‘महर्षि बाल्मीकि’ द्वारा रचित रामायण की भूमिका
डॉ शोभा भारद्वाज
महाराज जनक की पुत्री अयोध्या के राजाधिराज श्री राम की गर्भवती
भार्या सीता निशब्द गंगा को प्रणाम कर उनमें प्रवेश कर गई | सीता को भगवती गंगा
में ही अपना सुरक्षित घर नजर आया| उन्हें ऐसा लग रहा था जैसे भागीरथी उन्हें बुला रही हों |भगवती गंगा का
प्रबाह धीमा पड़ गया मानों ठहर गया हैं गुनगुने जल में पवित्र आत्मा रोती हुई आगे
बढ़ रही हैं उनकी आँखों से आंसुओं की धारा गंगा में विलीन हो रही है पानी कंधे से
कुछ ही अंगुल नीचे था | सूर्य नारायण का
रथ ठहर गया उन्होंने बादलों के पीछे अपने को छुपा लिया | बाल्मीकि हिले उनके बदन से कुछ मिटटी झड़ी| तत्काल नदी की और
से चार लड़के उनकी तरफ दौड़ते हुए आये उन्होंने कहा मान्यवर किसी महाराजा की महारानी
,ऐसा लग रहा है मानों स्वर्ग से उतरी हों गंगा के प्रवाह में
विलाप कर रही हैं वह अकेली हैं पहले उन्हें कभी नहीं देखा मान्यवर उनकी रक्षा करो – रक्षा करो
बाल्मीकि सीता की और भागे उन्होंने कहा पुत्री ठहरो – ठहरो मेरे साथ
चलो यह अजनबी जगह भी तुम्हें अपने पिता के घर जैसी लगेगी |मैं अपनी बेटी के
समान तुम्हारी रक्षा करुगाँ | सीता ठहर गयीं बाल्मीकि ने देखा ऐसा लग रहा था जैसे सत्यता
और अच्छाई उनके सामने रेशम की साडी में लिपटी मूर्त रूप में खड़ी जल में खड़ी है जल्दी
ही उस ग्राम की महिलाओं ने सीता को घेर लिया उन्हें वह अपने घर ले गई किसी ने नहीं
पूछा तुम कौन हो? तुम किसकी पुत्री किसकी भार्या हो इस अवस्था में निर्जन वन में
क्यों हो ? बाल्मीकि ने गंगा में स्नान किया शरीर पर जमी मिटटी की परतें साफ की
वृक्ष की छाल से अपने शरीर को ढका उनके लिए भी ग्राम वासियों ने झौपड़ी तैयार कर दी
उनकी कर्म भूमि तैयार थी एक बड़ी जिम्मेदारी सामने थी |
यह कथा यहाँ से
शुरू होती है माना जाता है कार्तिक मास की शरद पूर्णिमा के दिन महर्षि बाल्मीकि का
जन्म हुआ था | बाल्मीकि संसार
में दुःख ही दुःख हैं , दुःख का निवारण
कैसे हो और सच्ची ख़ुशी की खोज में अकेले एक निर्जन जंगल में पहुंच गये | तमसा नदी यहाँ से
प्रवाहित होकर कर गंगा में विलीन होती है इस निर्जन प्रदेश में प्रकृति के
सौन्दर्य के अलावा और कुछ नहीं था | तमसा के तट पर वह बिना हिले वर्षों ध्यान मुद्रा में बैठे
रहे उन पर से कई ऋतुएं निकल गई वह इतने स्थिर थे उन पर मिट्टी की परतें जमती गई
उनमें सफेद चीटियों ने अपने घर बना लिये | दूर से वह मानवाकार मिट्टी का ढेर नजर आते थे उसमें उनकी
तेजस्वी आँखे चमकती थी जो सत्य की खोज में आतुर दिखाई देती थी उनके हाथ धयान की
मुद्रा में जांघों पर टिके थे मस्तिष्क ध्यान की दुनिया में खोया हुआ था |
एक सर्दी की ढलती
दुपहरी चारो और बादल छाये हुये थे उनके पास ब्रम्हा के मस्तिष्क से उपजे महर्षि
नारद तीनों लोकों में अपनी वीणा से संगीत बजाते विचरण करते थे, पहुंचे |उन्होंने
बाल्मीकि से कहा तंद्रा से बाहर निकलो ऋषि श्रेष्ठ मेरी मदद करो |बाल्मीकि ने
उत्तर दिया मुझे मेरे ही संसार में रहने दो बाहरी दुनिया में थोड़ी सी ख़ुशी में भी
कष्ट छिपा रहता है |नारद जी घुटनों
पर बैठ गये उन्होंने बाल्मीकि की आँखों में झांकते हुए कहा संसार का हर जीव किसी
कर्म के लिए जन्म लेता है |
बाल्मीकि ने
उत्तर दिया ऋषिवर यदि एक भी ऐसा उत्तम कर्मठ आदर्श पुरुष जो सत्य पर अडिग है उसका
नाम बतायें मैं बाहरी दुनिया में आ जाऊंगा नारद ने उत्तर दिया राम श्री राम |
आदर्श पुरुष,
पिता के बचनों का पालन करने के लिए अपनी सुकुमारी पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण के
साथ चौदह वर्ष के लिए राजमहल छोड़ कर बन गये उन्होंने अपने बनवास का अंतिम वर्ष
दंडक वन में बिताया यहाँ राक्षस विचरण करते थे उनकी पवित्र सीता को लंका का राजा
राक्षसों का सम्राट रावण हरण कर ले गया राम रावण का भयंकर युद्ध हुआ राम ने लंका
पर विजय पाई वह अपनी राजधानी लौट आये , अयोध्या के राजा बने लेकिन जनमत ने राम को सुकुमारी सीता को
छोड़ने के लिए विवश कर दिया अभी वह नहीं जानती है उनका त्याग कर दिया गया है
अयोध्या का राजरथ, उनके देवर
लक्ष्मण चला रहे हैं उन्हें निसहाय जंगल में छोड़ देंगे| पवित्र मना सीता
गंगा में प्रवेश कर लेगी राम के अजन्में बच्चे भी उनके साथ समाप्त हो जायेंगे |ऐसा क्या दोष था
सीता में ? नारद ने उत्तर
दिया महान राजा राम अपने आदर्श राजतन्त्र में एक भी विरोध का स्वर नहीं चाहते सीता
रावण जैसे राक्षस के राज्य में रही हे अत : अग्नि परीक्षा दे
चुकी हैं फिर भी विरोध के स्वर उठ रहे
हैं |उठो सीता को अपने संरक्षण में ले लो राम कथा लिखो इसे राम के पुत्रों को भी
सिखा देना अब तुम वन में अकेले नहीं हो यहाँ एक ग्राम बस गया है |बाल्मीकि ने उठ
गये उन्होंने देखा एक राजरथ आ रहा है वह ठहर गया उसमें से सीता उतरी एक नाव से
उन्होंने गंगा पार की सीता को लक्ष्मण कुछ कह रहे हैं लक्ष्मण विचलित नजर आ रहे
हैं वह सीता को छोड़ कर नाव से दूसरे तट पर जा रहे हैं अब राज रथ भी लौट गया सीता
आगे बढ़ीं वह रास्ता भटक गयीं है नाव का भी कुछ पता नहीं था |
अब सीता बाल्मीकी के संरक्षण में थीं |दो दिन बीते वह सोचते
हुए एक पत्थर के सहारे बैठ गये नदी में सफेद पक्षी अपनी चोंच से जल भर कर अपने ऊपर
डाल रहे थे | हंसों का सुंदर
जोड़ा नर पक्षी अपनी मादा को आकर्षित करने के लिए मधुर स्वर से गाने लगा इसी समय
बहेलिये ने एक पक्षी पर तीर चलाया पक्षी धरती पर असहाय हो कर गिर पड़ा | उसके सफेद पंखों
पर खून की धारा गिरने लगी कुछ पलों में बाल्मीकि के सामने धरती पर गिर कर मर गया
दूसरा पक्षी विलाप करने लगा बाल्मीकि पक्षी का करुण विलाप सह नहीं सके करुणा से भर
गये | इतने में बहेलिया
धनुष ले कर अपने शिकार को उठाने आया बाल्मीकि की जिव्हा में सरस्वती का वास हुआ
उन्होंने कहा “ ऐ बहेलिये तुमने
मासूम पक्षियों को जब वह प्रेम में खोये हुए थे मार डाला तुम्हें कहीं चैन नहीं
मिलेगा बाल्मीकि के देखते ही बहेलिया भागा परन्तु वही ढेर हो गया |यह संस्कृत का
लयबद्ध श्लोक था |
उनके पास सृष्टि
के रचयिता ब्रम्हा पधारे उन्होंने लाला वस्त्र धारण किये थे उनके सिर और दाढ़ी के
बाल सफेद थे बाल्मीकि ने उनके पैर धोये उन्हें पीने के लिए घड़े का पानी दिया |लेकिन ऋषिवर अभी
भी उन नन्हें पक्षियों के बारे में सोच रहे थे उनका क्या दोष था ?उनमें इतना मांस
भी नहीं था जिसके लिए मारा जाये | धरती में दया क्यों नहीं है |ब्रम्हा ने कहा प्रेम में लीन आहत पक्षियों को
देख के तुम्हारे मुहँ से करुणा में अचानक श्लोक निकला था वह संसार की पहली गायन की
जाने वाली पंक्तियाँ हैं जो अतिशय पीड़ा से उपजी हैं | तुम सीता उनके
आने वाले बच्चों के संरक्षक हो तुम्हे राम कथा लिखनी है जो गायन शैली में हो ,कथा को राम के
पुत्रों द्वारा तुम्हें जन मानस तक पहुँचाना हैं उन्हें रामराज्य को चुनौती देते हुए सीता के लिए
न्याय मांगना है |बाल्मीकि चटाई पर
बैठ गये उनका चेहरा पूर्व दिशा की और था उनके हाथ में मिटटी का पानी से भरा कटोरा
था जिसमें उन्हें राम सीता दिखाई देने लगे राम सीता के जीवन की समस्त घटनायें घटित
होती दिखाई देती जिसे वह अपने श्लोकों में उतारते उन पंक्तियों में पीड़ा और
लयबद्धता थी बाल्मीकि अब भगवान महर्षि बाल्मीकि थे जिन्हें लोग आज सदियाँ बीतने पर
भी पूजते हैं |हर राम कथा का
मूल बाल्मीकि की रामायण है | आगे जा कर श्री गोस्वामी तुलसी दास ने राम चरित्र मानस के
रूप में -पहुंचा घर –घर दिया