परदेस ईरान के “खुर्दिस्तान” में
करवाचौथ व्रत संसमरण
डॉ शोभा भारद्वाज
खुर्दिस्तान की राजधानी सननदाज से आठ किलोमीटर
दूर सलवताबाद के अस्पताल में डाक्टर पति के साथ रही हूँ वर्षों रही हूँ | करवाचौथ के
अवसर पर वहाँ की याद आते ही आँखें भीग
जाती हैं लगभग दस करवाचौथ के व्रत मैने
यहीं रखे थे | बड़ी ही ख़ूबसूरत घाटी हर मौसम में रंग बदलती थी
शहर के आखिरी छोर पर अस्पताल था यहाँ कुछ कदम नीचे कल –कल करता बहता
रुद्खाना ( पहाड़ी नदी ) था ऊंचे –ऊँचे चिनार के दरख्त बहार आने पर लाल
रंग के फूलों का धरती पर गलीचा बिछ जाता था
नवम्बर के बाद भयंकर बर्फबारी होती थी लेकिन उसमें भी ख़ूबसूरती थी हर और
सफेदी ही सफेदी नीला आकाश बाहें फैलाए पेड़ों पर जमी बर्फ, बर्फ के फूलों जैसी नजर
आती थी | जय पक्षी की मधुर आवाज मन को मोह लेती थी फरवरी के महीने मार्च की शुरुआत
में गरजते बरसते बादल कड़कती बिजली ,घाटी के हर पहाड़ से झरने झरते थे ऐसी अद्भुत
छटा मुग्ध कर देती थी |अब हर पेड़ पर कोंपलें फूटती डालियाँ सफेद फूलों के बोझ से
झुकनें लगती हर फूल बाद में फल में बदल जाता था यहाँ बागों में धरती पर स्ट्राबेरी
के पोधे और अंगूर की बेले फैल जाती थी बीच में अखरोट ,बादाम , सेब , जरदालू ,आडू विभिन्न
प्रकार के फलो पेड़ , हेजलनट,चैरी, मलबेरी के झाड़ हर तरफ खुशनुमा माहौल होता था |
करवाचौथ का व्रत अक्टूबर के महीन में पड़ता
है विवाह के कुछ वर्ष बाद हम ईरान आ गये |
पूरे एरिया में केवल हम ही उत्तर भारतीय हिन्दू थे बाकी ईरानी खुर्दिस्तान के
बाशिंदे खुर्द बहुत भले लोग | वहाँ करवाचौथ का व्रत रखने वाली मैं अकेली महिला थी
हमारे यहाँ करवाचौथ का नियम ख़ास है बायना सास या उनकी अनुपस्थिति में किसी और महिला
को दिया जाता है बायने में सात पूड़ियाँ सात ही पुयें,खीर एवं खाने के साथ सब्जी रायता
आदि का चलन है| भारत में कोई परेशानी नहीं
थी वहाँ सवाल था बायना किसको दूँ वहाँ बहुविवाह का चलन एवं तलाक प्रथा थी हाँ तीन तलाक के बजाय तलाक देने से पहले काजी की
अदालत में अर्जी दी जाती थी शाह के समय तलाक आसान नहीं था लेकिन अब ईरान में
इस्लामिक सरकार के बाद तलाक जल्दी हो जाता था परन्तु दोनों पक्षों की दलील सुनी
जाती थी फैसले में काजी महिला को कहते थे ‘जाओं खानम तुम आजाद हो गयी’ मुझे हैरानी
होती थी अपने घर, बच्चों से महरूम एक औरत कैसे अपने आप को आजाद समझेगी |इसी किये
अक्सर मेरी ईरानी सहेलियाँ कहती थी निकाह होना है परन्तु शौहर से मुहब्बत मत करना
तलाक होने की स्थिति में या शौहर जब दूसरी खानम ले आयेगा दर्द होगा |
करवा
चौथ के मामले में हम महिलायें बहुत भावुक होती हैं मैं चाहती थी ऐसी महिला को
बायना दूँ जिसका विवाह पहला हो जब तक मैं
ईरान में हूँ उसका तलाक न हो ताकि मुझे बायने के लिए और ढूंढनी न पड़े, क्या आसान
था ? भूसे के ढेर में सुई ढूंढने जैसा प्रयास था ऐसी महिलायें भी थी जिनके छह ,सात
तलाक हो चुके थे बच्चे उनके पिता को ही पालने पड़ते थे |कई कम उम्र की लड़की का बड़ी
उम्र के आदमी से विवाह हो जाता था कुछ समय बाद तलाक निकाह के वक्त ही पूरी मेहर ले
ली जाती थी यह निकाह किसी गिनती में नहीं था मेरी एक सहेली बसद अस्पताल में नर्स
बेहद खूबसूरत लम्बी छरहरी का कम उम्र में अधेड़ से विवाह हुआ उसका एक बेटा भी हुआ
तलाक पहले ही तय था| बसद नवजात बेटे के मामले में बहुत भावुक थी वह साथ ही ले आई
अक्सर कहती थी मेरी माँ को पैसा चाहिए था उसने मेरे साथ ऐसी दुश्मनी की इसे मैं
भूल नहीं सकती आज मेरे पास अपनी कमाई का इतना पैसा है मैं मेरा बेटा आराम से
जिन्दगी बसर कर रहे हैं उसने फिर शादी नहीं की|
मुझसे मिलने वाली महिलायें अक्सर पूछती थी
खानम आगा डाक्टर आपके कौन से नम्बर के शौहर हैं तुम उनकी कौन से नम्बर की खानम हो पहले मुझे गुस्सा आता
था धीरे – धीरे समझ गयी यहाँ का यही दस्तूर है मैं हंस कर कहती ‘अव्वल ते आखिर’
मतलब पहला और आखिर वह खुश होकर कहती इंशा अल्लाह | आपका कल्चर बहुत अच्छा है वह
मुझसे पूछती हमारे शौहर ने तलाक दे दिया अब घर वाले अगली शादी के लिए जोर दे रहे हैं
बताओं मैं ऐसा क्या करूं मेरे शौहर आखिरी रहे | क्या कहती ?उनके यहाँ शादी एक
अनुबंध है हमारे यहाँ अग्नि के सात फेरों के साथ कई जन्मों का साथ | आखिर मेरे
बायने का इंतजाम हो गया वह थी अस्पताल के सरायदार इस्माईल की पत्नी हमदम, पहले
उसकी सुन्दरता देख कर मुझे शक था शायद उसकी भी कम उम्र में किसी अधेड़ से शादी हुई
हो |जब मैने उससे पूछा इस्माईल तुम्हारा पहला ही शौहर है उसने कसम खा कर कहा बा खुदा बा पैगम्बर मेरा अव्वल
शौहर हैं | वह बड़ी ख़ुशी से बायना लेने को तैयार थी बस सब्जी में मिर्च नहीं डालनी
थी |
अब समस्या चन्द्रोदय की थी घर के ठीक
सामने रुद्खाने के पार विशाल पहाड़ था बसंत
के मौसम में वह हरियाला हो जाता था उस पर एक मझले कद का एकलौता पेड़ था उसके
पीछे से चाँद निकलता था वह भी लगभग दस बजे के बाद | अक्सर इस मोसम में आसमान पर
बादल छाए रहते किसी बादल के हटने पर ही चन्द्रमा के दीदार होते थे चाँद देखने के बाद ही व्रत पारन करना मेरे शौहर
के लिए बड़ी समस्या थी वह मुझे समझाते परन्तु आस्था के मामले में मैं कुछ भी समझने
को तैयार नहीं थी | बायना ,बच्चों के लिए भरपूर इंतजाम होता देकर मैं पूजा की थाली सजा कर रख देती और निढाल सो
जाती हमारे यहाँ चार बजे उठ कर कुछ खाने
का चलन नहीं है आगे की जिम्मेदारी मेरे पति की थी वह अकेले ही नहीं इस्माईल का परिवार भी
टकटकी लगा कर चाँद का इंतजार करते अब काफी दूर तक लोग जान चुके थे हिंदी खानम अपने
शौहर की सलामती के लिए रोजे से हैं चाँद के निकलने पर ही आब पियेंगी कई नजरे चाँद
का इंतजार करती जरा सा बदली हटी चाँद की चमक देखते ही कुछ आवाजें आतीं ‘माह’ (
चन्द्रमा ) मेरे पति जल्दी से मुझे उठाते मैं दीपक जला कर चन्द्र के दर्शन कर हाथ जोड़ कर
प्रणाम कर आरती के बाद जल चढ़ाती हमदम मेरी पूजा को बड़ी उत्सुकता से देखती अचानक
फिर माह बादलों की ओट में छुपे मैं तब तक पहले जम कर पानी पीती |
मैं जब तक सननदाज में रही मुझे हमदम की
गृहस्थी की चिंता सताती थी वह यदि कभी रूठ कर मायके चली जाति उसे भी पता था खानम
उसे लेने आती ही होगी मैं उसका हाथ पकड़ कर
बिना कोई प्रश्न किये उसे खींचती हुई ले आती मेरी अपने पति को सख्त हिदायत थी यदि
कोइ खानम इस्माईल में जरा भी रूचि ले मुझे बताईयेगा | बेचारा इस्माईल यदि जरा
सा भी किसी खानम की तरफ देखता मैं तुरंत हमदम को आगाह कर देती वह नों महीने बाद
इस्माईल को एक और बच्चे का बाप बना देती उसके पहले बच्चे का नामकरण उन्होंने किया
था बाकी हर बच्चे का नामकरण फ़ारसी के अच्छे अर्थ वाले शब्द ढूंढ कर मैने किया था जब हमने ईरान को अलविदा कहा उनके
घर में सात नन्हे मुन्ने खेल रहे अब दूसरी खानम, सवाल ही नहीं उठता था वह भी हम
भारतीयों के साथ रहते –रहते अच्छी गृहस्थी का महत्व समझ चुके थे उसके तीन बच्चे
स्कूल जाते थे सभी पढ़ने में बहुत अच्छे थे वह उन्हें कुछ बनाना चाहते थे |