चरित्र मानस रचयिता गुसाई तुलसीदास
जी ने वर्षों पूर्व किन्नरों को भी देवता दनुज मनुष्य की श्रेणी में रख कर सबके
समान मान कर महत्व दिया था -
“देव दनुज किन्नर नर श्रेणी ,सादर
मज्जहिं सकल त्रिवेणी”
किन्नर, भगवान विष्णु ने अमृत कलश की रक्षा
के लिए मोहनी रूप धारण किया था शिव के अर्द्धनारीश्वर रूप की पूजा की जाती हैं|
मान्यता है किन्नरों की उत्पत्ति सृष्टि के रचयिता ब्रम्हा जी की छाया से हुई थी| महाभारत में
शिखंडी की कथा प्रसिद्ध है वह एक किन्नर थे उन्हें अबध्य माना जाता था भीष्म
पितामह उनके जीवन का रहस्य जानते थे वह पूर्व जन्म में अपने भाईयों के लिए हर कर
लाई हुई अम्बा है भीष्म से बदला लेने के लिए तपस्या कर राजा द्रुपद के घर शिखंडी
बन कर जन्मी थी | अर्जुन ने शिखंडी की आड़ में पितामह पर खींच- खींच कर तीर मारे पर
पितामह नें प्रतिकार नहीं किया | पांडवों को अपने बनवास का आखिरी वर्ष अज्ञात वास से काटना
था सभी छुप सकते थे परन्तु उत्तम धनुर्धर अर्जुन ,पूरे आर्यावर्त में प्रसिद्ध थे
उन्होंने ब्रह्नल्ला के नाम से किन्नर के रूप में राजा विराट के राज्य में शरण ली
थी उन्होंने नृत्य शाला में राजा की पुत्री उत्तरा को नृत्य कला सिखा कर सुरक्षित समय
बिताया था |
मुस्लिम काल में हरमों की रक्षा के लिए मजबूत कद काठी के
युवकों को किन्नर बनाया जाता था कई किन्नर राजनीति में भी थे सुल्तान
अलाउद्दीन का सलाहकार मलिक काफूर किन्नर सुल्तान का दाया हाथ था | अलाउद्दीन की मृत्यु का कारण भी यही था
बाद में वह किंग मेकर बना | मुगल काल में किन्नरों की पूरी फौज मुगल
हरम की रखवाली करती थी | कई फिल्मों और सीरियलों में यह बकायदा एक किरदार होते हैं
जिसके चारो और कहानी बुनी जाती है|
मथुरा में पूरा सखीं सम्प्रदाय हैं यहाँ यह श्री कृष्ण की
भक्ति में लीन रहते हैं | किन्नरों ने अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष कर समाज में बराबरी का स्थान बनाने
की कोशिश की है इन्हें न्याय मिला लखनऊ न्यायालय द्वारा किन्नर समाज को तीसरे दर्जे का नागरिक एवं आरक्षण दे कर समाज
में उनके प्रति सद्भावना का संदेश दिया गया है |किन्नर सदैव समाज में चर्चा
का विषय रहें हैं | आज कल इनकी मानसिक स्थिति और सोच पर कई शोध हुये हैं |जरूरत है समाज के संवेदन शील व्यवहार की | इन्हें भी अपने आप
को बदलना पड़ेगा| कई किन्नरों ने तो चुनाव भी लड़ें हैं इनसे ज्यादा निष्पक्ष और कौन
हो सकता हैं | दुखद ब्रिटिश राज
में इन्हें अपराधियों की श्रेणी में रखा जाता था |
प्रयाग राज में अर्द्ध कुम्भ के अवसर पर सुर्ख
जोड़े में किन्नर अखाड़े के आचार्य महामण्डलेश्वर लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी सबसे आगे ऊंट
पर सवार सबसे आगे हाथ में तलवार लिए किन्नर समाज का नेतृत्व कर रहे थे उनके पीछे देश के कोने-कोने और विदेश से आए किन्नर, अखाड़े के पदाधिकारी, पीठाधीश्वर, महंत आदि रथ
पर सवार होकर चल रहे थे।उनके साथ चल रहा था मेले में उपस्थित जन समूह
अति आनन्द का अवसर था | ठाढ बाट से रथों पर सवार होकर देवत्व यात्रा निकली | इनकी पेशवाई अलोपी बाग़ में शंकराचार्य आश्रम
में पूजा करने के बाद आगे बढ़ी | किन्नर
अखाड़े की शोभा अनोखी थी झांकियों में सजे धजे किन्नरों को देखने के लिए भीड़ उमड़
पड़ी किन्नरों ने अधिकतर सुर्ख लिवास धारण किया था वह नृत्य कर रहे थे कुछ वाद्य
यंत्रों के साथ बड़े डमरू बजा रहे थे| अब अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद को किन्नर अखाड़ा
शब्द पर आपत्ति थी उनके अनुसार अखाड़े 13 ही रहेंगें उन्हें अन्य संतों के अखाड़ों
में शामिल किया जा सकता लेकिन अलग मान्यता नहीं दी जा सकती |
किन्नर अखाड़े के धूमधाम से प्रयागराज में जलूस निकालने के बाद के कई अखाड़े उनके
अखाड़े को अपने साथ मिलाना चाहते थे लेकिन किन्नर अखाड़ा जूना अखाड़े के साथ जाना
चाहता था जिससे साढ़े चार लाख साधू जुड़े है |किन्नर अखाड़े के आचार्य महामण्डलेश्वर
के अनुसार किन्नर उप देवता की श्रेणी में आते हैं भगवान श्री राम का किन्नरों को
आशीर्वाद है वह जिसे भी आशीर्वाद देंगें वह सार्थक होगा | वह सनातन धर्म की रक्षा के लिए वह कृत संकल्प
हैं किन्नरों को अपने केश बहुत प्रिय होते हैं वह मुंडन कराने को भी तैयार हैं |
उनका अखाड़ा सनातन धर्म के प्रचार को नई दिशा देगा आज धर्म परिवर्तन कर लोग दूसरे
धर्मों में जा रहे हैं वह धर्म की रक्षा का संकल्प लेते हैं |
उनकी तीन शर्ते थीं वह अपने नाम के
आगे अखाड़ा शब्द लगाना चाहते है अर्थात
अपनी पहचान जूना अखाड़ा में विलीन नहीं करेंगे | उनके पदाधिकारी अपने पदों पर काम
करते रहेंगे अपना वर्चस्व बनाये रखेंगे यही नहीं अखाड़ा अपनी परम्पराओं को नही
छोड़ेगा
किन्नर अखाड़े का कुम्भ में राजतिलक के साथ स्वागत किया गया लाल साड़ी पहने
किन्नर अखाड़े की महामण्डलेश्वर त्रिपाठी अपने किन्नर समाज के साथ जूना अखाड़े के
साथ भव्य यात्रा करती हुई गंगा तट पर पहुँचीं |गंगा तट बम बम भोले की जयकार से
गूँज उठा| किन्नर महाकाल के उपासक हैं शंखनाद के साथ किन्नर सन्यासी अखाड़ा संगम के
घाट पर अपने निशान एवं पहचान के साथ माँ भागीरथी गंगा के संगम पर उतरा ऐसा लगा
मानों आंचल पसार कर माँ गंगा उनका स्वागत कर रही है मानो किन्नरों की आत्मा
परमात्मा से मिलने को आतुर है |युगों -युगों से ठुकराए गये समाज को अपने धर्म में
स्थान मिला सुखद , तीर्थयात्रियों की नजर उन पर थी अलौकिक दृश्य |गंगा में डुबकी लगाने
के बाद सूर्य नारायण को जलांजलि दी | कुम्भ के इतिहास में इस स्वर्णिम क्षण को कभी
भुलाया नही जा सकेगा इस ऐतिहासिक अवसर की चर्चा समाज के हर वर्ग में जोरों पर थी किन्नर
मन्दिरों में बधाई गीत गा कर अर्चना कर रहे हैं उन्होंने माँ काली की पूजा यज्ञ
में अन्य सन्यासियों के साथ हिस्सा लिया |
कुम्भ के अवसर पर साधू सन्यासी ने
घोषणा की वह देहदान की नई परम्परा की शुरुआत करेंगे उनकी देह मेडिकल स्टूडेंट की
पढ़ाई में सहायक होगी | वह तो सन्यास लेने से पहले ही अपना पिंडदान कर चुके हैं
|प्रयागराज में आयोजित कुम्भ को यूनेस्को ने विश्व की सांस्कृतिक धरोहर में स्थान
दिया है |