अपना दुःख भुला कर श्री बसंत वल्लभ पन्त जी ने संस्कृत से नाता जोड़ा
डॉ शोभा भारद्वाज
श्री बसंत वल्लभ जी 84 की उम्र में उत्साह से संस्कृत पढ़ने के इच्छुक
लोगों को एक सप्ताह में दो दिन संस्कृत पढ़ाते है मैं एवं मेरी बहन उनकी पहली
छात्रा थी इससे पहले बचपन में मैने संस्कृत नाटिका शकुन्तला में भाग लिया था मेरा पार्ट बस इतना था दुष्यंत
शिकार करते हुए कण्व ऋषि के आश्रम में पहुंचते हैं मैं ऋषि कुमार के रूप में उनको
रोकती हूँ भो भो राजन आश्रम मृगोयं न हन्तवयं न हन्तव्यः राजन” या चंद श्लोक
कंठस्थ थे | छात्र जीवन में बड़ी मजबूरी
में संस्कृत पढ़ सकी थी रूप और धातु याद करना सबसे मुश्किल काम था|
आये दिन तेज रफ्तार
के कहर से अनेक लोग अपना जीवन गवाते हैं अपने जवान बेटे को खोने वाले श्री पन्त जी से हमारा परिचय नोएडा जलवायु विहार के 25 सेक्टर में हुआ था वह वायु सेना से रिटायर हो कर अपने निजी मकान
में रहते थे | अत्यंत सौम्य शांत व्यक्तित्व उनसे जब भी नमस्ते होती थी बड़े प्रेम से
मिलते थे धीर- धीरे परिचय पारिवारिक घनिष्टता में बदल गया पन्त जी का बड़ा बेटा
स्कालर शिप ले कर यूएसए. में पढने के लिए गया था उसका वहां बसने का कोई इरादा नहीं
था परन्तु मेरा अपना अनुभव है हम अपने दिन रात मेहनत से बनाये बच्चे अमेरिका के
लिए ही तैयार करते हैं| उसने वहाँ अमेरिकन लड़की से प्रेम विवाह कर वहीं
बस गया |
दूसरा बेटा वह बहुत ही मिलनसार हरेक के काम आने वाला हर दिल अजीज था
सभी उसे बब्लू के नाम से जानते थे जल्दी पैरों पर खड़ा हो गया | | बेटी की शादी हो चुकी थी |कुछ समय बाद हम अपने घर दिल्ली
में शिफ्ट हो गये लेकिन पन्त जी से सम्बन्ध कभी नहीं टूटा |
एक दिन अचानक हमारे घर के नजदीक चौराहे पर ओवर टेक करती तेज
रफ्तार से आती स्कूल बस ने पीछे से बाईक सवार को टक्कर मार कर एक नौजवान लड़के को
कुचल दिया कड़ियल जवान वहीं समाप्त हो गया सड़क पर चारो और खून फैला था हमने सुना ,लम्बी साँस
ली मन बहुत दुखी हुआ | जवान जिसे हम अजनबी समझ रहे थे पन्त
जी का शादी शुदा छोटा बेटा, छह माह के बेटे का बाप था |घर में परिवार उसके आने का इंतजार कर रहा था इस समय वह खाना खाने आता था |
पन्त जी सुन्न हो गये थे पत्नी को होश ही नहीं था जवान बच्चे की
अर्थी को कंधा देना इससे बड़ा दुर्भाग्य और क्या हो सकता हैं पति पत्नी बिलकुल आटे
का लोंदा बन गये थे नसों में खून जम गया था किसी तरह अपने मन को समझा नहीं पा रहे
थे | मन को शांत करने के लिए दोनों हरिद्वार के शांति कुंज
आश्रम में रहने लगे | गंगा स्नान करते सत्संग सुनते छह माह
बीत गये बड़े बेटे की बहू ने उन्हें वीजा भेज कर अमेरिका बुला उनके मन का संताप दूर
करने की हर कोशिश की उनमें जीने की इच्छा जगाई छह माह बाद वह भारत लौट आये |
विदेशी बहू ने उनके आंसूं पोछें थे लेकिन उनकी देशी बहू जिसे वह स्वयं
ब्याह कर लाये थे उन्हें मानसिक संताप ही दिया | आर्मी आफिसर
पन्त जी को लगा उनका जीवन निरर्थक जीने के लिए नहीं है केवल साँस लेना जिन्दगी
नहीं हैं | वह स्वदेश लौट आये |
उन्होंने दिल्ली स्थित संस्कृत भारती से सम्पर्क किया जो
राष्ट्रीय व अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर संस्कृत भाषा का प्रचार प्रसार विगत 25 वर्षों
से कर रही है यह सरकारी संस्था है जगह – जगह उनके वालंटियर संस्कृत
में वार्तालाप करना और सही ढंग से गीता पढ़ाना सिखाते हैं पन्त जी ने पहले संस्कृत
बोलना सीखा इसके बाद पत्राचार द्वारा प्रारम्भिक योग्यता प्राप्त कर संस्कृत का
प्रचार प्रसार करने का संकल्प लिया | वह कहते हैं संस्कृत
मात्र भाषा ही नहीं यह सम्पूर्ण जीवन पद्धति है |पढ़ना पढ़ाना
ब्राह्मण का धर्म है | सेक्टर 25 के समीप एक विद्यालय में
रविवार एक घंटे के लिए संस्कृत पढाने का निश्चय किया वह नियमित रूप से दो घंटे
विद्यार्थियों का इंतजार करते शुरू में लोग संस्कृत पढ़ने के लिए आकर्षित नहीं हुए
लोग अंग्रेजी पढना चाहते हैं बूढ़े पार्क में बैठ कर अपने जीवन को कोस सकते हैं
परन्तु संस्कृत पढ़ना उनकी समझ में नहीं आता तब भी वह धैर्य पूर्वक आंधी हो या
बरसात नियमित रूप से शिक्षण के लिए जाते और विद्यार्थियों का इंतजार करते |
सबसे पहले हम दोनों बहने हाथ में कापी पैन लेकर उनकी क्लास में
पहुँचीं उसके बाद अनेक हर उम्र के छात्र पहुंचने लगे धीरे – धीरे
अनेक महिलाओं ,रिटायर्ड अधिकारियों से कक्षा भर गई बच्चों की भी अलग क्लासें लगती
थी | पठत संस्कृत , वदत संस्कृत ,
लसतु संस्कृत चिरं गृहे गृहे च पुनरपि के गायन से संस्कृत शिक्षण
प्रारम्भ होता |
पन्त जी की टेबल पर कई खिलोने सजे थे वह एक – एक कर
उनका नाम बताते इसके बाद संस्कृत बोलने की शिक्षा शुरू हुई |बड़ी
हैरानी हुई संस्कृत से हम क्यों बचते थे अब पढ़ने और अटक-अटक कर बोलने भी लगे|
पन्त जी ने बताया संस्कृत हमारे जीवन से जुडी हुई है हर संस्कार में
हम संस्कृत के श्लोक सुनते हैं गीता पाठ में अनुवाद ही पढ़ते हैं फिर भी मूल श्लोक
पढ़ने की सभी कोशिश करते हैं जो श्लोक हम अटक – अटक कर बोलते
थे अब स्पष्ट होने लगे पन्त जी ने हमें संस्कृत के प्रति गर्व का अहसास कराया
हंसते हंसते संस्कृत बोलना भी सीख गये मैं अपनी आने वाली पीढ़ी को भी शुरूआती
संस्कृत पढ़ाने में समर्थ हो गयी |विवाह आदि पर जैसे ही पंडित
जी गलत श्लोक का उच्चारण करते हैं समझ जाती बाद में उन्हें सही उच्चारण सिखाती
चाहूँ तो अपना सदियों पुराना व्यवसाय पंडिताई भी कर सकती हूँ | इसी बीच सेक्टर 25 के शिव शक्ति मन्दिर के आग्रह से अब एक बड़ा कमरा मन्दिर
में संस्कृत शिक्षण के लिए उपलब्ध था यहाँ शनिवार और रविवार के दिन सायं 5.30 से
7.30 तक निशुल्क कक्षायें चलती हैं | वहाँ शिक्षण अनवरत रूप
से चल रहा है |
हमारी कक्षायें नोएडा 12 सेक्टर के कम्यूनिटी हाल में लगती थी
हम नियमित संस्कृत पढ़ रहे थे | बड़े अच्छे दिन थे अक्सर अखबार वाले हमारा इंटरव्यू
लेने आते चित्र छपता | कम्यूनिटी हाल के पास विशाल मन्दिर था यहाँ अकसर भंडारा
होता पहली प्लेट हमें अर्पित की जाती पहले
झेंप आती थी फिर हम रस लेकर खाने लगे जब
भी हम संस्कृत के सहपाठी मिलते संस्कृत में बात करते |भगनी या
भवान कुत्र गच्छति | हर वर्ष पन्त जी की संस्कृत शाला का
समापन समारोह होता सभी सदैव् अपनी उपस्थिति दर्ज कराते हैं |अबकी
बार 19 जनवरी को जब मुझे संस्कृत शाला के समापन समारोह की सूचना मिली मैं हैरान रह
गयी पंडाल में अनेक गणमान्य व्यक्ति आर्मी आफिसर बैठे थे मंच पर हर उम्र के लोग
संस्कृत में अपनी प्रस्तुतियां दे रहे थे सरलता से गीता पाठ उसका अंग्रेजी और
हिंदी में अनुवाद , शक्ति स्तोत्र गणपति वन्दना सुन कर सभी
भाव विभोर हो रहे थे | पन्त जी वैसे के वैसे अपने दायित्व के
प्रति जागरूक हंसते मुस्कराते हुए अनगिनत लोग उनके द्वारा संस्कृत अध्ययन कर चुके
हैं| उनका जन्म 31 जुलाई 1936 में हुआ था वह शास्त्री की
परीक्षा पास कर चुके हैं अब आचार्य कक्षा की पढ़ाई इस “ वय “
में पूरी कर चुके हैं वे उन
प्राचीन नि:स्वार्थ आचार्यों के प्रति सदैव आभार प्रकट करते हैं इतने
विद्यार्थियों को संस्कृत शिक्षा देकर आज भी अपने को भित्ति प्रचार्य कहते हैं तथा
हर समय शिक्षण देने के लिए तत्पर हैं |