द एक्सीडेंटल प्राईम मिनिस्टर ?
डॉ शोभा भारद्वाज
डॉ मनमोहन सिंह जी पर बनी फिल्म एक्सीडेंटल प्राईम मिनिस्टर का टेलर रिलीज किया गया है विवाद होना स्वाभाविक है डॉ मनमोहन सिंह की छवि एक ईमानदार व्यक्ति की रही रही है उनकी ईमानदारी पर किसी को शक नहीं है लेकिन आलोचक एवं विपक्ष उनके काल को घोटालों का काल कहते हैं | यह भी सत्य है इतिहास में उन्हें एक अर्थशास्त्री ,चिंतक और ईमानदार डॉ मनमोहन सिंह के रूप में भी जाना जायेगा , इन्होनें नरसिंघा राव के समय में सफलता पूर्वक वित्तमंत्री के पद भार को सम्भाल कर देश को नई दिशा दी थी |उनके विद्यार्थी उन्हें एक विद्वान् गुरू के रूप में याद करते हैं |विश्व के शिक्षा जगत में वह सदैव सम्मानित रहेंगे|
प्रश्न उठता है क्या
मनमोहन सिंह एक्सीडेंटल प्रधान मंत्री थे ? जब उनके नाम की घोषणा की गयी थी डॉ
मनमोहन सिंह जी को अनुमान भी नहीं होगा वह देश के प्रधान मंत्री बन कर दो कार्यकाल
पूरे कर सकते हैं |वह कांग्रेस में नम्बर एक या नम्बर दो की रेस के नेता नहीं थे व
राज्यसभा के सदस्य थे जबकि अधिकतर लोकसभा में बहुमत दल के नेता प्रधान मंत्री का
पद पर आसीन होते रहे है लेकिन वह सोनिया गांधी के भरोसेमंद थे उन्होंने सोच समझ कर
प्रधान मंत्री पद के लिए उनके नाम की घोषणा की थी| राजनीति को सोनिया जी ने बड़े पास से
देखा था |कुछ समय तक वह सक्रिय
राजनीति से दूर रहीं नरसिंघाराव के
प्रधान मंत्री काल तक वह चुपचाप समय का इंतजार करती रहीं | कांग्रेस का जनाधार कम होता जा रहा था दल
को नई ऊर्जा की जरूरत थी ऐसे में उन्होंने सक्रिय राजनीति में प्रवेश किया उनकी बहुत
जय जय कार हुई और उस
समय के कांग्रेस अध्यक्ष सीताराम केसरी को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया | यह इंद्राजी की पुत्र वधू थी इंद्रा जी
मानी हुई कूटनीतिज्ञ थी वह कांग्रेसी कार्यकर्ताओं को नाम से पहचानती थी ऐसी नेता
के साथ सोनिया जी को रहनें का अवसर मिला था इंद्रा जी की हत्या से एक सहानूभूति की
लहर में कांग्रेस को 425 सीटें प्राप्त हुई इस बहुमत के साथ राजीव गाँधी देश के
प्रधान मंत्री बनें | उनका
कार्यकाल पांच वर्ष तक रहा |इनके
बाद वी. पी .सिंह की सरकार रही 10
नवम्बर 1990 को ,उनकी
सरकार समाप्त हो गई , कांग्रेस
के समर्थन से देश
में कुल 64 सांसदों के साथ चन्द्रशेखर
जी की राजीव गाँधी के नेतृत्व से कांग्रेस के समर्थन से सरकार बनी| चन्द्रशेखर
अच्छे राजनीतिज्ञ थे उन्होंने कांग्रेस के हिसाब से चलने से इंकार कर दिया राजीव
गांधी ने मामूली कारण बता कर उनसे समर्थन वापिस ले लिया था फिर से चुनाव हुए राजिव
गांधी जी ने चुनाव प्रचार मे पूरा जोर लगाया
चुनाव प्रचार के दूसरे चरण में उनकी हत्या हो गयी कांग्रेस को बहुमत मिला लेकिन
कुछ सांसदों की कमी थी इसका जुगाड़ कर भाग्य से नरसिंहा राव प्रधान मंत्री बने श्री
मनमोहन सिंह उनके एक काबिल वित्त मंत्री थे |
2004 के चुनाव का रिजल्ट आया कांग्रेस के पास
पूर्ण बहुमत नहीं था , लेकिन 16 दलों के समर्थन के बाद यह संख्या 322
हो गई| सोनिया
जी यूपीए की चेयर पर्सन कांग्रेस अध्यक्षा थी प्रधान मंत्री पद पर आसीन हो सकती
थीं परन्तु विदेशी मूल का मुद्दा राजनीति के दायरे में उठ खड़ा हुआ टेक्नीकली वह
भारत की प्रधान मंत्री नहीं बन सकती थी उन्हें कितना भी त्याग की देवी सिद्ध करने
की कोशिश की जाये उनके पक्ष में तर्क दिए जायें कहने को उनकी
राजनीती में रूचि नहीं थी उन्होंने सत्ता को जहर के समान बताया था मजबूरन उन्हें किसी दूसरे का चुनाव
करना था उन्हें मनमोहन सिहं रास आये | | सोनिया
जी के प्रधान मंत्री पद के
लिए इनकार करने के बाद कांग्रेस में शानदार राजनैतिक ड्रामा शुरू हो गया हर
कांग्रेसी नेता उनसे पद सम्भालने की प्रार्थना कर रहा था बाहर चाटूकारो की भीड़ थी | अंत में सोनियाजी जी का मौन टूटा उन्होंने
मनमोहन सिहं का नाम प्रस्तुत किया और वह सौलह दलों के समर्थन के पेपर को
ले कर वह राष्ट्रपति महोदय की स्वीकृति लेने डॉ मन मोहन सिंह जी के साथ राष्ट्रपति भवन
गई | 22 मई 2004 को डॉ मनमोहन सिंह ने प्रधान
मंत्री पद की शपथ ग्रहण की |
सोनिया जी का विदेशी मूल का विषय प्रधान मंत्री पद में बाधक था परन्तु उनकी सन्तान
के लिए नही था | सोनिया
जी अपनी दो संतानों में पहले पुत्र राहुल गाँधी को भविष्य में प्रधान
मंत्री पद पर आसीन होते देखना चाहती थी जो अभी अनुभव हीन थे जनता को स्वीकार्य
नहीं होते अत:उनकी नजर में डॉ मनमोहन सिहं जी से उचित कोई नहीं था |
मनमोहन सिहं जी बिलकुल रामायण के चरित्र
"भरत "जैसे थे नेहरू जी के वंशजों का सिंहासन बिल्कुल सुरक्षित रहता |
पहले राहुल गाँधी कांग्रेस के उपाध्यक्ष
रहे अब अध्यक्ष हैं मोदी जी की सरकार के विरुद्ध महा गठ्बन्धन की तैयारी चल
रही हैं ,यदि
कांग्रेस को अधिक सीटें मिलीं बहुमत
की स्थिति में प्रधान मंत्री पद के इच्छुक भी हैं |
डॉ मनमोहन सिंह काफी समय तक ब्योरोक्रेट रहे हैं अत : उनमें एक आज्ञाकारी नौकर शाह के गूण भी भरपूर थे |ऊपर से अल्पसंख्यक वर्ग वह सिख ,चौरासी के दंगों का दाग भी कांग्रेस के ऊपर था उनकी तीन पुत्रिया हैं जिनमें राजनीतिक महत्वकांक्षा भी नहीं थी इस लिये जिस तरह परिवार वाद की राजनीति चल रही है ,अपनी सन्तान, दामाद , भाई ,भतीजों और भांजों के लिये लोक सभा के चुनाव के लिए टिकट मांगना चुनाव जीत कर सांसद बनने पर मंत्री मंडल में उन्हें जगह दिलवाना |डॉ मनमोहन सिंह किसी के लिये कष्ट का कारण नहीं बन सकते थे सोनिया जी कद पहले ही बहुत बड़ा था अब तो कहना ही क्या था ?देश में दो सत्तायें थी सोनिया गाँधी यूपीए अध्यक्षा , कांग्रेस अध्यक्ष एनएसी की चेयर पर्सन भी थीं की सत्ता ,दूसरी डॉ मनमोहन सिह जी की सरकार की सत्ता (मंत्री मंडल ) | जिन्होंने देखा वह जानते हैं जब भी प्रधानमंत्री अपने आफिस आते थे उनके हाथ में आवश्यक फाइल होती थी पीछे उनका ड्राइवर उनका खाना ले कर आता था वहां कोई हलचल नहीं होती थी पर जब सोनिया जी आती थी नेता गण ऐसे भागते थे डर लगता था आपस में टकरा कर गिर न जाएँ कहीं नमस्ते करने की होड़ ही नहीं चरण स्पर्श करने में वह कहीं पिछड़ न जाये | जी हजूरी बस पूछिये मत | मैडम को अपनी भक्ति दिखाना जैसे जीवन का सबसे बड़ा धर्म है , समझ लें सत्ता का केंद्र कौन है ?
डॉ
मनमोहन सिंह जी ने कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए उनकी नीति आर्थिक उदारी करण थी
आर्थिक सुधारों को आगे बढ़ाने में दुनियाभर में उनकी सराहना की गई | उन्होंने किसानों के हित में कृषि का
समर्थित मूल्य बढ़ाया , गाँधी
जी का स्बप्न था सबको रोजगार मिले डॉ मनमोहन सिंह के प्रयत्नों से ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना
शुरू की गई | जिसमें
वर्ष भर में 100 दिन का रोजगार प्रदान
करने का सुझाव था यह योजना उनकी देन थी पर उसे कांग्रेस जनों ने राहुल जी के द्वारा
सुझाई योजना सिद्ध करने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी ,हवाई अड्डों को निजी हाथों मे सौपा गया
जिससे उनका सौंदर्यीकरण
हुआ सुविधायें
बढ़ी और विदेशी टूरिस्ट भारत की और आकर्षित हुये |अर्थ व्यवस्था पर बोझ बने कई पब्लिक
सेक्टर को निजी हाथों में सौपा जिससे उनका घाटा कम हूआ | नौजवानों के रोजगार के अवसर बढ़ाने का प्रयत्न किया, आर्थिक मंदी के दौर में भी विदेशी निवेश
कम नहीं हूआ डॉ मनमोहन सिहं पर यह आरोप लगाया जाता था वह प्रो अमेरिकन हैं परन्तु
उन्होंने अमेरिका और रूस दोनों से सम्बन्ध बढाये| उर्जा के क्षेत्र में उन्होंने परमाणू
समझौता किया जबकि विपक्ष और यू पी ए को समर्थन देने वाले वाम पंथी दल
इस समझौते के खिलाफ थे इस समझौते के
अनुसार अमेरिका भारतीय परमाणू संयंत्रों पर निगरानी रखने के लिए अंतर्राष्ट्रीय
ऊर्जा एजेंसी को यह कार्य सौंपना चाहता था | अमेरिकन सीनेट में यह समझौता पास हो गया
,बाम पंथी दल समझौते
के खिलाफ थे उन्होंने सरकार से समर्थन खीचने की धमकी दी | सोनिया जी बामपंथी दलों की धमकी से परेशान थी वह सरकार का गिरना
ठीक नहीं समझती थी | डॉ
मनमोहन सिहं अड़ गये उन्होंने इस्तीफे की धमकी तक दे डाली , अंत में मध्यम मार्ग निकाला गया |तय यह हूआ भारत में 22 संयंत्रों में से केवल 14 की निगरानी
होगी आठ सैनिक महत्व के संयंत्रों की निगरानी नहीं होगी | बाम पंथी दलों ने समर्थन खीच
लिया परन्तु श्री मुलायम सिंह के दल से
समर्थन माँग कर सरकार बचाई गई |अपनें में मनमोहन सिंह इतने कमजोर नहीं
थे और यह
समझौता संसद में पास हो गया |
2014 के चुनाव के आते आते खाद्य सुरक्षा बिल पास
हूआ जिसका सारा श्रेय सोनिया जी एवं उनके सपुत्र को दिया गया |सभी जानते हैं जब कोई ठोस निर्णय प्रधान
मंत्री कार्यालय से लिया जाता जिस पर हो हल्ला मचता सोनिया जी उस निर्णय को वापिस
ले लेतीं डॉ
मनमोहन जी के पूरे कार्य कल में हर मंत्री अपने आप को सोनिया जी के प्रति
उत्तरदायी और वफादार सिद्ध करने में गौरव महसूस करता था| दागी मंत्रियों को चुनाव में कुछ फायदा
देने के अध्यादेश को कैबिनेट ने मंजूरी दे दी ,यह अध्यादेश उचित नहीं था इसके विरोध का
भी एक तरीका था सब सत्ता सोनिया जी के ही हाथ में थी लेकिन उनके सपुत्र राहुल गाँधी ने जिस समय
चैनल में कांग्रेस प्रवक्ता अध्यादेश पर सफाई पेश का रहे थे आकर अपना मत रख
कर उसे फाड़ दिया इससे राहुल
गाँधी का कद तो ऊँचा नही हूआ हाँ प्रधान मंत्री की किरकिरी जरूर हूई यह अध्यादेश
राष्ट्रपति के पास जाता वहीं वह उसे रोक लेते | उस समय प्रधान मंत्री विदेश में थे
उनसे फ्लाईट में पत्रकारों ने प्रश्न पूछे भारत आने पर इस्तीफे की पेशकश की उनके स्थान पर
राहुल गाँधी को प्रधान मंत्री बना दिया जाए सोनिया जी जानती थी जम कर घोटाले हो
रहे हैं उनके पुत्र की छवि खराब हो जाती |
चुनाव का समय है
कांग्रेस चुनाव प्रचार में लगी हूई थी तभी
प्रधानमंत्री के पूर्व मिडिया सलाहकार संजय बारू ने अपनी पुस्तक “ द एक्सीडेंटल प्राइम मिनिस्टर “ पुस्तक का विमोचन किया |पुस्तक
में संजय बारू ने दावा किया मनमोहन सिहं ने मेरे पास स्वीकार किया था
“सत्ता का केंद्र कांग्रेस
अध्यक्षा के पास था “|उनसे
“यह गलतियाँ तब हूई जब
सोनिया गाँधी और कांग्रेस ने उनके फैसले में हस्तक्षेप करना शुरू किया 2009 की जीत को वह अपने कार्यों की जीत मानते
थे लेकिन प्रधान मंत्री कोई भी नियुक्ति स्वतंत्र रूप नहीं कर सकते थे प्रधान
मंत्री के आफिस
की फाइल सोनिया जी के पास जाती थीं जबकि यह पद की गोपनीयता की शपथ के खिलाफ था | यह
फिल्म ऐसे समय में रिलीज की जा रही है जबकि 2019 का चुनाव नजदीक है फिल्म का टेलर रिलीज होने पर उन्होंने पत्रकारों
द्वारा पूछे जाने पर कोई प्रतिक्रिया नहीं दी |पहले राजनीतिक फिल्मों के पात्रों
को काल्पनिक नाम दिए जाते थे अब हरेक पात्र का नाम असली है फिल्म का विरोध हो रहा
है लेकिन सीनियर कांग्रेसी इस पर बैन लगाने के समर्थक नहीं है बैन से फिल्म का
प्रचार अपने आप हो जाएगा |