ईरानी (पर्शियन )समाज में हिंदी भाषा का महत्व
डॉ
शोभा भारद्वाज
मुझे
कई वर्ष तक परिवार सहित ईरान में रहने का अनुभव रहा है | ईरान के शाह मोहम्मद रजा
पहलवी ,पहलवी राजवंश के आखिरी शाह थे उन्होंने शान शौकत के साथ आर्य मिहिर की उपाधि
धारण की उनके खिलाफ क्रान्ति का ऐसा माहौल बना शाह को अपना देश छोड़ना पड़ा |शाह
प्रगतिशीलता एवं धर्म समभाव में विश्वास रखते थे उन्होंने तेल की दौलत से शहरों का
विकास किया था लेकिन गाँव प्रगति से अछूते थे |काफी खून खराबे के बाद इमाम
आयतुल्ला खुमैनी के नेतृत्व में इस्लामी सरकार का गठन हुआ | पहली बार मैने अपने दो
बच्चों के साथ ईरान की धरती पर पैर रखा ईरान में निजाम बदला हुआ था इस्लामिक सरकार
अपने पैर जमा रही थी एयरपोर्ट से ही समझ आने लगा ऐतिहासिक समय है एयरपोर्ट का
अधिकाँश हिस्सा अँधेरे में था जैसे ही इमिग्रेशन की कतार में खड़ी हुई रिवोल्यूशनरी
गार्ड (इन्हें पासदार अर्थात क्रान्ति दूत कहते हैं ) पहुंच गये उन्होंने इशारा
करते हुए कहा लुतफन समझ गयी ‘कृपया’ हिजाब के नियम का पालन करना है |
ईरान की राजधानी तेहरान बेहद खूबसूरत हैं
बहुमंजिला कांच से जड़ी इमारतें बाजारों की सुन्दरता मन्त्र मुग्ध कर देती हैं भाषा पर्शियन है सुनने में बहुत मीठी बोलने का लहजा आकर्षक है वह जब धीरे-धीरे बोलते हैं
संस्कृत का अहसास होता यहाँ संस्कृत भाषा की बहुत इज्जत हैं उसे खुदाई जुबान कहते
हैं हमारे यहाँ देववाणी जब फ़ारसी ग्रामर
पढ़ाई जाती है उस्ताद बताते हैं फ़ारसी की ग्रामर संस्कृत से ली गयी है हमारी हिंदी
में फ़ारसी के शब्दों की भरमार है फ़ारसी में कई शब्द जाने पहचाने हैं कईयों के अर्थ
अलग जैसे ‘गरीब’ अर्थात विदेशी हिंदी के कई शब्द फ़ारसी से बने हैं जैसे ‘चप रस’ दायें
बाएं चलते रहने वाला चपरासी |
फ़ारसी के महान
विद्वान जिन्हें तूतिये हिन्द कहा जाता था अमीर खुसरो ने विभिन्न
भाषाओं जिनमें फ़ारसी का बहुत बड़ा योगदान
हैं खड़ी बोली को संवारा इसे साहित्यिक भाषा बनाया | उन्होंने फ़ारसी के मेल से हिन्दवी में
अनेक रचनाएँ की इन रचनाओं में अलग तरह की मिठास है |
वेदों में ख़ास कर ऋगवेद की ऋचाओं की संस्कृत सबसे प्राचीन
भाषा है ईरान में उसी काल की भाषा अवेस्ता कहलाती है यह धर्म ग्रन्थों की भाषा थी
भाषा के इतिहास के अनुसार अवेस्ता और संस्कृत दोनों बहने हैं कहते हैं यह आर्यों
की भाषा है संस्कृत से जन्म लेने वाली भाषाएँ हिंदी, पंजाबी ,मराठी ,कश्मीरी एवं
अन्य भारतीय भाषाएँ हैं कुछ को संस्कृत की वर्णमाला में लिखा जाता है | अवेस्ता
पारसियों की धार्मिक भाषा जिससे आज बोली जाने वाली फ़ारसी है इससे ,बिलोची ,पश्तो
खुर्दी, उर्दू और दारी ( दरबारी भाषा ) निकली हैं
यह फ़ारसी लिपि में लिखी जाती है परन्तू बोलने में खुर्दी का लहजा अलग है
|भारत का नाम हिन्द, भारत वासियों का हिंदी नामकरण ईरान में किया गया था भारत में
बहने वाली सिंधु नदी उसका क्षेत्र ,अवेस्ता में सिंधू को हिन्दू कहते हैं पर्शियन
में पूरे भारत के लिए हिन्द का प्रयोग किया जाने लगा | भारतीयों को वह हिंदी कहते
हें |
हिन्द शब्द का प्राचीन काल में प्रयोग शरफुद्दीन यजदी की
पुस्तक जफर नामा में मिलता है जिसे 1424 में लिखा गया था | फारसी की प्रसिद्ध
पुस्तक कलील की मूल कथा संस्कृत में पंचतन्त्र की कथाओं से ली गयी है ऐसे ही फारसी में
लिखी गयी नल दमन कथा संस्कृत की नल दमयन्ती की प्रेम कथा है जिसे फैजी ने लयबद्ध किया
था यह लैला मजनू की कहानी की तरह सुनाई जाती है ईरान में शाम को कहवाखानों में ईरानी
चाय पीने जाते हैं यहाँ आज भी किस्सा गोई का चलन हैं |जिनमें भारत के किस्से मशहूर
हैं |
एक किस्सा मन को छू गया भारत में दरबारों में फ़ारसी भाषा का
चलन था एक सम्पन्न परिवार नें बचपन में फ़ारसी पढ़ने के लिए अन्य बच्चों के साथ अपना
एकलौता बेटा इस्फहान भेजा जब वह फ़ारसी का उस्ताद बन कर अपने गाँव लौटा पिता ने
उत्सव का आयोजन किया उसी रात बेटे को बुखार आ गया वह बुखार की बेहोशी में आब- आब
रट रहा था पिता ने आसपास के गावँ के सभी लोग बुला लिए लेकिन लडके की तड़फ कम नहीं
हुई और दूर के लोग भी बुला लिये घर के बाहर भीड़ लगी थी बेटे ने दमतोड़ दिया परिवार
के लोग विलाप कर रहे रहे थे उधर से एक दाना (विद्वान ) गुजरा उसने पूछा क्या हुआ था
?उन्होंने बताया बेटा ईरान से पढ़ कर आया था बुखार हुआ आब – आब कह रहा था हमने दूर –
दूर से लोग बुलाये पर हमारा बचवा बच नहीं सका| विद्वान क्रोध में चिल्लाया मूर्खो
वह आब फ़ारसी में पानी मांग रहा था माँ बिलखने लगी
आब –आब कहिले पुत्ता खटिया तले रहिले पानी हम समझे नहीं वानी पुत्ता |
लगातार महिलाएं बाजार में मेरे पहनावे माथे की बिंदी से समझ
जाति थीं मैं हिंदी हूँ मुझे सलाम की न कह बड़ी अदा से नमस्ते कहती थीं और खुश होती
थीं |
तेहरान एवं ईरान के बड़े शहरों में कुछ लोग हिदी एवं उर्दू
जानते थे वह सही लहजे में बोलते थे कुछ अटक – अटक कर बोलने की कोशिश करते थे शाम
को हम एक रेस्तरां में खाना खाने गये वहाँ हिंदी खाना मिलता था रसोईया पंजाबी था
लेकिन अब मालिक ईरानी था वहाँ खाना खाने वाले ईरानी थे केवल हम भारतीय |रेस्टोरेंट का मालिक ने हमें देख कर कहा खुशामदीद
बिफर्मा ऐसा लगा राजस्थान के चोखी धानी में खाना खाने गये हैं मालिक ने पधारो सा |
यहाँ रसोईया पंजाब का था बहुत उदास रहता था उससे कहो भाजी कैसे हो वह खिल उठता
हिंदी मिश्रित पंजाबी में बात करता था उसे ऐसा लगता वह पंजाब में अपने गावँ के
सरसों के खेत में पहुंच गया | ईरानी भी उसे भाजी कहते उसके हाथ की बनी करी वाली
सब्जी रायता, दाल एवं तन्दूरी पराठें खाने दूर –दूर से लोग आते थे |हैरानी की बात
थी वहाँ खाना खाने आने वाले ईरानी हिंदी या हिंदी उर्दू मिश्रित भाषा में धीरे – धीरे
बात करते उनकी बातों में दर्द था वह शाह के जाने से कुछ समय पहले ही वतन में बसने
आये थे वह ईरानी निजाम की निंदा और भारत के जिस राज्य से ईरान में आये थे वहाँ की
बातें करते | यहाँ उन्हें भारतीय खाने का स्वाद खींच लाया हमें देख कर उन्होंने
मेरे पति को तो डाक्टर का सम्बोधन किया मुझे भाभी किसी ने वहिनी भी कहा समझ गयी वह
भारत को भूले नहीं हैं |
एक बार हम तेहरान
घूम रहे थे आपस में हिंदी में बात करते हुए ईरान की तानाशाही की निंदा कर रहे थे
एक हिजाब पहने महिला ने कंधे पर हाथ रख कर मुम्बईया हिंदी में कहा आप लोग हिंदी
हैं वहाँ प्रजातंत्र हैं यहाँ इस्लामिक डिक्टेटरशिप |यहाँ काफी लोग जो पासदार भी
हैं हिंदी जानते हैं आप मुश्किल में पड़ जाओगे |उसने बताया मुम्बई में हमारा कालीन का
व्यपार था बच्चे बड़े हो गये पढ़ कर दिल्ली में नौकरी करने लगी वहीं बस गये हम मिया
बीबी ने सोचा अंतिम समय अपने वतन जाते हैं
देश में तेल से समृद्धि आई थी अपना व्यपार बेच तेहरान आ गये कुछ दिनों में इंकलाब
आ गये समझ आ गया गलती हो गयी |उसने हमें खरबूजे का जूस पिलाया घर के लिए भी
आमंत्रित कर रही थी |
ऐसे ही शिराज में हम घूम रहे थे किसी बात पर हंसने लगे एक नौजवान
हमारे पास आया : ईरानी था लेकिन अच्छी हिंदी में उसने कहा ‘समझ गया आप भारत से
आयें हैं आपके देश में ख़ुशी का मौल रहता है परन्तु हमारे यहा शिया समाज अधिक हंसता
नहीं हैं आप बाहर गम्भीर रहें कम हंसें |उसने बताया वह आंध्र के इंजीनियरिंग कालेज
में पढ़ता हैं आंध्रा में रहता है हिंदी सुन कर हैरानी हुई हमारे अपने लोग हिंदी से
परहेज करते हैं |
यहाँ
शाह के समय थियेटरों में हर हिदी फिल्में लगती थी कुछ समय थियेटर बंद रहे अब फिर
लगने लगीं लेकिन काट छांट कर दिखाई जाती थी डायलाग भी अपने मतलब के बदल दिए जाते |
इनका सेंसर बोर्ड बहुत सावधान था फिल्म को इतना काटा जाता हिरोईन नजर ही नहीं आती
थी |मदर इंडिया इनकी प्रिय फिल्म थी उसे देखते समय महिलायें रोती थी |शोले के
डायलाग लोगों को कंठस्थ थे हेमा मालनी को पोस्टर भी बिकते थे | हिंदी फिल्मों पर
वह कहते थे आप लोगों की फिल्में बहुत भाव प्रधान हैं अंत में बुराई पर अच्छाई की
जीत होती है | कुछ फिल्में हिंदी में दिखाते हैं नीचे फ़ारसी में तर्जुमा चलता था |
“डब” करने की कला में ईरानियों का जबाब नहीं था | यह फिल्में ईरानी टेलीवीजन से भी
दिखाई जाती थीं 1975 में आई दिलीप कुमार
की फिल्म शक्ति का नाम बदल कर कानून कर दिया |उन्हें हिंदी गाने बेहद प्रिय थे
टैक्सी में हमें हिंदी देख कर टैक्सी वाले हिंदी गाने लगा देते |(उन्हें टैक्सी
वाला कहना अजीब लगता है निजाम बदलने के बाद कालेज बंद थे लोग बेरोजगार थे उन्होंने
अपनी गाड़ी को टैक्सी बना कर चलाना शुरू कर दिया था |पहाड़ी रास्तों में गाने बहुत
अच्छे लगते थे |
हम
ईरान में खुर्दिस्तान की राजधानी सनन्दाज में रहते थे मैं पहली बार वहाँ पहुंची
आसपास के लोग अस्पताल में इकठ्ठे हो गये अपनेपन का ऐसा अहसास मैं आज भी भूल नहीं
सकी ‘हाले शुमा खूबी सलामती’ ( आप कैसे हो घर में सब कैसे हैं ) एक बुजुर्ग औरत ने
आशर्वाद दिया खुर्रा न मरे ( आपके बेटे की लम्बी उम्र हो हैरानी हुई वह खुर्दी
भाषा बोल रहे थे लेकिन उसमें अनगिनत हिंदी शब्द थे दूध को क्षीर , खाना गिजा उलटी
कै दादी की ममा पीरा आपस में व्यवहार में पुरुषों को काका ,अस्पताल दरभंगा और
चौकीदार सरायेदार एवं इंचार्ज रईस कहलाता |
ईरान के शाह पहलवी के जमाने में हिंदी शिक्षण के लिए किसी
विशेष विभाग का जिक्र नहीं है शाह की रूचि पाश्चात्य शिक्षा एवं विज्ञान में अधिक
थी मेघावी छात्रों एवं अपने समर्थकों को अमेरिका एवं योरोपियन देशों में भेजते थे जब वह पढ़ कर लौटे उन्होंने वह राजतन्त्र पर प्रश्न उठाना उठाने लगे ,बदले में
उन्हें प्रजातंत्र के स्थान पर दीनी सियासत मिली विश्व विद्यालय बंद कर दिए गये अब
ग्रेजुएशन के लिए ईरानी छात्र भारत आने लगे &यहाँ कम खर्च में अच्छी शिक्षा है | इराक ईरान के युद्ध की समाप्ति के बाद उच्च
शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया गया बड़ी संख्या में निजाम ने भारत में छात्रों को पढ़ने
भेजा ख़ास कर पासदार भारत आये वह हिंदी बोलना एवं लिखना जानते थे |
यहाँ भारत के लिए हिंदी सेवा की शुरुआत 1998 में
की गयी हिंदी को लोकप्रिय बनाने में वरिष्ठ सम्वाददाता जाने माने रिजवी साहब का बहुत
बड़ा हाथ है प्रतिदिन भारतीय समय के अनुसार
साढ़े सात बजे से साढ़े आठ बजे तक रात को आठ से नों तक कार्यक्रम दिए जाते हैं
जिनमें प्रतिदिन के समाचार ,ईरानी लेखकों की कहानियाँ ,फ़ारसी लिखना बोलना सिखाना,
धार्मिक शिक्षा, ईरान की भौगोलिक स्थिति की जानकारी अंतर्राष्ट्रीय समाचार नियमित
प्रोग्राम हैं |श्रोताओं के लिए समाचारों की समीक्षा तबसरे दिए जाते है इच्छुक
नियमित रूप से सुनते हैं श्रोता पत्र भी लिखते हैं जिनके जबाब दिए जाते हैं इन सबका
सामाजिक कार्यकर्ता श्री रिजवी को श्रेय जाता है उनके स्वर्गवासी होने के बाद उनकी
याद को ताजा रखने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार ने राजधानी लखनऊ की एक सड़क का नाम रिजवी
मार्ग रखा | लखनऊ में अधिकतर
शिया मजहब के लोग रहते हैं वह मूलतः ईरान से आये हैं भारत के धर्म निरपेक्ष माहौल
में उन्होंने अपनी संस्कृति को बचाए रखा रेडियो तेहरान ने हमारी पत्रिका नाम से
हिंदियों के लिए त्रैमासिक पत्रिका निकाली | भारत एवं महात्मा गांधी का बहुत सम्मान है
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