इस्लामिक गणराज्य ईरान अपने में एक पहेली है
डॉ शोभा भारद्वाज
इस्लामिक गणराज्य ईरान अपने में एक पहेली है इस मुल्क को वही समझ सकते हैं जो लम्बे समय तक वहाँ रहें हैं जिनका जनता से सम्पर्क रहा है ईरान अपने में ही पहेली है सत्ता पर पूरी ईरान को समझना आसान नहीं है वहाँ सत्ता पर मौलानाओ पूरी तरह कब्जा कर लिया जबकि ईरानी क्रान्ति जन क्रान्ति थी जिसमें स्टूडेंट्स ने बढ़ चढ़ कर भाग लिया था वहाँ के लोग कहते ते मुल्लाओं ने हमारा आंदोलन चुरा लिया जबकि क्रान्ति का उद्देश्य प्रजातांत्रिक व्यवस्था की स्थापना करना था ईरान में बकायदा चुनाव होते हैं परिवार का एक आदमी सबका वोट दे आता है | उम्मीदवार मौलानाओं के गुट का होता है उन्हें मौड्रेट कह लीजिये या कट्टर पंथी उनका उद्देश्य मिडिल ईस्ट में शिया प्रभावित क्षेत्रों में अपना प्रभाव बढ़ाना विरोध होने पर विद्रोहियों की मदद करना , शियाओं का परचम लहराना है |
उनके पास धर्म के नाम पर शहादत देने के लिए पासदाराने इंकलाब ( ईरान में क्रान्ति दूतों का समूह ) शहादत के लिए तैयार रहते थे उनका नारा था इमाम फरमान दो फरमान दो इनका इंचार्ज स्वर्गीय जनरल सुलेमानी ईरानी गुप्त अभियानों के संचालक थे मक्का में एक अलग गेट की मांग भी ईरान द्वारा की गयी | इस्लामिक सरकार की विदेश नीति अपने देश के हितों का ध्यान रखती है मौका देख का नीति बदलती रहती है ईरान ईराक युद्ध के समय नारे लगते थे जंग -जंग ता फिरोजी ( जंग तब तक चलेगी जब तक जीत हासिल नहीं होती )लेकिन जब स्वर्गीय आयतुल्ला इमाम खुमैनी ने देखा जीतना आसान नहीं है उन्होंने सुलह की पेशकश कर जंग रोक दी ईरान टीवी में अपने संदेश में उन्होंने कहा जंग रोकना ‘जहर मार खोर्दम’( विष पान करने जैसा है |
ईरान की हार का कारण इराक द्वारा तेहरान पर चलाई जाने वाली कोरियन मिसाईल की दहशत थी |ईरान किसी भी कीमत पर परमाणु शक्ति सम्पन्न देश बनना चाहता है तभी फिरोजी(जीत ) हासिल होगी मौलानाओं का मुस्कराता चेहरा मीठी जुबान झुक - झुक कर मी बक्षी ( माफ़ कीजिएगा ) खस्ता न बाशी ( आराम से थको नहीं )दिल जीत लेता है लखनऊ में कहते है पहलेआप पहले आप में गाड़ी निकल गयी ऐसा नजारा ईरान में आम है | लेकिन आँख बदलने में मौलानाओं का जबाब नहीं है उन्हें प्रभावित करना आसान नहीं है उनका उद्देश्य है’ अपना देश पहले , स्वदेशी ‘निर्माण उनके अपने लोग करें वह विदेशियों को तभी तक सहते हैं जब तक उनकी मजबूरी है ईरान में शाह के समय विदेशों से दवाईयों का आयात होता था खांसी का कफ सिर्प स्विट्जरलैंड से आता था मौलाना आये सब बंद कर दिया उनके अपने पासदारों ने दवाई कम्पनियाँ बना ली | मौलाना फूक - फूक कर कदम रखते हैं चीन को अल्पकालीन लाभ जरुर हो सकता है दीर्घकालीन नहीं ईरान में चीन कभी पैर पसार नहीं सकेगा अब जिस दिन समझ आयेगा चीन से फायदा नहीं है तेहरान एवं बड़े -बड़े शहरों में विशाल जलूस निकलेंगे चीन के विरोध में नारे लगेंगे मर्गबा शैतान चायना ( चीन मुर्दाबाद ) मौलानाओं ने अमरीका से टक्कर ली है चीन भी सम्भल -सम्भल कर चलेगा ईरान के लोग भारत को अपना हितेषी समझते हैं ईरान में कई वर्ष तक रहने वाले जानते हैं यहाँ की विदेश नीति भारत से मैत्री की है फिर भी कश्मीर के अलगाववादियों से सहानुभूति है संसद द्वारा धारा 370 ,35 a को समाप्त करना ईरान के मौलानों को पसंद नहीं आया ईरान टीवी के लिए कश्मीर सम्बन्धित कुछ प्रोग्राम बनवाये थे | ईरान पाकिस्तान के भी करीब है ईरान परमाणु तकनीक के लिए उनसे संबंध रखता हैं जब वहां शिया मारे जाते हैं बस विरोध प्रकट करते हैं | ईरान के मौलाना जिनपिंग की काट हैं उन्होंने पूरे ईरान में पत्ता भी फड़कने नहीं दिया जरा सा विरोध का स्वर उठता है उसे वहीं दबा जाता है यदि चीन समझता है ईरान में वह पैर फैला सकेगा मुश्किल है ईरान को अपनी विदेश नीति में परिवर्तन कर चीन की तरफ झुकना पड़ा कारण अमेरिका बराक ओबामा द्वारा किया परमाणु समझौता ट्रम्प सरकार द्वारा रद्द करना ,भारत की अमेरिका के प्रति झुकाव की विदेश नीति ने ईरान को कुछ समय के लिए दूरकर दिया