ईरानी खानम मुझे जीना सिखा गयी पार्ट - 2
डॉ शोभा भारद्वाज
इंकलाब ने हमारे सपने तोड़ दिए ईरान में बदअमनी फैल रही थी योरोपियन डाक्टर
पहले ही जा चुके थे पाकिस्तानी डाक्टर जाह्दान के रास्ते अपने देश लौट गये भारतीय
डाक्टरों के लिए उनके सिफारतखाने ने एक साथ निकालने का इंतजाम किया डाक्टर साहब
सबसे बाद में गये उन्होंने जाते समय मुझे बचन दिया तुम किसी भी तरह भारत आना हम
वहाँ शादी कर लेंगे पोस्ट आफेस से नियत समय पर फोन करते रहना लेकिन टर्की के
रास्ते ईरान से निकलना वह मुझे वहीं मिलेंगे | टर्की क्यों ?मैने पूछा वह रास्ता
सुरक्षित है | मैं अपने परिवार के साथ कई बार नौरोज मनाने इस्ताम्बूल जा चुकी थी
टर्की के लिए तबरेज से सीधी बस जाती थी भारत जाने के लिए ईरान एयर वेज थी लेकिन
एयरपोर्ट के हालात अच्छे नहीं थे |
हमारे घर पर पासदारों ( ईरानी क्रांति के वालंटियर )का हमला हुआ घर का सामान
बाहर फेक दिया हमारी मंहगी गाड़ी को उलट कर उस पर डंडे बरसाए गये ऐसा लग रहा था
जैसे वही उनकी सबसे बड़ी दुश्मन है हम अपने घर की बर्बादी का तमाशा देख रहे थे पासदार
औरतें हिजाब ओढ़े हमें कोस रहीं थी जैसे देश की सारी मुश्किलात की जड़ हम हैं |बाबा
के आदेश से सोने के जेवर एवं चांदी के बर्तन सुरक्षित घर में पहुंचा दिए थे उसकी
आँखे नम हो गयी हमारा शिराज से 60 किलोमीटर दूर बसी बस्ती में पुश्तैनी छोटा सा घर
था हम जो कपड़े उठा सके लेकर वहाँ आ गये| बाबा पहले ही ईराक के रास्ते फरार हो गये थे
यदि नहीं जाते मार डाले जाते उन्होंने आने वाली मुसीबत को पहले ही जान लिया था अत
: फ़्रांस में एक अपार्टमेन्ट लेकर राजनीतिक शरण को कोशिश कर रहे थे |काफी समय तक
उनका कोई समाचार नहीं आया मेरा भाई उसने ईरानी ढंग से गाल पीट कर कहा उसे बाबा हर
कोशिश के बाद भी निकाल नहीं सके थे उस पर मुजाहदीन , जद्दे इस्लाम प्रो शाह का इल्जाम
लगा कर जेल ले गये वहाँ एक रात गोली मार दी हमें शव भी नहीं दिया उसका शव नये बने काफिराबाद
कब्रिस्तान में दफना दिया गया ऐसा बहुतों के साथ हुआ था मैं जानती हूँ ऐसे
कब्रिस्तान बड़े शहरों के बाहर आम देखे जा सकते हैं |हम उसकी कब्र पर रो भी नहीं
सके| मेरी अपूर्व सुन्दरी भाभी बड़ी ही नाजुक थी उसकी सात साल की बेटी उससे भी
ज्यादा नाजुक जब रोती थी उसकी नाक लाल हो जाती घर में हम बस दो महिलायें एक बच्ची मर्द के नाम पर नन्हा बहरूष था मेरी मम्मा जान
भाई की मौत का सदमा वर्दाश्त नहीं सकीं गुमसुम रहने लगीं एक दिन ऐसी सोईं फिर उठी
नहीं यह केवल हमारे घर की कहानी नहीं थी ताना शाही में जब निजाम बदलता है कीमती
जानें जाती हैं हर शाह के वफादारों के घर का हाल बेहाल था कोई किसी के घर
मातमपुर्सी के लिए भी नहीं जाता था | मेरे बाबा ने संदेशा भिजवाया किसी भी हालत
में पैरिस आ जाओ इस्तम्बूल में वह हमें मिलेंगे अभी हाल और बदतर होने वाले हैं |
परन्तु निकलें कैसे ?ईरान और ईराक में जंग चल रही थी तूमान की कीमत कम होती जा
रही थी एक डालर या पोंड के बदले काफी तूमान देने पड़ते थे फारेन करेंसी ले जाने पर
रोक थी |बाबा ने सब इंतजाम कर दिया उनके इस्ताम्बूल में बसे दोस्त नें हमें नौरोज
के उत्सव के लिए आमंत्रित ही नहीं किया टिकट भी भेजा | सवाल था निकलें कैसे भाभी
और उनकी बेबी की चिंता ज्यादा थी | मेरा भाई निजाम की नजर में अपराधी था भाभी की
एक ही रट थी मैं मर जाऊँगी परन्तु यहाँ अपनी बच्ची को बड़ा नहीं करूंगी मेरी भतीजी
जिस पब्लिक स्कूल में पढ़ती थी अब वह बंद
कर दिया गया निजाम का मदरसा यहाँ सात वर्ष का बच्चा पहली में दाखिल किया जाता था लड़कियों
पर हिजाब की सख्त पाबंदी थी और स्कूल का स्लेबस आप जानती हैं ?स्कूल की शुरूआत
मजहबी प्रार्थना से होती थी उसके बाद मौलाना दीन पढ़ाते भाषण देते बच्चियों को
समझाया जाता तुम खानम हो तुम्हारा काम शहीद पैदा करना है |बच्चों से काफी समय तक
नारे लगवाते मर्ग –बा शैताने –ए बजुर्ग
अमरीका , मर्ग बा शौरवी ,जंग जंग ता फिरोजी , अल्लाह हो अकबर | हमने मुश्किल से
सोना और चादी के बर्तन बेच कर खर्चा चलाया था अब घर को ताला लगा कर पहले तबरेज आ
गये यहाँ से हमारा टर्की का सफर शुरू होना था |
उसका गला सूखने लगा कितना सख्त समय था
सोच कर पसीना आ जाता है जा रहें हैं लेकिन पकड़े
जाने पर क्या होगा ? जेल में मौत से भी बदत्तर हाल या एक गोली जिन्दगी खत्म
उस दिन से भी भारी दिन था जिस दिन हमारे घर पर कब्जा किया गया था टर्की के लिए बस
चल पड़ीं हमारे गले से पानी का एक घूंट भी निगला नहीं जा रहा था | हमने अपने साथ
केवल जरूरत के कपड़ें लिए थे पेस्ट भी आधी ट्यूब किसी भी तरह हमारा सामान चेक करने
वालों को शक न हो हम लम्बे समय के लिए विदेश जा रहे हैं कागजों में कोई कमी नहीं
थी जैसे ही हम टर्की बार्डर पर पहुंचे बसों का लम्बा काफिला ठहर गया अब गहन तलाशी
होगी हमारे दिल की धडकने साफ सुनी जा सकती थीं हम बेहोश होने को थी मेरे कागज चेक
किये गये कई सवाल पूछे तलाकनामा जांचा एक-एक सामान देखा एक सवाल दागा क्या नौरोज
की ईद अपने वतन में नही मनाई जा सकती ?मेरा जबाब था मेहमानी पर जा रहे हैं अब मेरी
भाभी की बारी थी उसके शौहर के साथ क्या हुआ था ?अधिकतर लोग जानते थे भाभी की हिजाब
में ढकी खूबसूरती पर लोगों की आँखें टिक जाती थी खुश किस्मती जिस समय भाभी से
प्रश्न पूछे जा रहे थे उनकी बेटी बुरी तरह छींकने लगी छींकते-छींकते बेहाल हो गयी
फिर खांसने लगी ईरानी ,आप जानती हो बच्चों पर बहुत मेहरबान होते हैं उन्होंने भाभी
से पूछा तुम्हारी बेटी है भाभी ने बर्थ सर्टिफिकेट उनके सामने रख दिया अबकी बार
बेटी ऐसी बेहाल हुई ईरानी आफिसर द्रवित हो गया उसने पूछा बच्ची इतनी बीमार थी आप
सफर पर क्यों निकली ?बीमार बच्ची का ध्यान रखिये कैसी माँ हैं आपको मौज करने की
सूझी है वह अगले मुसाफिर की तरफ मुखातिब हो गया कई ईरानियों को शक के आधार पर रोक
दिया गया केवल खार्जियों (विदेशी ) को जाने दिया लेकिन उनके छुपाये डालर पकड़ लिये
बस में बैठते ही भाभी ने बेबी की जम कर चूमा आज वह उसी के भाग्य से बची थी
इस्ताम्बूल में बाबा और डाक्टर साहब दोनों खड़े थे न जाने मेरे मन में शक था वह न
आयें हम दोनों बाबा से चिपक गयीं बाबा जोर- जोर से रोने लगे जवान बेटे की याद ,
खानम का तड़फ-तड़फ कर जान देना विधवा बहू ,बे बाप की बच्ची |
डाक्टर साहब के साथ उनके होटल में आ
गयी भाभी और बेबी के पैरिस जाने का बाबा ने पहले ही इंतजाम कर लिया था मैं और भाभी
एयर पोर्ट पर चिपक गयीं बड़ी मुश्किल से अलग हुई पहले रोईं फिर अपनी मुक्ति पर हंसी
अब मेरा अगला इम्तहान था दिल्ली में इंतजार करते डाक्टर साहब के मम्मा पापा |
डाक्टर साहब गम्भीर थे वह मेरे लिए भारतीय लिवास लाये थे लेकिन मैं चहकना चाहती थी
मैने चादर हवा में उड़ा दी दोनों हाथ फैला कर घूंम गयी |बहरूष डाक्टर साहब से पहले
ही हिला मिला था उनकी गोद में चढ़ा तालियाँ बजा रहा था | दिल्ली एयर पोर्ट पर
उन्होंने मुझे बड़ों के पैर छूने सिखाये मैं अब पूरी तरह नये परिवेश के लिए
तैयार थी | डाक्टर साहब का घर पोश कालोनी
में था दो मंजिली कोठी ,कोठी के एक तरफ उनकी क्लिनिक का बोर्ड लगा था घर का दरवाजा
माली ने खोला मैने डाक्टर साहब की तरफ देख कर इशारे से पूछा पैर छूने है उन्होंने
आँखों के इशारे से मना किया |इनके पापा दरवाजे पर खड़े थे मम्मा सोफे पर बैठीं थीं
| डाक्टर साहब और मैने उनके पैर छुए वह हैरान हुए पापा ने अपने बेटे से पूछा तूने
समझाया होगा यह हँसने लगे | मम्मा हैरानी से बहरूष की तरफ देख रही थी ईरानी बहू वह
भी बच्चे के साथ उनके चेहरे का भाव मैं समझ गयी लेकिन समस्या का हल मेरे बेटे
निकाल लिया वह मेरी गोद से उतर कर मम्मा के पास गया सोफे पर बैठी मम्मा से चिपट कर
रिश्ता गाँठ लिया ‘मम्मा पीरा’ अर्थात दादी उन्होंने हैरानी से डाक्टर साहब की तरफ
देखा अब तक बहरूष उनकी गोदी में चढ़ गया, उसकी अगली फरमाईश थी आब वह उन्हें खींच कर
फ्रिज के पास ले गया उसने पानी की तरफ इशारा किया पानी पीने के बाद अगली फरमाईश थी
क्षीर वह दूध मांग रहा था मम्मा ने दूध गर्म करवाया जब तक उसका दूध बोतल में डाल
कर लाया गया उनकी गोदी में बैठ कर बिना मांगें उनको बूस ( किस )किया वह निहाल हों
गयी वह उन्हीं की गोद में दूध पीने लगा दूध पीते –पीते सो गया तब से ऐसा उनकी गोद में चढ़ा है अब तक नहीं
उतरा वह मन्दिर , सत्संग जहाँ भीं जाती उनके साथ जाता कृष्ण जन्म अष्टमी पर वह उसे
कृष्णा बना कर मन्दिर ले गयी झूले पर बिठाया जिसने जो भी अर्पित करना चाहा उसने
सबको निहाल किया खाया ही नहीं हाथ उठा कर आशीर्वाद भी दिया दादी उस दिन इतना हंसी
पेटू को आज नजर लगी है |
आर्या समाज मन्दिर में हमारी शादी हो गयी | डाक्टर साहब ने बल्लभगढ़ में
नर्सिंग होम खोला वह अक्सर वहीं रहते हैं मैं रोज पलवल शटल से बल्लभगढ़ जाती हूँ
नर्सिंग होम की देख रेख करती हूँ शाम को लौट आती हूँ पीछे घर भी देखना है डाक्टर
साहब की मदद के लिए एक डाक्टर भी हैं | हमारी एक बेटी है वह मौलाना आजाद से
डाक्टरी पढ़ रही है |डाक्टर साहब बहरूष को डाक्टर बनाना चाहते थे लेकिन उसकी रूचि
लिटरेचर में थी उसने इंग्लिश में एमए एवं एमफिल किया अब दिल्ली यूनिवर्सिटी कैंपस
में लेक्चरर है साथ ही पर्शियन टू इंग्लिश डिक्शनरी पर काम कर रहा है उसने मेक्स मूलर भवन से
पर्शियन सीखी अब तो उसका ब्याह हो गया लड़की भी उसने खुद ही पसंद की है ‘नूर’ पारसी
है ईरान के शाह ने इस्लाम स्वीकारा था ईरानियों पर धर्मांतरण का जोर डाला गया लेकिन
जोराष्ट्रियन ने ईरान छोड़ दिया वह धीरे –धीरे भारत आ कर बस गये | वह दूध में पानी की तरह मिल
कर रहते हैं नूर के माँ बाबा बहुत पहले बम्बई आ गये थे उनका ईरानी कहवा खाना है
बहुत भीड़ रहती है | नूर पढ़ने के लिए दिल्ली आई हास्टल में रहती थी बहरूष और वह एक
दूसरे को पसंद करने लगे उसने अपने दादी बाबा को समझाया पारसी अग्नि की पूजा करते
हैं उनका नया वर्ष नौरोज है |इनकी शादी दिल्ली से हुई दादी बाबा ने अपने सारे
अरमान पूरे किये बहरूष की घोड़ी के आगे दोनों नाच रहे थे हमें डर था कहीं बिमार न
पड़ जायें दिल खोल के मेहमानों को उपहार दिए | क्या मुझ सा भाग्यवान कोई है ?नहीं
तुम्हारी भाभी और बाबा ,बाबा सात वर्ष बाद दुनिया को अलविदा कह गये भाभी ने दुबारा
शादी नहीं की वह फ्रांस में बसे रिफ्यूजी ईरानियों के लिए संघर्ष कर रहीं जिनका अब
अपना वतन भी नहीं है उनको जीने का मकसद मिल गया | बेटी की फ्रेंच नेशनल से शादी हो
गयी वह मुझसे मिलने भारत आयीं थीं |
अब बल्लभगढ़ पास था मैने उनको अपना कार्ड दिया आगे सम्बन्ध बढ़ाने के लिए पता
एवं फोन नम्बर माँगा फरी नें मुस्करा कर कहा पर मैं तो तीन या चार महीने के बाद मर
जाऊँगी| क्या कह रही फरी उसने बताया उसे कैंसर है मेरा दिल बैठने लगा तुम रोज सफर
करती हो अरे बहुत दर्द होता होगा क्या करती हो उसने बताया पेन किलर लेती हूँ कभी –
कभी इंजेक्शन भी लगते हैं आल इंडिया से इलाज चल रहा है, गाड़ी में सब अपने हैं
संभाल लेंगे जब तक ज़िंदा हूँ ऐसे ही चलती रहूंगी अंतिम समय बस डाक्टर साहब के साथ
रहूंगी उनके सामने आखिरी सांस लूंगी
स्टेशन आ गया मैने उसका हाथ पकड़ लिया पूछा आखिरत या पुनर्जन्म ?फरी ने अपने अंदाज
से हँस कर कहा शौहर के हाथों में जाऊंगी ‘पुनर्जन्म’ बहरुष के यहाँ जन्म लूंगी ऐसा
परिवार क्या छोड़ने के लिए हैं ?मैने हाथ हिलाया कहा फरी खुदा हाफिज हमेश गाड़ी
रेंगने लगी वह तब तक हाथ हिलाती रही जब तक मैं आँख से ओझल नहीं हो गयी |