अयोध्या में भव्य राम मन्दिर निर्माण
डॉ शोभा भारद्वाज
“सत्ता श्री राम की ,डंका श्री राम की अयोध्या के सिंहासन पर विराजी खड़ाऊँ का” लगभग 500 वर्ष के संघर्ष के बाद अयोध्या में भव्य राम मन्दिर के निर्माण के लिए भूमि पूजन होने जा रहा है | राजा दशरथ की पावन नगरी अयोध्या में वह हुआ था, विश्व के इतिहास में न किसी ने देखा न सुना ऐसा भी किसी राज्य में हो सकता है जहाँ सत्ता की पकड़ मजबूत करने के स्थान पर सिंहासन खाली था जिसका अधिकार था वह पिता के दिये बचनों को पूरा करने राजतिलक के दिन तापस वेश धारण कर श्री राम ने वन गमन किया भरत जिसको राज्य मिला उसे सत्ता की चाह ही नहीं थी उसने अन्याय का प्रतिकार करते हुए अपने ज्येष्ठ भ्राता को लेने सिंहासन और समस्त प्रजा के साथ वन में गये | सत्ता से ऊपर दोनों भाईयों के लिए धर्म प्रमुख था| श्री राम की खड़ाऊँ सिर पर रख कर भरत नगरी में लौटे | स्वर्ण सिहासन पर श्री राम की खड़ाऊँ 14 वर्ष तक के लिए विराजमान रहीं उन पर स्वर्ण से जड़ा सफेद सिल्क का छत्र तना था| “खड़ाऊँ के नाम का डंका बजता था “सत्ता श्री राम की डंका उनकी चरण पादुका का” और दोनों भाई भरत शत्रुघ्न तपस्वियों का वेश धारण कर सख्त जीवन जीने का व्रत ले कर सिंहासन के चरणों में बैठ गये| भरत नंदीग्राम में रह कर राम के नाम पर उन्हीं की तरह जीवन बिताते राज्य चला रहे थे |उन्होंने अपनी जननी का भी त्याग कर दिया | प्रतिदिन मंत्री, सभासद और सेना प्रमुख दरबार में उपस्थित होते श्री राम की खड़ाऊँ के सामने सिर झुका कर सम्मान दे कर राज काज करते | पवित्र पावन अयोध्या में कई दिन तक बादल सूर्य को ढके रहे ऐसा लगता था जैसे चारों और दुःख पसरा हों न गीत न संगीत ऋतुएं आती थी चली जाती थी| पर्व भी आते थे चले जाते थे न हर्ष न उल्लास केवल उदासी थी जैसे उनके राजा राम वन में रहते थे इसी तरह सम्पूर्ण प्रजा जीवन बिता रही थी उन्हें इंतजार था उस घड़ी का जब 14 वर्ष समाप्त होंगे राम अपनी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के साथ अपनी नगरी में लौटेंगे|
भारत की भूमि पर सदैव आक्रमणकारियों की नजर रही है मंगोलिया की माँ और उज्बेग पिता की सन्तान बाबर ने भारत पर हमला किया उस समय के दिल्ली के सुलतान इब्राहीम लोदी के बीच संघर्ष में बाबर दिल्ली जीत कर बादशाह बना लेकिन वह जानता था दिल्ली तब तक सुरक्षित नहीं थी जब तक आस पास के क्षेत्रों पर अधिकार न हो जाये| बाबर और चित्तौड़ गढ़ के राणा सांगा के बीच सीकरी में भयंकर युद्ध हुआ बाबर की तोपों और गोला बारूद के सामने राजपूतों की तलवारें और वीरता हार गयी अब बाबर के सामने मजबूत प्रतिद्वंदी नहीं रह गया था क्षेत्र पर कब्जा होने के बाद उसने अपने सेनापति मीर बाकी को वहाँ का सूबेदार बनाया मीर बाकी ने अयोध्या में श्री राम की जन्म स्थली में उनका मन्दिर तोड़ कर उसी के ईंट पत्थरों और गुम्बदों को मस्जिद में बदल दिया इसे बाबरी ढांचा माना जाता है |हमलावरों द्वारा मन्दिरों को तोड़ना पहली बार नहीं हमारी संस्कृति को नष्ट करने का प्रयत्न निरंतर चलता था हिन्दू समाज बहुत सहिष्णु है लेकिन अपनी भगवान राम के प्रति श्रद्धा में वह चाहते हैं दो सौ वर्ष तक अंग्रेजों का राज रहा हर हिन्दू के दिल में अपने आराध्य श्री राम के मन्दिर पर निर्मित ढाँचे को देख कर कसक उठती थी देश आजाद हुआ इसके साथ ही अयोध्या में श्री रामका मन्दिर बने प्रयत्न किये जाते रहे अब सुप्रीम कोर्ट के निर्णय द्वारा अब अयोध्या पति श्रीराम के भव्य मन्दिर का निर्माण होगा |
रामावतार -रावण के भय से सम्पूर्ण ब्रह्मांड थर्राने लगा दस सिर बीस भुजाओं एवं ब्रह्मा जी से अमरत्व का वरदान प्राप्त राक्षस राज रावण निर्भय निशंक विचर रहा था हरेक को युद्ध में ललकारता | ‘धरती’ सब कुछ सह सकती है लेकिन पाप के बोझ को सहना उसके लिए असहनीय है जबकि जब वह करवट बदलती सब कुछ उल्ट पुलट कर रख देती है उसकी छाती में धधकते ज्वालामुखियों से बहने वाले लावे में कई सभ्यतायें दब गई |जहाँ फटी वहीं हजारो लोग उसमें समा गये सागर से उठने वाली लहरें सब कुछ बहा कर ले जाती हैं तब भी कई युगों को लील कर आज भी अपनी धुरी पर घूम रही धरती अमरत्व का वरदान प्राप्त रावण का क्या करे ? वह त्राहि – त्राहि कर रही थी राक्षसों के पाप के बोझ से त्रस्त हो रही है
इंद्र वैकुंठ धाम पहुंचे सृष्टि के रक्षक श्री हरी को उन्होंने दोनों हाथों जोड़ कर मस्तक से लगा कर सिर उनके चरणों में झुका कर प्रणाम किया और नारायण से कहा ब्रम्हा के वरदान सदैव सत्य होते है रावण ने वरदान माँगा था स्वर्ग एवं पाताल में उसे कोई पराजित न कर सके अब वह अमर हो गया श्री नारायण मुस्कराये और कहा उसके वरदानों में उसकी मृत्यू निहित है | धरती पर मैं मनुष्य के रूप अवतार लूंगा वन्य जीव बानर भालू राक्षसों एवं रावण को पराजित करने में मेरे सहायक बनेगे लक्ष्मी भी धरती पर अवतरित होंगीं वह रावण की मृत्यू का कारण बनेंगी
सबसे पहले ऋषि बाल्मीकि ने रामायण में राम कथा का वर्णन लिया था| सरयू नदी के तट पर बसी पवित्र अयोध्या कौशल की राजधानी थी अयोद्धया के महाराजा दशरथ सन्तान हीन थे उन्होंने पुत्र प्राप्ति के लिए अपने गुरुदेव वशिष्ठ की आज्ञा से यज्ञ का आयोजन किया जैसे –जैसे यज्ञ की लपटों में घी अर्पित किया जाता अग्नि की लपटें नृत्य करती |आहुतियों के बीच बादलों के गर्जन जैसी कड़ककड़ाती आवाज सुनाई दी विशालकाय देव धुयें के अम्बार में प्रगट हुये उनके नेत्र शेर के नेत्रों जैसे पीले उनके लम्बे काले केश लहरा रहे थे उनके हाथों में एक पात्र था पात्र में से दूध चावल में पके भोज्य पदार्थ में से मीठी सुगंध आ रही थी देव ने पात्र महाराज दशरथ की और बढ़ा कर आज्ञा दी राजन जाओ इसे अपनी रानियों में बाँट दो राजा दशरथ |वह अंत:पुर में गये उन्होंने खीर के कटोरे से खीर को बड़ी रानी कौशल्या एवं छोटी रानी कैकई के बीच बाँट दिया दोनों रानियों ने आधे – आधे भाग महारानी सुमित्रा को दे दिए |
दस माह के बाद चैत्र माह नवमी तिथि अयोध्या का आकाश देवगणों से भर गया गन्धर्व श्री हरी का गुणगान कर रहे थे पुष्पों की वर्षा होने लगी दिव्य प्रकाश महारानी के प्रकोष्ठ में फैल गया अन्तिक्ष से ॐ की ध्वनी गूंजने लगी चारों वेद स्तुति कर रहे थे प्रकाश पुंज अन्तरिक्ष से पृथ्वी पर उतर रहा था उसी के बीच दिव्य स्वरूप में श्री नारायण प्रगट हुए अनुपम रूप महारानी घुटनों के बल हाथ जोड़ कर बैठ गयीं महारानी के मन में पहले वैराग्य उपजा फिर मोह प्रभू आपके दुर्लभ दर्शन पाकर में धन्य हो गयी | मैं नन्हे बालक के रूप में आपकी बाल लीला का सुख लेना चाहती हूँ मुझे कृतार्थ करो नारायण नवजात रूप में माता की गोद में अवतरित हुए बच्चे के रोने की ध्वनि से राजमहल चहक उठा उसी दिन महारानी कैकई से भरत ,सुमित्रा से दो बालक लक्ष्मण एवं शत्रूघ्न का जन्म हुआ अयोद्धया वासियों के आनन्द का वर्णन नहीं किया जा सकता वह नगरी की गलियों में नृत्य कर रहे थे
चारो भाई अपूर्व थे चारो भाईयों का शरीर सौष्ठव एक जैसा था केवल खाल के रंग में अंतर था वे लम्बे थे न छोटे उनका मझौला कद था ,सूर्य से भी अधिक तेजस्वी , श्री राम गम्भीर आवाज , गहरी साँस , आँखे हरा रंग लिए हुए उनमें गजब की चमक थी , बदन की खाल ठंडी ,कोमल, हरी आभा ऐसी चिकनी थी जिस पर धूल का कण भी ठहर नहीं सकता था , सिर पर घुंघराले बाल जिनकी आभा गहरी हरी थी ,सिंह जैसी चाल ,पैरों के तलुओं पर धर्म चक्र के निशान , उनके सिंह के समान ऊँचें कंधे , चौड़ी छाती भुजायें लम्बी घुटनों तक पहुंचती थी कान तक धनुष खींच कर बाणों का संधान करने की अपार क्षमता , मोतियों जैसे दांत चौड़ी छाती गले पर तीन धारियां, तीखी नाक मजबूत जबड़े भारी भौहें उनकी सांसें कमल के पुष्प सी सुगन्धित थीं जो भी उनकी छवि निहारता था पलकें झपकना भूल जाता था शौर्य और सुन्दरता का मूर्त राम चौदह कला सम्पूर्ण थे'
लक्ष्मण उनका भाई उनको पूर्णतया समर्पित सदा उनके साथ चलते थे उनके बदन की खाल सुनहरी , अप्रमित शक्ति , आँखे नीली ,सीधे बाल सुनहरा रंग लिए हुए थे वह राम के सोने के बाद ही सोते थे , राम के साथ ही भोजन गृहण करते थे जब श्री राम घोड़े पर सवार होते लक्ष्मण उनके साथ घोड़े पर सवार होकर चलते थे राम के समान ही शरीर सौष्ठव था श्री भरत की खाल की रंगत ललाई लिए हुए थी ऐसी ही लाल आँखें कमल के समान थीं घुंघराले बाल जिन पर लाल आभा थी |लक्ष्मण के जुड़वाँ भाई शत्रुघ्न शरीर की खाल नीली रंगत की थी काली आँखे काले बाल थे | प्रतापी राजा दशरथ के चार पुत्र, चारो भाई भारतीय संस्कृति के आदर्श पुरुष हैं |अनुपम पुत्र पाकर महाराज दशरथ के आनन्द का ठिकाना नहीं था |
महाराज दशरथ ने ज्येष्ठ पुत्र राम के राज्याभिषेक का निश्चय किया सब और उल्लास था लेकिन रानी कैकई ने अपने दो वरदान मांग लिए अपने पुत्र भरत का राज्याभिषेक राम को 14 वर्ष का बनवास राम ने पिता को व्यथित देखा कैकई द्वारा कारण जानने पर पिता के बचनों की रक्षा के लिए तुरंत वन जाने का निश्चय किया| निरपराध राम को बनवास ,उनके साथ पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण ने भी वन जाना अपना धर्म समझा| राज महल के बाहर सभासदों प्रमुख प्रबुद्ध जनों और जनसमाज की भीड़ बढ़ने लगी | राम और लक्ष्मण समस्त राजचिन्ह त्याग कर तपस्वियों के वेश में राजमहल से बाहर आये साथ में राजसी वस्त्रों में राजलक्ष्मी सुकुमारी सीता भी थी |
|ऋषि वशिष्ठ ने सहारे से सीता को रथ पर चढाया राम को अपनी युद्ध विद्या का निरंतर अभ्यास करते रहने का परामर्श दिया | सुमंत ने हवा के वेग से चलने वाले घोड़ों को चाबुक से इशारा किया घोड़े अगले पंजों को ऊपर उठा कर हिनहिनाये वेग से सरपट भागने लगे | राजा को होश आया, बालकनी पर आकर चीत्कार कर उठे ठहरो-ठहरो लेकिन रथ महल का दरवाजा पार कर चुका था सेवकों ने द्वार बंद करने की कोशिश की लेकिन नाकाम हो गये महल के मुख्य द्वार पर आक्रोशित जन समूह खड़ा था हर निवासी अन्याय के खिलाफ अयोद्धया छोड़ने के लिए आतुर क्षुब्ध महामंत्री ने हवा में चाबुक लहराया विशाल भीड़ के मध्य से रथ को निकाल लिया | रथ ने पहले विशाल राजमार्ग पार किया धीर-धीरे मार्ग पतला होता गया कच्चे मार्ग से चलता रथ तमसा के तट पर रुका राजप्रसाद ,नगरी पीछे रह गयी लेकिन विशाल जनसमूह भी पीछा करते आ पहुँचा यह जनता का रानी के अन्याय के विरुद्ध जन आक्रोश था |
‘राम राम कहते राजा ने प्राण त्याग दिये
पिता की अन्तेष्ठी के बाद भरत ने सिंहासन स्वीकार नहीं किया उनका मन माता के कुकृत्य पर ग्लानी से भरा था | उन्होंने वन जा कर श्री राम को वापिस अयोद्धया लाने का निश्चय किया सभी नगरवासी , मातायें और गुरुजन साथ थे | वन में सभा बैठी भरत ने राम से आग्रह किया वह अपनी नगरी में लौट कर राज्य सम्भालें उनके स्थान पर वह पिता के बचनों की पूर्ति के लिए बन में रहेंगे| माता कैकयी पश्चाताप और ग्लानी से झुकी हुयीं थी जिसने बरदान मांगा अब उसे कुछ नहीं चाहिए था जिसके लिए राज्य माँगा उसे स्वीकार नहीं था |वह राम से लौटने का आग्रह कर रही थी| लेकिन पिता नहीं थे भरत के बार-बार आग्रह पर भी राम नहीं माने अंत में भरत ने कहा मैं नहीं आपकी खडाऊ सिंहासन पर बिराजेगी यदि 14 वर्ष के बीतने पर एक दिन भी ऊपर हुआ वह अग्नि में प्रवेश कर लेंगे |रावण द्वारा सीता का हरण राम रावण युद्ध अंत में रावण का वध |
हिन्दुओं के लिए भगवान राम की जन्म स्थली का बहुत महत्व रहा है राम हिन्दुआराध्य देव हैं जन-जन के हृदय में बसते हैं हेलो हाय के जमाने में भी बहुत बड़ा जन समूह राम-राम जी या जय राम जी की कह कर अभिवादन करते हैं दुःख में मुहं से हे राम निकलता है हिन्दू की अंतिम यात्रा में रास्ते भर राम नाम सत्य है कहते हैं | काफी संघर्ष के बाद सुप्रीम कोर्ट के निर्णय को हिन्दू एवं मुस्लिम दोनों पक्षों ने स्वीकार किया किसी को एतराज नहीं है केवल कुछ मुस्लिम नेता विरोध में आवाज उठा रहे हैं लेकिन कारण राजनीतिक है |
हर मन गा रहा है आज मोरे आनन्द मंगला चार